1905 में जब सांप्रदायिक आधार पर अंग्रेजों ने बंगाल प्रांत का विभाजन किया तो ‘बंग भंग’ के नाम से विख्यात हुई उस घटना के बारे में आज कांग्रेस चाहे अपने इतिहास में कुछ भी लिखे, परंतु सच यह है कि उस समय उसकी स्थिति कुछ भी नहीं थी। उसकी कोई आवाज नहीं थी और कोई उसकी बात को सुनने को तैयार नहीं था ।1905 में कांग्रेस के 20 वर्षीय कार्यों और रीति नीति पर प्रकाश डालते हुए हेनरी डब्लू विंसन ने लिखा था – “राजनीतिक ज्ञान प्राप्ति और प्रशिक्षण का कांग्रेस एक आधार मंच था, परंतु दो क्षेत्रों में कांग्रेस का प्रभाव दिखाई नहीं देता था- पहला भारत की तत्कालीन सरकार पर इसका कोई प्रभाव नहीं था और दूसरा अंग्रेजों के मत अर्थात भारत पर शासन करने के ढंग को भी यह प्रभावी ढंग से कतई प्रभावित नहीं कर पाई थी। बस 20 वर्षों में इसने बढ़िया से बढ़िया प्रस्ताव मात्र ही पारित किए थे और राजा के पास अपने प्रतिनिधिमंडल भेजे थे। प्राय: राजशाही ने कई अवसरों पर इनके प्रतिनिधि मंडलों से मिलना तक स्वीकार नहीं किया था। इंग्लैंड में तो लोग यह भी नहीं जानते थे (चार छ: लोगों को छोड़कर)कि कांग्रेस क्या है? कहां हर वर्ष सम्मेलन करती है) क्या बोलती है? उसकी क्या मांगे हैं? उसका क्या उद्देश्य है? – इसे कोई जानता तक नहीं था । इसलिए कोई कांग्रेस की परवाह भी नहीं करता था।”
उस समय 20 वर्ष की युवा कांग्रेस ने ‘बंग भंग’ की घटना को सहजता से स्वीकार कर लिया था। हर व्यक्ति के जीवन के पहले 20 वर्ष ऐसे होते हैं जिसमें उसके भीतर पड़े संस्कार जीवन भर उसका साथ देते हैं। कांग्रेस के साथ भी यही हुआ। सांप्रदायिक आधार पर अपने आका अंग्रेजों के द्वारा बंगाल का किया गया विभाजन जैसे इसने स्वीकार किया अर्थात उसे उचित मानकर उसका विरोध नहीं किया, यही संस्कार इसके लिए आगे के लिए एक संस्कार के रूप में मान्यता प्राप्त कर गया । जिसे यह आज तक देश हितों को गिरवी र कर भी स्वीकार किए हुए हैं।
उस समय यह एक ब्रिटिश राजभक्त (राष्ट्रभक्त नहीं) संस्था के रूप में अपना काम कर रही थी और बाद में भी इसी रूप में काम करती रही। इस प्रकार स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात सांप्रदायिक आधार पर प्रदेशों का गठन करना और उस पर अपनी सहमति व्यक्त करना कांग्रेस का संस्कार बन गया । स्वतंत्र भारत में कांग्रेस ने अपने शासन में इसी नीति पर काम करते हुए सांप्रदायिक आधार पर जहां पंजाब और जम्मू कश्मीर जैसे प्रदेशों का गठन किया वहीं मल्लपुरम ( मुस्लिम बहुल मुल्लापुरम) जैसे जिलों को बनाने में भी अपना सहयोग और समर्थन प्रदान किया।
अब पंजाब में कांग्रेस के ही मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी पार्टी के इसी मूल संस्कार का परिचय देते हुए पंजाब में ‘ईद के मुबारक मौके’ पर मुस्लिम बहुल मलेरकोटला को एक नया जिला बना डाला है। इस पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अमरिंदर सिंह सरकार के इस निर्णय को पूर्णतया असंवैधानिक बताते हुए अपनी टिप्पणी कठोर टिप्पणी की है । उन्होंने कहा है कि पंजाब में मलेरकोटला नाम के नए जिले का निर्माण कांग्रेस की विभाजनकारी नीति है। आस्था और धर्म के आधार पर कोई भी भेद भारत के संविधान की भावना के विपरीत है। मत और मजहब के आधार पर किसी प्रकार का विभेद भारत के संविधान की मूल भावना के विपरीत है। इस समय, मलेरकोटला (पंजाब) का गठन किया जाना कांग्रेस की विभाजनकारी नीति का परिचायक है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का उपरोक्त कथन यदि इतिहास के संदर्भ और परिप्रेक्ष्य में तर्क की कसौटी पर कस कर देखा जाए तो वह जो कुछ भी कह रहे हैं वह पूर्णत: सही है। आज के पाकिस्तान और बांग्लादेश के निर्माण के