आप – परिवर्तन या पलायन

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सुजाता मिश्र 

Arvind kejrivalखुद को सबसे अलग , सर्वश्रेष्ठ, एकमात्र देशभक्त का तमगा देने वाली आम आदमी पार्टी का सच में क्या आम आदमी से कोई रिश्ता है ? जब यह दल नया – नया बना था तो अन्य लोगों की तरह मुझे भी लगा कि शायद यह एक बड़े परिवर्तन की शुरुवात है। किन्तु बहुत जल्द ही अपनी नीतियों, कार्यपद्धति और उमीदवारों के चयन से स्वघोषित देश भक्त अरविंद केजरीवाल ने यह साबित कर दिया कि आम आदमी पार्टी अन्य राजनीतिक पार्टियों से अलग बेशक हो पर श्रेष्ठ कतई नहीं है। यह एक ऐसी पार्टी है जिसके सदस्यों की संख्या बहुत है , पर कोई व्यवस्थित ढांचा नहीं है। भीड़ की तरह लोगों को जोड़ लिया गया है , जिनकी न तो कोई विचारधारा है न उत्तरदायित्व , है तो सिर्फ चुनाव लड़ने की लालसा। कांग्रेस और भाजपा सहित अन्य राजनितिक दलो पर अरविंद केजरीवाल और उनकी तथाकथित “आम” आदमी पार्टी जिस तरह से आरोप लगाते हैं उससे अरविंद केजरीवाल अपनी ही अहमियत खोते जा रहे हैं। आम आदमी पार्टी बनने से पहले जो अरविंद अन्ना हज़ारे के साथ लोकपाल आंदोलन में शामिल थे उनकी जो इज्जत देशवासियों के मन में थी आज उन्ही देशवासियों के मन में केजरीवाल की मंशा के प्रति संदेह है।

दिल्ली में शीला दीक्षित और उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के अनेक आरोपों के दम पर , शीला दीक्षित के खिलाफ सबूतों के दम पर चुनाव जितने वाले अरविंद केजरीवाल ने चुनाव के तुरंत बाद न सिर्फ कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनायी बल्कि शीला दीक्षित के भ्रष्टाचारी शासन पर भी चुप्पी साध ली। यही पहला और बड़ा धक्का था उन सभी के लिए जिन्होंने एक परिवर्तन की उम्मीद से आम आदमी पार्टी को वोट दिया था। मीडिया द्वारा और जनता द्वारा अरविंद केजरीवाल से इस बाबत सवाल करने पर उन्होंने बड़े मंझे हुए नेताओं की तरह चुनाव पूर्व शीला दीक्षित के खिलाफ प्रस्तुत किये सबूतों को नाकाफी बताते हुए शीला दीक्षित के खिलाफ कार्यवाही को टाल दिया , आज केजरीवाल की उसी राजनितिक चाल का नतीज़ा है कि शीला दीक्षित को केरल का राजयपाल बना दिया गया है। क्या सच में केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ थे? क्या उनकी नीयत साफ़ थी ? खैर ये तो बस शुरुआत थी , उसके बाद अरविंद केजरीवाल एक के बाद एक जनता का भरोसा तोड़ते गये। उनके कानून मंत्री विदेशी महिलाओं के साथ बदसलूकी करते पकडे गये , उन पर दिल्ली उच्च न्यायलय में आरोप भी साबित हुआ किन्तु केजरीवाल ने अपने कानून मंत्री का न सिर्फ समर्थन किया बल्कि अरविंद और उनकी पार्टी के विरोध – प्रदर्शन के कारण दिल्लीवासियों को अराजकता और अव्यवस्था का सामना भी करना पड़ा। क्या अरविंद केजरीवाल ने कभी भी सच में आम आदमी की दिक्कतों को समझा ? अरविंद जी मैले – कुचैले कपडे पहनकर , मफरल लपेटकर ही कोई आम आदमी नही बन जाता , यदि आपको सच में आम आदमी की कोई परवाह होती तो अपने स्वार्थ के लिए आप दिल्लीवासियों को यूँ परेशान नहीं करते। किन उम्मीदों से आपको वोट दिया था दिल्ली वालों ने , और क्या किया आपने , सिर्फ कोरी घोषणाएं ? न पानी का बिल कम हुआ न बिजली का , न ठेके पर काम करने वालो की सुनी आपने न कानून व्यवस्था के लिए कुछ किया। कैसे करते सामने लोकसभा चुनाव जो थे। जिसके लिए एक सुनियोजित तरीके से आपने दिल्ली की सरकार को गिरा दिया। “लोकपाल के लिए हज़ार बार मुख्यमंत्री की कुर्सी कुर्बान “ आप की इन दलीलों पर कौन भरोसा करेगा ? कौन इसे त्याग मानेगा ? कैसा त्याग ? अरविंद जी आप कोई भी एक मुद्दा बनाकर , उसे “अदर एक्सट्रीम “ तक ले जाकर जिम्मेदारी से हटना चाह रहे थे , सो हट गये। यह कोई त्याग नही पलायन है। “हिट एंड रन “ आपका मूल स्वाभाव है। अन्ना के जन आंदोलन के बाद जब आपने राजनीति में उतरने का निर्णय लिया तब आप कांग्रेस पर एक के बाद एक आरोप लगाते रहे। गम्भीर आरोप लगाकर सबको भ्रष्ट कहकर मुद्दे को भूल जाना और मामले को छोड़ देना अरविंद केजरीवाल के लिए सहज सामान्य बात है। सरकार बनाना भी “हिट” जैसा था और फिर इस्तीफा देना “रन” जैसा।

आम आदमी की पार्टी में सभी खास लोगों को उम्मीदवार बनाना क्या साबित करता है ? जो लोग आम आदमी पार्टी से अन्ना के आंदोलन के समय से जुड़े रहे , जिन्होंने ज़मीनी स्तर पर कार्य किया उन्हें उम्मीदवार न बनाकर आप सभी जाने – माने चेहरो को उम्मीदवार बनाते नज़र आये। बताईये कहाँ थे आपके ये तथाकथित देशभक्त पिछले दस सालो से ? कहाँ थे ये देश भक्त अन्ना आंदोलन के समय ? जो आज अपनी बड़ी – बड़ी नौकरियां छोड़कर लोकसभा चुनाव में उतर रहे हैं आपके टिकट पर। क्या ये हैं भारत के आम आदमी ? कांग्रेस या भाजपा के नेताओं के उद्योगपतियों से सम्बन्ध पर आप सवाल दागते हैं , और खुद आपकी पार्टी बड़े – बड़े व्यापारियों , मालिकों बड़े – बड़े अधिकारियों को टिकट देती है उसका क्या जवाब है आपके पास ? आप करे तो चमत्कार , कोई और करे तो भ्रष्टाचार ? आप हमेशा से मीडिया पर आरोप लगाते रहे हैं की मीडिया को भाजपा और कांग्रेस ने खरीद लिया है , पर जब आप खुद एक पत्रकार से सेटिंग करते नज़र आये तो आप कहते है इतना तो चलता है। वाह क्या बात है , और आश्चर्य तो तब होता है जब आप भगत सिंह को अपना आदर्श बताते हुए एक पत्रकार से कहते हुए दिखे कि कांग्रेस और भाजपा वालो ने भगतसिंह को आतंकवादी घोषित कर दिया पर मैं उन्हें शहीद मनाता हूँ। अरविंद जी क्या आप नही जानते आपकी पार्टी के संस्थापक सदस्य प्रशांत भूषण ही वो शख्स हैं जो सुप्रीम कोर्ट में भगत सिंह को देशभक्त मानने के खिलाफ लड़ रहे हैं , जी हाँ आपकी पार्टी के अहम् सदस्यों ने ही भगत सिंह को आतंकवादी घोषित किया है। क्या आपको जरा भी संकोच नही होता इस तरह लोगो की भावनाओं से खेलते हुए ?

आप किस आधार पर कहते हैं कि आप परिवर्तन लाना चाहते हैं ? सत्ता पाने की जो हड़बड़ाहट आम आदमी पार्टी में दिखती है वो आज तक किसी भी राजनितिक दल में दृष्टिगत नही हुई। क्या शर्म की बात है की आप मुख़्तार अंसारी जैसे नेताओं तक का साथ लेने को तैयार हैं, क्या इन्ही के दम पर भ्रष्टाचार दूर करेंगे? महज एक साल हुए हैं आपकी पार्टी बने और आप प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नज़र रखे हुए हैं ? यदि सच में आप में कोई जिम्मेवारी होती तो आप पहले दिल्ली की सरकार को चला कर दिखाते , जो कुछ था आपके पास उस से खुद को साबित करते , पर नही आप तो चंद महीनो में ही मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बन जाना चाहते हैं। महज़ 49 दिन आपने दिल्ली की सरकार चलाई और सालो से गुज़रात में सरकार चला रहे नरेन्द्र मोदी , महारष्ट्र में सालों से चल रहे कांग्रेस के शासन का निरीक्षण करने निकल पड़े , किस आधार पर ? और जब गुजरात में आपको कोई बड़ा मुद्दा नही मिला तो आपके कार्यकर्ता दिल्ली , उत्तरप्रदेश सहित देश के कई हिस्सों में स्थापित भाजपा के कार्यालय में पहुँच गए तोड़ – फोड़ करने , हंगामा करने , यह कैसी अराजकता फैला रहे हैं आप लोग ? महारष्ट्र में आपके कार्यकर्ताओं ने कितनी तोड़ – फोड़ की , सुर्ख़ियों में रहने के लिए क्या देश में वैमनस्य फैलाना सही है। सत्ता की चाह रखना बुरी बात नही है लेकिन उसे पाने के लिए जो रास्ता आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल ने अपनाया वह अवश्य ही निंदनीय है। भाजपा और कांग्रेस को छोड़ दे तो भारत में अनेको राजनितिक पार्टियां है जो कई सालो से अलग – अलग राज्यों में सरकारें बनाती आयी हैं , लोकसभा चुनाव में भी भाग लेती हैं , पर सत्ता पाने की जो हड़बड़ाहट आम आदमी पार्टी में दिखती है वो किसी अन्य में नही। शायद आपके इसी रवैये कि वजह से अन्ना ने आपका साथ छोड़ दिया। वो आपकी इस महत्वाकांक्षी स्वाभाव से अवगत हो गये होंगे , जिसे हम लोग अब देख पा रहे हैं।

एक के बाद एक वो सभी लोग आपकी पार्टी से उम्मीदवार बनाये जा रहें है जो भाजपा या कांग्रेस की विचारधारा के विरोधी हैं , जो राष्ट्रवाद के विरोधी हैं , जी अराजकता के समर्थक हैं। इस से एक बात और ज़ाहिर होती है कि आपके ऐसे सभी उम्मीदवार मीडिया में सुर्खियां बनकर छाये रहे , कांग्रेस और भाजपा कि सरकारों के विरुद्ध समाचार फैलाते रहे , और वो अंदर ही अंदर आप का समर्थन करते रहे ,इस तरह से आपने अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए मीडिया का भी दुरूपयोग किया , और आज अपने उन्ही मीडिया बंधुओं को आप अपना प्रत्याशी बना कर उन्हें उनके काम काम का इनाम दे रहे हैं। अरविंद जी बिना विचारधारा , बिना संगठन , बिना उद्देश्य के बनी आम आदमी पार्टी का यही चेहरा सच है जो अब सामने आ चुका है। आपका मकसद सिर्फ सत्ता पाना रहा है , न कि परिवर्तन , यही वजह है कि आज आपकी पार्टी के मतभेद खुल कर सामने आ रहे हैं , सबको सुरक्षित सीट चाहिए , कोई परिवर्तन के लिए नही लड़ रहा चुनाव , सिर्फ एक मकसद है सत्ता पाना। सभी को भ्रष्ट घोषित कर आप स्वयं को ईमानदारी का प्रमाणपत्र देकर जो राजनीती कर रहे है वह आपके नौसखियेपन को दर्शाता है। राजनीती मुद्दो पर होती है , विचारधारा पर होती है न कि सिर्फ आरोप लगाकर। हर किसी को गलत साबित करते – करते आज आप खुद अपना महत्व खोते जा रहे हैं , आपसे ऐसे आरोप – प्रत्यारोप की राजनीती कि उम्मीद नही थी , शायद आप भूल गये कि जब हम किसी पर एक ऊँगली उठाते हैं तो तीन उँगलियाँ हमारी तरफ भी उठती हैं।

47 COMMENTS

  1. सुजाता जी आप महिला हैं और मोदी को केजरीवाल से श्रेष्ठ मानती हैं इसलिए आप से कुछ प्रश्न की विनम्र अनुमति चाहता हूँ : —– (मैं अहमदाबाद में रहने वाला एक हिंदी शिक्षक हूँ – मोदी की धर्मपत्नी भी रिटायर्ड शिक्षिका हैं मैं उनसे मिल चुका हूँ ) ———————————————- 1) क्या मोदी का व्यवहार अपनी पत्नी के प्रति उचित है ?
    2) उ.प्र. के मोहनलाल गंज में जो कुछ हुआ उसपर मोदी का ढूलमुल रवैय्या क्या उचित है ?
    3) 17% रेल भाड़ा बढ़ाकर भूटान-नेपाल को खैरात देना क्या उचित है ?
    4) उ.प्र. के मोहनलाल गंज में जो कुछ हुआ उसपर महिला समितियों का रवैय्या क्या पर्याप्त है ?
    5) दिल्ली के निर्भयाकांड में छात्र-छात्राओं के साथ मोदी का न जाना क्या उचित था ?
    6) बाबा रामदेव को सलवार पहनकर भागना पड़ा कहाँ थे मोदी और बी.जे.पी. ?
    7) अन्ना चिल्लाते रहे कोई सुनने वाला नहीं था क्या किया मोदी ने ?
    8) पूरे पाँच सालों तक जनता लुटती रही – घोटाले पर घोटाले होते रहे – बी.जे.पी. एक भी अविश्वास प्रस्ताव कांग्रेस के खिलाफ क्यों नहीं ला पाई ?
    9) वर्तमान बढ़ती महँगाई क्या उचित है ?
    10) जिस गुजरात मॉडल की बात करते हैं वहाँ —– ——————————————-Ram Pathak
    वडोदरा। गुजरात के छोटा उदयपुर जिले के 16 आदिवासी गांवों के करीब 125 लड़के-लड़कियां रोजाना जान पर खेलकर स्‍कूल जाते हैं। ये बच्‍चे सुबह सात बजे करीब 600 मीटर चौड़ी हीरन नदी को पार करते हैं और गीले होकर स्‍कूल पहुंचते हैं। नदी पार करने के लिए पीतल के एक बड़े बर्तन का सहारा लिया जाता है जिसे स्‍थानीय भाषा में ‘गोहरी’ कहा जाता है। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्‍सप्रेस के मुताबिक, प्रशासन की लापरवाही की वजह से बच्‍चों को यह खतरनाक कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ता है। पिछले सात साल से नदी पर पुल बनाने का वादा किया जा रहा है, लेकिन अभी तक इसे पूरा नहीं किया गया है।
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    Ashok Kumar Tiwari अभी वदोदरा के पास नडियाड़-आणंद-खेड़ा आदि में जलभराव के साथ ही साथ इतने कचरे और क्या-क्या चीजें उसमें तैर रही हैं कि नाम लेने याद करने पर उल्टियाँ आने लगेंगीं—- सटे में लोग रह रहे हैं – बगल में वहीं होटल पर खाने को मजबूर हैं ! आणंद के स्टेशन के सामने इतनी गंदगी है कि बिना रुमाल नाक पर रखे आप निकल नहीं सकते हो —- आसपास की दुकानों पर हर खाने -पीने की चीज जैसे चीनी-चावल-दाल आदि पर मक्खियाँ भिंभिनती रहती हैं – रेलवे में मैंने इनकी रिपोर्ट 12-7-14 को शाम 17.59 पर की थी जिसकी रेफरेंस आई.डी.- 1407121759211 है ! जिसे आप http://www.scr.indianrailways.gov.in पर चेक कर सकते हैं !! पर क्या करें किसे बताएँ गुजरात में गरीब मर रहा है – अंधभक्त केवल गालियाँ ही देते हैं इन समस्याओं से उन लाल पट्टी बाँधने वाले सोहदों को क्या मतलब है ——- ————– —————————————————————— हालात बेहद गंभीर हैं : —- संसदीय सौदेबाजी के तहत विपक्ष का नेता अभी तय नहीं हो पाया है और कांग्रेस का जनहित यही है तो क्षत्रपों और वामदलों के जनहित भी अलग अलग हैं। इसलिए इस सोमवार को राज्यसभा में बीमा बिल पेश हो नहीं रहा है। यह मामला शीत सत्र तक टल सकता है जो अमेरिकी हितों का सरासर उल्लंघन है।—————— मैंने भी 501 रुपए आम आदमी को साल भर पहले चंदा दिया था – जब भी रसीद नम्बर डालते हैं दिख जाता है – ऐसा इंतजाम – कांग्रेस-बी.जे.पी.क्यों नहीं करते हैं ? वेदांता ग्रुप से चंदा लेने के मामले में दिल्ली की कोर्ट ने कांग्रेस-बी.जे.पी. को दोषी करार दिया है – अदानी-अम्बानी पहले ही कह चुके हैं — हम चंदे का हिसाब नहीं देंगे – निस्चित है ये दोनों कांग्रेस-बी.जे.पी. के फाइनेंसर हैं —— जहाँ तक विदेश नीति का सवाल है – मोदी वहाँ भी फेल हैं : ———————–

    चीनी दखल रोकने में महत्वपूर्ण देश हैं :— 1) वियतनाम 2) जापान 3) कजाकिस्तान 4) तजाकिस्तान 5) किर्गिस्तान 6) मंगोलिया 7) रूस 8) इंगलैंड 9) अमेरिका 10) दलाईलामा का समर्थन —–
    पर अंधभक्तों को और उनके आकाओं की समझ केवल बगलें झाँकने की है —– कितना मुकाबला नेपाल और भूटान ने चीन से किया है — अरे कभी जोकरों से बाजार लगती है ? ? ?
    बच्चे हैं अभी राजनीति शास्त्र पढ़ना आता नहीं ! चाणक्य बनने चले हैं !!

