आप-कथा विसर्जन होत है

-डॉ. सुजाता मिश्रा-
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“कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा“ की तर्ज़ पर बनी आम आदमी पार्टी जितनी तेज़ी से ऊपर बढ़ी उतनी ही तेज़ी से नीचे भी गिरना शुरू हो गयी है। सिर्फ एक हार से ही तिनके की तरह बिखर चुकी आम आदमी पार्टी का ये हाल तो होना ही था, एक उद्देश्यविहीन, दिशाविहीन, आदर्शविहीन संगठन की बाल्यावस्था में ही मृत्यु होना कोई नयी बात नही है। अपनी जिस नौटंकी के दम पर अरविंद केजरीवाल की पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीती थी उस नौटंकी की असलियत सामने आते ही जनता ने “आप “ को सिरे से नकार दिया और “आप“ के दिग्गज तक अपनी जमानत नही बचा सके। हमारे यहाँ एक कहावत है “आधी छोड़ पूरी को भावे, पूरी मिले ना आधी पावे“ कुछ ऐसी ही दशा हुई आम आदमी पार्टी की। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में जो सफलता हासिल की थी उसे वो खुद नही पचा पाये, सत्ता पा कर बौरा गए और कूद गए लोकसभा चुनाव में। लेकिन यहां वो पूरी तरह मुद्दो से भटक गयी। आम आदमी पार्टी दिल्ली में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठकर जीती थी, लेकिन लोकसभा चुनाव में “आप“ नरेंद्र मोदी को ही मुद्दा बनाकर जनता को बरगलाती रही, क्या आम आदमी पार्टी के पास इस बात का कोई जवाब है की आखिर उसने नरेंद्र मोदी और भाजपा को ही निशाने पर क्यों लिया ? देश के सारे जरूरी मुद्दे भूल सिर्फ नरेंद्र मोदी के ही पीछे क्यों पड़ी रही ? जबकि पिछले दस सालों से देश में कांग्रेस और यूपीए की सरकार थी, तो आखिर देश में पिछले दस सालो में जो भ्र्ष्टाचार हुआ, उसमें नरेंद्र मोदी या भाजपा की क्या जिम्मेवारी है? अरविंद केजरीवाल बार-बार कहते रहे गुजरात में कोई विकास नहीं हुआ, मोदी ने अडानी-अंबानी को फायदा पहुचाया है वगैरह-वगैरह ।

केजरीवाल लोकसभा चुनाव में हर जगह गुजरात को मुद्दा बनाते रहे जैसे ये देश का लोकसभा चुनाव नही गुजरात विधानसभा का चुनाव हो। पूरी आम आदमी पार्टी का एक ही मकसद बन गया “मोदी को हराओ“, क्यों यूपीए सरकार के खिलाफ आपने क्यों कुछ नहीं बोला ? आपको अडानी का ज़मीन सौदा तो दिखता है पर रोबर्ट वाड्रा का ज़मीन घोटाला नहीं ? आपको 2002 के गुजरात के दंगे तो याद है, पर उत्तर प्रदेश में अभी हाल ही में जो दंगे हुए उन पर आपका मुंह बंद रहा ? अरविंद जी हर बार आप और आप के समर्थक यही कहते रहे की गुजरात में कोई विकास नहीं हुआ, तो आप ही बताइये नरेंद्र मोदी वहां लगातार चार बार विधानसभा चुनाव क्यों जीते ? आपके मोदी विरोधी हर हथकंडा अपनाने के बाद भी क्यों लोकसभा चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक जीत हासिल हुई ? अरविंद जी सच तो ये है की आप अवसरवाद की राजनीति करते हैं और अब इस देश की जनता ने आपको बुरी तरह नकार दिया है।

अरविंद जी आप को लोगो के आकर्षण का केंद्र बने रहने की बीमारी है, आपको लगता है की आप हर वक़्त मीडिया में छाये रहे , आप हर वक़्त चर्चा का विषय बने रहें, भले ही उसके लिए चाहे आप थप्पड़ खाए, मुंह में स्याही लगवाये या जेल में जाये। बस हर वक़्त मीडिया में आते रहे। ये हम ही नहीं कह रहे, ये तो अब आपकी पार्टी के पुराने कार्यकर्त्ता तक कह रहे है, केजरीवाल जी सनसनी फैलाकर राजनीति करने के दिन गए। अगर आप सच में लोगो के आकर्षण का केंद्र बनना चाहते हैं तो नरेंद्र मोदी जी से कुछ सीखिये, ज़मीनी हक़ीक़त से जुड़कर काम कीजिये , सोशल नेटवर्किंग साइट पर बैठ कर राजनीति करके आप बहुत तेज़ी से उठ तो गए, लेकिन आभासी दुनिया से निकल कर वास्तविक दुनिया से जब आपका सामना हुआ तो आप साफ़ हो गये। अरविंद जी सीखना तो आपको कांग्रेस से भी चाहिए, जिस कांग्रेस पार्टी को भ्रष्टाचारी बताकर आप सत्ता में आये वो भी आप से ज्यादा सहनशील है, देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी होने के बावजूद, सबसे ज्यादा समय तक सत्ता में रहने के बावजूद 2014 लोकसभा चुनाव में मिली ऐतिहासिक हार के बावजूद कांग्रेस ने संयम दिखाया है, हार को स्वीकारा है। और फिर से मेहनत कर वापसी की उम्मीद कायम रखी है । लोकतंत्र में हार – जीत दोनों के लिए तैयार रहना पड़ता है। लेकिन आम आदमी पार्टी तो एक हार भी नही सह पायी। चुनाव क्या हारे तमाशा शुरू कर दिया। बजाये आत्ममंथन के जेल – बेल की नौटंकी शुरू कर दी।

