बचकाने बयानो से उत्तर प्रदेश का विकास नही होगा

शादाब जफर‘‘शादाब’’

सरकार और राजनेताओ के सार्वजनिक जीवन को भ्रष्टाचार से बचाने के लिये हो रही जद्दोजहद का आगे चलकर भले ही कोई भी नतीजा निकले। पर जिस प्रकार उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने वित्तीय, स्वास्थ्य और बिजली संकट से जूझ रहे उत्तर प्रदेश की जनता को दरकिनार करते हुए प्रदेश के विधायको के लिये विधायक निर्वाचन क्षेत्र की विधायक निधि से हर विधायक को 20 लाख रूपये की लग्जरी गाडी खरीदने की छूट का ऐलान किया उस से कम से कम एक बात तो पूरी रह साफ हो गई की उत्तर प्रदेश आज राजनीतिक क्षेत्र में सक्षम और कुशल नेतृत्व की गहरी कमी के दौर से गुजर रहा है। अखिलेश के इस ऐलान से एक ओर जहा पूरा देश हैरान है। वही विपक्ष सहित सपा के कुछ विधायक भी इस फैसले के खिलाफ है सपा से लखनऊ मध्य से विधायक रविदास मेहरोत्रा ने तो बाकायदा मीडिया को ये बयान तक दे दिया कि ‘‘ विकास निधि की रकम का इस्तेमाल जनता की समस्याओ को दूर करने के लिये होना चाहिये। में इस निधि से गाड़ी नही लूंगा’’। दूसरी ओर मुख्यमंत्री अखिलेश के इस विवादास्पद ऐलान पर सभी प्रमुख विपक्षी दलो बसपा, भाजपा, कांग्रेस, रालोद ने विकास की रकम से माननीयो को निजी उपयोग के लिये गाड़ी दिये जाने पर कड़ा ऐतराज जताया और दो टूक कहा कि उन का कोई विधायक इस प्रकार गाड़ी नही खरीदेगा। अपने इस ऐलान पर वाहवाही की उम्मीद रखने वाले अखिलेश को जब चारो ओर से आलोचनाओ का सामना करना पडा तो मुख्यमंत्री ने ये तर्क दिया कि ये सुविधा सिर्फ उन गरीब विधायको के लिये है जो गाड़ी नही खरीद सकते। में माननीय मुख्यमंत्री जी से ये पूछना और उन्हे ये बताना भी चाहता हॅू कि वर्तमान में यूपी विधानसभा में इस समय लगभग 67 प्रतिशत विधायक करोड़पति है। यानि 403 विधायको में से 271 विधायक करोड़पतियो की श्रेणी में आते है। दूसरा सवाल यह कि जो विधायक सिर्फ विधायक का चुनाव लड़ने के लिये बडी राजनितिक पार्टी का टिकट पाने के लिये पचास हजार से एक करोड़ तक खर्च कर सकता हो और इतना ही रूपया चुनाव में लगा सकता हो क्या ऐसे विधायको को सरकार का जनता की विकास निधि से गाड़ी दिलाना कहा तक उचित है।

