अक्षय तृतीया पर्व का धार्मिक महत्व

9 मई पर विशेष:-

मृत्युंजय दीक्षित
भारतीय संस्कृति एवं परम्परा मंे हर महीने व दिन कोई न कोइ्र्र महान पर्व अवश्य पड़ता है तथा उसक विशेष महत्व होता है। इसी कड़ी में वैशाख मास में शुक्लपक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है जिसका अपना विशेष महत्व हैं । अक्षय तृतीया की तिथि अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गयी है तथा इस तिथि को ज्योतिषीय आधार में अबूझ मुहूर्त भी माना गया है। इस दिन भारतीय परम्परा में माना गया है कि किसी भी प्रकार का शुभकार्य किया जा सकता है। इस दिन विवाह, मुंडन से लेकर किसी भी प्रकार की खरीदारी से लेकर नये व्यापार दुकान का शुभारम्भ भी किया जा सकता है । लेकिन इस बार की तिथि इसलिए अत्यंत महत्वपूर्ण हो गयी है कि इस बार शुक्रास्त होने के कारण विवाह आदि शुभ मांगलिक काय वर्जित हंै। अक्षय तृतीया के दिन किया जाने वाला तप, पूजा, दान आदि कई गुना अर्थात अक्षय फल देने वाले होते हैं।
अक्षय तृतीया अपने इतिहास में एक ऐतिहासिक तिथि है तथा अपने आप में कई ऐतिहासिक घटनाओं को भी समेटे है। कहने को तो हर महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि महत्वपूर्ण तथा अतिशुभ मानी गयी है लेकिन वैशाख मास की अक्षय तृतीया का विशेष महत्व हैं। मान्यता है कि यह तिथि देवताओं को अत्यंत प्रिय है। भविष्यपुराण के अनुसार इस तिथि को युगादि तिथि भी कहा गया है। अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग , त्रेतायुग का प्रारंभ माना गया है। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने नर, नारायण, हयग्रीव के साथ ही भगवान परशुराम जी का अवतरण भी इसी दिन हुआ था। ब्रहमाजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। इसी दिन बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित करके उनकी पूजा की जाती है और श्रीलक्ष्मीनारायण जी के दर्शन किये जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनाथ धाम के कपाट भी अक्षय तृतीया के दिन खुलते हैं और उत्तराखंड की ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व की यात्रा की शुरूआत भी इसी दिन से होती है। वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर में भी इसी दिन विग्रह के चरण दर्शन होते हैं।
जे. एम. हिंग के अनुसार तृतीया 41 घटी व 21 वल की होती है। धर्मसिंधु एवं निर्णय सिंधु ग्रंथों के अनुसार अक्षय तृतीया 6 घटी से अधिक होना चाहिये। पदमपुुराण के अनुसार इसी दिन महाभारत युद्ध का विधिवत समापन हुआ था और द्वापरयुग का समापन भी इसी दिन हुआ था। इस दिन किये गये किसी भी कार्य या वरदान का क्षय नहीं होता है। अक्षय तृतीया के पर्व का जैन धर्म में भी विशेष महत्व है। अइक्षय तृतीषके दिन लोग सोना, चांदी व जवाहरात सहित मकान दुकान गाड़ी व अन्य उपयोग की नयी वस्तु या उत्पाद खरीदते हैं। भारत में सोना चांदी के व्यापारी लोग अक्षय तृतीया का पर्व बहूत धूमधाम से मनाते हैं एक प्रकार से सोना – चांदी के व्यापारियों के लिये यह पर्व दीपावलि के समान ही होता है। शेयर बाजार में भी स्पेशल टद्रेडिंग की जाती है। अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम की जयंती मनायी जाती है। इस बार अक्षय तृतीया के अवसर पर उज्ज्ैान में सिंहस्थ महाकुंभ का पर्व चल रहा है। जिसके कारण सिंहस्थ महाकुंभ में अक्षय तृतीया के दिन होने वाले शाही स्नान की महत्ता काफी बढ़ गयी है। अभी हाल ही मंे सिंहस्थ महाकुंभ में एक बड़ा दुखद हादसा हो चुका है लेकिन उसके बाद भी सिहस्थ महाकुंभ की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आयी है।
अक्षय तृतीया के दिन इस बार एक अत्यंत महत्वपूर्ण खगोलीय घटना भी पड़ रही है। किसानों के लिए भी अक्षय तृतीया का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योकंकि अक्षय तृतीया पर नई फसलों आ जाती हैं और किसान वर्ग नई फसलों को उगाने की भी तैयारी प्रारम्भ कर देतंे हैं। एक प्रकार से यह पर्व अत्यंत ऐतिहासिक व धार्मिक हैै। इस दिन किसी भी प्रकार का दान, धर्म ,कर्म बेकार नहीं जाता ।

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