घोर अनास्था के युग में संघ-आस्था भाजपा का संकट हल कर गई!! -प्रवीन गुगनानी

ADVANI“आज के परिदृश्य यह अविश्सनीय किन्तु सत्य है कि भाजपा संकट के सागर में गहरे धंस जाने के बाद तेजी से वापिस आई और शीघ्र ही सागर की सतह पर शांत-एकाग्र होकर राजयोग हेतु पद्मासन भी लगा चुकी है.”

अन्ततोगत्वा तमाम प्रकार के संघर्षों को पार पाकर नरेन्द्र मोदी भारतीय जनता पार्टी की चुनावी समिति के अध्यक्ष बन ही गए और इसके बाद इस मनोनयन के विरोध में दूसरी ओर से संघर्ष कर रहे भाजपा के पितृ पुरुष लालकृष्ण आडवाणी ने भाजपा के तीन पदों से त्यागपत्र भी दे दिया. इस एतिहासिक त्याग पत्र से भाजपा जैसे भुचाल मय हो गई और त्यागपत्र वापसी के लिए पार्टी की लगभग सम्पूर्ण राष्ट्रीय टोली आडवाणी के घर पर गृह-शान्ति पूजन के लिए धुनी रमा बैठी.

लोकतांत्रिक व्यवस्था में यदि किसी राजनैतिक दल में इस प्रकार की घटनाएं होती हैं और भेदों मतभेदों पर मुक्त कंठ से चर्चा या बहस होती है तो इसे निश्चित ही उस दल में व्यवस्थित तौर पर स्थापित आंतरिक लोकतंत्र का प्रतीक माना जाना चाहिए. इसमें कोई दो मत नहीं कि भाजपा में गोवा से लेकर दिल्ली तक जो घटा और मोदी आडवाणी की धुरी पर जो घटना चक्र चला वह न तो यथोचित था न शुभ था और न ही समयानुकूल. भाजपा के आंतरिक मतभेद कुछ अधिक ही मुखर-प्रकट हुए और पार्टी को लंबे समय तक परेशान करनें वाले साबित होंगे. आज के अनुशासन हीन राजनैतिक युग में नमो के मनोनयन, लालकृष्ण आडवाणी के त्यागपत्र और सरसंघचालक जी से मार्गदर्शन के बाद आडवाणी की वापसी इन सब को एक बड़े और बड़े होते कुनबे की विशिष्ट विशेषताओं के रूप में भी देखा जाना चाहिए. यदि भाजपा मिशन २०१४ के लिए तैयार हो रही है तो इस पूरी शल्य क्रिया को एक चुनावी समर के लिए फिट हो रही भाजपा के रूप में भी देखा जा सकता है. भाजपा में तेजी से घटे इस घटनाक्रम को मिशन २०१४ के लिए भाजपा के पुनर्जन्म के रूप में देखा जा सकता है. पुनर्जन्म की प्रसव पीड़ा अवश्य ही पार्टी ने भुगती है किन्तु इस प्रसव पीड़ा के बाद जन्में नमो और लालकृष्ण निश्चित ही एक विजेता और अथक योद्धा के रूप में देश की इस सबसे बड़ी केडर बेस्ड पार्टी को नेतृत्व देंगें इस बात पर विश्वास करनें के एकाधिक कारण हो गए हैं. आज के परिदृश्य यह अविश्सनीय किन्तु सत्य है कि भाजपा संकट के सागर में गहरे धंस जाने के बाद तेजी से वापिस आई और शीघ्र ही सागर की सतह पर शांत-एकाग्र होकर राजयोग हेतु पद्मासन भी लगा चुकी है. भाजपा के परम्परागत और प्रचंड-प्रखर विरोधी भी भाजपा द्वारा इस संकट को यों चुटकियों में हल कर लिए जानें से अन्दरखानें हतप्रभ हो आश्चर्य प्रकट कर रहें हैं.

