आखिरकार संसद के इस अंतिम सत्र से कौन खिलवाड़ कर रहा है?

-फखरे आलम-   parliament
भगवान करे कि यह संसद का अंतिम सत्रा ही हो! और भारत की राजनीति भविष्य में फिर ऐसा कभी न हो एवं ऐसी परिस्थिति कभी न उत्पन्न हो! मगर वर्तमान गतिरोध और प्रतिरोध एवं असहयोग का प्रभाव आगामी सरकार के अधीन भी सत्र में अवश्य ही पड़ेगा! आखिरकार ऐसी स्थिति कौन उत्पन्न कर गया! भाजपा, कांग्रेस, एन.डीए., यूपीए अथवा 11 पार्टियों पर आधरित गैर कांग्रेसी और भाजपाई गठबंधन ? या फिर पास होने वाले बिल? अथवा श्रेय? जो बिल पास होने के पश्चात उपलब्धियों के रूप में सरकारी झोली में गिरने वाली थी! सत्र शुरू होने से पूर्व का सर्वदलिये बैठक! महज एक खानापूर्ति ही थी! सरकार को पता था कि वह बिल पास नहीं करवा पाएगी और उन्हें विपक्ष एवं गैर सत्ताधारियों का सहयोग प्राप्त होने वाला नहीं है। गैर सत्ताधरियों ओर विपक्ष ने मन बना लिया था कि कोई भी बिल पास नहीं होने देना है और संसद को बाधित करना है। तेलंगाना और दंगा विरोधी बिल तो महज एक बहाना है। हां, संसद सत्र की बलि पर एक नए गठबंधन का उदय अवश्य ही हुआ है ओर उससे 11 दलों या न हो, मगर भाजपा ओर कांग्रेस को लाभ अवश्य ही पहुंचेगा! भाजपा को तेलंगाना और दंगा विरोधी बिल पर राजनीति लाभ मिलेगा। कांग्रेस को लाभ इस संदर्भ में प्राप्त होने वाला है कि उन्होंने जनता के हित में महत्त्वपूर्ण और आवश्यक बिल पेश किए मगर विपक्ष और गैर सत्ताधरियों ने इसे पास नहीं होने दिया। सरकार ने बहुत कोशिश की जनता की भलाई का मगर संसद में सहयोग न प्राप्त होने पर वह सफल नहीं हो पाई! भाजपा कांग्रेस के पक्ष में उपलब्ध्यिां देखना नहीं चाहती। आखिरकार लाभ तो सभी पार्टियों और दलों ने प्राप्त की, मगर घाटा देश और देश की जनता का ही हुआ! संसद को रोज-रोज ठप करना, समय और धन की बर्बादी नहीं तो क्या है?
देशव्यापी स्थिति यह है कि देश की जनता सत्ता पक्ष और कांग्रेस से नाराज हैं। देश की आम और सामान्य जनता इसलिए नाराज नहीं है कि वह संसद में बिल से दुखी है अथवा विदेश नीति और मंत्रालय की कार्यशैली अथवा दिन-प्रतिदिन उजागर होते भ्रष्टाचार से। बल्कि आम जनता महंगाई ओर बेरोजगारी से परेशान है। आम जनता अपने घरों में बुझे चूल्हे से परेशान हैं। आम परेशानी का सामना करने वालों की संख्या बहुत बड़ी है। जिसके बच्चों का दूध उसे प्रत्येक माह परेशान कर रहा है। वह आसानी से रसोई गैस नहीं उपलब्ध करवा सकता। किरासन तेल आम जनता के पहुंच से बाहर है। आम जनता की नाराजगी घटे सरकारी सुविधओं से नहीं बल्कि, आम आवश्यकताओं की चीजों के पहुंच से दूर होने पर है।
सरकार अपने उपलब्ध्यिों की बखान करने में लगी है। मगर सरकार ने कभी भी जानने और समझने की आवश्यकता नहीं समझी कि आम लोगों की परेशानी और सरकार से नाराजगी के क्या कारण है। इतना कुछ होने और रोज रोज के संसद सत्र के नहीं चलने के बावजूद आम भारतीय की राय में दोषी न तो 11 राजनीति दलों का नया गठबंधन है और न ही विपक्ष बल्कि असल में सत्ता पक्ष इस रुकावट और नुकसान के लिए पूरी तौर पर जिम्मेवार है। सरकार और पार्टी अपने दस वर्षों के कार्यकाल पर इतराई हुई है और उसके व्यवहार ओर आचार में अभिमान साफ दिखाई दे रहा है। पार्टी अपनी बात और अपने फैसलों को सब पर थोपना चाहती है। उन्हें अन्य दलों और पक्ष की प्रतिष्ठा और गरिमा का तनिक भी ख्याल नहीं है, अथवा पार्टी और सरकार किसी भी बिल को पास करवाना ही नहीं चाहती, बल्कि जनता और देश के समक्ष ढोंग कर रही है।

1 COMMENT

  1. कांग्रेस की खुद की भी इच्छा नहीं है कि इस सत्र में वित्त अनुदान सम्बन्धी विधेयक के अलावा कुछ और काम भी हो.अन्यथा बीस बाईस सांसद रोजाना हंगामा कर सत्र को स्थगित करा दे व शेष देखते रहें सम्भव नहीं.सत्ता पक्ष की जिम्मेदारी है कि वह विरोधी पार्टीज के साथ बातचीत कर समस्या का हल करे.प्रति मिनट अढ़ाई लाख रुपये खर्च कर जनता को इन नेताओं की मनमानी देखने को मिलती है.वे तो घंटाभर आ अपना मकसद पूरा कर रवाना हो जाते हैं.इस समस्या का हल भी उनके स्वयं के पास ही है,पर वे उसे अपनाना ही नहीं चाहते.

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