    मैडम यदि हमारी तकदीर अच्छी होगी तो केजरीवाल जैसे आई.ए.एस.कैडर का जननायक भारत को पहली बार मिलेगा ! पहले इंडियन आई.ए.एस. नेताजी सुभाष बाबू को तो षडयंत्रकारियों ने मरवा ही दिया है !! अब केजरीवाल ( भविष्य के भारत के सुधारक ) को अम्बानी+बी.जे.पी+कांग्रेस से बचा लो मित्रों !!! ये तीनों उनके पीछे पड़े हैं… ……………………………… पाकिस्तानी एजेंट कौन है :—— रिलायंस जामनगर (गुजरात) में भोले-भाले लोगों को सब्ज बाग दिखाकर उनकी रोजी छुड़वाकर बुलाया जाता है फिर कुछ समय बाद इतना प्रताड़ित किया जाता है कि वे या तो आत्महत्या कर लेते हैं या उन्हें निकालकर बाहर कर दिया जाता है जैसा हम दोनों के साथ हुआ है इसलिए सच्चाई बताकर लोगों को मरने से बचाना सबसे बड़ा धर्म है अधिकतम लोगों को संदेश पहुँचाकर आप भी पुण्य के भागी बनिए…………….!!!
    ( मैं गुजरात में पिछले 15 सालों से रहकर अम्बानी की सच्चाई देख रहा हूँ -11 साल तो अम्बानी की लंका ( रिलायंस ) में भी रहा हूँ कोई भी ईमानदार आदमी इन लोगों की तरह नहीं रहना चाहेगा ! पूरे रिलायंस को तो एक मिसेज बारोत ( जिनके सिर पर देवी जी आती हैं) उनके दरबार में एच.आर.हेड की पत्नी भक्तों को चाय बनाकर पिलाती हैं !!! रिलायंस जामनगर के बारे में आप जानते नहीं हो – वहाँ आए दिन लोग आत्महत्याएँ कर रहे हैं ! उनकी लाश तक गायब कर दी जाती है या बनावटी दुर्घटना दिखाया जाता है और इस अन्याय में कांग्रेस-बी.जे.पी. बराबर के जिम्मेदार हैं — इन सब का विनाश होना ही चाहिए ——क्योंकि ये सभी आँखें बंद करके रिलायंस के जघन्य अपराधों को मौन स्वीकृति दे रहे हैं —-हिंदी शिक्षक-शिक्षिकाओं के साथ जानवरों जैसा सलूक होता है, हिंदी दिवस ( 14 सितम्बर ) के दिन भी प्रात:कालीन सभा में माइक पर प्रिंसिपल बच्चों के मन में हिंदी तथा भारतीय सभ्यता और सस्कृति के खिलाफ जहर भरते हैं वो भी पाकिस्तानी बॉर्डर पर, महामहिम राष्ट्रपति-राज्यपाल तथा प्रधानमंत्री महोदय के इंक्वायरी आदेश और मेरे अनेकों पत्र लिखने के बावजूद गुजरात सरकार मौन है – क्या ये देशभक्ति है ? ? ? ! ! ! अन्य विशेष जानकारियों के लिए मेरे फेसबुक पेज पर आने की कृपा करें ————–

    डॉ. अशोक कुमार तिवारी

  2. Kabhi apne asli india dekhi hai jaha , sabse jaisa anpad, kupoisit, corruption, sabse jaida satarvetion, unstable society hai, yeh data hai UNO ka, kaise social welfare scem ka paisa corruption ka jariya banta hai, kaise jal, jungal, and jamin ko ujad kar corporate ko diya jata manmani karne koi, on paper sab sahi, par jiski lathi uski bhaes wali baat ho jaati hai, corporates ko jamin kaise government desh ki bhavish ka naam dekar chinti ya le leti hai, kaise police system kaam kati hai, naxals kiu hai kon hai, kabhi apne dhanbad, jhariya, mp mein shingroli ki kahni dekhi ya sunni,sab indian hi hai, un locals ka bh7 utna hi hak iss india mein par k7san, poor, garib ki sirf baat ki jaati hamere samaj mein hak ki aur kon baat ya kaam ki jaati hai, sabko apne ki lagi hai, par koi garib ya sangrash log hi film mein aur jinde mein asli hero hote hai, india ka development ho raha par kaisa, steel and minning ka bahut baada hath hai development mein.aap people ko naxals banna rahe hai, kya halat hai isse jagah ki, armed force lagavo aur naxals ke nam par kuch bhi karo.bahit hi galat ho raha hai is desh mein, desh ki aajadi mein un logo bhi bahut bada hatt hai, parve aaj bhi sossit hai, kya galat hai kya sahi sab ko pata hai, samaz bhi bahut bata huwa hai, humlogo sirf mahangae, employment, sasta petrol and sasta cylder se matlab hai, kya hum sahi tarike se develpmt kar rahe hais

    • विजय शंकर यादव जी इस देश में जितनी भी बड़ी एन जी ओ हैं वो सब तो केजरीवाल साहब के साथ हैं , अगर इन एन जी ओ ने अपने करोडो – अरबो के फण्ड का आधा भी ईमानदारी से खर्च किया होता तो भारत की बदहाली में काफी कमी आ जाती …मतलब अब तक जिन लोगो के लिए कुछ नहीं हुआ उनके लिए आगे कोई कुछ बेहतर करने की भी ना सोचे ? बार – बार भारत की गरीबी की दुहाई देकर विकास का विरोध करने वाले लोगो को पहले खुद उन साधनो का त्याग करना चाहिए जिनका इस्तेमाल देश के गरीब लोग नही कर पा रहे , ये तो अच्छा है खुद शहरों में रहो , इंटरनेट , मोबाइल सब इस्तेमाल करो , सारी सुख – सुविधा भोगो और जब देश में कुछ विकास की बात हो तो गरीबी की दुहाई दो , मतलब यदि देश का एक तबका अत्यंत गरीब है तो हम ये मान ले की उसकी आने वाली पीढ़ी भी वैसी ही जिन्दंगी बिताएंगी ? उनके लिए कुछ बेहतर करने की शुरुवात यदि आज करेंगे तब उनके आने वाली पीढ़ी के हालातो में सुधार आएगा। देश के एक वर्ग की बदहाली खत्म करने के लिए सरे देश को बदहाल बना दिया जाये ये कौन सा समाधान है ? सकारात्मक रह कर उनके लिए कुछ बेहतर करने की जगह देश में जो अच्छी पहल हो सकती है उसका विरोध करो … केजरीवाल और उनकी टीम को दुनिया भर की एन जी ओ से अरबो का फण्ड मिलता है लेकिन समाज के लिए कुछ करने की जगह उन लोगो ने सारा पैंसा मोदी को हराने में खर्च किया …. और देश की गरीबी को असली इंडिया कह – कह कर देश का विकास रोकने वाले आप जैसे लोगो को सबसे पहले सभी सुवधाओं का त्याग कर देना चाहिए , इंटरनेट और कंप्यूटर , मोबाइल का भी … एन जी ओ वालो की की तरह देश की भलाई की दुहाई देकर , करोडो के फण्ड से ऐश करने वाले बहुत देखे हैं इस देश ने , खुद तो दुनिया भर से पुरस्कार पाओ , सम्मान पाओ , पर गरीबो की हालत जस की तस … वाह …. ना खुद काम करो ना दूसरो को करने दो , क्योंकि यदि सच में देश का भला हो गया तो इनकी दुकाने बंद हो जाएँगी … मैं मोदी जी पर भरोसा रखती हूँ , पहले क्या हुआ , क्या नहीं हुआ उस से कोई मतलब नहीं …

      • आपने विजय शंकर यादव को भारत के विकास पर शिक्षा दी है तो मुझे विश्वास है कि विजय अवश्य इसे ग्रहण कर अपनी सोच व व्यवहार में उपयुक्त परिवर्तन लाएंगे, मैं तो केवल उन्हें हिंदी भाषा को रोमन शैली में न लिख देवनागरी में लिखने का आग्रह करूँगा| जब हिंदी भाषा के प्रति सम्मान जागे गा तो अवश्य ही देश का भी सोचेंगे|

  3. Kabhi apne asli india dekhi hai jaha , sabse jaisa anpad, kupoisit, corruption, sabse jaida satarvetion, unstable society hai, yeh data hai UNO ka, kaise social welfare scem ka paisa corruption ka jariya banta hai, kaise jal, jungal, and jamin ko ujad kar corporate ko diya jata manmani karne koi, on paper sab sahi, par jiski lathi uski bhaes wali baat ho jaati hai, corporates ko jamin kaise government desh ki bhavish ka naam dekar chinti ya le leti hai, kaise police system kaam kati hai, naxals kiu hai kon hai, kabhi apne dhanbad, jhariya, mp mein shingroli ki kahni dekhi ya sunni,sab indian hi hai, un locals ka bh7 utna hi hak iss india mein par k7san, poor, garib ki sirf baat ki jaati hamere samaj mein hak ki aur kon baat ya kaam ki jaati hai, sabko apne ki lagi hai, par koi garib ya sangrash log hi film mein aur jinde mein asli hero hote hai, india ka development ho raha par kaisa, steel and minning ka bahut baada hath hai development mein.aap people ko naxals banna rahe hai, kya halat hai isse jagah ki, armed force lagavo aur naxals ke nam par kuch bhi karo.bahit hi galat ho raha hai is desh mein, desh ki aajadi mein un logo bhi bahut bada hatt hai, parve aaj bhi sossit hai, kya galat hai kya sahi sab ko pata hai, samaz bhi bahut bata huwa hai, humlogo sirf mahangae, employment, sasta petrol and sasta cylder se matlab hai, kya hum sahi tarike se develpmt kar ras

  4. Kya bakwas argument hai, tark ke jah kutark diya jaa raha, har eh ek baat ko personal maan baathe, saty anubav ki chiz hai, tateh data interpretation ki, anubhav umer ke sath aata hai, aapne sirf aapna agenda rakhne ka kaam kiya, sab kafi padhe likhe bewkuf log hai, aisa lagta hai, kejriwal prasansa ke kabil hai, yeh baat unohne kar dikhae, chahe adanni*ambani wali baat ho, ya corruption related exposed ya unka delhi mein kaam, jamsedpur mein unka kaam ya mother teresa se milne ke baad kaalighat mein kuya kaam, kuch to baat hai bande mein.kitne log hai jo inta kuch sahi karne ki kosshis karte.sab apne baare mein sochte hai, koi kuch karta hai kuch aacha hi bollo.aapne pure life mein kitna itna himmat dikhaae.bolo, yaaro.par yaha bhi immandari rakhiya ga.

  5. केजरीवाल ने पार्टी का करोड़ो रूपया डकार गया.
    लोक सभा चुनाव में केजरीवाल की ज़मानत ज़ब्त होने जरा है लेकिन केजरीवाल को इस से बहुत फायदा हुआ है क्यों की अण्णा का पूँछ पकड़ कर यह मानसिक रोगी (केजरीवाल ) ने 2 वर्षो में आम आदमी पार्टी फण्ड में लगभग 350 करोड़ रुपये जमा कर लिया है जिस का मालिक यह अकेले है .अब चुनाव के बाद यह गुडगाँव और ग़ज़िआबाद में रियल एस्टेट और प्रॉपर्टी का धंधा शुरू करने वाला है.सिसोदिया को मैनेज करने के लिय इस को कुछ चटनी चटा देगा वरना और सब तथाकथित साथिओ को लात मार कर बाहर का रास्ता दिखलायेगा.रोबर्ट बाड्रा ने तो 10 वर्षो में जितना पैसा नहीं बनाया उस से ज़्यादा केजरीवाल ने 2 वर्षो में बनाया है .यह इस युग का महान क्रन्तिकारी है जो इतने कम समय में आम आदमी को आम की तरह चूस गया.इस ने दलाली और ब्लूफमास्टर का एक नया कृतिमान बनाया है इस को तो “भारत रत्न ” मिलना चाहिय .

    • सतीश कुमार जी,क्या दूर की कौड़ी लाएं हैं आप ? बेबुनियाद लांछन लगाने वालों की भारत में कमी नहीं है और न भविष्य वक्ताओं की,पर मानना पड़ेगा कि आप को उसमे बी बहुत उंचा स्थान दिया जा सकता है। कहा जाता है न कि आदमी हर पल कुछ सीखता है, तो इतनी ज्यादा उम्र होने के बावजूद ऐसे हांकने वाले का दर्शन मुझे नहीं हुआ था,अतः आज भी मेरी अनुभव में बढ़ोतरी हुई। नमो बेकार फेंकू नाम से बदनाम हैं। भारत में ऐसा लगता है कि हर गली में बड़े बड़े फेंकू भरे पड़े हैं। मेरे जैसे लोगों की एक बहुत खराब आदत है। आपकी टिप्पणी भी इस लेख के साथ ही मेरे फोल्डर में सेव हो गयी।हो सकता है कि अगले वर्ष इन्ही दिनों मैं इसको फिर सामने लाऊं और आपसे पूछूं कि नजूमी महाराज, अब किस पर आपकी इनायत होने वाली है। ऐसे हो सकता है कि इस तरह की भविष्य वाणी के लिये आपको पहले ही भारत रत्न प्रदान कर दिया जाये।

      • आर सिंह जी अब क्या कहना है आपका आम आदमी पार्टी के बारे में , मतलब के यारो को यूँ ही बिखरना था … युवाओं का साथ भी नहीं मिला , मैंने आप से कहा था ना की अगले लोकसभा चुनाव में इस पार्टी का कोई वज़ूद ही नहीं रहेगा , किताबी ज्ञान और व्यवहारिकता का अंतर यही है … “कहीं की ईंट , कहीं का रोड़ा , केजरीवाल ने कुनबा जोड़ा” … खैर ये तो होना ही , एक हार भी नहीं सकी जो पार्टी वो क्या परिवर्तन करेगी देश में ….

        • ऐसे तो आपके और मेरे विचारों में जमीन आसमान का अंतर है,अतः मैं पहले ही लिख चूका हूँ कि इसमे सार्थक बहस की कोई गुंजाइस नहीं रहती,फिर यह आलेख जिसका लिंक मैं नीचे दे रहा हूँ,आपके प्रश्नो का समुचित उत्तर होगा.
          https://www.pravakta.com/nda-government#comment-71266

  6. प्रस्तुत लेख के लिए सुजाता जी को कोटिशः धन्यवाद. आपने मेरे मन कि बात कह दी. इसमें कुछ भी असंगत नहीं है.थोड़े में ही अरविन्द केजरीवाल और उसकी नौटंकी पार्टी की सत्यता को उजागर किया. ओशो कहते थे कि जो पत्रकार पत्रकारिता में असफल हो जाता है वह राजनीतिग्य बन जाता है और जो राजनीति में असफल हो जाता है वह पत्रकारिता करने लगता है. इस तरह के उदाहरण अनेक देखे जा सकते हैं.
    आपके लेख के प्रतिउत्तर में सिंघजी ने जो कुछ कहा उससे कुछ सहमत होंगे और कुछ नहीं भी. मैंने जयप्रकाश आन्दोलन को करीब से देखा है मेरी बहन बिहार विधानसभा के सामने धरना देने दंड स्वरूप हजारीबाग जेल में रहना पड़ा.उस आन्दोलन में भी इसी तरह की बातें होती थी.पर धीरे धीरे उसमे वही लोग घुसते गये जिनसे जनता नाराज थी. आप सब अपना परिचय दिया कि आपका अध्ययन व्यापक है. ठीक है इसमें कोई बुरी बात भी नहीं पर जब सिंहजी जैसे लोग यह देखने में असमर्थ हो जाते हैं कि जनता पार्टी क्या हाल हुआ ?उससे निकलने वाले नेता लालू प्रसाद यादव जैसे लोग हैं जो कांग्रेस विरोध कि भूमि से पैदा हुए और उसी कि गोद में जा बैठे अन्य लोगों कि बात कह कर इसे घसीटना नहीं चाहता हूँ. वही एकांकी फिर से खेला जा रहा है. एकांकी इस लिए कह रहा हूँ क्यों कि जनता पार्टी का भी एक ही अंक था और तथाकथित आप पार्टी का भी. चलिए आप दोनों के उत्तर प्रीतिउत्तर में यह भी पता लगा सिंहजी क्लास वन आफिसर रहे है तो उनकी बातों में दम तो होना ही चाहिए. चलिए मान लेते हैं. पर इतना तो उनका कर्तव्य बनता ही है कि प्रशांत भूषण के कश्मीर सम्बन्धी बयानों को और नक्सालवाद पर उनके विचारों का स्पष्टीकरण दे दें हालाँकि वैसे तो वे कहेंगे कि यह मेरी बाध्यता नहीं है कि इसका उत्तर दूं और होनी भी नहीं चाहिए पर आप पार्टी के संस्थापक सदस्य होने के नाते कुछ तो जिम्मेदारी बनती ही है क्यों सिंह साहेब ?
    अब आप जैसे अध्ययन शील व्यक्ति से क्या विवाद करूं क्यों कि यह तो आप पार्टी का कॉपीराइट है मै तो संवाद का आकान्छी हूँ. यदि इतनी इज़ाज़त दें तो आगे आपसे मुखातिब होने का प्रयत्न करूंगा.

