रिजवी के बाद अकबर का सनातनी हिन्‍दू होने को क्‍या माना जाए?

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डॉ. मयंक चतुर्वेदी

यह विषय और विचार कोई नया नहीं है कि इस्‍लाम का एक वर्ग किस तरह से अपने आप में एक विचार का पोषण करते हुए व्‍यक्‍ति को इतना अंधा बना देता है कि वह अपनी राष्‍ट्रीयता के लिए आवश्‍यक देशप्रेम को भी भूल जाता है। भारत ने अपने देशभक्‍त सपूत सीडीएस विपिन रावत और 11 जवानों को तमिलनाडु हेलीकॉप्टर क्रैश में खो दिया। देश भर में बलिदानियों के लिए श्रद्धासुमन अर्प‍ित किए जा रहे हैं। कई देशभक्‍त अब भी इस हादसे के बाद से सामान्‍य नहीं हो सके हैं। बिना कुछ कहे ही आंखें नम हो जाती हैं, तब देश में उन विरोधी और देशद्रोहियों की भी कोई कमी नहीं दिखती जो इस पूरे घटनाक्रम पर हंस रहे हैं। हंसने की इमोजी बनाकर सोशल मीडिया में डाल रहे हैं। विचार करिए, कौन लोग हैं ये ?

उस दिन को बीते अभी बहुत समय नहीं बीता है, जब उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन सैयद वसीम रिजवी ने अचानक से इस्लाम पंथ छोड़ सनातन धर्म स्‍वीकार करने की घोषणा की थी। इसके बाद केरल के फिल्म निर्माता अली अकबर और उनकी पत्नी द्वारा सनातन धर्म अपना लिया और नया नाम राम सिम्हन रख लिया। इससे साफ है इस्लाम की कट्टरता उस मजहब के लोग भी स्वीकार नहीं कर रहे हैं। कुछ अपवाद अवश्‍य हैं और जो आज इस तरह से अपने मजहब से दूर होकर एक श्रेष्‍ठ जीवन देशभक्‍ति की भावना के साथ जीना चाहते हैं।

वह दर्द जिसे मलयालम फिल्म निर्देशक अली अकबर ने अनुभूत (महसूस) किया, उसकी आप कल्‍पना करके देखिए, ह्दय स्‍वयं से सिहर उठेगा। यह सिरहन इस बात के लिए पैदा होती है कि जिस देश का अन्‍न, जल खाकर देह को पुष्‍ट किया, रोजगार पाकर अपने जीवन को सुखमय बनाया, उस देश से ही नफरत ? जोकि इस्‍लाम के तमाम माननेवालों की अभिव्‍यक्‍ति में देशभक्‍त सपूत सीडीएस बिपिन रावत समेत सभी फौजियों के बलिदान होने पर खुलकर साफ बाहर निकली है। यह नफरत की आग किस तरह से अंधी है ? एकतरफा है और सब कुछ निगलजानें के लिए आतुर है। यह समझ आता है, उन तमाम वीडियो, चित्र और किसी के प्रतिउत्‍तर में दिए गए जवाब से। यह उत्‍तर जिस तरह से दिए गए या दिए जा रहे हैं, उन्‍होंने आज हर देशभक्‍त को यह सोचने पर विवश कर दिया है कि इस्‍लाम को अपनाकर कहीं उनके बुजुर्गों से कोई बड़ी गलती तो नहीं हो गई ?

देखा जाए तो मलयालम फिल्म निर्देशक अली अकबर के साथ भी आज यही हुआ है।  चूँकि वे प्रखर चिंतक, जानकार और संवेदनशील इंसान हैं, इसलिए वे उन इस्‍लामिक लोगों के उपहास सहन नहीं कर पाए, जिन्‍होंने हमारे इन बलिदानियों का अपमान किया है।  जिन विपरीत परिस्‍थितियों में जैसे पहले वसीम रिजवी जोकि अब जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी हैं कह रहे थे, ‘इस्लाम का दूसरा नाम ही आतंक है, जिसकी शुरुआत 1400 साल पहले अरब के रेगिस्तान में हुई थी।  इस्लाम में कोई अच्छाई है ही नहीं। कुरान के अनुसार, एक व्यक्ति दूसरे का (जो उसके पंथ का नहीं) सिर काटता है तो वह मजहब के आधार पर सही है, लेकिन मैं इसे इंसानियत के खिलाफ मानता हूं।’ वास्‍तव में आज इसी संवेदना को महसूस करते हुए अली अकबर भी इस्‍लाम से बाहर हुए हैं।

आप सोचिए, अली अकबर के मन मे कितना द्वंद चला होगा, इस कठोर निर्णय तक पहुंचने के लिए। कोई व्‍यक्‍ति अनायास ही इस तरह का निर्णय नहीं लेता। इतिहास में इस तरह से कई संदर्भ भरे पड़े हैं कि कैसे भारत में इस्‍लाम का प्रवेश हुआ और किस बेरहमी से हिन्‍दुओं का धर्म नहीं बदलने पर सामूहिक नरसंहार किया गया था। दूर क्‍यों जाते हैं यह वर्ष मोपला हत्‍याकांड का भी शताब्‍दी वर्ष है। 20 अगस्त 1921 को मालाबार इलाके में मोपला विद्रोह की शुरुआत हुई थी। 100 वर्ष हो चुके हैं इस घटना को हुए, लेकिन जब भी इसे देखते हैं लगता है कि जैसे कल ही की बात हो । इस रक्‍तपात में हजारों लोगों की जान सिर्फ इसलिए ले ली गई, क्‍योंकि वे हिन्‍दू बनकर ही जीना और हिन्‍दू सनातन धर्म में रहते हुए ही मरना चाहते थे।