संदर्भ में योगी आदित्यनाथ की इस टिप्पणी को तर्क तुला पर कसकर देखा जाना चाहिए । आजादी पूर्व जहां जहां मुस्लिम बहुल क्षेत्र थे वहीं हम देख रहे हैं कि आज के विश्व मानचित्र पर दो मुस्लिम देश भारत की धरती पर खड़े हैं। कहीं हम मुस्लिम बहुल जिलों को अलग प्रशासन देकर देश के भीतर उन्हीं ‘जूनागढ़’ और ‘हैदराबादों’ का निर्माण तो नहीं कर रहे हैं जिनके विरुद्ध सरदार पटेल को लड़ना पड़ा था और उन्होंने ‘एक भारत’ का निर्माण करने में अपना ऐतिहासिक और प्रशंसनीय योगदान दिया था। अपना संख्या बल किसी क्षेत्र या जिले विशेष में बढ़ाकर अलग होने की यह मांग निश्चित रूप से विचारणीय है। विशेष रूप से तब जब संविधान इस प्रकार की मांगों को पूर्णतया अनुचित करार देता है। यदि हम संख्या बल के आधार पर इस प्रकार जिलों का निर्माण सांप्रदायिक आधार पर करेंगे तो कल को किसी प्रदेश को भी ‘मल्लपुरम’ या ‘मलेरकोटला’ बनाने की मांग की जाएगी और फिर धीरे-धीरे वह पाकिस्तान और बांग्लादेश के रूप में हमारे सामने खड़ा होगा।
जब देश के नागरिकों के मध्य धर्म, जाति और लिंग के आधार पर किसी प्रकार का भेद करना संविधान विरोधी है तो सांप्रदायिक आधार पर जिलों का गठन करना पूर्णतया संविधान विरोधी क्यों नहीं है ? निश्चित रूप से है। यह तब और अधिक विचारणीय हो जाता है कि जब मुस्लिम बहुल जिलों में एसएसपी और जिलाधिकारी की नियुक्ति भी एक मुस्लिम के रूप में ही की जाती है। पहले तो जिला सांप्रदायिक आधार पर शासन की संविधान विरोधी विभेदकारी नीति को दिखाते हुए बनाया गया जो अन्यायपरक और सरकार के पक्षपाती दृष्टिकोण और मुस्लिम तुष्टीकरण की पुष्टि करता है और फिर उसमें मुस्लिम जिलाधिकारी और एसएसपी देना और भी अधिक अन्यायपरक हो जाता है। क्योंकि पक्षपात के आधार पर बनाए गए ये अधिकारी ऐसे जिलों में रहने वाले हिंदू या दूसरे संप्रदाय के लोगों के साथ अन्याय और पक्षपात का आचरण नहीं करेंगे इस बात की क्या गारंटी है ? इस प्रकार के संविधान विरोधी और राष्ट्रविरोधी कार्य की ओर संविधान की सौगंध खाकर शासन चलाने वाले लोग और पूरी नौकरशाही आंख उठाकर तक नहीं देखती।
शासन की इस प्रकार की अन्यायपूर्ण और पक्षपाती नीतियों का लाभ उठाने के लिए मुस्लिम बड़ी तेजी से अपने आपको देश के दूसरे शहरों व कस्बों में भी ध्रुवीकृत करते हुए एक स्थान पर बसाते जा रहे हैं, जिससे भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं मिल रहे हैं।
यह जिले उनके लिए उदाहरण का काम करेंगे और छिटपुट इधर-उधर अनेकों जिलों पर अपना वर्चस्व स्थापित कर अर्थात अपना संख्या बल बढ़ाकर वह इसी आधार पर संविधान विरोधी जिलों के निर्माण की प्रक्रिया को तेज करेंगे।
मलेरकोटला का मूल नाम मौला खान था। जो एक छोटी सी रियासत हुआ करती थी । 1947 में वह पेप्सू में अर्थात् पटियाला एंड ईस्ट पंजाब स्टेट्स यूनियन में सम्मिलित हुई थी। तब से दबी हुई इसकी भावना अब जाकर फलीभूत हुई है अर्थात भारत में रहकर अपनी अलग पहचान स्थापित करने में ‘मौला खान’ अब जाकर सफल हुआ है। यह सब कांग्रेस की कृपा से हुआ है।
इसी प्रकार की सरकारी नीतियों का लाभ उठाते हुए देश में बड़ी तेजी से हर जिले में शरीयत अदालतें स्थापित करने की ओर भी कुछ इस्लामिक संगठन सक्रिय होते जा रहे हैं। जिनका ‘सेकुलर पार्टीज’ की ओर से कोई विरोध नहीं आ रहा है। सारे के सारे सेकुलर राजनीतिक दल हिंदू विरोधी से राष्ट्र विरोधी होने तक की स्थिति तक पहुंच गए हैं, परंतु वे अपने इस रूप को भी पूर्णतया संवैधानिक मान रहे हैं। बेहयाई और बेशर्मी की सारी सीमाएं लांघ चुके हैं। जिससे मुस्लिम उग्र संगठनों को और भी अधिक बल मिल रहा है। यदि भाजपा या हिंदूवादी संगठन और राजनीतिक दल इसका विरोध करते हैं तो उन्हें सांप्रदायिक कहकर कोसा जाता है और बड़ी तेजी से सेकुलर कीड़ों की ओर से उन पर कीचड़ उछाला जाता है। जो लोग इतिहास को दृष्टिगत रखते हुए और मुस्लिम सांप्रदायिकता के दंश को समझते हुए इन धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों को समझाने का प्रयास करते हैं उन्हें भी यह चुप रहने के लिए प्रेरित करते हैं।