    बिपिन कुमार सिन्हा

    • सिन्हा जी,बहुत धन्यवाद. आपने सीधे सीधे संवाद का मौका दिया ,इसके लिए धन्यवाद. मेरी गिनती आआप के संस्थापकों में करके आपलोगों ने मुझे कुछ ज्यादा ही ऊपर उठा दिया है.मैं तो पहले भ्रष्टाचार के विरुद्ध भारत अभियान का वालेंटियर था,बाद में आआप के आरम्भ के दिनों में ही इसका सदस्य बन गया,और उसी समय से आआप के कार्य क्रमों में लगा हूँ,बस इतना सम्बन्ध है मेरा आआप से. मैंने बार बार लिखा है कि भारत के विकास के लिए मेरी अपनी एक विचार धारा है. वह विचार धारा इस बात पर आधारित है कि अगर भारत का विकास करना है,तो दूर दराज के गाँवों से ,जंगल और पहाड़ों में बसे लोगों से आरम्भ करना होगा. स्वराज के असली अर्थ को महात्मा गांधी ने अपने इस वक्तव्य में व्यक्त किया जो उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के ठीक बाद कहा था. इस वक्तव्य को मैंने अंग्रेजी में पढ़ा था, और कुछ दिनों पहले श्री राजमोहन गांधी जी से बातचीत में मालूम हुआ कि इसको महात्मा गांधी ने अंग्रेजी में ही कहा था,इसलिए उसको ऐसे हीं उद्धृत कर रहा हूँ.
      “Recall the face of the poorest and the weakest man whom you may have seen, and ask yourself, if the step you are going to contemplate, is going to be of any use to him? Will he gain anything by it? Will it restore him a control over his own life and destiny? In other words, will it lead to SWARAJ for the hungry and spiritually starving millions?” Mahatma Gandhi.
      अब बात आती है,जे.पी के आंदोलन और उसके बाद के इतिहास की.
      इसके बारे में मेरे विचार आप चाहे तो मेरे आलेख नाली के कीड़े में देख सकते हैं .लिंक:
      https://www.pravakta.com/drain-the-bug
      लालू और सुबोध कान्त सहाय जैसे लोगों का चरित्र तो बाद में उजागर हुआ था,पहले तो नंगे हो गए थे वे लोग जो जब तक विपक्ष में बैठे थे, वे अपने को आदर्श की मूर्ति समझते थे. आआप के उद्भव में जनता पार्टी के उद्भव से सबसे बड़ा अंतर यही है,जो इसको आपातकाल के पहले और बाद की स्थिति से एकदम अलग करता है. उस समय के आंदोलन का मुख्य लक्ष्य था,कांग्रेस को हटाना ,क्योंकि चूंकि उस समय तक केवल कांग्रेस का शासन रहा था,,अतः वही भ्रष्टाचार का पर्यायवाची बन गया था,पर आज तो जो भी राजनीति में है, वे सब नंगे है,क्योंकि सब कभी न कभी शासन में रह चुके हैं और सबके दामन दागदार हैं.अतः यह व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई सबके खिलाफ है.आज यह लड़ाई सही अर्थों में आम आदमी की लड़ाई बन गयी है.
      जहां तक जनता पार्टी के विलुप्त होने का प्रश्न है,वह भी विलुप्त नहीं हुई,केवल पुनः नए पुराने विभिन्न घटकों में बँट गयी. उसके आखिरी नाम लेवा ने अपने को भाजपा में विलीन कर लिया.
      सुजाता मिश्र जी के आलेख पर मैं पहले ही बहुत कुछ लिख चूका हूँ और प्रवक्ता डाट कम के अनुग्रह से वह पब्लिक डोमेन में मौजूद है,वह आलेख गलत है या मेरी टिप्पणियां,इस पर भी कोई टिप्पणी नहीं.
      आपने क्लास वन पर भी अपनी टिप्पणी की है,तो आपको मैं बता दूँ ,कि एच.ई.सी. में हमलोगों का प्रारंभिक(प्रवेश स्तर पर) स्केल वही था,जो केंद्रीय सरकार के आई.ए.इस ,आई.पी.एस इत्यादि का था.फर्क यहीं था कि उनको क्लास वन गजटेड आफिसर कहा जाता था,पर हमलोगों को गजटेड नहीं कहा जाता था.आंदोलन के समय से पूर्व मैं प्रोमोशन भी पा चूका था.,पर इस बात को भी यहीं छोड़ दिया जाए तो ज्यादा अच्छा हो.
      इतिफाक से, मैं जिनके साथ आपातकाल या उसके पहले भी इस दिशा में कार्य करता था,वे भी इस समय वाराणसी में ही रहते हैं और शायद अपना बिजिनेस चलाते हैं.,पर आज तो उससे भी कुछ लेना देना नहीं है.
      सिन्हा जी ,आपने कभी सोचा कि जनता पार्टी के विघटन का क्या परिणाम हुआ ?अगर उस समय के दिग्गज कहे जाने वाले नेता अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से ऊपर उठे होते तो आज कांग्रेस का शायद ही नामोनिशान होता. सिन्हा जी,उनलोगों ने राजघाट पर शपथ लेकर संसद में प्रवेश किया था. क्या वे सब इसपर खरे उतरे? इन सबका कच्चा चिठ्ठा आज भी मेरे मानस पटल पर अंकित है,अतः मेरा तो राजनीति और राजनेताओं से एक तरह से विश्वास ही उठ गया था.आज भी स्थापित पार्टियों के प्रति वैसा ही है.
      आम आदमी पार्टी से मेरा जुड़ना भी अचानक नहीं हुआ है. अन्ना के आंदोलन से मैं बहुत प्रभावित हुआ था और उस आंदोलन से मुझे आशा की एक किरण दिखी थी.’अन्ना् का अनशन : आंखों ने जो देखा”(लिंक: https://www.pravakta.com/annas-fast-eyes-saw ) मैंने यों ही नहीं लिखा था, पर मेरे विचार से बाद में वह आंदोलन दिशा विहीन हो गया. आंदोलनकारी या तो इन कमीनों को जो राजनेता कहे जाते हैं,समझ नहीं सके या जानबूझ कर आंदोलन को एक ही दिशा में खीचते रहे. पहली और सबसे जबरदस्त भूल थी मुंबई में अन्ना का अनशन.दिल्ली के प्रदर्शन को दुहराया नहीं जा सकता था,यह बात उनलोगों की समझ में क्यों नहीं आयी ,यह मैं आज भी नहीं समझ सका हूँ. उस समय मैं देश के बाहर था ,जिसका प्रमाण भी प्रवक्ता में मौजूद है’.मैं नहीं समझता हूँ कि यहाँ रहने पर भी मैं ज्यादा कुछ कर सकता,पर इतना तो करता ही कि उनलोगों से मिलकर और लिखित ज्ञापन देकर विकल्प के लिए सुझाव देता. वह सुझाव मैंने वहां से भी दिया था,पर चूँकिमेरे पास केवल डाक्टर किरण बेदी का ई मेल था,अतः केवल उन्ही को भेजा था.भूल केवल यह हो गयी थी कि मैंने उसे अपने सेंट बॉक्स में सेव नहीं किया था,पर उससे भी क्या फर्क पड़ता?मुझे बताया गया था कि डाक्टर बेदी केवल पांच सौ प्रथम मेल ही देखती हैं,अतः मैं ध्यान रखा था कि मेरा मेल उस दिन के प्रथम पांच सौ के बीच ही हो.मैं नहीं समझता कि इंडिया के हिसाब से मध्य रात्रि के कुछ ही मिनटों बाद उनके पास इतना मेल गया होगा कि मेरा मेल उस सीमा से बाहर हो गया होगा. मैं तो यही मानता हूँ कि मेरे सुझाव को या तो उस योग्य नहीं समझा गया या जान बूझ कर उस पर अमल नहीं किया गया.
      फिर एक ऐतिहासिक मोड़ आया.इस बार अन्ना के बदले उनके सहयोगियों ने अनशन शुरू कर दिया.सच्च पूछिये तो उस समय मुझे यही लगा कि ये सब जानबूझ कर अपनी जान देने पर तुले हुए है. इस बार तो उन्होंने सबसे प्रभावशाली पंद्रह मंत्रियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था.ख़ुफ़िया रिपोर्ट तो यह थी कि अगर इनकी हालत ज्यादा खराब हो जाती है तो या तो उन्हें जबरदस्ती उठवा लिया जाएगा या अगर कोई मर ही गया तो उसके बाद के परिणाम के लिए भी शायद तैयारी कर ली गयी थी. बाद में तो ३अगस्त को अनशन तोड़ते समय अन्ना हजारे ने ऐतिहासिक घोषणा कर डाली कि अब हम विकल्प देने के लिए तैयार हैं. इसका पूर्ण विवरण यूं ट्यूब पर मौजूद है. बाद में उन्होंने किस तरह अपना पैंतरा बदला.,इसके लिए आप यह लिंक भी देख सकते है(https://www.pravakta.com/anna-hazare-arvind-kejriwal-and-political-choices). मैं चूंकि पार्टी बनाने के सुझाव देने वालों में से था,अतः पार्टी बनते ही उसका सदस्य बन जाना स्वाभाविक था. मैं आज भी उन लोगों के साथ हूँ ,क्योंकि मेरे विचार से आज भी उनके सिद्धांतों में कोई बदलाव नहीं आया है, कुछ भूलें उन्होंने अवश्य की हैं,जो नहीं करना चाहिए था,पर यह कहना कि वे कांग्रेस की गोद में चले गए हैं,नमो की पार्टी के प्रचार तंत्र का एक हिस्सा मात्र है,क्योंकि यह तो इन लोगों की समझ में अच्छी तरह आ गया कि भविष्य में इन लोगों के लिए वास्तविक अड़चन आआप उत्पन्न करेगा नकी कांग्रेस.
      मैं अपनी टिप्पणी का अंत करते हुए यही कहना चाहूंगा कि अगर आआप का अंत हो गया ,तो फिलहाल तो जो आशा की किरण जगी है ,वह बुझ जायेगी,पर इतना अवश्य है कि जनता फिर जागेगी,समय भले ही लगे,,क्योंकि कोई विचार धारा मरती नहीं. माहत्मा गांधी के विचारों की हत्या कांग्रेस ने अवश्य कर दी थी,पर वे मरे नहीं.थोड़े हेर फेर से वह पंडित दीन दयाल उपाध्याय के विचारों के रूप में जिंदा हो गए,पर फिर उनकी हत्या पहले भारतीय जन संघ और बाद में भाजपा ने कर दी,पर वे विचार फिर से आम आदमी पार्टी के विचारों के रूप में सामने आ गए. मेरे विचार से भारत की समस्याओं का समाधान उन्ही विचारों को कार्यान्वित करने से ही संभवहै. अगर नमो सत्ता में आते हैं,तो उनके सामने भी अवसर है.वे चाहें तो उसका लाभ उठा सकते है.उनके मेनिफेस्टो में कुछ इस तरह का जिक्र भी है. हो सकता है कि नमो उन्ही सब विचारों के कार्यान्वय के पथ पर अग्रसर हो जाएँ, पर यह सब तो भविष्य के गर्भ में है.

      • सिंह साब अभी हाल ही में बनारस मे अरविंद केजरीवाल ने कहा कि जो उन्हे वोट नहीं देंगे वो देश के गद्दार हैं , इसका साफ़ मतलब तो यही है की लोगों को ईमानदार , भ्रष्ट के साथ – साथ अब इन लोगों ने लोगों को देशभक्त ओर गद्दार होने का सर्टिफिकेट भी देना शुरु कर दिया है। आप ही को लिया जाये तो खुद आपने मेरे लेख को पढ़ कर अपनी पहली प्रतिक्रिया मुझे मूर्ख होने का सर्टिफिकेट देकर की , बाद मे अपने तर्क दिये। खैर आपसे और आपके बेतुके तर्कों से तो मैं पहले ही विदा ले चुकी थी , यहॉँ मै बिपिन जी को धन्यवाद करते हुए आम आदमी पार्टी और आप जैसे अन्य बुद्धिजीवी समर्थकों की बात कर रही थीं , उनके समर्थकों का मतलब यदि आप आर पी सिहं को मानतें है , और फ़िर आप अरविंद केजरीवाल की तरह खुद को पूरे समय दीन – हीन बताते हुए ये कहते हैं की मेरी देशभक्ति पर कई बार सवाल उठाया गया तो ये भी उतना ही हास्यास्पद है जितना केजरीवाल का हर वक़्त अपनी दीन – हीनता गा – गाकर लोगों को बरगलाना। जबकि उनकी वास्तविकता इसकी ठीक उलट है। अब मैं आपसे फिर एक बार विदा लेती हूं।

    • बिपिन जी आपका बहुत – बहुत धन्यवाद , मैने तो वही कहा जो मेरा अनुभव था। सिंह साहब जैसे तमाम बुद्धिजीवी जो अपने ज्ञान का उपयोग गलत को सही साबित करने मे करते हैं ऐसे लोग तब भी थे जब भारत अलग – अलग विदेशी शक्तियों द्वारा गुलाम बनाया गया , ऐसे लोग तब भी अपने तर्कों द्वारा भारत को लूटने वालो , गुलाम बनाने वालो को सही साबित करते थे ,जैसे आज “कांग्रेस” और ” आप ” के पास उनके गलत बयानों , देशद्रोही कर्मोँ का जवाब नही है , और वो अपने कुकर्मों से जनता का ध्यान हटाने के लिये तमाम हथकण्डे अपना रहे हैं , हर मार्यादा पार क़र रहें हैँ , तो ऐसे पढ़े – लिखे लोग एक बार फ़िर देश को उल्लू बनाने वालों का साथ दे रहें हैँ. इसे नियति कहे या दुर्भाग्य पर भारत देश की कडवी सच्चाई यही है कि यहाँ देश विरोधी काम करने वाले , देश का नुकसान करने वाले , देश की पहचान मिटाने वाले सबसे ज्यादा शान से रहते हैं , ज्यादा नाम कमाते हैं , और ज्यादा आँसूं बहाते हैँ देश के दुर्भाग्य पर। यह दुनीयाँ का अकेला ऐसा देश है जहाँ देश की सभ्यता , संस्कृति पर जितने ज्यादा हमला करों , देश मे जितना भरष्टाचार करो , देश को दुनियाँ के सामने जितना लज्जित करो उतने ही ज्यादा सम्मान दिये जाते हैं , अपनी ऎसी ही करतूतो से अरविंद केजरीवाल मेग्सेसे पा चुके हैँ , और बहुत जल्द भारत रत्न ओर नोबल पुरस्कार भी मिल जायेगा। भले ही भारत के लोगों के जीवन मे कोइ सुधार न हों , भारत पहले भी विदेशियों द्वारा नही स्वदेशियों द्वारा गुलाम बनाया गया , और आज भी स्वदेशी ही भारत के सबसे बड़े शत्रु हैं।

      • मेरी ईमानदारी और राष्ट्र प्रेम पर एक से अधिक बार शक किया गया है,पर मैं इसका बुरा इसलिए नहीं मानता,क्योंकि साधारणतः मैं किसी को भी इस योग्य नहीं समझता कि वह दूसरे को यह सर्टीफिकेट दे सके. ऐसे यह भी है कि बहुत लोग रूतबा बड़ा होने के बावजूद मुझे बौने नजर आते हैं,

        • बिल्कुल सही फ़रमाया आपने सिंह साब , लोगो को सर्टिफिकेट देने का ठेका तो सिर्फ़ आम आदमी पार्टी वालों को हैँ , लोगों को ही क्यों ईश्वर को भी तो उनके वज़ूद का सर्टिफिकेट आम आदमी पार्टी वाले देते फिरते है , उनकी ऐसी महत्वकांछी सोच के आगे तो आज सब सब बौने हीं है।

          • सुजाता जी ,दूसरों को राष्ट्र द्रोही और अपने को राष्ट्र भक्त बताने का ठेका तो केवल आर. एस.एस. और उनके सहयोगियों के जिम्मे है.अब वह ठेका उन्होंने मोदी भक्तों को दिया है या मोदी भक्तों ने उसे छीन लिया है. कल की जन्मी आआप ने किसी को देश द्रोही कहने का दुःसाहस अगर किया है,तो उनसे जबाब तलब किया जा सकता है.यह दूसरी बात है की मैं सभी भ्रष्टाचारियों को देश द्रोही कहता हूँ,पर यह मेरा निजी विचार है,इससे आआप का कोई लेना देना नहीं है. अभी तक आर.एस.एस या उनके सहयोगियों की तरह मेरा इस पर एकाधिकार नहीं है,पर इसको इस्तेमाल करने के पहले एक बार दर्पण अवश्य देजखना पड़ेगा. हो सके तो यह लिंक देखिये:https://www.pravakta.com/who-traitor