विधायक निधि से निजी उपयोग के लिये 20 लाख रूपये तक की गाड़ी खरीदने के मुख्यमंत्री के फैसले पर राजनैतिक और प्रशासनिक हलको में भी आश्चर्य जताया जा रहा है। कानूनन क्षेत्रीय विकास निधि का उपयोग कोई भी विधायक या सांसद निजी इस्तेमाल में नही ला सकता क्यो कि भारतीय संविधान के अनुसार यदि कोई विधायक या सांसद विकास निधि के पैसो को अपने निजी इस्तेमाल में लाता है तो उस की सदस्यता ये सिद्ध होने पर समाप्त की जा सकती है। पर जब खुद ही प्रदेश का मुख्यमंत्री प्रदेश की विकास निधि को विधायको से अपने निजी इस्तेमाल में लाने को कह रहा हो तो क्या किया जा सकता है। वैसे मुख्यमंत्री अखिलेश के इस बयान का लोगो को ज्यादा आश्चर्य नही करना चाहिये। क्योकि अभी वो युवा है राजनीति के अनुभव के नाम पर वो सिर्फ मुलायम सिॅह जी के बेटे है इस से ज्यादा उन के पास भारतीय राजनीति खास कर यूपी राजनीति का कोई ज्यादा अनुभव नही है। पिछले दिनो जिस प्रकार से विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला राजनीति के जानकारो ने अखिलेश की काबलियत के जिस प्रकार से कसीदे पढे में समझता हॅू वो जल्दबाजी में लिया गया फैसला थे। क्यो कि जिस प्रकार उत्तर प्रदेश को अखिलेश चला रहे है या चलाना चाहते है उस मंे कुछ ऐसा अभी तक नजर नही आया कि जिस से अखिलेश की तारीफ कि जाये। दरअसल बीते यूपी विधानसभा चुनाव में सपा या अखिलेश का कोई जादू वादू नही चला बल्कि प्रदेश की जनता मायावती की हिटलर शाही, प्रदेश में करोडो रूपयो के भ्रष्टाचार, दिन प्रतिदिन बिगड़ती हुई कानून व्यवस्था से परेशान थी विक्ल्प के तौर पर उसे कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले सपा मजबूत नजर आई अतः प्रदेश की जनता ने समाजवादी पार्टी को प्रदेश की सत्ता का ताज पहना दिया पर लगता है कि मायावती उत्तर प्रदेश में क्यो हारी, सत्ता सुख में रची बसी अखिलेश सरकार ने अब तक इस और कोई ध्यान नही दिया और न ही कोई सबक लिया।

हम सब जानते है कि मायावती की यूपी विधानसभा में हार का एक बड़ा कारण प्रदेश में गुण्डागर्दी या उस के विधायको की अय्याषी ही नही बल्कि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) 5000 करोड़ के घोटाला और मनरेगा जैसी केंद्रीय योजनाए भी थी। पर अखिलेश जिस प्रकार से यूपी की सत्ता चला रहे है उस से मुझे ऐसा नही लग रहा कि उन के पास कोई ऐसी पोलिसी भी जिस से प्रदेश के आम आदमी को कुछ फायदा होगा। पर हा उन के इस ऐलान से उत्तर प्रदेश पर 100 करोड़ साठ लाख का अतिरिक्त बोझ जरूर पड जायेगा। क्यो कि इस वक्त उत्तर प्रदेश विधानसभा मे 403 और विधानपरिषद में कुल 100 सदस्य है। यदि सभी विधायक इस सुविधा का लाभ लेते है तो उत्तर प्रदेश के राजकोश पर 100 करोड़ साठ लाख का बोझ पडना लगभग तय है। क्यो कि 20 लाख की इस बहती गंगा में भला कौन माननीय अपने हाथ नही धोना चाहेगा।

दरअसल देश की राजनीति और राजनेता जिस राह पर चल निकले है उस देखकर ऐसा लगता है कि आज की राजनीति और राजनेताओ में कोई आम आदमी का हमदर्द नही सब को अपनी अपनी फिक्र है यदि हम उत्तर प्रदेश में 2012 में दोबारा विधायक बनने वाले 230 विधायको की बात करे तो जिन विधायको क पास 2007 में औसत संपत्ति 98 लाख रूपये थी उन विधायको की 2012 में औसतन संमत्ति दो करोड़ तक पहुॅच गई यानि दोबारा बने विधायको की ये संपत्ति 217 प्रतिशत तक बढी। आज राजनीति में कितना भ्रष्टाचार पनप और फल फूल है इसे हम बंद आंखे से भी देख सकते है। आज अन्ना हजारे और बाबा रामदेव देश में फैले भ्रष्टाचार के लिये चिंतित है तो सही है, लड़ रहे है तो सही लड रहे है। दरअसल आज देश की जिन संस्थाओ को तत्काल सुधार की आवष्यकता है वो है देश की राजनीतिक पार्टिया। देश की न्याय पालिका को देश की ऐसी तमाम राजनीतिक पार्टियो को पारिवारिक संस्था या जेबी संगठन के रूप में नही चलने देना चाहिये, बल्कि इन्हे हर एक नागरिक के लिये उपलब्ध बनाया जाना चाहिये ताकि वो जन्म के बजाये अपनी काबिलियत के आधार पर उस संगठन के विभिन्न पदों पर आरूढ हो सके।

