ऐसे हुई श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति

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–    विनोद बंसल

      ईस्वी सन् 1528 से लेकर आज तक भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ने असंख्य उतार-चढ़ाव देखे हैं। एक ओर उसने वह असहनीय दर्द सहा जब भव्य तथा विशाल मंदिर को धूल धूसरित कर अपने सत्ता मद में चूर एक विदेशी आक्रान्ता ने भारत की आस्था को कुचलकर देश के स्वाभिमान की नृशंस ह्त्या का दुस्साहस किया। तो वहीँ, 6 दिसंबर 1992 का वह दृश्य भी देखा जब लाखों राम भक्तों ने 464 वर्ष पूर्व जन्मभूमि के साथ हुई उस दुष्टता का परिमार्जन करते हुए पापी के बनाए हुए पाप के ढाँचे का मात्र कुछ ही घंटों में अवशेष तक नहीं छोड़ा। समूचे विश्व ने वह दृश्य लाइव देखा।

      इन दो घटनाओं के बाद जो सबसे महत्वपूर्ण दिवस श्री राम जन्म भूमि के लिए आया तो वह था 2019 का नौ नवम्बर। अर्थात् वह पावन तिथि जब भारत के इतिहास में पहली बार सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय खण्ड-पीठ के माननीय न्यायाधीशों ने सर्व सम्मति से एक ऐसा निर्णय दिया जिसे सम्पूर्ण विश्व ने अपनी धड़कती हुई सांसों को थाम कर लाइव सुना, सुनाया, चार्चाएं कीं और सर्व सम्मति से एकाकार होकर अंगीकार किया।

      इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 30 सितम्बर 2010 के निर्णय के विरुद्ध अपीलें तो सभी पक्षों ने 2011 के प्रारम्भ में ही दायर कर दीं थी किन्तु, उसके बाद माननीय सर्वोच्च न्यायालय की  लगभग 8 वर्षों की चुप्पी ने देश को अधीर कर दिया। एक बार तो राम भक्तों को लगा कि यह विषय अब न्यायालय की प्राथमिकता का है ही नहीं, तो देश भर में विशाल धर्म सभाएं प्रारम्भ हो गईं। किन्तु, माननीय उच्चतम न्यायालय की दो सौ दिनों की मेराथन सुनवाई अंततोगत्वा परिणाम भी ले आई।

      लगभग 500 वर्षों के सतत् संघर्ष में हिन्दू कभी जीता तो कभी हारा, कभी रामलला साक्षात् दिखे तो कभी उनकी सिर्फ अनुभूति, कभी पूजा-पाठ हुआ तो कभी सिर्फ जन्म भूमि वंदन, कभी गम्भीर शांति रही तो कभी जबरदस्त संधर्ष। किन्तु इस सबके बीच, यदि कुछ स्थिर था तो वह था जन्मभूमि से गहरा लगाव व समर्पण। चाहे मूर्ति गईं या पूरा मंदिर, राज्य गए या प्राण, सम्पत्ति गई या स्वजन, कुछ भी हुआ किन्तु, जन्मभूमि पर अपना दावा हिन्दू समाज ने कभी नहीं छोड़ा। वैसे भी हिन्दू परम्परा में स्थान देवता का बड़ा महत्व है। भारत की स्वतंत्रता के उपरांत श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति के लिए हुए आन्दोलन के विभिन्न चरणों में लगभग 16।5 करोड़ लोगों की सहभागिता ने इसे दुनिया का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण व अनुशासित जन-आन्दोलन बना दिया।