        • सिंह साब अभी हाल ही में बनारस मे अरविंद केजरीवाल ने कहा कि जो उन्हे वोट नहीं देंगे वो देश के गद्दार हैं , इसका साफ़ मतलब तो यही है की लोगों को ईमानदार , भ्रष्ट के साथ – साथ अब इन लोगों ने लोगों को देशभक्त ओर गद्दार होने का सर्टिफिकेट भी देना शुरु कर दिया है। आप ही को लिया जाये तो खुद आपने मेरे लेख को पढ़ कर अपनी पहली प्रतिक्रिया मुझे मूर्ख होने का सर्टिफिकेट देकर की , बाद मे अपने तर्क दिये। खैर आपसे और आपके बेतुके तर्कों से तो मैं पहले ही विदा ले चुकी थी , यहॉँ मै बिपिन जी को धन्यवाद करते हुए आम आदमी पार्टी और आप जैसे अन्य बुद्धिजीवी समर्थकों की बात कर रही थीं , उनके समर्थकों का मतलब यदि आप आर पी सिहं को मानतें है , और फ़िर आप अरविंद केजरीवाल की तरह खुद को पूरे समय दीन – हीन बताते हुए ये कहते हैं की मेरी देशभक्ति पर कई बार सवाल उठाया गया तो ये भी उतना ही हास्यास्पद है जितना केजरीवाल का हर वक़्त अपनी दीन – हीनता गा – गाकर लोगों को बरगलाना। जबकि उनकी वास्तविकता इसकी ठीक उलट है। अब मैं आपसे फिर एक बार विदा लेती हूं।

      • केजरीवाल ने पार्टी का करोड़ो रूपया डकार गया.
        लोक सभा चुनाव में केजरीवाल की ज़मानत ज़ब्त होने जरा है लेकिन केजरीवाल को इस से बहुत फायदा हुआ है क्यों की अण्णा का पूँछ पकड़ कर यह मानसिक रोगी (केजरीवाल ) ने 2 वर्षो में आम आदमी पार्टी फण्ड में लगभग 350 करोड़ रुपये जमा कर लिया है जिस का मालिक यह अकेले है .अब चुनाव के बाद यह गुडगाँव और ग़ज़िआबाद में रियल एस्टेट और प्रॉपर्टी का धंधा शुरू करने वाला है.सिसोदिया को मैनेज करने के लिय इस को कुछ चटनी चटा देगा वरना और सब तथाकथित साथिओ को लात मार कर बाहर का रास्ता दिखलायेगा.रोबर्ट बाड्रा ने तो 10 वर्षो में जितना पैसा नहीं बनाया उस से ज़्यादा केजरीवाल ने 2 वर्षो में बनाया है .यह इस युग का महान क्रन्तिकारी है जो इतने कम समय में आम आदमी को आम की तरह चूस गया.इस ने दलाली और ब्लूफमास्टर का एक नया कृतिमान बनाया है इस को तो “भारत रत्न ” मिलना चाहिय .

    • सिन्हा जी,आपकी इस टिप्पणी के बाद तो बहुत पानी पुल के नीचे से बह चूका है और नमो की असलियत भी बड़ी तेजी से सामने आ रही है, तो मैं निम्नलिखित आलेख के सम्बन्ध में आपका विचार जानना चाहूँगा.
      https://www.pravakta.com/nda-government

  7. मुझे अब हंसी आ रही है आपके तर्को पर , दंगो की हकीकत और दंगे कैसे करवाये जाते हैं ये तो आपको पता ही होगा , आखिर आपकी आम आदमी पार्टी की शाजिया इल्मी अल्पसंख्यको को उकसाती हुई आपने भी देखी , बिलकुल सही , दंगो की दुहाई देने वाले ही सबसे ज्यादा दंगो के रूपरेखाकर भी होते हैं , वो कहावत है न “चोर मचाये शोर “. शीला क्या पूरी कांग्रेस ही आज तक धर्म को आधार बनाकर लोगो को उकसाती रही है और जीतती रही है , उनके ही कदमो पर चल पड़े हैं आम आदमी पार्टी के स्वघोषित देशभक्त , जिनका तो एक ही हाल है गंगा गए गंगा दास , यमुना गए यमुना दास। और हाँ आप अपने शुरवात से लिखे सभी विचारों को पढ़िए , आप ही अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को समझने के लिए महात्मा गांधी की लिखी स्वराज्य पुस्तक पढ़ने की मुफ्त सलाह दे रहे हैं। महात्मा गांधी जिन्होंने जीवन लगा दिया देश के लिए , और ये नौटंकी केजरीवाल जिन्होंने सिर्फ लोगो की भावनाओं से खिलवाड़ किया है , “कहाँ राजा भोज , कहाँ गंगू तेली “. सिंह साब अभी तो कोई ये भी नही जानता की नरेंद्र मोदी अपनी मर्ज़ी से पत्नी से अलग हुए या पत्नी की मर्ज़ी से , क्योंकि उन दोनों ने जीवन पर्यन्त किसी और से भी विवाह नही किया , दूसरी बात नरेंद्र मोदी और उनकी पत्नी जब अलग हुए तब मोदी मुख्यमंत्री भी नही थे एक साधारण कार्यकर्त्ता थे जिसके पास आय का भी कोई खास साधन नही था ,आप ये भी नही कह सकते की उन्होंने अपने बल से अपनी पत्नी का त्याग किया और पत्नी डरी रही , यदि मोदी सच में अपनी पत्नी का त्याग करना ही चाहते थे तो बहुत पहले उन्हें तलाक दे दिया होता , और आप जैसे लोगो को उनपर ऊँगली उठाने का मौका भी नही मिलता , अतः बिना तथ्यों के किसी के व्यक्तिगत जीवन पर आक्षेप लगाना अनैतिक है , यदि आपको सच में नरेंद्र मोदी की पत्नी के प्रति दया या सद्भावना होती तो आप या आप जैसे और लोग इस बात को चुनावी मुद्दा ही नही बनाते , आप लोग सोचते की जिस बात को इतने साल दोनों पति , पत्नी ने दुनिया से छुपाकर रखा उसे मुद्दा बनाकर मोदी पर हमला करके आप उस औरत के जीवन को भी मजाक बना रहे हैं , जो आज तक शांति से जी रही थी। और ये भी कोई नही जनता की सच में नरेंद्र मोदी और उनकी पत्नी के बीच कोई अलगाव भी था या नही। और कम से कम इस मामले में नरेंद्र मोदी अरविंद केजरीवाल से बेहतर हैं , उन्होंने घर नही बसाया , बच्चे नही पैदा किये अरविंद केजरीवाल की तरह , की खुद तो समाज सुधारने निकले हैं और घर , परिवार , बच्चे सब पत्नी के भरोसे छोड़ दिया , ऐसे लोग जिन्हे देश के लिए जीना हो उन्हें परिवार बसाने से पहले दस बार सोचना चाहिए , ऐसा नही होता की आप पूरे समय घर से , शहर से बाहर रहे , नौकरी छोड़ दे और पत्नी घर चलाये, सास – ससुर की देखबाल करे और बच्चे भी पाले। दुनिए में नाम हो केजरीवाल का और घर पर पिसे उनकी पत्नी , वाह आज के समय में भी ऐसे रूढ़िवादी पुरुष हैं सोचकर आश्चर्य होता है , आप जिस पार्टी से जुड़े हैं वो पार्टी ही आधारहीन है तो भला आपके तर्क कैसे सही होते , आप आम आदमी पार्टी के स्वघोषित देशभक्तों की तरह बेबुनियाद तर्क रखते हैं , लेकिन इस बात को लिख कर रख लीजिये की इस आम आदमी पार्टी का पांच साल बाद कोई वजूद ही नही होगा , भले ही इस चुनाव में अपनी हवाबाजी के दम पर कुछ सीटें जीत जाये।

    • सुजाता जी,आपने बहुत कुछ लिखा है,पर जब मेरे और आपके विचारों में जमीन आसमान का अंतर है ,तो वार्तालाप को आगे बढ़ाने से कोई लाभ नहीं.मेरे विचार से अगर पत्नी को गुमनामी के अँधेरे में रखने के बजाये तलाक दियाजाता,तो ज्यादा अच्छा होता. कम से कम उसे स्वतंत्र जीवन जीने का तो अवसर मिलता. अब रही अरविन्द के दाम्पत्य जीवन की बात ,तो मैं पति पत्नी को जीवन रथ का दो पहिया मानता हूँ.उन्ही के बल पर जीवन रथ चलता है.अगर दोनों में से कोई एक गृहस्थी चलने में स्वयं सक्षम है ,तो दूसरे को थोड़ी आजादी अवश्य मिल जाती है,समाज सेवा और देश सेवा के लिए.ऐसा भी नहीं है कि अरविन्द ने गृह त्याग किया है.वे आज भी अपने परिवार के साथ ही है.,पर मैं फिर उसी बात को दुहराने को बाध्य हो जाऊँगा,जिसके बाद इस लम्बी बहस का सिलसिला जारी हुआ है.रही बात आआप के पांच वर्षों के अंदर समाप्त होने का तो अगर ऐसा हुआ ,तो यह राष्ट्र का दुर्भाग्य होगा.आजादी के बाद भी कभी आजादी नहीं महसूस करने वाले दीन हीनों के ह्रदय में आशा की जो एक किरण जगी है,वह भी इसके साथ ही बुझ जाएगी,पर मुझे उम्मीद है आज की युवा पीढ़ी उसको बुझने नहीं देगी.
      मै तो अपनी तरफ से अब इस वार्तालाप से अलग होता हूँ

      • सिंह साहब अब तक आपने जो कहा उस से यही सबित होता है कि आपकी ओर मेरी सोच मे बहुत अन्तर है , वैसे भी आप आम आदमी पार्टी के सदस्य हैं , तो ऐसे मे आपसे कोइ उम्मीद नहीं कि आप क़भी भी ” आप ” में कोई कमी देखेंगे, ओर देखेंगे भी तो कभीं मानेगे नही। देश को किस से कितनी उम्मीद है ये तो वक़्त बताएगा , युवा पीढ़ी का फैसला भी वक़्त बताएगा ओर अनुभवी नागरिको का फैसला भी वक़्त बताइएगा , लेकिन मैं और आज क़ी युवा पीढ़ी अपने अनुभव से फैसले लेती है , ओर केजरीवाल और उनकी पार्टी का स्वार्थी , देशद्रोही होने का मेरा साक्षात अनुभव है , अतः केजरीवाल जैसे नाटक बाज नेताओ से और ” आप ” जैसी विचारहीन , गैर जिम्मेवार पार्टी से इस देश के भाग्य या दुर्भाग्य का कोइ सम्बन्ध नहीँ हो सकता , ये लोग तो बरसाती मेंढक है जो चुनाव के वक़्त ज्यादा शोर मचाने लगते है , ऐसे लोगों की हकीकत हम जैसे तमाम लोग जान गये हैं , सबूत आपके सामने हैँ , इस पूरे वार्तालाप मे आप अकेले हैँ जो “आप” का डंका बजा रहे हैं , अतः युवा पीढ़ी हो या पुरानी पीढी क़ोई भी को”अरविंद एंड कम्पनी ” को समझने के लिए किसी किताब कीं लिखी बातों , या तर्को क़ी मोहताज़ नहीं ,बेशक आपको वो मूर्ख लगे। इसके साथ ही मैं आपसे अपना वार्त्तालाप खत्म करती हूँ।

  8. आप – परिवर्तन या पलायन या फिर राजनैतिक प्रपंच? दिल्ली में अपनी सूझ भूझ से दोनों, परिवर्तन ओर पलायन कर एएपी अब देश के दूसरे प्रान्तों में राजनैतिक प्रपंच रचाने निकल पड़ी है| परिवर्तन के नाम पर दिल्ली-वासिओं के बीच ध्रुवीकरण उत्पन्न करते एएपी ने डूबती कांग्रेस को स्वयं उसकी ही राजनीति “आपसी फूट” से लाभान्वित किया है| इस मिथ्या राजनैतिक प्रपंच में आपसी फूट के कारण प्रवक्ता.कॉम के इन पन्नों पर दो पढ़े लिखे पुर्णतय अपरिचित व्यक्ति विरोध में एक दूसरे को मूर्ख और पूर्वाग्रही कहने में रत्ती भर भी संकोच नहीं करते हैं| ऐसी ही मानसिक प्रवृत्ति के होते जब भारतीयों ने दो से अधिक शतकों में फिरंगियों को झेला है तो भारतीय रंग रूप के उनके चहेते कांग्रेसी भारत छोड़ कहीं और न जायेंगे| स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात से ही शासन के सभी वर्गों में मध्यमता और अयोग्यता की जगह अब सर्वव्यापी भ्रष्टाचार और अनैतिकता ले चुकी है| इस सर्वव्यापी भ्रष्टाचार और अनैतिकता रूपी भड़मानस द्वारा काटे सभी छोटे बड़े लोग भड़मानस बने औरों को काटने में लगे हुए हैं| ऐसे वातावरण में बीजेपी अथवा अन्य राष्ट्रीय राजनैतिक दल इस कर्कट रोग से पूर्णतय ग्रस्त हैं| भ्रष्टाचार और अनैतिकता का स्रोत १८८५ में जन्मी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को हराना ही अपने में एक बड़ा परिवर्तन है जो केवल राष्ट्रीय राजनैतिक दलों के संगठन से ही सम्भव हो सकता है|

    भारतीय समाज पारंपरिक और धार्मिक भावनाओं पर निर्धारित होने के कारण लोगों में व्यक्तिवाद को प्रोत्साहन मिलता रहा है| पाश्चात्य समाज में परस्पर सहयोग देखने में मिलता है और इस कारण संगठन उनके समाज का मूलाधार है| हम सशक्त एक अरब इक्कीस करोड अकेले हैं और पश्चिम में मुट्ठी भर बहुतेरे हैं| खेद की बात यह है कि ये दल उनकी देश व देशवासियों की उन्नति द्वारा नहीं बल्कि एक दूसरे के विरोध के कारण जाने पहचाने जाते हैं और सामान्य नागरिक अपनी अनुपम व्यक्तिवाद की दुर्बलता के कारण भेद-भाव शंका अथवा भय जैसे संक्रामक रोग से पीड़ित जीवन के प्रत्येक वर्ग में इस अपराधी संगठन से लुटे जा रहे हैं| हमें अपना दृष्टिकोण बदलना होगा| क्यों न हम स्वयं व्यक्तिवाद छोड़ संगठित हिलसा मछली की तरह एक बड़े समूह में बिना किसी भेद-भाव शंका अथवा भय से किसी एक राष्ट्रवादी राजनैतिक दल का अनुसरण करते उस दल को प्रजातंत्र की मर्यादा में काम करने को कटिबंध बनायें? समय की पुकार है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रवादी बीजेपी को भारतीयों का समर्थन प्राप्त कर केंद्र में शासन करना होगा| मैं स्वयं बीजेपी तथा एएपी का समर्थक रहा हूँ लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर अभी केवल बीजेपी ही को बहुमत मिलना चाहिए ताकि समय बीतते दोनों बीजेपी और एएपी अपने समानांतर कार्यक्रमों के अंतर्गत देश के हित कार्य करते रहें| यदि आप तैयार हैं तो पहले पहल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उनके गुट्ट में साम्यवाद को पराजित करना होगा ताकि संगठन द्वारा हम समाज के प्रत्येक वर्ग में अनुशासन ला सकें|

    • पूरी तरह सहमत हूँ आपके विचार से , आज देश को एक मजबूत सरकार की जरूरत है , बहुत नकारत्मकता आ चुकी है पिछले दस वर्षों में , एक मौका तो देना ही चाहिए भाजपा और नरेंद्र मोदी को , बाकि सामने आएगा कौन क्या कर सकता है , किसके वादों में कितनी सच्चाई है।