ये सही है कि एक विधायको को अपने समर्थको, निर्वाचन क्षेत्र के मतदाओ की हर रोज सैकडो सस्याओ से दो चार होना पडता है। साथ ही समाज में दबे कुचले वंचित-निर्धन परिवारो में शादी विवाह, जन्म मरण पर शामिल होने के साथ ही उन की आर्थिक सहायता करनी पडती है, प्राकृतिक आपदा आने पर तत्काल पीडित परिवारो की मदद को भी विधायक को अपने क्षेत्र में जाना पड़ता है। सरकार ये मानती है कि उस की सरकार में कुछ गरीब विधायक भी है जिन का उसे ध्यान रखना चाहिये तो ये एक अच्छी सोच है पर ऐसा है नही, फिर भी जो विधायक अपना वाहन खरीदने में सक्षम नही है उन की गाडी की समस्या के निदान के लिये सरकार अलग से बजट बना सकती थी या फिर ऐसे विधायको को ब्याजमुक्त ऋृण देने के साथ कर मुक्त गाडिया दिलवाई जा सकती थी। यदि जनता के विकास के पैसे से माननीय विधायको को अखिलेश सरकार लग्जरी गाडिया बाट देगी तो प्रदेश का विकास कैसे होगा क्या अखिलेश इस बात का जवाब दे सकते है।

1 COMMENT

  1. मैं कल चंडीगढ़ से मेरठ आ रहा था.कर्नल से मेरठ का सीधा रास्ता लगभग चार साल पहले बना था. कर्नल में रस्ते पर खड़े पुलिस के सिपाही से पूछने पर उसने बताया की सड़क अच्छी है. शायद वो सही कह रहा था क्योंकि जहाँ तक हरयाणा की सीमा थी वहां तक सड़क एकदम चकाचक थी. गाडी भी सौ किलोमीटर से ऊपर दौड़ रही थी. लेकिन ये सफ़र जल्दी ही टूट गया. जैसे ही उत्तर प्रदेश की सीमा प्रारंभ हुई सड़क का बुरा हाल हो गया और तीस किलोमीटर की स्पीड पकड़ना भी कठिन हो गया. तिस पर पूरे रस्ते में घुप्प अँधेरा. ऐसे में उस अँधेरी सड़क पर उबड़ खाबड़ रस्ते में परिवार के साथ सफ़र करना वास्तव में अंग्रेजी के ‘सफ़र’ करने जैसा ही था. ये प्रसंग मैं इसलिए लिख रहा हूँ की लगभग चार माह पूर्व जब अखिलेश ने सत्ता की बागडोर संभाली तो सबको ऐसा लगा की एक युवा तकनीकी एवं प्रबंधन की शिक्षा देश विदेश में लेने वाला शायद इस ‘उलटे प्रदेश’ की भाग्यरेखा को बदल्देगा और प्रदेश की गिनती भी शायद ‘उत्तम प्रदेश’ में होने लगेगी. लेकिन चार माह में ही ये सपना चूर हो चूका है. न विकास, न कोई ठोस योजना, न कोई नयी पहल और न ही भविष्य के प्रति आश्वस्तिकारक कोई कार्य. राजीव गाँधी ने भी बड़ी उम्मीदे जगाई थीं और लोगों ने उस पर भरोसा करके लोकसभा में ४१५ सीट दे दी थीं. नतीजा? बोफोर्स कांड, पनडुब्बी कांड और विकास का कोई प्रयास नहीं. क्या इसी प्रकार सर्कार चलाकर २०१४ या? २०१३ में लोकसभा में सपा का परचम लहराने का ख्वाब देख रहे हैं. मत भूलो, ये जो पब्लिक है सब जानती है.

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