मोपला नरसंहार के मामले में ”दीवान बहादुर सी गोपालन नायर” को प्राइमरी सोर्स माना जा सकता है, क्योंकि वह तत्‍कालीन समय में डिप्टी कलक्टर थे। उन्होंने लिखा कि गर्भवती महिलाओं के शरीर को टुकड़ों में काट कर सड़क पर फेंक दिया गया था। मंदिरों में गोमाँस फेंक दिए गए थे। कई अमीर हिन्दू भी भीख माँगने को मजबूर हो गए। जिन हिन्दू परिवारों ने अपनी बहन-बेटियों को पाल-पोष कर बड़ा किया था, उनके सामने ही उनका जबरन धर्मांतरण कर मुस्लिमों से निकाह करा दिया गया।

बाबासाहब भीमराव आंबेडकर इसे हिन्दू-मुस्लिम दंगा मानने से इनकार करते रहे, उन्‍होंने कहा कि हिन्दुओं की मौत का आँकड़ा बहुत बड़ा है। डॉ. आंबेडकर लिखते हैं, ”अंग्रेजों के खिलाफ को तो जायज ठहराया जा सकता है, लेकिन मोपला मुस्लिमों ने मालाबार के हिन्दुओं के साथ जो किया वो विस्मित कर देने वाला है। मोपला के हाथों मालाबार के हिन्दुओं का भयानक अंजाम हुआ। नरसंहार, जबरन धर्मांतरण, मंदिरों को ध्वस्त करना, महिलाओं के साथ अपराध, गर्भवती महिलाओं के पेट फाड़े जाने की घटना, ये सब हुआ। हिन्दुओं के साथ सारी क्रूर और असंयमित बर्बरता हुई। मोपला ने हिन्दुओं के साथ ये सब खुलेआम किया, जब तक वहाँ सेना न पहुँच गई।”

इतिहास के सच को मानें तो मोपलाओं ने इस आतंक से 10 हजार से अधिक हिन्‍दुओं को एक साथ मौत के घाट उतार दिया था। अब यह संयोग ही कहा जाएगा कि इतिहास अपने को पुन: दोहरा रहा है, अपनी गलतियों से सबक लेकर उसमें सुधार की हूक भी वहीं से उठी है, जहां कभी बहुत बड़ी संख्‍या जोकि कई हजारों में है का जबरन कन्वर्जन कराया गया था। आज फिल्म निर्माता अली अकबर उसी केरल से आते हैं जहां कभी यह सब घटा था।

अली अकबर जब यह कहते हैं कि “हमारे आर्मी चीफ की मौत के बाद बहुत से लोगों ने हंसने की इमोजी लगाई । ये बहुत खराब बात थी।  आप सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों के नाम देख सकते हैं, वो सभी मुसलमान हैं। हम सिर्फ अपने मजहब को सबसे पहले रखकर कैसे जी सकते हैं, मेरे नजरिए में मजहब तीसरे नंबर पर आता है।  पहले नंबर पर मेरा देश है, दूसरे नंबर पर भी मेरा देश ही है और फिर तीसरे नंबर पर मजहब है।” वह कह रहे हैं ”किसी भी मुसलमान नेता ने ऐसे लोगों के खिलाफ मुंह नहीं खोला और इस तरह के पोस्ट न करने के लिए नहीं कहा। केरल में इस्लामिक आंदोलन अब इस्लामिक नहीं रह गया है,  वो अब केरल को एक इस्लामी राज्य बनाना चाहते हैं। कुछ नेता तो ये बात सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं।”

उनके अनुसार ‘जनरल रावत के बलिदान पर इस तरह की प्रतिक्रिया इसलिए आई क्योंकि उन्होंने कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान और कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ कड़े कदम उठाए थे। ऐसे में मैं ऐसे मजहब के साथ नहीं जुड़ा रह सकता हूं जोकि इस प्रकार की धर्मांध सोच रखता हो।’ अली अकबर यह कहकर ही नहीं रुकते हैं, वे सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट भी करते हैं और साफ घोषणा करते हैं कि उनका इस्‍लाम से विश्वास उठ गया है। ‘मुझे जन्म के समय से ही जो चोला मिला था, उसे उतारकर फेंक रहा हूँ। आज से मैं मुस्लिम नहीं हूं। मैं एक भारतीय हूं। मेरा यह संदेश उन लोगों के लिए है, जिन्होंने भारत के खिलाफ हंसते हुए स्माइली पोस्ट की है।’ वस्‍तुत: अब आप स्‍वयं ही सोच सकते हैं कि उनका दर्द कितना गहरा है।

इससे यह भी समझ आता है कि पंथनिरपेक्ष भारत में जिसका कि विभाजन ही धर्म के आधार पर किया गया और तर्क देनेवालों ने यहां तक कहा, स्‍वयं महात्‍मा गांधी, नेहरू भी जिससे कि सहमत दिखे-हिन्‍दू-मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते, इसलिए मुसलमानों को एक अलग देश दे देना चाहिए। तब देश का विभाजन होता है। मुसलमान अपने हिस्‍से का देश पाकिस्‍तान बना लेते हैं, फिर भी आज शेष बचे हिन्‍दुस्‍थान में इस्‍लाम का ऐसा आतंक? सोचिए, विचार कीजिए….और अंत में यही कि जब तक इस प्रकार की कट्टर सोच जिंदा रहेगी, भारत में प्रज्ञावान देशभक्‍त अली अकबर जैसे लोगों की अत्‍मा एक न एक दिन अवश्‍य ही जागेगी और वे पुन: इसी प्रकार से सनातन हिन्‍दू धर्म में वापस आते रहेंगे, जोकि आज इस पूरे प्रकरण में होता हुआ दिखा है।

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