8 जुलाई 2018 को देश के हर जिले में शरीयत अदालतें स्थापित करने की मांग को लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से दिए गए प्रस्ताव पर कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने कहा था कि देश में ‘समानांतर सिस्टम बनाना संविधान की मंशा के खिलाफ है।’ देश के कानून मंत्री की यह बात एकदम सही है, लेकिन इस पर इसी प्रकार का स्पष्ट और कड़ा स्टैंड देश के विपक्ष की ओर से भी आना चाहिए। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश का विपक्ष अपनी भूमिका को भूलकर राष्ट्रद्रोही शक्तियों के हाथों में खेल रहा है। जिसका परिणाम देश को भुगतना पड़ेगा।
पंजाब के कांग्रेसी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की संवैधानिक और लोकतांत्रिक बात का सम्मान न करते हुए उल्टे उन्हें ही सीख दे डाली है कि उत्तर प्रदेश पंजाब के मामलों से दूर रहे। पिछले चार वर्षों से राज्य में सांप्रदायिक कलह को बढ़ावा दे रहे है। विभाजनकारी और विनाशकारी भाजपा सरकार के तहत यूपी की तुलना में हम बहुत बेहतर स्थिति में हैं।
उन्होंने आगे योगी आदित्यनाथ से सवाल पूछते हुए कहा कि वे पंजाब के लोकाचार या मलेरकोटला के इतिहास के बारे में क्या जानते हैं? कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक बयान में कहा भारतीय संविधान के बारे में वो क्या जानते हैं, जिसे यूपी में उनकी अपनी सरकार द्वारा हर दिन बेशर्मी से रौंदा जा रहा है?”
ऐसा ही सवाल सरदार कैप्टन अमरिंदर सिंह से भी पूछा जा सकता है कि वह जिन्नाह , मुस्लिम लीग और उनके भारत में रह गए मानस पुत्रों के इतिहास, आचरण और सभ्यता के बारे में क्या जानते हैं ?
सरदार कैप्टन अमरिंदर सिंह को यह कौन बताए कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासनकाल में उत्तर प्रदेश में एक भी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ है। जबकि उससे पहले सपा सरकार में सांप्रदायिक दंगों की बाढ़ आ गई थी ।मुसलमान उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार की अपेक्षा योगी सरकार में अधिक सुरक्षित है और पूरा प्रदेश शांतिपूर्ण ढंग से प्रगति की राह पर आगे बढ़ रहा है।
वास्तव में देश के राजनीतिक दल सत्य को इसी प्रकार गेंद बनाकर उछलते रहते हैं और जिसके पाले में गेंद जाती है वह उसमें बल्ला मारकर दूसरी तरफ फेंक देता है। सही को सही समझने और कहने की शक्ति देश के राजनीतिक दलों और राजनीतिक लोगों के भीतर से सर्वथा लुप्त हो गई है। यही कारण है कि राजनीतिक विश्वास का संकट आज भी बना हुआ है।
देश के जनमानस को किसी भी राजनीतिक दल और किसी भी प्रदेश की की सरकार की ऐसी कार्यशैली की निंदा करनी चाहिए जिससे देश में अलगाववाद को बढ़ावा मिलता दिखाई दे । देश के नागरिकों को यह निर्णय लेना चाहिए कि जो लोग देश की हिंदू विरोध से राष्ट्र विरोध करते पाए जाएंगे उनका सामाजिक राजनीतिक बहिष्कार किया जाएगा। इतिहास की घटनाएं केवल इतिहास की पुस्तकों में लिखकर बंद करने के लिए नहीं होती हैं बल्कि वह आने वाली पीढ़ियों को यह दिखाने, समझाने और बताने के लिए होती हैं कि अतीत में अमुक – अमुक मूर्खताओं के अमुक – अमुक घातक परिणाम निकले हैं, इसलिए – “इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के….” अर्थात यह गलतियां भविष्य में नहीं दोहरानी हैं।