      दिसम्बर 2017 में प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में बनी सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने जब पहली बार सुनवाई का मन बनाया तो बाबरीवादी मुस्लिम समुदाय के साथ कांग्रेस के नेता किस प्रकार हिन्दु-द्रोहियों के साथ खड़े होकर खुल्लम-खुल्ला राम द्रोह के नए-नए प्रपंच रच कर सुनवाई को अटकाने, भटकाने व लटकाने की नई नई चालें चल रहे थे, यह बात सम्पूर्ण विश्व ने देखी। कभी दो वर्ष बाद होने वाले आम चुनावों का हवाला तो कभी सुनवाई से देश का माहौल खराब होने की बात, कभी न्यायाधीशों की पीठ की संख्या पर प्रश्न तो कभी मुख्य न्यायाधीश की सेवा निवृति की तिथि का बहाना, कभी उच्च न्यायालय के दस्तावेजों के अंग्रेजी अनुवाद का बहाना तो कभी उसकी विश्वसनीयता पर ही प्रश्न चिह्न, कभी पूर्व कानून मंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल व उनके सहयोगी वरिष्ठ वकीलों द्वारा भरे कोर्टरूम में चीख-चिल्लाहट व बहिष्कार की धमकी तो कभी मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा पर महाभियोग चलाने का मामला, भारत के न्यायिक इतिहास में सब कुछ पहली बार देखने को मिला।

      खैर! 40 दिन में 200 घंटे से अधिक की ऐतिहासिक मैराथन सुनवाई ने आखिरकार शताब्दियों के बाबरवादी कब्जे से जन्मभूमि को मुक्त करते हुए अपना ऐतिहासिक निर्णय सुना ही दिया। केंद्र सरकार की पहल पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई सुनवाई में आई अनेक बाधाओं को राम-भक्त वरिष्ठ अधिवक्ता श्री के। पारासरन की टोली, श्री चम्पत राय जी के कुशल मार्ग दर्शन व राज्य के मुख्यमंत्री पूज्य महंत आदित्यनाथ जी की सरकार द्वारा एक एक कर हटाया गया। निर्णय से पूर्व, पूज्य संतों, पूजनीय सरसंघचालक, प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी तथा विश्व हिन्दू परिषद् कार्याध्यक्ष एडवोकेट श्री आलोक कुमार जी के साथ अनेक विद्वानों, बुद्धिजीवियों, सामाजिक व धार्मिक संगठनों की देश में शान्ति व व्यवस्था की गम्भीर अपील ने निर्णयोपरांत के उपद्रव की सम्भावनाओं को पूरी तरह विराम लगा दिया।

      इस दौरान अनेक बार योगी जी का अयोध्या प्रवास, उसके विकास का खाका तथा पूज्य संतों व श्रद्धालुओं के साथ सभी पक्षकारों में व्यवस्था के प्रति विश्वास की पुनर्स्थापना ने भी बड़ा कार्य किया। देश-विदेश में फैले राम भक्तों के संकल्प और उनके अथक विविध प्रकार के प्रयासों ने भी देश की इस जटिल समस्या के समाधान की ओर आगे बढ़ने में कोई कम भूमिका नहीं निभाई। विश्व हिन्दू परिषद, जिसने पूज्य संतों के मार्ग-दर्शन व अगुवाई में श्री राम जन्मभूमि के 77वें युद्ध की घोषणा 90 के दशक में की, पांच शताब्दियों के संघर्ष को, चार दशकों में विजयश्री पर पहुंचा दिया।

      श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रष्ट के आहवान पर, सभी राम भक्तों के सहयोग व योगदान से मंदिर निर्माण के पुनीत कार्य के श्री गणेश की पावन बेला भी अब सन्निकट है। प्रत्येक रामभक्त अब इस प्रतीक्षा में है कि कोरोना संकट के इस काल में उसे राम जी क्या काम सौंपते हैं। जिस जन्मभूमि की मुक्ति हेतु जिन्होंने तन-मन-धन के साथ पूरा जीवन लगा दिया, उस पर बनने वाले विराट भव्य मन्दिर के भूमि पूजन के स्वर्णिम बेला को स्वनेत्रों से निहारने की उत्कंठा बार बार मन में हिलोरें मार रही है। अब सभी राम भक्त तैयार रहें। सबके लिए कुछ ना कुछ राम काज आने ही वाला है। कोरोना संकट भला हमें अपने आराध्य देव के दर्शन के अधिकार से बंचित कैसे कर सकता। हाँ! दर्शन का माध्यम बदल सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि इससे सम्बंधित सभी सावधानियों का पूर्णता से पालन करते हुए हमारे लिए जो भी करणीय कार्य हैं, हम वही सब मर्यादापूर्वक करेंगे।

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