लालकृष्ण आडवाणी का त्यागपत्र और उस त्यागपत्र को वापिस लेनें के भाजपा के दिग्गज नेताओं के प्रयास जब विफल हो गए तब भाजपा की स्थिति बड़ी ही विचारणीय हो गई थी. कांग्रेस के वक्ता प्रवक्ता तो खिली बाँछों के साथ मीडिया के सामनें ऐसे आ रहे थे जैसे समूची भाजपा को काट फेंकनें में उन्हें कुछ क्षणों का ही समय लगनें वाला है!! समूचा भाजपा विरोधी खेमा प्रसन्नता के सागर में गोतें लगानें लगा था. देश के लगभग सभी नामी गिरामी मीडिया संस्थानों , राजनैतिक विश्लेषकों, कुटनीतिक पंडितों ने लालकृष्ण आडवाणी के त्यागपत्र की संभावनाओं को सिरे से नकार दिया था और इस विश्लेषण से भाजपा विरोधी पार्टियों के दिल बल्लियों उछल उछल कर प्रसन्न हो रहें थे तभी अचानक इस पुरे घटना क्रम में एक सुपरमैन का आगमन हुआ और घटना का सुखान्त हो गया!!! इस अविश्सनीय सुखान्त की दूर दूर तक संभावना भी न देख रहे राजनैतिक पंडित और इलेक्ट्रानिक चेनलों के अंग्रेजीदा पालिटिकल एडिटर्स का मुंह खुला का खुला रह गया और खिली बांछें यकायक खींचें खींचें से चेहरे में बदल गई जब लालकृष्ण आडवाणी ने मात्र सरसंघचालक जी एक फोन पर मिलें मार्गदर्शन के बाद अपना त्यागपत्र वापिस ले लिया. राजनीति के इस दौर में जब भारत के लगभग सभी राजनैतिक दल ऐसी स्थिति से गुजर रहें हैं जिसमें षड्यंत्र राजनीति का आवश्यक अंग हो गए हों, दुरभिसंधियां राजनीति के प्राणों में बस गई हो, किसी व्यक्ति के प्रति आस्था और श्रद्धा तो छोडिये तनिक से सम्मान भर की भी परम्परा न बची हो तब किसी एक व्यक्ति के फोन पर बात भर कर लेनें से यदि एक राष्ट्रीय स्तर का राजनैतिक संकट समाप्त हो गया हो तो यह घनघोर आश्चर्य और दांतों तलें अंगुलिया दबा लेनें का विषय नहीं तो और क्या है???

कहना न होगा कि राष्ट्रीय स्वयं संघ के सरसंघ चालक जी मोहन भागवत ने जब इस घटनाक्रम का पटाक्षेप कराया और यह अंतहीन सा लगनें वाला ड्रामा सुखद अंत के साथ समाप्त हुआ तब तक मिशन २०१४ को फतह करनें वाली एक शक्तिशाली भाजपा का जन्म भी हो चका था. आज भाजपा में जहां नमो के चुनावी समिति के अध्यक्ष बननें का उत्साह और युवाओं का भारी आकर्षण हिलोरें ले रहा है वहीँ लालकृष्ण आडवाणी के अनुभवी,गंभीर और तपें निर्णयों का लाभ सतत मिलते रहनें की ग्यारंटी इसके चुनावी उत्साह को चौगुना कर रही है.

इसी वर्ष होनें वालें पांच राज्यों के विधानसभाओं के चुनाव और २०१४ में होनें वालें चुनाव में भाजपा निश्चित ही इस दुखदायी किन्तु सुखांत शाली घटना क्रम के साए से भी घबराती रहेगी और एक एक कदम फूंक फूंक कर रखेगी किन्तु यह फूंक फूंक कर कदम रखनें की कार्यशैली कहीं भाजपा को विलंबित निर्णय लेनें वाली पार्टी ना बना दे इस बात पर पैनी नजर भी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को रखनी ही होगी.

भाजपा को गोवा में हुई नरेंद्र मोदी की नियुक्ति के बाद कांग्रेस निश्चित ही देश की राजनीति को भ्रष्टाचार के मुद्दे से भटकाकर साम्प्रदायिकता के मुद्दे पर केन्द्रित करनें का प्रयास करेगी जिसका जवाब देना भाजपा के लिए मुश्किल होगा किन्तु आडवाणी की लौह पुरुष की छवि और नमो का विकास आधारित गुजरात माडल से इस साम्प्रदायिकता के आरोपों का जवाब दे पाएगी यह विश्वास तो इस पुनर्जन्म ले चुकी और आत्मविश्वास से लबरेज पार्टी पर किया ही जा सकता है

 

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