अधूरी दास्ताँ

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कुछ पुरानी यादें…

और तुम्हारा साथ…

वही पुराने प्रेम पत्र

और अपनी बात…

पलभर की गुस्ताख़ी,

और अंधेरी रात…

टूटें हुए मकान

और सुना पड़ा खाट..

अवि के दिल के अरमान

और आँसुओं की बरसात…

सवेरे की लालिमा

और घायल ज़ज्बात…

 

सबकुछ सिर्फ़ तुम पर ही

आकर ख़त्म हो जाता है…

और तुमसे ही शुरू भी होता है

एक प्रेम के सागर का अख़लाक़…

चाहत हो ‘अवि’ की तुम

यही तो है वो सिरफिरा सवाल

खैर….

 

—————-अर्पण जैनअविचल

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