    • इंसान जी,यही नाम है न आपका ऐसे भी नाम से क्या होता है?अब मुद्दों पर आते हैं. आपने बहुत कुछ लिखाहै और उसमे बहुत सी बातों पर सहमत हुआ जा सकता है १८८५ में जब कांग्रेस की नींव पडी थी ,तो वह पढ़े लिखों की कुछ कागजी कार्रवाई तक सीमित थी.बढ़ते बढ़ते वह स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए सबसे बड़ा मंच बन गयी.सशस्त्र क्रांति में लगे हुए लोग उससे प्रभावित नहीं थे.उनका मानना था कि माँगने से कहीं राष्ट्र का शासन मिलेगा? , उसे तो छीनना पड़ेगा. खैर इन सबको यहीं छोड़ते हैं.अब आते हैं,आजादी के बाद के परिदृश्य में..गांधींजी ने कांग्रेस को भंग करने के लिए कहा था,वह तो हुआ नहीं कांग्रेस पहले तो मुट्ठी भर व्यक्तित्वों के हाथ में सिमट गयी.बाद में तो एक परिवार की होकर रह गयी.अन्य क्षेत्रीय दलों का भी कमोवेश यही हाल रहा. दो राष्ट्रीय स्तर की पार्टियां इसका अपवाद रहीं.हालांकि दोनों सिद्धांत: में एक दूसरे से दक्षिणी और उत्तरी ध्रुवकी तरह रही,पर उनके संगठन में व्यक्तिवाद कभी हावी नहीं हुआ.,ये दो पार्टियां थी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टीऔर मार्क्सिस्ट कम्युनिस्ट पार्टीं एक तरफ तो भारतीय जनता पार्टी दूसरी तरफ.आपने ठीक लिखा है कि भारत की उन्नति का सबसे बड़ा बाधक है,व्यक्ति या परिवार का समूह या समाज पर हावी होना.आपने आगे इसके दुष्परिणामों पर भी प्रकाश डाला है,पर इंसान जी आज क्या हो रहा है?क्या भारतीय जनता पार्टी भी वही नहीं कर रही है,जिसके विरोध पर इस पार्टी की पूर्ण नीति आधारित है.?सांसदीय प्रणाली में जनता एम.पी चुनती है,पी.एम नहीं. पार्टी एक संस्था के रूप में चुनाव लड़ती है न की एक व्यक्ति विशेष के रूप में.
      आपलोग जब कहते है कि अबकी बार मोदी सरकार तो ,आपलोग पूर्ण सांसदीय प्रणाली की और यहाँ तक कि संविधान की भी धज्जी उड़ा देते हैं. जब मोदी कहते हैं कि पार्टी को भूल जाओ.उम्मीदवार को भूल जाओ,केवल मुझे याद रखो(सन डे टाइम्स ६ अप्रैल) तो समाज,पार्टी और संविधान का जनाना एक बार ही उठ जाता है. हमें बार बार बताया गया है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता. मैनेजमेंट का कोई भी छात्र जानता है कि मैनेजमेंट में मैं शब्द सबसे निकृष्ट माना जाता है,फिर नमो का बार बार मैं ,मैं कहना कहाँ तक उचित है?. विनोबा भावे के ‘गीता प्रवचन’ में एक जगह आया है कि बकरी हमेशा मैं मैं करती है,पर मरते समय वह भी मैं मैं करना भूल जाती है..
      अन्य बहुत सी बाते हैं,जिनकी बार बार चर्चा की जा चुकी है,अतः मैं अगर अपने विचारों पर चलूँ या आपके विचारों का समर्थन करूँ,बात वहीं पर समाप्त होती है कि किसी ख़ास व्यक्ति को ही समाज माना जाए और उसे समाज से ऊपर समझा जाए या समाज को व्यक्ति से ऊपर समझा जाए. एक अन्य बात ,हो सकता है कि मैं गलत होऊं ,पर मैं यह मानता हूँ कि गेंदें हाथों से सफाई नहीं हो सकती . इसलिए जो नैतिकता का,भारतीयता का पाठ पढ़ाता है,उसे पहले उस पथ पर चलना होगा.

      • रमश सिंह जी आपने मुझे दुविधा में डाल दिया है| नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल को लेकर मेरी टिप्पणी में राष्ट्रवादी संगठन द्वारा राष्ट्र विरोधी तत्वों को पराजित करने की महत्वता और गंभीरता की अवहेलना करते चंचल बच्चे के समान आप प्रस्तुत विषय से हट मेरे नाम का स्पष्टीकरण मांगते हैं और पूछते हैं कि क्या गंदे हाथों से सफाई की जा सकती है| गोरी के गाल गंदे हाथों से निस्संदेह साफ़ नहीं किये जा सकते लेकिन देश में सर्वव्यापक भ्रष्टाचार और अनैतिकता की गंदगी को साफ करने के लिए हाथ तो गंदे होंगे ही! यह जानते हुए कि आप दिल्ली में आम आदमी पार्टी के संस्थापक-सदस्य हैं मैं आपकी स्थिति को समझता हूँ लेकिन नरेंद्र मोदी में प्रतिद्वंदी की ओर आपका व्यवहार सभ्य समाज की सीमायों का उल्लंघन करते न केवल आपके मन की सकीर्णता को प्रकट करता है बल्कि आम आदमी पार्टी के उद्देश्य को क्षति पहुंचाता दिखाई देता है| कोई आश्चर्य नहीं हम प्राय: बबूल का बीज बो आम की अपेक्षा करते हैं|

        • इंसान जी,मैंने तो अपनी तरफ से इस विवाद को अब आगे नहीं बढ़ाना चाहा था,पर आपने एक दो बातें ऐसी कह दीं कि मैं जवाब देने के लिए वाध्य हो गया. आपने राष्ट्र विरोधी तत्वों को पराजित करने की बात कही है,तो क्या आपकी नजर में जो भी नमो का विरोध कर रहा है ,वह राष्ट्र का विरोध कर रहा है? अगर आप लोगों की यह नजरिया है,तो मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं नहीं है कि लोकतंत्र में जो भी एक व्यक्ति की पूजा करता है और उस को ईश्वर तुल्य मानता है,वह भी उस व्यक्ति को ,जो अपने को ईश्वर का दूत समझता है और कहता है कि उम्मीदवार को भूल जाओ,पार्टी को भूल जाओ केवल मुझे याद रखो,वह अपने आप से पूछे कि क्या वह स्वयं संविधान और राष्ट्र का द्रोही नहीं है? राष्ट्र प्रेम को परिभाषित करने का यह नजरिया बहुत ही संकीर्ण है. मीडिया ब्लिट्स ने आपलोगों को अँधा और बहरा दोनों कर दिया है,अतः आपलोगो को न कुछ दिखाई पड़ रहा है और न कुछ सुनाई पड़ रहा है मेरी दृष्टि में नमो का उद्भव नई बोतल में पुरानी शराब से ज्यादा कुछ नहीं है. नमो द्वारा किये गए विकास और शीला दीक्षित द्वारा किये गए विकास में मुझे अंतर नहीं दिखाई देता. पर इस पर बहस हो सकती है,पर वास्तविक मुद्दा तो यह है कि नमो भक्त अपने को क्या समझते हैं? क्या वे कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र हैं? अगर ऐसा है,तो जो कुछ कहना है कहते रहिये और नमो नमो जपते रहिये. अगर यहीं राष्ट्र भक्ति और ईश्वर भक्ति है ,तो यह आपलोगों को ही मुबारक हो. मेरे जैसे लोग इस तरह का राष्ट्र द्रोह हमेशा करते रहेंगे.सफाई करने में हाथ गंदे हो सकते हैं,पर अगर हाथ पहले से ही गन्दा हो तो सफाई नहीं हो सकती. यह मेरा ही नहीं,उस महापुरुष का भी विचार है,जिसने कहा था कि you can’t clean linen with dirty hands.
          बात बहुत आगे बढ़ती जा रही है,फिर भी मुझे फिर से कहना पड़ रहा है कि नमो या भाजपा के किसी कार्य से ऐसा नहीं लगता कि वे भ्रष्टाचार समाप्त करने के मामले में गंभीर हैं.अगर ऐसा है,तो नमो के गुजरात मंत्री मंडल में तीन दागी मंत्री क्यों हैं?येदुयरपा को भाजपा में फिर से क्यों शामिल किया गया? राम विलास पासवान को क्यों साथ लिया गया?. गुजरात में सबसे कमजोर लोकायुक्त क़ानून क्यों बनाया गया? अमित शाह जैसे हत्या के अपराधी लोग क्यों नमो के दाहिने हाथ बने हुए हैं?ऐसे सैकड़ों प्रश्न हैं,जो उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे हैं.आपलोग यह क्यों चाहते हैं कि इन सब बातों के बावजूद भी नमो का विरोध न हो? क्या आप लोग यह चाहते हैं कि पूरा भारत नमो नमो जपना शुरू कर दे? अगर आपलोगों की यही ख्वाइश है ,तो यह कभी नहीं पूरी होगी. शायद बन्दूक की नोक पर भी नहीं.

          • मैंने कतई नहीं कहा कि जो भी नमो का विरोध कर रहा है, वह राष्ट्र का विरोध कर रहा है। कोई महापुरुष के अतिरिक्त मैं स्वयं भी अपने अभ्यास से कहता हूँ कि क्रोध मनुष्य को अँधा बना देता और उसके सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है। दीर्घ स्वास लेते कुछ विश्राम की जिए। उस महापुरुष और उसकी अंग्रेजी में कही बात को मत दोहराएं। वह कमबख्त तो “लिनन” किसी “ड्राईक्लीनर” से साफ़ करवा लेग। संगठन में सब मिल बाँट कर काम करते हैं।

  9. आप – परिवर्तन या पलायन या फिर राजनैतिक प्रपंच? दिल्ली में अपनी सूझ भूझ से दोनों, परिवर्तन ओर पलायन कर एएपी अब देश के दूसरे प्रान्तों में राजनैतिक प्रपंच रचाने निकल पड़ी है| परिवर्तन के नाम पर दिल्ली-वासिओं के बीच ध्रुवीकरण उत्पन्न करते एएपी ने डूबती कांग्रेस को स्वयं उसकी ही राजनीति “आपसी फूट” से लाभान्वित किया है| इस मिथ्या राजनैतिक प्रपंच में आपसी फूट के कारण प्रवक्ता.कॉम के इन पन्नों पर दो पढ़े लिखे पुर्णतय अपरिचित व्यक्ति विरोध में एक दूसरे को मूर्ख और पूर्वाग्रही कहने में रत्ती भर भी संकोच नहीं करते हैं| ऐसी ही मानसिक प्रवृत्ति के होते जब भारतीयों ने दो से अधिक शतकों में फिरंगियों को झेला है तो भारतीय रंग रूप के उनके कार्यवाहक कांग्रेसी भारत छोड़ कहीं और न जायेंगे| तथाकथित स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात से ही शासन के सभी वर्गों में मध्यमता और अयोग्यता की जगह अब सर्वव्यापी भ्रष्टाचार और अनैतिकता ले चुकी है| इस सर्वव्यापी भ्रष्टाचार और अनैतिकता रूपी भड़मानस द्वारा काटे सभी छोटे बड़े लोग भड़मानस बने औरों को काटने में लगे हुए हैं| ऐसे वातावरण में बीजेपी अथवा अन्य राष्ट्रीय राजनैतिक दल इस कर्कट रोग से पूर्णतय ग्रस्त हैं| भ्रष्टाचार और अनैतिकता का स्रोत १८८५ में जन्मी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को हराना ही अपने में एक बड़ा परिवर्तन है जो केवल राष्ट्रीय राजनैतिक दलों के संगठन से ही सम्भव हो सकता है|

    भारतीय समाज पारंपरिक और धार्मिक भावनाओं पर निर्धारित होने के कारण लोगों में व्यक्तिवाद को प्रोत्साहन मिलता रहा है| पाश्चात्य समाज में परस्पर सहयोग देखने में मिलता है और इस कारण संगठन उनके समाज का मूलाधार है| हम सशक्त एक अरब इक्कीस करोड अकेले हैं और पश्चिम में मुट्ठी भर बहुतेरे हैं| खेद की बात यह है कि ये दल उनकी देश व देशवासियों की उन्नति द्वारा नहीं बल्कि एक दूसरे के विरोध के कारण जाने पहचाने जाते हैं और सामान्य नागरिक अपनी अनुपम व्यक्तिवाद की दुर्बलता के कारण भेद-भाव शंका अथवा भय जैसे संक्रामक रोग से पीड़ित जीवन के प्रत्येक वर्ग में इस अपराधी संगठन से लुटे जा रहे हैं| हमें अपना दृष्टिकोण बदलना होगा| क्यों न हम स्वयं व्यक्तिवाद छोड़ संगठित हिलसा मछली की तरह एक बड़े समूह में बिना किसी भेद-भाव शंका अथवा भय से किसी एक राष्ट्रवादी राजनैतिक दल का अनुसरण करते उस दल को प्रजातंत्र की मर्यादा में काम करने को कटिबंध बनायें? समय की पुकार है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रवादी बीजेपी को भारतीयों का समर्थन प्राप्त कर केंद्र में शासन करना होगा| मैं स्वयं बीजेपी तथा एएपी का समर्थक रहा हूँ लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर अभी केवल बीजेपी ही को बहुमत मिलना चाहिए ताकि समय बीतते दोनों बीजेपी और एएपी अपने समानांतर कार्यक्रमों के अंतर्गत देश के हित कार्य करते रहें| यदि आप तैयार हैं तो पहले पहल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उनके गुट्ट में साम्यवाद को पराजित करना होगा ताकि संगठन द्वारा हम समाज के प्रत्येक वर्ग में अनुशासन ला सकें|

  10. सिंह साब आपकी सारी मनोचिंतना के बाद लिए मैं यही कहूँगी की आप जैसे लोग जो दूसरों में सिर्फ कमी खोजते हैं उनकी मिसाल सिर्फ उस मक्खी के जैसी है जो पूरा खूबसूरत , साफ़ शरीर छोड़ कर सिर्फ घाव पर जा कर बैठती है। आपने अपनी बातो से मेरी एक बात और साबित कर दी की आप जो किताबो में पढ़ते हैं उनकी ही दुहाई देकर दुनिया को देखते हैं। आपने बार – बार गांधी जी की स्वरज्य पुस्तक की बात की तो आपको ये भी पता होगा की शादी – शुदा होकर भी गांधी जी ने एक समय के बाद ब्रह्मचर्य को अपना लिया था , यहीं नही उन्होंने अपने बच्चो तक को खुद से अलग रखा था , जिस कारण उनके बच्चो को जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ा , खुद गांधी जी ने एक पति , या एक पिता या एक पुत्र के रूप में अपने परिवार को क्या दिया ? बताइये ? या आपकी नज़र में अब गांधी जी भी निंदनीय है ? आप जो बार – बार दूसरो को स्वरज्य पढ़ने की सलाह देते हैं न तो मैं आपको बता दूँ की मैं गांधीवादी लेखक रामेश्वर मिश्र पंकज की बेटी हूँ , और मैंने महात्मा गांधी का पूरा ” कलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ महात्मा गांधी” भी पढ़ा है , और अपने पिता से उनके बारे में सही – गलत सब जानकारी भी ली है। और आज खुद मेरे पिता तक मानते हैं की आम आदमी पार्टी मार्क्सवादियों का नया रूप है , आप भी ज़रा पढ़ लीजिये , मेरे घर पर है , भिजवा दूँ? मोदी के खिलाफ कौन सा मजबूत सबूत आपके पास है जो आप उनके ऐसे निंदक बन गए हैं ? जिस मोदी को देश के सुप्रीम कोर्ट ने हर मामले में क्लीन चिट दी वो आपकी नज़र में दोषी हैं , वाह , जिस मोदी को खुद कांग्रेस शासित केंद्र सरकर ने विकास के लिए पुरस्कार दिया वो विकास आपकी नज़रो में कम है , तो आप ज़रा मुझे ये बताईये भारत का कौन सा राज्य अभी तक पूर्ण रूप से हर मायने में विकसित है ? कोई नही , हर राज्य में विकास हो रहा है , कहीं बहुत तेज़ी से तो कहीं थोड़ा काम। ऐसे में अगर गुजरात के विकास की सराहना की जाती है तो उसका मतलब यह नही है की वहां विकास कार्य पूरा हो चुका है , बल्कि इसका मतलब यह है की वहां अब पहले से कहीं बेहतर स्थिति है ,और ये आप जानकर भी नही स्वीकारेंगे क्योंकि आप आम आदमी पार्टी के उन समर्थकों में से हैं जो येन – केन – प्रकारेण मोदी और भजपा को रोकना चाहते है. अब आपने कहा की मोदी ने अपनी माँ या पत्नी के प्रति धर्म नही निभाया तो मैं आपसे यही कहूँगी की आज तक मोदी की पत्नी या माँ ने कभी उनपर कोई आरोप नही लगाया तो आप कौन होते हैं उनके पारिवारिक जीवन में प्रश्न उठाने वाले ? इस देश में ऐसे तमाम विवाहित है जो आपसी सहमति से अलग रहते हैं , ऐसे – ऐसे पुरुष हैं जो दूसरी बीवी तक ले आते हैं और पहली को भी घर की मुर्गी समझते हैं , पर मोदी जी जिनका बाल विवाह हुआ था उन्होंने अपनी पत्नी को उसका जीवन जीने की आज़ादी दी , आपसी सहमति से अलग हुए भी तो भी आज उनकी पत्नी अपना जीवन इज़्ज़त से जी रही है , कोई दर – दर की ठोकरे नही खा रही , वरना वो खुद अपने पति के लिए मंगल कामना न करती, वो खुद आज मौका देखकर उन पर आरोप लगाती , जिसकी कोशिश भी कुछ मोदी विरोधियों द्वारा की गयी थी। और खुद मोदी और उनकी माँ के बीच रिश्ते बहुत अच्छे हैं , मोदी जब वक़्त मिलता है उनके पास जाते है आशीर्वाद लेने , पर आप उन लोगो में से है जो यदि मोदी की माँ और पत्नी शानो – शौकत से रह रही होती तो उस पर भी हाय – तौबा करते और यदि वो अपनी मर्ज़ी से सादगी से रह रही हैं तो इस पर भी मोदी को दोषी ठहरा रहे हैं। आप ये भूल जाते हैं की मोदी की मिसाल एक अच्छे राजनेता के रूप में दी जाती है , एक अच्छे पति या बेटे को मुद्दा बनाकर वो वोट नही मांग रहे , और एक मुख्यमंत्री के लिए यही मायने रखता है की वो अपने राज्य के लिए क्या करता है। खैर ये आप कहाँ समझेंगे , आप लोग तो अरविंद केजरीवाल के समर्थक है , जिनके लिए यही कहा जा सकता है नाम बड़े और दर्शन छोटे। आप तो खुद अरविंद केजरीवाल को दूसरो की बताई बातों के आधार पर जानते हैं और मानते हैं , पर मैंने जो लिखा वो मेरा साक्षात अनुभव था , इसलिए सिंह साब किताबी दुनिया की दुहाई काम से काम प्रवक्ता के पाठको को मत दीजिये यहाँ कोई हवाबाजी करने नही आता।

