—विनय कुमार विनायक
अभिमन्यु; प्रतिभा अमर होती
नाश हो सकती नहीं
किसी घातक वार से

जैसे कि ऊर्जा मिटती नहीं
किसी रसायन की मार से
अस्तु उत्परिवर्तित हो जाती
हमारी भौतिक संसार से
प्रतिभाशाली बालक अभिमन्यु
अवध्य था, हरियाली था
किसी मां की गोद का
विरवा था किसी पिता की सृष्टि का!
सुहाग था किसी नवव्याहता बाला का!
छतनार वृक्ष था किसी अजन्मा शिशु का!
भविष्य था देश का
चक्रवर्ती से महायति के बीच
कुछ भी हो सकने की
अपार संभावनाओं के साथ
मार दिया गया जिसे बिना मृत्यु योग का!
ऐसे ही ढेर सारे प्रतिभाओं की
अकाल में हीं गला घोंट दी जाती
कभी झूठ को ताज पहनाने
कभी सत्य को झुठलाने
किसी साजिश के तहत प्रतिभा
जो मरती नहीं
दिशा बदल दी जाती
थ्योरी आफ रिलेटीभिटी के अनुसार!
शानदार।