आमिर, जानते हो देशभक्ति क्या होती है?

आमिर, तुने देश के लिए क्या किया? क्या अपने किसी बेटे को सीमा पर भेजा? कभी किसी आपदाओं में जाकर मदद की? देश के लिए अपना क्या खोया? तुम्हारी बेगम जो अब तुम्हें ये देश छोड़कर जाने को कहती है उससे जरा जाकर पूछो तो की असहिष्णुता का इतिहास किसकी रगों में है? ‘अतुल्य भारत’ का विज्ञापन करते हो, विदेशियों को भारत आने को कहते हो, राष्ट्र की एकता की वकालत करते हो, सत्मेव जयते जैसे कार्यक्रमों से सामाजिक बुराइयाँ दूर करने का पाखण्ड दिखाते हो! लेकिन किसके लिए? इतने ही सहिष्णु हो, इतने ही सेक्युलर हो तो क्यों नहीं मुस्लिम महिलायों की बेहतरी के लिए आवाज उठाते हो? क्यों नहीं बुर्का प्रथा, खतना, बहुपत्नी विवाह जैसी घिनौनी कुप्रथायों पर कार्यक्रम बनाते हो? उस समय तुम्हारी सहिष्णुता कहाँ गयी थी, जब तुमने अपनी पहली पत्नी को छोड़ डाला था? क्या गलती थी उसकी? खुद को बड़ा देशभक्त बताते हो, लेकिन कभी इस दोहरे चरित्र की सजा मिली तुम्हे? नहीं! क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ है ना तुम जैसे स्वार्थी को बचाने के लिए!

आमिर, शायद तुम सहिष्णु होने का कभी अर्थ नहीं जान पाए| लगान, मंगल पांडे जैसी फिल्मों के सहारे जिस देश ने तुम्हें सिर-आँखों पर बिठाया, देशभक्त का दर्जा दिया, शोहरत दिलाई, बेसिर-पैर के फिल्मों पर भी जमकर पैसे लुटाये आज तुम्हारे लिए असहिष्णु हो गया है| उसका मुखर हो जाना तुम्हे डरा रहा है| देश समझ सकता है की इसके पीछे भले ही कोई राजनैतिक स्वार्थ हो, लेकिन भारत का इतिहास इससे परे है| आमिर, जानते हो, भारत वो देश है जिसने हजारों सालों तक तुम्हारी कौम (इस्लाम) की गुलामी झेली है| उसने बाबर से लेकर अकबर, जहाँगीर और जिन्दा पीर औरंगजेब के शासन तक चुपचाप सिर झुकाकर कोड़े खाए हैं| उसके बाद अंग्रेजों को झेला| उसके पूजा स्थलों तक तो लुट लिया गया, तलवार के जोर पर सनातन धर्म छोड़ने पर मजबूर किया| लेकिन इनसब पर कभी तुम्हारे जैसे तथाकथित सच्चे देशभक्त का न सोचना, इनपर फिल्म न बनाना अपने आप में तुम्हारे लिए जबाब है|

आमिर, जरा अपनी बेगम से पूछ कर देश को बताओ की दुनिया में तुम्हारे बच्चों के लिए सबसे सुरक्षित जगह कौन सी है? पता है तुम्हें की अभी पेरिस में सिर्फ 129 मरें हैं लेकिन बात मुसलमानों को देशनिकाली पर चली गयी है| लेकिन भारत में इस्लाम के बन्दों ने जो अबतक हमलों में 80,000 जानें लेकर सहिष्णुता दिखाई है इसपर भी तो अपनी राय दो| कभी जैन, बौद्ध, सिख क्यों नहीं कहते की उनपर अत्याचार हो रहे हैं| दुनिया में सबसे ज्यादा खुशहाल भारत में रहने वाले ‘पारसी’ हैं| इनपर कभी अत्याचार की ख़बरें क्यूँ नहीं गूंजती? क्योंकि इन धर्मों का मिशन साम्राज्य विस्तार नहीं है| कभी समय मिले तो इराक या सीरिया में जाकर मकान देख आओ! या फिर सऊदी अरब तो है ही, बेगम को घुमाकर दिखा दो की महिला आजादी क्या होती है? सहिष्णुता क्या होती है? बहुत मज़ा आता है न तुम्हें हिन्दू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाने में| कभी कुरान का मजाक उड़ाकर देखो, तब तुम्हारे ही सहिष्णु लोग तुम्हें बताएँगे की असहिष्णुता क्या होती है?

कश्मीर से चार लाख हिन्दुओं का सबकुछ लुटा जा रहा था, तब तुम कहाँ थे? जब कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम हो रहा था, उनके घरों पर इश्तेहार चिपकाये जा रहे थे, उनकी इज्जत लुटी जा रही थी, तब तुम्हारी जुबान क्यों सिली थी? इनसब पर कभी तुम्हारी जुबान खुली? तब क्यों नहीं असहिष्णुता के विरोध में किसी ने पुरस्कार लौटाए थे? मैं बताता हूँ की देशभक्ति क्या होती है| पिछले दिनों कश्मीर में शहीद हुए कर्नल संतोष महादिक की पत्नी ने अपने दो नन्हें बेटों को सेना में भेजने की घोषणा की| जबकि तुम जैसा स्वार्थी इंसान इतनी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद भी अपने बेटे की चिंता कर रहा है| तुम और शाहरुख़ जैसे इन्सान की सोच किस प्रवृति की देने है, सब जानते हैं|