इस से यही स्पष्ट होता है की आपने अपनी हार से कोई सबक नहीं लिया है। आम आदमी पार्टी की डूबती हुई नाव को बचाने के लिए, अपने कार्यकर्ताओं को फिर से बरगलाने के लिए आप खुद जेल में जाकर बैठ गए। क्यों जनता का सामना करने की हिम्मत नहीं है ? सच तो ये है की अब आप अपने किये पर खुद पछता रहे हैं। दिल्ली की सत्ता छोड़ आप लोकसभा चुनाव में कूदे ,पर मुँह की खाकर वापस दिल्ली आ गए। पर यहाँ आकर आप फिर सरकार बनाने के जुगाड़ में जुट गए! बड़े ही शर्म की बात है की आपने खुद दिल्ली सरकर से त्यागपत्र दिया था लोकपाल की दुहाई देकर, आप पूरे लोकसभा चुनाव में यही कहते रहे की लोकपाल के लिए आप हजार बार मुंख्यमंत्री की कुर्सी कुर्बान कर देंगे। लेकिन लोकसभा में हारते ही आपको लगा “ भागते भूत की लंगोटी ही सही “और आप फिर से मुख्यमंत्री बनने के जुगाड़ में लग गए। ऐसा तमाशा मैंने पहली बार देखा की कोई मुख्यमंत्री खुद ही इस्तीफ़ा दे और फिर कुछ महीनों बाद दुबारा खुद सरकार बनाने आ जाये। हद है अवसरवाद की। आपकी इसी अवसरवादी सोच के कारण अन्ना आपसे बहुत पहले ही अलग हो गए थे, और अब आपके अन्य महत्वपूर्ण साथी भी “आप” से अलग हो रहे है, और उनका भी यही कहना है की आप अलोकतांत्रिक हैं, अवसरवादी हैं, तानाशाह है। आपका जेल जाना भी इसी अवसरवाद की राजनीति का एक हिस्सा है , पर मुझे तो हैरानी इस बात की है की आपको ना तो इस देश के प्रशासन पर विश्वास है, ना पुलिस पर भरोसा है और ना ही देश के क़ानून के प्रति आस्था है। केजरीवाल जी ये सब लक्षण तो सिर्फ आराजकता की ही निशानी है। आपके इन पुराने हथकंडो से जनता अब ऊब चुकी है , पूरे देश में लोकसभा चुनाव ख़त्म हो गए, नयी सरकार भी बन गयी है, लोग नयी सरकार के प्रति आशावान हैं , पर आम आदमी पार्टी की नौटंकी बदस्तूर जारी है। एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति के आगे पूरी पार्टी कठपुतली बनकर नाच रही है, अपनी हार से सबक लेने की जगह आप अपने स्वार्थ के लिए देश के कानून को ही बदल देना चाहते है “ मैं जमानत के खिलाफ हूँ “, कुछ ऐसा ही नाटक आप लोगो ने सोमनाथ भारती के केस में किया था , मतलब बात जब आप और आपके समर्थको की हो तो देश के कानून को भी एक झटके में बदल दिया जाये। जो अरविंद केजरीवाल कह दे वो ही इस देश का कानून बन जाये। अरविंद जी आपके इसी नौसीखिएपन का भुगतान आपकी पूरी पार्टी कर चुकी है। अब एक -एक कर के आपकी पार्टी से वो सभी लोग अलग हो रहे हैं जो आपके समर्थन में बड़ी – बड़ी बातें करते थे। अफ़सोस ! आपने अपनी हार से कोई सबक नहीं लिया। सच तो यह है की आपको कभी इस देश या देश की समस्याओं से कोई सरोकार था ही नहीं , आप तो बस सनसनी फैलाकर सत्ता पाना चाहते थे और अब जब सत्ता आप के हाथो से निकल गयी है तो आप देश के बहुमत से चुनी गयी सरकार का विरोध कर फिर से मीडिया में बने रहना चाहते हैं। आपको लगा की नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री की शपथ लेंगे , दुनियां भर से लोग आएंगे , उनके सामने आप लोग नौटंकी कर के दिखएंगे की नरेंद्र मोदी का बहुत विरोध है। इसीलिए आप जमानत मिलने के बावजूद जेल चले गए, लेकिन इस बार भी आप खली हाथ ही रह जायेंगे। क्योंकि नरेंद्र मोदी को देश की जनता ने चुना है। आपके ऐसे बेतुके व्यावहार के कारण ही अब आपको कोई उतनी गंभीरता से नहीं लेगा। आज सारी दुनिया ने नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को स्वीकारा है , और आपकी किरकिरी भी सारी दुनियां ने देखी है , लेकिन अब भी आप आत्मचिंतन की जगह नौटंकी करने पर उतारू है मतलब “ रस्सी जल गयी , पर बल नही गया” , खैर अरविंद जी अब आप चाहे कितनी भी नौटंकी कर ले इस देश की जनता आप पर अब भरोसा नहीं करने वाली , अतः 2014 के लोकसभा चुनाव के परिणाम के साथ ही आम आदमी पार्टी की संपूर्ण कथा का विसर्जन होता है। जो भिन्न – भिन्न तरह की लोगो की भीड़ आपने संगठन के नाम पर जुटायी थी वो लोग जहाँ से आये थे वहां लौटना शुरू हो गए हैं। एक साल से चली आ रही आपकी बेतुकी राजनैतिक नौटंकी का यहीं अंत होता है।