    • सुजाता मिश्र जी,आपके इतना परिचय देनेके बाद शायद ही कोई हिम्मत कर पाता कि अब माफ़ी माँगने के अतिरिक्त अन्य कुछ बोले या लिखे,पर मैं ठहरा जिद्दी किस्म का आदमी,अतः बात को आगे बढ़ाता हूँ. गांधी साहित्य या विचार धारा का मैं कोई आधिकारिक ज्ञाता हूँ ,यह दावा तो मैं नहीं करता,पर बचपन से आज तक उसी विचार धारा का पोषण करता रहा हूँ. महात्मा गांधी के बहुत से कार्यो का मैं आलोचक भी रहा हूँ,पर उनके आर्थिक,प्रशासनिक,सामाजिक और यहां तक की शैक्षणिक विचार धाराओं का भी मैं समर्थक रहा हूँ. मैं कोई ख्याति प्राप्त व्यक्ति नहीं हूँ.आम आदमी पार्टीमें भी मेरी हैसियत एक वालिंटियर से अधिक नहीं है. मैं तो सचमुच सबके रवैये से ऊब चुका था और एक पुस्तक लिखने की चेष्टा कर रहा था और उसी के लिए सामग्री जुटाने में लगा रहता था कि अन्ना का आंदोलन आ गया. और फिर सब उथल पुथल हो गया. मेरी अपनी विचार धारा है. आज मैं भारत के सर्वांगीण विकास के लिए दिशा निर्देश करने का साहस रखता हूँ.,पर मेरे विचार से यह तब तक संभव नहीं है,जब तक भ्रष्टाचार पर अंकुश न लगाया जाये.
      अब मैं बात करता हूँ नमो की. मैंने बड़े बड़े अपराधियों, यहां तक कि खूनियों को भी सबूत के अभाव में रिहा होते देखा है.भारत में बेगुनाहों को भी काल कोठरियों में सड़ते देखा जाना अपवाद नहीं है.मैं नहीं कहता कि नमो दोषी हैं ही,पर सबूत के आभाव में सुप्रीम कोर्ट से छूट जाना बेगुनाही का कोई प्रमाण नहीं है. मैं गुजरात के दंगे का सत्य जानता हूँऔर दंगे कैसे फैलाये जाते हैं,यह भी जानता हूँ. पर अब मैं आपसे एक बात पूछता हूँ.आपने मेरी किसी टिप्पणी में गुजरात के दंगे के बारे में कुछ लिखा हुआ देखा क्या? फिर आपके मस्तिष्क में यह बात आई कैसे? मैं हमेशा यही लिखता हूँ कि नमो विकास पुरुष नहीं हैं.न तो उनके शासन काल में सर्वांगीण विकास हुआ है और न भ्रष्टाचार ख़त्म हुआ है.शिक्षा और स्वास्थ्य के मामले में भी मोदी की सरकार ने कोई खास काम नहीं किया है. ये सब बातें सप्रमाण मैं इतनी बार लिख चुका हूँ कि उनको यहाँ फिर से लिखने के लिए केवल कापी और पेस्ट का सहारा लेना पड़ेगा.
      आपने गांधी जी से नमो की तुलना करने की कोशिश की है.गांधी जी जी ने तो कभी भी अपने लिए सत्ता का रास्ता चुना ही नहीं ,फिर तुलना कैसी? गांधी जी ने तो कस्तूरबा बाई का साथ कभी नहीं छोड़ा?उनके साथ दाम्पत्य जीवन भीबिताया,फिर तुलना कैसी?भले आदमी अपनी माँ की तो सेवा करता. क्या फक्र के साथ नमो बोलते हैं कि मेरी माँ तो आज भी ८*८ के कोठरी में रहती है. जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी कहा जाता है,.जिस आदमी ने अपनी जननी को तुच्छ समझा ,उससे जन्मभूमि की सेवा की क्या उम्मीद की जा सकती है?ऐसे मैं किसी से भी कहीं भी इन बातों के लिए विचार विमर्श या तर्क पूर्ण वार्ता के लिए तैयार हूँ ,अगर वह व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह विचार विमर्श के पहले मेरी औकात न देखने लगे.
      हाँ, यह भी याद आया कि आपने लिखा है कि नमो ने दूसरी शादी नहीं की और अपनी पत्नी को जीने की आजादी दी.सुजाता जी कैसी आजादी ? कौन सी आजादी ? पत्नी परित्यक्ता का जीवन जीती रही और अपने बारह वर्षों से मुख्य मंत्री निवास में गुलछर्रे उड़ाते रहें. आप एक नारी होकर भी ऐसा कह सकती हैं,मुझे इस बात पर ताजुब होता है. अभी कुछ दिनों पहले मैं जब मैं एकं बुजुर्ग साथी से फोन पर इसकी चर्चा कर रहाथा,तो इतना भावुक होगया था कि मेरी पत्नी ने मुझे बीच में रोक दिया था.भावुक तो वह भी हो गयी थी,पर उन्होंने न केवल अपने को सम्भाला ,बल्कि मुझे भी समझाया.

      • सिंह साहब पहली बात मैंने नरेंद्र मोदी की तुलना गांधी जी से नही की कृपया अरविंद केजरीवाल की तरह दूसरो पर अपने सोच न थोपें , दूसरी बात मैंने गांधी जी का उदहारण देकर कहा की हर इंसान में कमी होती है , कोई भी ऐसा नही है जो सर्वगुण सम्पन्न हो। और गांधी जी का नाम इस लिए लिया क्योंकि आप शुरुवात से ” स्वराज्य ” जिसका आपको सिर्फ ऊपरी ज्ञान है उसकी दुहाई देकर अरविंद केजरीवाल को गांधी जी के बराबर रखने की कोशिश कर रहे हैं। आप उन लोगो में से हैं जो स्त्रियों में हो रहे अत्याचार को देखकर संपूर्ण पुरुष वर्ग को दोषी ठहरा देते हैं , पर मैं एक स्त्री होकर भी यही कहूँगी की दुनियां में अगर स्त्रियों ने पुरुषों की वजह से दुःख देखा है तो ऐसी भी महिलाएं हैं जो अपनी सफलता में अपने पति का पूरा सहयोग मानती हैं। मैं आपसे फिर यही पूछती हूँ की आखिर किन तथ्यों के आधार पर आप कह रहे हैं की मोदी जी ने अपनी पत्नी को बदहाली में छोड़ दिया और खुद गुलछर्रे उड़ाएं ? या मोदी ने अपनी माँ के साथ अनुचित व्यव्हार किया ?लगता है आप किताबे पढ़ने के अलावा सास – बहु के सीरियल भी बहुत देखते हैं जो आपको मोदी के जीवन में एक सीरियल का बिगड़ैल पति , एक दुखियारी माँ और एक पति से पीड़ित पत्नी नज़र आ रही है। जबकि न तो मोदी की माँ , न उनकी पत्नी ऐसा मानती है। मैंने पहले भी कहा मोदी की बात एक अच्छे मुख्यमंत्री के रूप में होती है न की एक अच्छे पति या बेटे के रूप में। पर आप जैसे लोग जिन्हे जब कोई मुद्दा नही मिला उन्हें अचानक मोदी की पत्नी मिल गयी , जो शायद कहीं गुमनामी में ही होती , अन्य सामान्य महिला की तरह , आप लोग भी उनके पति द्वारा उनके त्याग पर आंसू न बहाते यदि आज वो मोदी की पत्नी न होती तो। पर क्योंकि वो मोदी की पत्नी हैं तो आप जैसे लोग अपनी झूठी सहानुभूति दिखाकर मोदी को दोष साबित करने में लगे हैं। क्या कभी मोदी का नाम किसी और महिला के साथ आया ? क्या कभी मोदी ने कहा की वो अविवाहित हैं ? और मैंने पहले भी कहा की मोदी के गुरत का विकास यह नही कहता की यह संपूर्ण विकास है , बल्कि यह कहता है की विकास हो तो ऐसे। दंगे कहाँ नही हुए ? और क्या गुजरात के दंगे भारतीय इतिहास के पहले दंगे हैं? आप तो सुप्रीम कोर्ट को भी नकार रहे हैं , और आप कह रहे हैं मैं बहुत साधारण इंसान हूँ। मतलब सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी तुच्छ है आप लोगो के लिए ? शुक्र है इस देश में सुप्रीम कोर्ट है वरना आम आदमी पार्टी के समर्थक जाने क्या – क्या दिन दिखाते। और हाँ आप या आम आदमी से जुड़े अन्य लोग बेशक मोदी के कार्यो को नकारे पर सच ये है की मोदी ने कुछ तो विकास कार्य किया जिसके कारण गुजरात में वो तीसरी बार जीते , या आप गुजरात की जनता को भी मूर्ख मानते हैं। आपको बेशक अधिकार है मोदी की आलोचना का पर हमे भी अधिकार है केजरीवाल जैसे मौकापरस्तों की आलोचना का। पर आप केजरीवाल के उन समर्थकों में से हैं जो दूसरों को मूर्ख साबित कर अपनी बात मनवाने की कोशिश करते हैं। हो भी क्यों न अरविंद केजरीवाल खुद सारी पार्टियों को भ्रष्ट कहते हैं , पर खुद उन पार्टियों के नेताओं को अपनी पार्टी से टिकट देकर उन्हें ईमानदारी का सर्टिफिकेट भी दे देते हैं। आम आदमी पार्टी न हुई गंगा नदी हो गयी , डुबकी लगाओ और सारे पाप खत्म।

        • सुजाता जी मेरी टिप्पणी फिर से पढ़िए.वहां गांधी जी के साथ आपके द्वारा गांधी जी की नमो की तुलना का जिक्र है न की मेरे द्वारा गांधी जी का नमो के साथ तुलना. गुजरात का विकास मेरी दृष्टि में उसी तरह का है,जिस तरह का विकास पिछले पंद्रह वर्षों में दिल्ली में हुआ था,पर दिल्ली की जनता ने उसे विकास नहीं माना.मैं दिल्ली की गलियों में बहुत घूमा हूँ.झुगी झोपडियोंमे, तथाकथित अनधिकृत वस्तियों में, ,सरकारी स्कूलों और सरकारी अस्पतालों में वह विकास नहीं दीखता. वह विकास एम.सी.डी. और परिवहन विभाग में भी नहीं दीखता.शीला दीक्षित भी दिल्ली के विकास का ढिढोरा पीटती थी ,पर आम आदमी ने उसे विकास नहीं माना.नमो अगर गुजरात में तीन बार मुख्य मंत्री बने हैं,तो शीला दीक्षित भी बनी थीऔर उन्होंने तो किसी दंगे के साथ जुड़े हुए पोलाराइजेशन का भी लाभ नहीं उठाया था. मैं फिर इसको साफ़ कर देना चाहता हूँ कि मैंने अपनी तरफ से दंगे का कोई जिक्र नहीं किया.ऐसे नमो बहुत दिनों तक हिंदुत्व का मैस्कॉट रहे हैं.अब जब उसका बाजार मूल्य कम हो गया ,तो पिछले दो वर्षों से उन्होंने उसके ऊपर विकास का लबादा ओढ़ लिया है. रहीं आम आदमी पार्टी की बात ,तो मेरी निगाह में वह अभी अपने सिद्धांतों पर चल रही है और अभी भी उसका मैनिफेस्टो परीक्षा से नहीं गुजरा है.यह तो समय ही बताएगा कि पार्टी अपने वादे पर कहाँ तक खरी उतरती है और उसके खरा नहीं उतरने पर मेरे जैसे लोग तो पार्टी सेअवश्य किनारा कर लेंगे.

          • मुझे अब हंसी आ रही है आपके तर्को पर , दंगो की हकीकत और दंगे कैसे करवाये जाते हैं ये तो आपको पता ही होगा , आखिर आपकी आम आदमी पार्टी की शाजिया इल्मी अल्पसंख्यको को उकसाती हुई आपने भी देखी , बिलकुल सही , दंगो की दुहाई देने वाले ही सबसे ज्यादा दंगो के रूपरेखाकर भी होते हैं , वो कहावत है न “चोर मचाये शोर “. शीला क्या पूरी कांग्रेस ही आज तक धर्म को आधार बनाकर लोगो को उकसाती रही है और जीतती रही है , उनके ही कदमो पर चल पड़े हैं आम आदमी पार्टी के स्वघोषित देशभक्त , जिनका तो एक ही हाल है गंगा गए गंगा दास , यमुना गए यमुना दास। और हाँ आप अपने शुरवात से लिखे सभी विचारों को पढ़िए , आप ही अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को समझने के लिए महात्मा गांधी की लिखी स्वराज्य पुस्तक पढ़ने की मुफ्त सलाह दे रहे हैं। महात्मा गांधी जिन्होंने जीवन लगा दिया देश के लिए , और ये नौटंकी केजरीवाल जिन्होंने सिर्फ लोगो की भावनाओं से खिलवाड़ किया है , “कहाँ राजा भोज , कहाँ गंगू तेली “. सिंह साब अभी तो कोई ये भी नही जानता की नरेंद्र मोदी अपनी मर्ज़ी से पत्नी से अलग हुए या पत्नी की मर्ज़ी से , क्योंकि उन दोनों ने जीवन पर्यन्त किसी और से भी विवाह नही किया , दूसरी बात नरेंद्र मोदी और उनकी पत्नी जब अलग हुए तब मोदी मुख्यमंत्री भी नही थे एक साधारण कार्यकर्त्ता थे जिसके पास आय का भी कोई खास साधन नही था ,आप ये भी नही कह सकते की उन्होंने अपने बल से अपनी पत्नी का त्याग किया और पत्नी डरी रही , यदि मोदी सच में अपनी पत्नी का त्याग करना ही चाहते थे तो बहुत पहले उन्हें तलाक दे दिया होता , और आप जैसे लोगो को उनपर ऊँगली उठाने का मौका भी नही मिलता , अतः बिना तथ्यों के किसी के व्यक्तिगत जीवन पर आक्षेप लगाना अनैतिक है , यदि आपको सच में नरेंद्र मोदी की पत्नी के प्रति दया या सद्भावना होती तो आप या आप जैसे और लोग इस बात को चुनावी मुद्दा ही नही बनाते , आप लोग सोचते की जिस बात को इतने साल दोनों पति , पत्नी ने दुनिया से छुपाकर रखा उसे मुद्दा बनाकर मोदी पर हमला करके आप उस औरत के जीवन को भी मजाक बना रहे हैं , जो आज तक शांति से जी रही थी। और ये भी कोई नही जनता की सच में नरेंद्र मोदी और उनकी पत्नी के बीच कोई अलगाव भी था या नही। और कम से कम इस मामले में नरेंद्र मोदी अरविंद केजरीवाल से बेहतर हैं , उन्होंने घर नही बसाया , बच्चे नही पैदा किये अरविंद केजरीवाल की तरह , की खुद तो समाज सुधारने निकले हैं और घर , परिवार , बच्चे सब पत्नी के भरोसे छोड़ दिया , ऐसे लोग जिन्हे देश के लिए जीना हो उन्हें परिवार बसाने से पहले दस बार सोचना चाहिए , ऐसा नही होता की आप पूरे समय घर से , शहर से बाहर रहे , नौकरी छोड़ दे और पत्नी घर चलाये, सास – ससुर की देखबाल करे और बच्चे भी पाले। दुनिए में नाम हो केजरीवाल का और घर पर पिसे उनकी पत्नी , वाह आज के समय में भी ऐसे रूढ़िवादी पुरुष हैं सोचकर आश्चर्य होता है , आप जिस पार्टी से जुड़े हैं वो पार्टी ही आधारहीन है तो भला आपके तर्क कैसे सही होते , आप आम आदमी पार्टी के स्वघोषित देशभक्तों की तरह बेबुनियाद तर्क रखते हैं , लेकिन इस बात को लिख कर रख लीजिये की इस आम आदमी पार्टी का पांच साल बाद कोई वजूद ही नही होगा , भले ही इस चुनाव में अपनी हवाबाजी के दम पर कुछ सीटें जीत जाये।

  11. सुजाता जी ये आपका ही लिखा हुआ लेख है ना ? जागरण जंक्शन डॉट कॉम पर भी यही लेख पड़ा है लेकिन अलग नाम से जरा आप चेक कर लीजिये। लिंक दे रहा हूँ।

    https://somanshsurya.jagranjunction.com/2014/04/12/%E0%A4%86%E0%A4%AA-%E2%80%93-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8-%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A8/

    • ये तो सरासर चोरी है , आपका बहुत – बहुत धन्यवाद शिवेंद्र जी , मैं जागरण में छपे अपने इस लेख के खिलाफ , जो की चोरी करके छपा गया है , क़ानूनी कार्यवाही करुँगी , हद हो गयी , मेरा लिखा चुरा लिया अपने नाम से ,बेहद शर्मनाक …

  12. आदरणीय सिंह जी नमस्कार
    सुजाता मिश्र जी ने जो विचार अपने इस लेख के माध्यम से रखे है यह भी एक आम आदमी के ही विचार हैं और संयोग कि बात यह है कि ऐसे विचार उसी आम आदमी के है जिसने विधानसभा चुनाव में केजरीवाल जी पक्ष में मतदान किया था | अगर लोकतंत्र में आलोचनाओ को स्थान है तो इसे स्वीकार करना होगा और अगर आरोप प्रत्यारोप को भी स्थान है तो आप भी स्वीकार्य हैं | आप आदरणीय हैं किंतु में इतना कहना चाहूँगा की आप टिप्पणियाँ महज ” बोद्दिक उल्टिया ” थी | क्या यह सत्य नही की और नेताओं की तरह केजरीवाल जी के भी कथनी और करनी में काफी अंतर ? आप केजरीवाल जी के पुस्तक “स्वराज ” पढ़ने की सलाह दे रहे हैं लेकिन लेखक व्याभारिक जीवन में क्या कर रहा है ?

