क्या जीवन! यंत्रवत चलते रहना ???
भौतिकी में दिन भर खपना, रात्रि में करना उसका चिंतन !!
नश्वर-नष्ट होने वाली वस्तु के पीछे घूमते जाना यूं ही उम्र भर |
अंत समय में कहना, गर्व से छोड़ा मैंने पीछे अपने, बंगा पुत्र-परिवार ||
जीवंत-चैतन्य खोजता जड़ को, महामाया के चक्र, पिसना है जीवन ?
या शांति पाने जाना मंदिर बाबा का, लौटकर लगाना फिर काम यंत्रणा का ??
शुचिता,सात्विकता, विनम्रता नहीं |
आडम्बर भ्रष्टता विकृति जीवन ||
नवीनता के लिए छोड़े जो संस्कृत |
समाज जीवन हो कैसे सुसंस्कृत ||
धन धन धन पाना जहा हैं सुख |
आए चाहे कहीं से धन हो तो काहे का दुःख ||
धन लेन की जुगत में, चिंतन को कुंद किया
सत्य का दम तोड़, असत्य आचरण किया ||
नैतिक मूल्यों से पतित पूरा राष्ट्र जा रहा रसातल,
कह रहा इसको देखो हमारा Developments
professionalism कर रहा दूषित मन जीवन भाषा,
तौल रहा अपना, उन्नत हुआ जीवन स्तर ||
वस्तुएं करती सभ्यता को उन्नत, तो भगवान राम नहीं रावण होता |
जय श्री कृष्ण नहीं कंस जय गान होता ||
जीवन नहीं मादकता में डूबना |
जीवन नहीं कामोपभोग मापना ||
जीवन नहीं संगृह करना धन को|
जीवन नहीं बढाना मात्र परिवार को अपने ||
जीवन तो चलना संवित पथ पर, जीवन चलना संघ मार्ग पर,
जीवन तो जीना ध्येय अनुसार, ज्ञान के मार्ग पर ||
प्रकाश के आंगन पर चेतन्य्वत निरंतर
भा” में “रत” भारत……………….. “
जी स्वामी जी,संवित् मार्ग वो आन्तरीक यात्रा का ही है।आपका ह्रार्दिक आभार।
जब तक व्यक्ति स्वयं से संतुष्ठ नहीं हो जाता वह बहार की और देखता रहेगा तो बहुत कुछ दिखाई देगा आन्तरिक यात्रा की तरफ चलो तो ये विचार और ये प्रशन स्वतः समाप्त हो जायेगे
आपका ह्रादिक आभार।निश्चल रह कर कर्म करना ही सारे दर्शन व भक्ती का प्रयोजन है।
“वस्तुएं करती सभ्यता को उन्नत,
तो भगवान राम नहीं, रावण होता |”
“जय श्री कृष्ण नहीं,
कंस जय गान होता ||”
वाह वाह; सही, सही, कहा, यही कविता का मर्म मानता हूँ| अल्पकाल सफल होते है रावण, फिर इतिहास राम को ही भजता है|
बहुत समय के बाद दिखाई दिए| ऐसे दीखते रहा करो |
सुना है कि जीवन में ऊंच नीच के थपेड़े उसकी अधेड़ उम्र में मनुष्य को प्राय: दर्शनशास्त्री बना निष्क्रिय कर छोड़ते हैं|
भक्तिकाल से मीठी नींद सोया निष्क्रिय भारतीय जीवन
अंगडाई लेता उठा, वैश्विकता के आँगन में अनाथ जीवन
लेकिन उपभोक्ता बने, भांति भांति के हथकंडे अपनाते, संसाधन जुटाते आज के जीवन से कुंठित अभिषेक पुरोहित जैसे नौजवान मानो देश को नई दिशा देने में आतुर हैं| इस सुंदर कविता के लिए उन्हें मेरा साधुवाद|