शांति! शांति! शांति !

6 COMMENTS

  1. पढ़कर मन को अगाध शांति मिली। जिस मनुष्य के बोलने में अहंकार झलकता हो, जो गाहे बगाहे सबको बेईमान और स्वयं को ईमानदार का सर्टिफिकेट देता हो, बात२ पर खुले मैदान में आकर बहस करने की चुनौती देता हो- भले ही सामने स्थापित सुचारू शासन करने वाले लोग हों, उसका ऐसा हश्र दुखद ज़रूर है, लेकिन अनहोनी जैसा कुछ नहीं। अच्छा हुआ जो ऐसे निराशा का माहौल बनाने वाले को जनता ने नकार दिया।

  2. अभी तो नहीं लगता कि इतनी जल्दी आआप के लिए शोक सन्देश देने कि आवश्यकता है या उसके विसर्जन के बारे में सोचा जाए,,पर अगर ऐसा हुआ तो ,वह भारत के आम आदमी के लिए बहुत दुर्भाग्य पूर्ण होगा,क्योंकि आज भी मेरे जैसे लोग आश्वस्त नहीं है कि मोदी सरकार वास्तव में भारत के उनलोगों का कुछ ख़ास कल्याण कर पाएगी,जो हासिये पर हैं.

    • आ. सिंह साहब –नमस्कार।
      यदि आप (सिंह साहब) ऐसा नहीं होगा, ऐसा ही, मानते हैं, तो फिर निम्न लिखनेका क्या प्रयोजन?
      “—,पर अगर ऐसा हुआ तो ,वह भारत के आम आदमी के लिए बहुत दुर्भाग्य पूर्ण होगा”
      यह “अगर” वाली उक्ति आप की अपनी शंका नहीं दर्शाता? क्या आप शंका व्यक्त नहीं कर रहे ? आप के मन में भी मुझे संदेह दृष्टिगोचर हो रहा है।
      आप को कोने में खडा करना नहीं चाहता, पर आप भी सच्चाई स्वीकार कर चलें।समाचारों से आप अवगत होंगे ही।
      स्वस्थ रहें, टिप्पणी भी देते रहें।
      सविनय-मधुसूदन

  3. बहुत ही सटीक विश्लेषण एक अच्छे मुद्दे को लेकर ये खड़े हर पर अपनी कलाबाजियों से उसे मजाक बना दिया भविष्य में जनता अन्य किसी पर भी विश्वास नहीं करेगी

  4. बढिया आलेख।
    इस आ आ पा की नौटंकी से दो उक्तियाँ सूझती हैं।
    (१) ये प्रण कर गए हैं
    ” -टांग टूटेगी; तो ऊंची रखेंगे”।
    गिरेंगे हम, टांग गिरने न देंगे।
    (२) आपका “रिकम्मा बनिया क्या करेगा?
    तो, इधर की टोकरी उधर करेगा”।
    == शायद बॉण्ड देते तो बाहर रहकर समाचार-माध्यमों को और जनता को उत्तर देनें पडते। इससे तो अच्छा है, कि जेल में बचे रहें, शान्ति तो मिलेगी। यही चाल लगती है।
    सुन्दर आलेख। लिखते रहें। लेखिका को धन्यवाद।

  5. सबसे पहले, सबसे आगे बेबाक ख़बर देने वाले मीडिया ने कल आम आदमी पार्टी का अंतिम संस्कार बड़ी धूम धाम से कर दिया था।प्रवक्ता के इस लेख ने भी यही काम किया। जहाँ तरह तरह की पृष्ठभूमि के लोग एकमंच पर, एक मक़सद के लियें जुड़े हों, तो मतभेद होना स्वाभाविक है, मतभेद को सुलझा भी लिया जायेगा।

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