आमिर, सहिष्णु तो हिन्दू हैं, क्योंकि “हर पीर फ़क़ीर कोठी में, राम हमारे तम्बू में” फिर भी अगर तुम्हें हिन्दू युवाओं का सर उठाकर चलना, मुखर होना या हर धर्म के साथ आँख से आँख मिलाकर व्यवहार करना असहिष्णुता है तो तुम अपने रहने न रहने के फैसले कर ही डालो| इस देश का इतिहास, उसकी विविधता तुम्हारे विचारों की मोहताज़ नहीं… क्योंकि इंसानियत के तराजू पर दोनों पलड़े बराबर होते हैं… हंसी आती है की सहिष्णुता हमें वो सिखा रहा है जिसके धर्मं ने विरोध के डर से ईशनिंदा कानून बना रखा है…

5 COMMENTS

  1. अच्छा आलेख है.लेकिन मैं लेखक की इस बात से सहमत नहीं हूँ कि “भारत वो देश है जिसने हजारों सालों तक तुम्हारी कौम (इस्लाम) की गुलामी झेली है| उसने बाबर से लेकर अकबर, जहाँगीर और जिन्दा पीर औरंगजेब के शासन तक चुपचाप सिर झुकाकर कोड़े खाए हैं|” पहली बात तो यह कि लगभग छह सौ वर्षों के मुस्लिम अधिपत्य को विद्वान लेखक ने ‘हज़ारों वर्षों कि गुलामी’ बता दिया है!मोहम्मद गौरी ग्यारहवीं शताब्दी के अंत में आया था और सत्रहवीं शताब्दी के समाप्त होते होते मुग़ल सल्तनत का सितारा डूबने लगा था!और इस बीच में भारत के पीड़ित शोषित हिन्दू चुप नहीं रहे थे बल्कि निरंतर देश में कहीं न कहीं आज़ादी की मशाल कोई न कोई नायक प्रज्वलित किये रहा!और १७०७ में औरंगज़ेब के मरने के बाद मुग़ल दरबार खोखला हो गया था! तनख्वाह के लिए भी राजा रतनचंद जैसे लोगों से उधार लेना पड़ता था!और १८५७ में बहादुर शाह के बहुत पहले ही शाह आलम के ज़माने में ही कहावत बन गयी थी कि “नाम है शाह आलम और हुकूमत है दिल्ली से पालम”.तो मिस्टर परफेक्शनिस्ट, तुमने कुछ अच्छी फिल्मे दी जो तुम्हारा धंदा था और उसके बदले अरबों की दौलत कमाई! लेकिन क्या उस कमाई में से कुछ भी देश के या समाज के लिए किया? और तो और अपनी मुस्लिम कौम के लिए भी क्या किया? कितने आधुनिक शिक्षा के केंद्र खोले? कितने महिलाओं के लिए कल्याण केंद्र खोले?केवल देश से लेना ही सीखा है या कुछ देने की भी कभी इच्छा दिखाई?तुम कहते हो तुम्हे देश से प्यार है लेकिन क्या यह प्यार केवल फिल्मों के जरिये मुनाफा कमाने तक ही सीमित रहना चाहिए?

  2. अश्वनी जी, पहले अपनी भाषा ठीक कर लें यह तहजीब बताती है. गुलस्सा आप करें झो कहना है कहें कितु सादगी से…

  3. आश्विन जी , आप (तुम नहीं ) इस लेख से क्या कहना चाह रहे है ? किसी नेता ने सीमा पर अपने बेटे भेजें है ? क्या तुम्हरा हिन्दू धर्म एक भंगी ,चमार को मंदिर में जाने देता है ? आप ताकतवर है तो क्यों मुगलों के कोड़े आप पर चले ? क्या आप किसी हिन्दू गरीब को मानसिक तोर पर बराबर मानते हो ?आप भारत में असिष्णुता है और सबसे ज्यादा तथाकथित उच्च वर्ग के दिलोदिमाग में है |

  4. अगर हम भारत के इतिहास पर नजर डाले तो हम पाएंगे की यहाँ के वासीयों ने अन्य विचारधाराओं के प्रति जबरजस्त सहनशीलता और सहिष्णुता दिखाई है, इसका कारण यह है कि हिंदुत्व मूलतः बहुलवादी और लोकतान्त्रिक जीवन पद्धति है. इस शहनशीलता की वजह से हमें बहुत नुक्सान भी उठाना पडा है, लेकिन हम अपने मूल स्वभाव से विमुख नहीं हुए. छिटपुट कुछ घटनाओं से अन्यथा प्रमाणित नहीं किया जा सकता. बावजूद इसके आमिर खान की टिप्पणी से देशवासीयो के दिल को ठेस पहुँची है.

  5. यह मुखरता नहीं बल्कि खुली गुंडागर्दी है,जो आमिर या उन सबको डरा रही है,जो उस गुंडागर्दी के साथ नहीं हैं.कलाकार की कला को सराह कर कोई उस पर एहसान नहीं करता.अहसान तब माना जाता,जब उसकी सब प्रस्तुतितों पर एक ही तरह की ताली बजती.पर क्या ऐसा होता है?तालिबानी हुकूमत चला दीजिये कि कोई सिनेमा नहीं देखे,पर क्या आज आप जैसेलोग ऐसा कर सकते हैं?दिलीप कुमार ,देवानंद और राजकपूर एक ही समय में मशहूर थे,तो यह उनकी कला थी या उनके प्रति कोई एहसान किया जा रहा था?मुकेश अम्बानी ने भी इसी देश से कमाया है.जब वह करोड़ों एक ऐसे मकान बनाने में खर्च कर ,देता है, जिसका कोई उपयोग नहीं है,तो कोई उससे क्यों नहीं पूछता कि उसने अपने घर के आसपास की झुग्गियों के उत्थान के लिए क्या किया?j

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