राजनीति

आर- पार की लड़ाई का वक्त

modi वीरेंद्र सिंह परिहार

बहुत से किन्तु – परन्तु और आपत्तियों के बावजूद जैसा कि प्रत्याशित था , भाजपा की गोवा में हो रही राष्ट्रीय कार्यकारिणी के अंतिम दिन ९ जून को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने नरेन्द्र मोदी को भाजपा की राष्ट्रीय चुनाव – प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाने की घोषणा कर ही दी |समय की नब्ज को पहचानते हुए और मोदी की देशव्यापी लोकप्रियता को देखते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेताओ की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए उन्होंने सर्वप्रथम मोदी को संसदीय बोर्ड में शामिल किया | इस तरह से उन्होंने औपचारिक रूप से मोदी को भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व का हिस्सा बना दिया | पर इतना ही पर्याप्त नहीं था , क्योकि कार्यकता और देश की जनता का बहुत बड़ा हिस्सा मोदी को प्रधानमंत्री के चेहरे  बतौर देखना चाहता है | वस्तुत : नरेन्द्र मोदी को चुनाव – प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाकर लोगो को यह संदेशा दे दिया गया है की भाजपा की और से मोदी ही प्रधानमंत्री पद के दावेदार होगे |निश्चित रूप से देर – सबेर लोकसभा चुनावों के पूर्व इस बात की भी अधिकृत घोषणा होना तय है |

इस मामले में भाजपा के वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवाणी की इस आपत्ति को भी कोई महत्व नहीं दिया गया की मोदी की लोकप्रियता चाहे जो हो , पर उनकी सहयोगी दलों में स्वीकार्यता नहीं है |आडवाणी की इस आपत्ति को भी दरकिनार कर दिया गया की मोदी को केन्द्रीय भूमिका में लाने से यू  . पी . ए . सरकार की असफलताए पीछे हो जायेगी और साम्प्रदायिकता का मुद्दा सामने आ जायेगा |कहने और सुनने में अतिश्योक्ति भले लगे पर सच्चाई यही है की आज मोदी की लोकप्रियता अटल बिहारी वाजपेयी की उस दौर से भी ज्यादा है जब वह लोकप्रियता के चरम पर थे | लोगो को इस बात का पूरा विश्वास है की यदि मोदी देश की सत्ता में आये तो देश को न सिर्फ विकास  की ऊचाइयो तक ले जायेगे बल्कि देश मे व्यlत अराजकता और प्रत्येक किस्म के आतंकवाद से भी मुक्ति दिलाएगे | कुल मिलlकर स्वतंत्र भारत में मोदी एकमात्र ऐसे राजनेता है , जिनकी छवि एक साथ विकास – पुरूष एवं लौह- पुरूष दोनों की है |

जहा तक सहयोगियों में स्वीकार्यता का प्रश्न है , वहा प्रमुख रूप से जद यु को ही मोदी स्वीकार नहीं है , पर कुछ सर्वे बताते है की यदि बिहार में मोदी फैक्टर के चलते दोनों दल अलग-अलग चुनाव लड़े तो भाजपा जबरस्त फायदे में रहेगी और जद यु का बंटाधार हो जायेगा | मुज्जफरपुर उपचुनाव जिस ढंघ से लाखोँ से ज्यादा वोटों से जद यु हारा , वह इस बात का प्रमाण है | ऐसी उम्मीद की जा सकती है की केवल उन राज्यों में ही नहीं जहा भाजपा का मजबूत आधार है , बल्कि बंगाल , आंध्र , तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में भी मोदी के पक्ष में एक हद तक जनमत खड़ा हो सकता है | इस बात की पर्याप्त संभावना है की मोदी के नेतृत्व के चलते भाजपा को २२५ सीटे मिल जाये | ऐसी स्थिति में  कुछ क्षेत्रीय दल स्वेच्छा से तो कुछ कांग्रेस विरोध के चलते भाजपा के साथ आने को बाध्य होगे | जहा तक साम्प्रदायिकता का प्रश्न है , तो इसमे सच्चाई कम और इसे हौआ ज्यादा बनाया जा रहा है | वर्तमान माहौल में मुसलमानों का एक बड़ा तबका विकास  का पक्षधर होने के चलते मोदी  के साथ खड़ा है | यु तो राम जन्म – भूमि का मुद्दा भी तो बहुत से लोगो के लिए घोर सांप्रदायिक मुद्दा था | और आडवाणी को इसी के चलते नब्बे के दशक में धर्म निरपेक्ष कहे जाने वाले दलों द्वारा घोर सांप्रदायिक कहा जाता था | पर भाजपा के लिए यह राष्ट्र की पहचान से जुड़ा मुद्दा था , और इसके चलते भाजपा की शक्ति में गुणात्मक विस्तार भी हुआ |

मोदी के नेतृव में भाजपा ने सतत तीन विधान सभा चुनाव जीते , पर मोदी ने दुसरे नेताओं की तरह टी. वी . या लैपटाप देने के लुभावाने वायदे नहीं किये | उन्होंने अपने कृतित्व एवं स्वस्थ लोकतान्त्रिक परम्पराओ के आधार पर चुनाव लड़े और जीते | इसी का परिणाम है की आज वह अविश्वास से भरे एवं दूषित राजनीतिक माहौल में आस्था और विश्वास के पर्याय बनकर उभरे है | इसके चलते इस बात की पर्याप्त संभावना है की मोदी की अगुवाई में भाजपा एक ऐसी आर – पार की लड़ाई लड़ सके , जिसके चलते वह देश की प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन सके | और जनाकांक्षाओ को पूरा करने के साथ अपने मूलभूत मुद्दों को भी मूर्त रूप दे सके |