    • प्रकाश झ जी.मैं जब स्वयं आलोचक हूँ ,तो मुझे तो आलोचना या टिप्पणी का सामना करना ही पड़ेगा,पर मैं निराधार लांक्षन का हमेशा विरोधी रहा हूँ.आप किसी को बिना उसकी असलियत समझे अगर उसे भगोड़ा कह दें,अमेरिका या पाकिस्तानका एजेंट कह दें या माओ वादी कह दें,तो मुझे उसका प्रतिकार करने में एक क्षण की देर नहीं लगती.अगर किसी ख़ास मजहब से सम्बन्ध रखने वाला होने कारण ही किसी की निगाह में कोई देश द्रोही हो जाता है,तो मैं उसे अपने दामन में झांकने की अवश्य कहूँगा. मेरी अपनी विचार धारा है कि कोई भी भ्रष्ट या भ्रष्टाचार का समर्थक देश द्रोही है. इस देश में हिन्दुओं की संख्या अधिक है,इस कारण भ्रष्टाचार में उनका हिस्सा भी अधिक है. बहुत सी अन्य बातें हैं,जिनमे मेरा नजरिया लोगों से मेल नहीं खाता है,अतः आप कह सकते हैं कि मैं व्यवहारिक नहीं हूँ,पर जब तक मेरी बातों को अपने तर्क द्वारा गलत नहीं ठहराते,तब तक मैं उसे इसलिए स्वीकार नहीं कर सकता,क्योंकि वह बात किसी बड़े आदमी ने कही है.

  13. सिंह साब यदि आपको पढ़ने का ज्यादा शौक इस उम्र में भी है तो आपको ये भी ज्ञात होगा की दुनिया में एक विषय के प्रति सबका अपना – अपना नजरिया होता है , इसलिए अपने को सर्वज्ञानी और दूसरे को निरा मूर्ख मानना क्या होता ये मुझे आपको बताने की जरुरत नही। और हाँ गीता में लिखा है की ज्ञान की बात भी उस से बॉटनी चाहिए जो उसका पात्र हो , जो उसे समझे और आत्मसात करे , इसलिए आप जैसे किसी पूर्वाग्रही के लिए मैंने यह नही लिखा क्योंकि आप मेरे लिखे को पढ़ने से पहले ही अपना मत बना चुके हैं की आपको क्या सोचना है , आप अपने विचार को सही मानते हैं तो मुझे भी पूरा अधिकार है अपने मत पर कायम रहना। मैं भी पढ़ने की शौकीन हूँ , और पढ़ाना ही मेरा काम है लेकिन मैं किसी वाद विशेष का ना तो समर्थन करती हूँ ना दूसरों की कार्यशैली को किसी वाद का नाम देकर परखती। बड़ी – बड़ी बाते करने वाला भी बड़ा हो ये हमेशा नही होता , और यही अरविंद केजरीवाल की हकीकत है। आदर्श और व्यवहारिकता में बहुत फर्क है।

  14. केजरीवाल की महत्वकांछी सोच से मेरे परिवार से ज्यादा कौन परिचित होगा, केजरी बाबू की बड़ी – बड़ी बातों को सही मानकर हमने भी अपने परिवार के उस सदस्य को इनसे जुड़ने के लिए कहा , हमे कुछ उम्म्मीद थी परिवर्तन की। सच में लगा कुछ बेहतर होगा देश में , पर केजरीवाल ने न सिर्फ हमारी उम्मीद तोड़ी बल्कि आज हमे लगता है की हुमरे परिवार का वो सदस्य भटक गया है, ऐसे लालची लोगो की सांगत में , जिनका उद्देश्य सिर्फ सत्ता पाना है। खैर आप जैसे किताबी दुनिया में रहने वालो के कारन इस देश ने पहले भी बहुत दुःख झेला है कांग्रेस के कारण , अब आप जैसे लोग केजरीवाल का भी समर्थन कीजिये, और रखिये झूठी उम्मीद परिवर्तन की … क्योंकि सच्चाई देखने के लिए आँखों से अंध भक्ति का पर्दा हटाना बेहद जरुरी है।

  15. सिंह साहब आप जिस पीढ़ी से है उस पीढ़ी की यही सबसे बड़ी कमजोरी है की आप लोग किताबी बातों के आधार पर दुनिया को देखते हैं , व्यवहारिकता से भले ही उसका कोई नाता न हो , तभी इतने सालो से कांग्रेस जैसी पार्टी देश को लूटती रही और अंध भक्त उसे वोट देते रहे , रही बात केजरीवाल की तो आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की इन केजरीवाल साहब की पार्टी से दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक उम्मीदवार मेरे घर से था , और इस नाते ये केजरी बाबू कई बात मेरे घर आये हैं , खाना भी खाया है। ये तमाम भाजपा वालो पर मीडिया में आरोप लगते हैं की भाजपा वाले उनके लोगो को खरीदना चाहते हैं जबकि खुद ये मेरे घर मेरी माताजी जो भाजपा से दिल्ली की मेयर थी उनको कई बार अपनी पार्टी से जोड़ने के लिए आये , विधानसभा के टिकट का लालच भी दिया पर जब बात नही बनी तो मेरे ही परिवार के एक सदस्य को टिकट दे दिया मेरी मम्मी की साफ , ईमानदार छवि को भुनाने के लिए। लेकिन भाजपा ने इस बात का भी कोई तमाशा नही किया केजरी बाबू की तरह। ये कितने पानी में हैं ये मुझसे बेहतर आप तो नही ही जानते होंगे। आपको क्या लगता है की लोग बड़ी – बड़ी कम्पनियों से अपनी नौकरी छोड़कर आम आदमी पार्टी में आ रहे हैं? जी नही इन सभी लोगो को इनकी पूरी तनख्वा हर महीने मिल रही है, कोई अपनी नौकरी छोड़कर नही आया सब मौके का फायदा उठाने आएं हैं की खुद का कौन सा पैसा लगाना है , केजरीवाल सबको चुनाव लड़ने के काफी धन उपलब्ध करा रहे हैं और साथ भी हर महीने मिलने वाली तनख्वा भी। और ये तथ्य किताबी नही क्योंकि मेरे परिवार के उस सदस्य ने ये खुद मुझे बताया है। खैर आप जैसे किताबी दुनियां में रहने वालो के कारण ही इस देश का ये हाल है, जो व्यवहारिकता को अनदेखा करते हैं और किताबी ज्ञान के आधार पर दुनिया को देखते हैं। क्या आप ऐसे इंसान को भरष्टाचार के विरुद्ध मानते यहीं जो अपने तक को पैंसा देकर बुलाता है ? फिर तो मैं यही कहूँगी की इस देश के लोगो को मुर्ख बनाना बहुत आसान है, और केजरी बाबू ने ये अच्छी तरह किया है।

    • सुजाता मिश्र जी,आपने अब आवश्यकता से अधिक अपना परिचय दे दिया,अतः मुझे ज्यादा जानने की कोई आवश्यकता नहीं है. अभी चंदेल जी के टिप्पणी के उत्तर में एक टिप्पणी की है,अतः उन सब बातों को यहां दोहराना मैं उचित नहीं समझता.रही बात किताबी ज्ञान की ,तो आप ऐसा कह सकती है,क्योंकि पढ़ने लिखने का शौक इस उम्र उम्र में भी है और शायद जब तक आँखें और मस्तिष्क साथ देगा,तब तक यह रवैया रहेगा. आपके ज्ञान के लिए मैं यह जानकारी देना उचित समझता हूँ कि आज तक जब से मैं मतदाता बना हूँ ,तब से वोट देना अपना अधिकार ही नहीं कर्तव्य समझा है ,पर शायद ही एक या दोबार कांग्रेस के पक्ष में वोट दिया है. नेताओं से आम तौर से एलर्जी रही है.आपातकाल के समय क्लास वन आफिसर था,पर जयप्रकाश जी के आंदोलन और फिर आपात काल में भी अपने ढंग से सक्रिय रहा. जाने दीजिये यह सब जानकार आप क्या कीजियेगा?मेरी टिप्पणी या आलेख देखने का समय तो आपको कभी मिलता नहीं होगा,अतः उसके बारे में भी चर्चा व्यर्थ ही है. मैंने विनोबा जी का एक कथन स्कूल के दिनों में पढ़ा था.वह मेरे जीवन के लिए एक मन्त्र के सामान है. उन्होंने लिखा था ” जिसने नयी चीज सीखने की आशा छोड़ दी,वह बूढा है.”, ऐसे मैं इतना जानता हूँ कि गंदे हाथों से सफाई नहीं हो सकती,अतः गंदे हाथों से सफाई की उम्मीद रखना व्यर्थ है.

  16. सुजाता मिश्र जी, आपका यह आलेख दर्शाता है की आप उन मूर्खों में से हैं,जो अपंने को बुद्धिमान समझता है. राजा भर्तृहरि ने ऐसे ही लोगों को ध्यान में रख कर नीति शतक में यह श्लोक लिखा था:
    यज्ञः सुखम् आराध्यते, सुखतरम् आराध्यते विशेषज्ञः,
    ज्ञानलव दुर्विदग्धं तं नरं ब्रह्मापि न रञ्जयति.
    आप जैसे लोग उसी तीसरी श्रेणी में आते हैं ,जो मूर्ख होते हुए भी अपने को विद्वान समझते हैं. आपने लिखा है कि कोई संगठन नहीं है,तो यह सत्य है कि आम आदमी पार्टी अभी तक कोई सुदृढ़ संगठन नहीं बना सकी है,पर यह भी उतना ही झूठ है कि लोग आम आदमी पार्टी से चुनाव में उम्मीदवार बनने के लिए जुड़े हैं. मेरे जैसों की संख्या सैकड़ों में नहीं ,बल्कि हजारों या हो सकता है कि लाखों में हो,जिन्हे पद या उम्मीदवारी की कोई लालसा नहीं .यही आम आदमी पार्टी की शक्ति है.रह गयी सिद्धाँतोंकी बात,तो मैं आम आदमी पार्टी की तुलना किसी भी राजनैतिक पार्टी से नहीं करता ,क्योंकि अन्य सभी स्थापित राजनैतिृक पार्टियां और उसके नेता गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं. आम आदमी पार्टीका अपना एक सिद्धान्त है,जो केजरीवाल की पुस्तक “स्वराज ” में समाहित है. अगर आपको “स्वराज’ पढ़ने में झिझक हो तो,मैं आपको पांच अन्य पुस्तकें पढ़ने का सलाह दूंगा.१.महात्मा गांधी का हिन्द स्वाराज,२.उन्ही का ग्राम स्वाराज,३.उन्ही का मेरे सपनो का भारत.४.पंडित दीन दयाल उपाध्याय का भारतीय अर्थ नीति:विकास की एक दिशा,५.उन्ही का एकात्म मानव वाद.
    इसके बाद मुझे बताइयेगा कि अरविन्दऔर उनकी टीम अपने किस कार्य से इन सिद्धांतों से अलग हुई है.अरविन्द का मंत्रिमंडल अगर जनलोकपाल के सदन के पटल पर रखे जाने के विरोध के बावजूद भी अगर अपनी कुर्सी से चिपका रहता ,तो उन सिद्धांतों की हत्या अवश्य हो जाती.
    अरविन्द केजरीवाल ने यह स्वीकार किया है कि उन्हें जनता को अपना कदम समझा कर तब यह इस्तीफा देना चाहिए था.यह स्वीकारोक्ति केवल यह दर्शाता है कि सिद्धांत अपने आप में अवश्य ठीक हैं,,पर हमने जिनके सहयोग से सत्ता संभाली है,उनकी निगाह में भी उन्हें ठीक दिखने चाहिए.
    मुझे यह बात तो समझ में आती है कि जो सता या भ्र्ष्टाचार की मलाई का रसास्वादन कर रहे हैं,वे तो आम आदमी पार्टी को नहीं वर्दास्त कर पा रहे हैं,तो वह इसलिए कि अगर आआप को वर्चस्व मिल गया तो उनकी डकैती के दिन ख़त्म हो जाएंगे,पर मैं यह समझने में असमर्थ हूँ कि बिना सोचे समझे अन्य लोग क्यों उनकी हाँ में हाँ मिला रहे हैं? क्या यह यथा स्थिति से चिपके रहने का हमलोगों का स्वभाव है या हमें यह गन्दगी अच्छी लगने लगी है या फिर भ्रष्टाचारियों का समूह उससे बड़ा है,जितना मेरे जैसे लोग समझ रहे हैं.

    • सिंह साहब नमस्कार ,

      मैं आपके विचार से निजी तौर पर सहमत नहीं हूँ ,क्यों की आपके आम आदमी पार्टी , उससे सम्बंधित “कुछ करीबी “लोगों को निजी तौर जनता हूँ।

      जहाँ तक तक बात रही स्वराज की तो स्पस्ट कर दूं , की केजरी की इस कथनी और करनी में बहुत फर्क है। और रही बात राष्ट्रपिता गांधी जी के स्वराज और उससे सम्बंधित पुस्तकों की,तो ये भी स्पस्ट कर दूँ की मैंने पढ़ा है. ….आपके केजरी कितना अनुपालन करतें हैं गांधी जी के स्वराज को ये जग विदित हैं।

      मुझे इसमे कत्तई संदेह नहीं है की आपका अनुभव और विचार सटीक है(अगर मैं आपके अनुभव को आम आदमी पार्टी से दूर रखूं तब), आम आदमी पार्टी को आप शायद प्रतयक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नहीं जानते ,लेकिन मैं इन्हें करीब से देखा है। और इन सब लोलुप को तो निजी तौर पे जनता हूँ …।

      आम आदमी पार्टी एक घटिया किस्म के लोगों का जमवाड़ा है जिसका नेतृत्वा केजरी कर रहें हैं। कहते हैं न, .. दुर के ढोल सुहाने लगते हैं। और यही मुग्धता आप जैसे मूर्धन्य लोगों के साथ हो गया है…. खैर आने वाले कुछ समय में आप सबका ये भ्रम भी दूर हो जायेगा, .ठीक वैसे हीं ,जैसे सूर्य ढलते हीं ,एक मधुमक्खी की कमल के कोपल बंद हो जाने पर होता है …।

      मैं इतना ज़रूर कहूँगा , की आम आदमी पार्टी वो पार्टी नहीं है जो देश का नेतृत्वा कर सके। इतना हीं केजरी वाल सक्षम होते तो कांग्रेस का सहयोग नहीं लेते। खैर,केजरीवाल , कितना भी धूम मचा ले कुछ नहीं कर सकते सिवाए युवाओं के जोश का शोषण करने के। …इतना ही केजरी में दम है तो राय बरेली, अमेठी से भी परचा बाहर लेते।

      मैं तो बस इतना हीं कहना चाहूंगा की भक्ति ठीक है।लेकिन अंध भक्ति नहीं। और आप जैसे अनभवी लोगों से यही एक अपेक्षा है की अपने अनुभव के माध्यम से युवाओं को सही मार्ग दर्शन दें।आम आदमी पार्टी और केजरी की नशीहत नहीं ….

      अपने मत का प्रयोग जरूर करें। .सोंच समझ कर करे। ऐसा न हो की मन में मलाल सा रह जाये। ……………… काश ………….. .
      …जय हिन्द जय भारत।
      माधव चन्द्र चंदेल
      “वीर भोग्ये वशुन्धरा ”
      वन्दे मातरम

      • श्री माधव चन्द्र चंदेल जी,मैं तो आम आदमी पार्टी से या यों कहिये कि अन्ना हजारे के आंदोलन से आरम्भ से ही जुड़े रहने के बावजूद किसी को भी व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता.मेरे जैसे हजारों लोग हैं,जो उनमे से किसी को भी व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते होंगे.यह तो इतिफाक ही हो सकता है कि कुछ लोग इनको व्यक्तिगत रूप से जानते हों,पर मैं ऐसे कुछ लोगों को भी जानता हूँ,जो आआप से नहीं जुड़े हैं,पर अरविन्द केजरीवाल को उनके विभिभागिये सहकर्मी ,वरिष्ठ या मातहत होने के कारण जानते हैं,पर उनमे से एक भी ऐसा नहीं मिला ,जिसने अरविन्द केजरीवाल की प्रशंसा न की हो.
        रही बात आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ने की,तो मैं उन पागलों में से हूँ,जिन्होंने हमेशा. व्यवस्था के विरुद्ध सकंघर्ष किया है,उसका हिस्सा रह कर या बाहर रह कर. मेरी गिनती सफल व्यक्तियों में नहीं होती,क्योंकि सफलता की आम तौर पर प्रचलित कुंजियां मैं व्यवहार में नहीं लाता,अतः मैं अपने को व्यवहारिक भी नहीं कह सकता. मैंने अपने इलाके के लोकसभा प्रत्यासी को भी कहा था कि मेरे लिए आप या अरविन्द केजरीवाल इसलिए महत्त्व पूर्ण हैं कि आप उसी सिद्धांत की लड़ाई लड़ रहे हैं,जो मुझे सर्व प्रिय है.जबतक आपलोग इस इस सिद्धांत पर कायम रहेंगे और आपकी ईमानदारी और निष्ठा पर सप्रमाण उंगली नहीं उठेगी,तब तक मैं आपलोगों का साथ देता रहूंगा.

