बेचारा गाँधी

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एल आर गाँधी

यकायक ५०० -१००० के गाँधी पर बैन लगा कर माया-मुलायमों और नकली गान्धिओं को तो मोदी ने एक ही झटके में हलाल कर दिया ! झटका तो इस बेचारे असली गाँधी को भी लगा और झटका देने वाली कोई और नहीं हमारी अर्धाङ्गिनी जी ही थीं। माचिस की डिबिया खरीदने के लिए भी हमारी ज़ेब टटोलने वाली अबला नारी ने जब अचानक हमारे आगे ३१, ५०० -५०० के गाँधी ला पटके ….. कभी हम उनको और कभी बेचारे ‘ ढोंगी बाबा ‘ को निहार रहे थे !
३१ गाँधी अंटी में सहेज़ हम मार्निग वाक् से फारिग हो ‘मोदीजी के बैंक – डाक खाने ‘ जा विराजे …. मैडम यथापूर्व बैठी सुस्ता रहीं थी ….. हमने ५००-५०० के नोट और खाते की कॉपी जिसमें अभी ९८ रूपए बाकी खड़े थे … मैडम जी के आगे रख दी …… मैडम ऐसे उछली मानो किसी ने मधुमक्खियों के छत्ते में ईंट दे मारी हो …. फ़ौरन सीट पर से उछल कर बोली ! हमारे पास नए नोट नहीं आए … बैंक में जाओ …. हमने सुना ‘भाड़ में जाओ’ ! एक भिकारी की सी मुद्रा में हमने अरज़ किया … मैडम हम लेने नहीं ,देने आए हैं !
मैडम ने गहरी सांस ली और अपनी कुर्सी के बाज़ू सम्हालते हुए बोली भाई साहेब हमें क्या पता कि इनमें कितने ‘गाँधी’ नकली हैं ….. आगे हम भी गाँधी जो ठहरे ‘भारत छोडो ‘ के लहज़े में मैडम को चेताया …. जमा तो हम करवा के ही जाएंगे ! पैंतरे बाज़ बाबू के लैह्ज़े में बोली ! पैन कार्ड है , आधार कार्ड है , खाता आप का ही है ! हम भी तपाक से बोले जी है ! जमा करता फ़ार्म और एक किसी पुराणी लेज़र का ख़ाली कागज़ थमा दिया ! सभी नोटों के नंबर लिखो ,मोबाइल नंबर , अपने दस्तख़त व् खाता नंबर लिखो …. हम काम लग गए ! इस बीच जितने ‘बेचारे’ आए सभी बैरंग लौटे ….
हम ३१ गाँधी निपटा कर घर की ओर रुखसत हुए जैसे महात्मा जी नमक आंदोलन की सफल दांडी यात्रा से थके हारे , कस्तूरबा की शरण में जा रहे हों !

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अर्से से पत्रकारिता से स्वतंत्र पत्रकार के रूप में जुड़ा रहा हूँ … हिंदी व् पत्रकारिता में स्नातकोत्तर किया है । सरकारी सेवा से अवकाश के बाद अनेक वेबसाईट्स के लिए विभिन्न विषयों पर ब्लॉग लेखन … मुख्यत व्यंग ,राजनीतिक ,समाजिक , धार्मिक व् पौराणिक . बेबाक ! … जो है सो है … सत्य -तथ्य से इतर कुछ भी नहीं .... अंतर्मन की आवाज़ को निर्भीक अभिव्यक्ति सत्य पर निजी विचारों और पारम्परिक सामाजिक कुंठाओं के लिए कोई स्थान नहीं .... उस सुदूर आकाश में उड़ रहे … बाज़ … की मानिंद जो एक निश्चित ऊंचाई पर बिना पंख हिलाए … उस बुलंदी पर है …स्थितप्रज्ञ … उतिष्ठकौन्तेय

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