    • सुजाता जी अब तक आपिये भ्रष्टाचारी होने और हरिश्चन्द्री का सर्टिफिकेट देते थे, और अब इन लोगों ने ज्ञानी अज्ञानी “मूर्ख” होने का भी सर्टिफिकेट देना शुरू कर दिया है.

      और आप (“सुजाता मिश्रा जी”) जी, और बधाई हो आपको मूर्ख होने का सर्टिफिकेट मिल गया है, श्रीयुत आर सिंह जी (आप पार्टी वाले) से । बधाई हो।

      सादर,

      • शिवेंद्र मोहन जी, जो भी मैंने लिखा है,वह इसलिए लिखा है कि आपलोग आआप को अरविन्द केजरीवाल तक सीमित कर देते हैं,बिना यह सोचे समझे या समझने की चेष्टा किए कि अरविन्द केजरीवाल आआप की विचार धारा को आगे ले जाने में प्रमुख की भूमिका निभा रहे हैं. आपलोग जब यह कहते हैं कि आआप की अपनी कोई विचार धारा नहीं है तो मुझे आपलोगों की अज्ञानता पर अफ़सोस होता है.भले आदमी,स्वराज पुस्तक तो इंटरनेट पर उपलब्ध है.पैसे भी नहीं खरचने पड़ेंगे,तभी सार्थक विचार विमर्श और सार्थक बहस हो सकती है. आपलोग उसेआद्योपांत एक बार पढ़ क्यों नहीं लेते?.ऐसे तो मेरे द्वारा की गयी उसकी एक समीक्षा भी प्रवक्ता डाट कम पर उपलब्ध है. आपलोग कहेंगे क्यों पढ़े उस पुस्तक को? मत पढ़िए और अकारण अनाप सनाप बकते रहिये और मैं राजा भर्तृहरि का श्लोक दोहराता रहूँ.यह शायद उन्नीस सौ सड़सठ का वर्ष होगा,जब मैं किसी कनिष्ठ सहयोगी के प्रभाव के कारण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के ज्यादा ही करीब हो गया था.उन्ही दिनों गुरु गोलवरकर भी हमारे नगर में पधारे थे.उनका भाषण मुझे बहुत अच्छा लगा था..उन्ही दिनों प्रोफ़ेसर राजेन्द्र सिंह उर्फ़ राजू भैया के ख़ास स्वयं सेवको केलिए बुलाये गए मीटिंगों में भी शामिल हुआ था.इन सबके बीच जब गुरूजी की संघ की आर्थिक विचार धारा के बारे में में पूछे जाने पर जब उन्होंने पंडित दीन डायल उपाध्याय से पूछने की सलाह दी थी,तो मैंने पंडित जी एक पुस्तक पढ़ी थी.गांधी जी के आर्थिक ,सामाजिक और प्रशासनिक विचारों के बारे में तो मुझे पहले से ही थोड़ी जानकारी थी और मैं उसको कामनिष्टों के साथ बहस करने में इस्तेमाल भी करता था. जब मैंने पंडित जी की पुस्तकें पढ़ना आरम्भ किया तो मुझे लगा कि इनमे और गांधी जी की विचार धारा में कोई मूल अंतर है ही नहीं. जनसंघ या भाजपा ने उसपर कभी अमल नहीं कियामेरे विचार से जैसे कांग्रेस ने गांधी जी के विचारों की हत्या की,उसी तरह जनसंघ और बाद में भाजपा ने भी पंडित जी के सिद्धांतों की हत्या की.अब जब वही सिद्धांत मुझे स्वराज में दिखा तो मेरा आआप सेजुड़ना स्वाभाविक था. हाँ व्यक्तिगत शुचिता मेरे लिए बहुत महत्त्व पूर्णहै.हमारा हिन्दू धर्म इसी पर आधारित है और गांधी भी यही कहते थे.अरविन्द केजरीवाल की मैंने प्रशंसा सुनी है तो शिकायतेंभी सुनी हैं,पर अभी तक उनके विरुद्ध कोई ठोस प्रमाण नहीं देखा.
        मेरी नजर में नमो इसपर खरे नहीं उतरते.उनकी आर्थिक नीतियां और विकास का माडल एक तरफ़ा है. गुजरात में सड़कें और बिजली भले ही दिखे पर मानव विकास के मापदंड में गुजरात अभी बहुत पीछे है.उनका हर बातों में मैं मैं करना भी उनका अहंकार दर्शाता है.पत्नी को एकदम छोड़ देना ,वह भी सत्ता का उपभोग करते हुए ,अन्य लोगों को त्याग लग सकता है,पर मुझे तो लगता है कि चाय बेचने वाली की बीबी एक मुख्य मंत्री के लिए शायद मखमल पर टाट की पेवन्द लगी.जहां जननी जन्मभूमि स्वर्गातपि गरीयसी कहा जाता है,वहां मुख्य मंत्री द्वारा यह कहना की मेरी माँ तो आज भी ८*८ के कमरे में रहती है,मोदी भक्तों के लिए गर्व की बात हो सकती है,पर मेरे लिए तो वह माँ का ऐसा अपमान लगता है जिसके लिए नमो को कभी माफ़ नहीं किया जा सकता.

        • सिंह साब आपकी सारी मनोचिंतना के बाद लिए मैं यही कहूँगी की आप जैसे लोग जो दूसरों में सिर्फ कमी खोजते हैं उनकी मिसाल सिर्फ उस मक्खी के जैसी है जो पूरा खूबसूरत , साफ़ शरीर छोड़ कर सिर्फ घाव पर जा कर बैठती है। आपने अपनी बातो से मेरी एक बात और साबित कर दी की आप जो किताबो में पढ़ते हैं उनकी ही दुहाई देकर दुनिया को देखते हैं। आपने बार – बार गांधी जी की स्वरज्य पुस्तक की बात की तो आपको ये भी पता होगा की शादी – शुदा होकर भी गांधी जी ने एक समय के बाद ब्रह्मचर्य को अपना लिया था , यहीं नही उन्होंने अपने बच्चो तक को खुद से अलग रखा था , जिस कारण उनके बच्चो को जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ा , खुद गांधी जी ने एक पति , या एक पिता या एक पुत्र के रूप में अपने परिवार को क्या दिया ? बताइये ? या आपकी नज़र में अब गांधी जी भी निंदनीय है ? आप जो बार – बार दूसरो को स्वरज्य पढ़ने की सलाह देते हैं न तो मैं आपको बता दूँ की मैं गांधीवादी लेखक रामेश्वर मिश्र पंकज की बेटी हूँ , और मैंने महात्मा गांधी का पूरा ” कलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ महात्मा गांधी” भी पढ़ा है , और अपने पिता से उनके बारे में सही – गलत सब जानकारी भी ली है। और आज खुद मेरे पिता तक मानते हैं की आम आदमी पार्टी मार्क्सवादियों का नया रूप है , आप भी ज़रा पढ़ लीजिये , मेरे घर पर है , भिजवा दूँ? मोदी के खिलाफ कौन सा मजबूत सबूत आपके पास है जो आप उनके ऐसे निंदक बन गए हैं ? जिस मोदी को देश के सुप्रीम कोर्ट ने हर मामले में क्लीन चिट दी वो आपकी नज़र में दोषी हैं , वाह , जिस मोदी को खुद कांग्रेस शासित केंद्र सरकर ने विकास के लिए पुरस्कार दिया वो विकास आपकी नज़रो में कम है , तो आप ज़रा मुझे ये बताईये भारत का कौन सा राज्य अभी तक पूर्ण रूप से हर मायने में विकसित है ? कोई नही , हर राज्य में विकास हो रहा है , कहीं बहुत तेज़ी से तो कहीं थोड़ा काम। ऐसे में अगर गुजरात के विकास की सराहना की जाती है तो उसका मतलब यह नही है की वहां विकास कार्य पूरा हो चुका है , बल्कि इसका मतलब यह है की वहां अब पहले से कहीं बेहतर स्थिति है ,और ये आप जानकर भी नही स्वीकारेंगे क्योंकि आप आम आदमी पार्टी के उन समर्थकों में से हैं जो येन – केन – प्रकारेण मोदी और भजपा को रोकना चाहते है. अब आपने कहा की मोदी ने अपनी माँ या पत्नी के प्रति धर्म नही निभाया तो मैं आपसे यही कहूँगी की आज तक मोदी की पत्नी या माँ ने कभी उनपर कोई आरोप नही लगाया तो आप कौन होते हैं उनके पारिवारिक जीवन में प्रश्न उठाने वाले ? इस देश में ऐसे तमाम विवाहित है जो आपसी सहमति से अलग रहते हैं , ऐसे – ऐसे पुरुष हैं जो दूसरी बीवी तक ले आते हैं और पहली को भी घर की मुर्गी समझते हैं , पर मोदी जी जिनका बाल विवाह हुआ था उन्होंने अपनी पत्नी को उसका जीवन जीने की आज़ादी दी , आपसी सहमति से अलग हुए भी तो भी आज उनकी पत्नी अपना जीवन इज़्ज़त से जी रही है , कोई दर – दर की ठोकरे नही खा रही , वरना वो खुद अपने पति के लिए मंगल कामना न करती, वो खुद आज मौका देखकर उन पर आरोप लगाती , जिसकी कोशिश भी कुछ मोदी विरोधियों द्वारा की गयी थी। और खुद मोदी और उनकी माँ के बीच रिश्ते बहुत अच्छे हैं , मोदी जब वक़्त मिलता है उनके पास जाते है आशीर्वाद लेने , पर आप उन लोगो में से है जो यदि मोदी की माँ और पत्नी शानो – शौकत से रह रही होती तो उस पर भी हाय – तौबा करते और यदि वो अपनी मर्ज़ी से सादगी से रह रही हैं तो इस पर भी मोदी को दोषी ठहरा रहे हैं। आप ये भूल जाते हैं की मोदी की मिसाल एक अच्छे राजनेता के रूप में दी जाती है , एक अच्छे पति या बेटे को मुद्दा बनाकर वो वोट नही मांग रहे , और एक मुख्यमंत्री के लिए यही मायने रखता है की वो अपने राज्य के लिए क्या करता है। खैर ये आप कहाँ समझेंगे , आप लोग तो अरविंद केजरीवाल के समर्थक है , जिनके लिए यही कहा जा सकता है नाम बड़े और दर्शन छोटे। आप तो खुद अरविंद केजरीवाल को दूसरो की बताई बातों के आधार पर जानते हैं और मानते हैं , पर मैंने जो लिखा वो मेरा साक्षात अनुभव था , इसलिए सिंह साब किताबी दुनिया की दुहाई काम से काम प्रवक्ता के पाठको को मत दीजिये यहाँ कोई हवाबाजी करने नही आता।

  17. केजरीवाल किस राजनैतिक नश्ल के पैदाइश हैं ,इसे शायद बताना यहाँ जरूरी नहीं। …केजरी और उनकी पार्टी “आप” एक राजनैतिक संक्रमण की देन हैं जिसमें कुछ चापलूस मौकापरस्त मीडिया कर्मी हैं,कुछ असफल राजनैतिक लम्पट हैं और कुछ वो अवसरवादी शिक्षाविद जिन्होंने कम्युनिस्ट होने का नकाब ओढ़ रखा था (जब मौका मिला “आप” में घुस लिए )और सब जानतें हैं संक्रमित वस्तु किस तरह बीमारी फैलता है। आम आदमी पार्टी भी यही कर रही है।

    इस पार्टी का कोई राष्ट्रीय उद्देस्य नहीं है।
    य़े मफलर वाले बाबा इस राजनैतिक ठण्ड में इतने ठिठुर गए की ४९ दिन में हीं इनकी किटकिटी निकल गयी। …और मफलर को लंगोट बना के अब बनारस में डुबकी लगाने की तैयारी कर रहैं हैं, वो भी भाड़े के टट्टुओं से (यहां स्पस्ट रूप से बता दूँ की ये बारे के टट्टू कौन कौन हैं… कुछ का तो नाम भी प्रतयक्ष रूप से लेने का मन कर रहा ….. इनके ये भाड़े के टट्टउओं ने नमक या तो कांग्रेस का खाया है ,या भा। ज। पा का या तो अन्य किसी पार्टी का,और जब मौका मिला तो “आप में घुश लिए )खैर पूरी की पूरी भीड़ देल्ही और नॉएडा आस पास की है जो बनारस में जा के नाचेंगे ठीक उसी तरह जैसे की बारात में साटे पे बुक किया हुआ लौंडा नाच।

    खैर इन्होने जो तमाशा किया है, उसके भुक्तभोगी भी ये खुद हैं होंगे ।केजरीवाल से एक आशा थी की अगर वो डेल्ही में किसी भी तरीके से सरकार चला पाते तो शायद आज राजनैतिक समीकरण कुछ और हीं होता लेकिन ,मह्त्वकांछा और चापलूसों की फ़ौज ने (बहुत क्रन्तिकारी बहुत क्रन्तिकारी)तो बेडा हैं गर्क कर दिया।खैर इससे पहले की यमुना में डूबते। अच्छा हैं. गंगा में डुबकी लगा के संन्यास ले …।
    …जय हिन्द जय भारत। …. अपने मत का प्रयोग जरूर करें। .सोंच समझ कर करे। ऐसा न हो की मन में मलाल सा रह जाये। ……………… काश ………….. .
    माधव चन्द्र चंदेल
    “वीर भोग्ये वशुन्धरा “

  18. केजरीवाल किस राजनैतिक नश्ल के पैदाइश हैं ,इसे शायद बताना यहाँ जरूरी नहीं। …केजरी और उनकी पार्टी “आप” एक राजनैतिक संक्रमण की देन हैं जिसमें कुछ चापलूस मौकापरस्त मीडिया कर्मी हैं,कुछ असफल राजनैतिक लम्पट हैं और कुछ वो अवसरवादी शिक्षाविद जिन्होंने कम्युनिस्ट होने का नकाब ओढ़ रखा था (जब मौका मिला “आप” में घुस लिए )और सब जानतें हैं संक्रमित वस्तु किस तरह बीमारी फैलता है। आम आदमी पार्टी भी यही कर रही है।

    इस पार्टी का कोई राष्ट्रीय उद्देस्य नहीं है।
    य़े मफलर वाले बाबा इस राजनैतिक ठण्ड में इतने ठिठुर गए की ४९ दिन में हीं इनकी किटकिटी निकल गयी। …और मफलर को लंगोट बना के अब बनारस में डुबकी लगाने की तैयारी कर रहैं हैं, वो भी भाड़े के टट्टुओं से (यहां स्पस्ट रूप से बता दूँ की ये बारे के टट्टू कौन कौन हैं… कुछ का तो नाम भी प्रतयक्ष रूप से लेने का मन कर रहा ….. इनके ये भाड़े के टट्टउओं ने नमक या तो कांग्रेस का खाया है ,या भा। ज। पा का या तो अन्य किसी पार्टी का,और जब मौका मिला तो “आप में घुश लिए )खैर पूरी की पूरी भीड़ देल्ही और नॉएडा आस पास की है जो बनारस में जा के नाचेंगे ठीक उसी तरह जैसे की बारात में साटे पे बुक किया हुआ लौंडा नाच।

    खैर इन्होने जो तमाशा किया है, उसके भुक्तभोगी भी ये खुद हैं होंगे ।केजरीवाल से एक आशा थी की अगर वो डेल्ही में किसी भी तरीके से सरकार चला पाते तो शायद आज राजनैतिक समीकरण कुछ और हीं होता लेकिन ,मह्त्वकांछा और चापलूसों की फ़ौज ने (बहुत क्रन्तिकारी बहुत क्रन्तिकारी)तो बेडा हैं गर्क कर दिया।खैर इससे पहले की यमुना में डूबते। अच्छा हैं. गंगा में डुबकी लगा के संन्यास ले …।
    …जय हिन्द जय भारत। …. अपने मत का प्रयोग जरूर करें। .सोंच समझ कर करे। ऐसा न हो की मन में मलाल सा रह जाये। ……………… काश ………….. .

    माधव चन्द्र चंदेल
    “वीर भोग्ये वशुन्धरा “

  19. behad shandar aalekh ,,,aam party ke pooran itihas ko lekar uske har pahloo ko bhut garai aur sachhai se paredarshit kiya hai ,,,,,,,kejriwal ji jo satta ki chaht rakhte hai ,,,,,,,ke sachhaion ko ujagar karta hua uchh koti ka aalekh hai ,,,,likhne ke liye sushree sujata Mishra ji badhai ke patar hai,

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