विविधा

ऊर्जा का वैकल्पिक स्त्रोत है शैवाल

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में संपन्न हुई अंतराष्ट्रीय विज्ञान संगोष्ठी में ऊभर कर आई यह बात

वाराणसी, 28 फरवरी (हि.स.)। शैवाल मानव जीवन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण और बहुगुणी है। यह न केवल खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग में लाई जा सकती है बल्कि गंदगी साफ करने तथा स्वास्थ्य की ह्ष्टि से भी विशेष महत्व रखती है। इसमें बंजर भूमि को उर्वर बनाने का माद्दा भी है। इसकी क्षमता अद्भुत है। यह कहीं भी किसी भी स्थिति में अपना अस्तित्व बचाने में सक्षम है। उक्त बात बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में विज्ञान दिवस की पूर्व संध्या पर तीन दिन से चल रही अंतर्राष्टन्ीय संगोष्ठी में उभर कर सामने आई।

वनस्पति विज्ञान विभाग के तत्वावधान में स्वतंत्रता भवन में आयोजित तीन दिवसीय शैवाल पर शोध विषयक अंतर्राराष्ट्रीय सम्मेलन में मुख्य अतिथि की आसंदी से बोलते हुए ओरेगन इंस्टीट्यूट ऑफ मेराइन बायोलॉजी (यूएसए) के पूर्व निदेशक प्रो. रिचर्ड डब्ल्यू कैस्टेनहोल्ज ने शैवाल की अनेक विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह खारे पानी, मरुस्थल, उच्च व कम ताप में भी अपना वजूद बचाए रहती है। प्रदूषण मुक्ति में तो यह सहायक है ही ऊर्जा का मजबूत स्त्रोत भी बन सकती है। उनका कहना था कि शैवाल मानव जाति का मित्र है। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. डी.पी. सिंह ने विभाग के उज्ज्वल इतिहास का जिक्र’ किया। भारत के सभी प्रदेशों सहित जापान, नीदरलैंड, आस्ट्रेलिया, कोरिया, फिनलैंड, स्पेन, रोमानिया, इग्लैंड, चीन आदि देशों से आए वैज्ञानिकों ने इस अंतर्राष्टन्ीय संगोष्ठी में शैवाल के मानव तथा जीव-जंतुओं के जीवन से जुडे विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला।

वहीं प्रो. रिचर्ड डब्ल्यू कैस्टेनहोल्ज सहित जापान से आए प्रोफेसर ओमारी, प्रोफेसर तकादे, प्रो. कवालो, प्रो. नाकामोटो, नीदरलैंड के प्रो. स्टॉल, आस्ट्रेलिया से आए प्रो. नीलन, प्रो. जयकोक जॉन, प्रो. किसिंग, यूके के प्रो. रिटन, प्रो. हेड, प्रो. हेज, कोरिया से आए प्रो. व्ही मॉक ओ, फिनलैंड के प्रो. सिवोनिल, प्रो. मारी आरो, स्पेन के प्रो. अबॉल, रोमानिया के एडेलियाल तथा चाइना के प्रो. लीव ने शैवाल को लेकर किए गए अपने विभिन्न शोधों पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि शैवाल विषम परिस्थितियों में किस तरह जीवित रहती है तथा यह पौधों के साथ मिलकर मानव जीवन के लिए कैसे एक सहयोगी की भूमिका निभाती है। संगोष्ठी में काई के बॉयोटेक्नॉलाजी प्रभाव को लेकर भी बात की गई, साथ ही उर्वरक व वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में इसके उपयोग पर भी प्रकाश डाला गया। विदेशों से आए कुछ वैज्ञानिकों का यह भी कहना था कि यह दवा के रूप में भी उपयोग में लाई जा सकती है और भोजन के स्थान पर इसका उपयोग कर स्वस्थ जीवन भी जिया जा सकता है। इससे सीवर के पानी को शुध्दा कर उपयोग में लाया जाना संभव है, साथ ही यह वातावरण के लिए भी मित्रवत है।

रविवार विज्ञान दिवस की पूर्व संध्या तक चले तीन दिवसीय इस इंटरनेशनल सिम्पोजियम में भारत के प्राय: सभी राज्यों के युवा वैज्ञानिकों ने भाग लिया। इसमें 232 पोस्टरों की प्रस्तुतियाँ हुईं, वहीं कुछ विदेशी विश्वविद्यालय के युवा वैज्ञानिकों ने भी अपने पोस्टर प्रस्तुत किए। भारत के प्रो. आप्टे भाभा इंस्टीट्यूट, प्रो. भट्टाचार्य इंदौर, प्रो. वीजे राव मुंबई, प्रो. टीए शर्मा विजयवाडा, प्रो. पीव्ही सुब्बाराव गुजरात आदि अनेक प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने भाग लिया। समापन कार्यक्र’म में यूके के प्रसिध्दा वैज्ञानिक प्रो. रिटन ने कहा कि भारत के अन्य विश्वविद्यालयों तथा शोध संस्थानों में ऐसे आयोजन होते रहना चाहिए। हिन्दुस्तान विज्ञान के क्षेत्र में बहुत अच्छा कार्य कर रहा है। नीदरलैंड के वैज्ञानिक प्रो. स्टॉल ने अपने वक्तव्य में कहा कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का वनस्पति विभाग पिछले 8 दशकों से शैवाल के क्षेत्र में न केवल भारत में अग्रणी है बल्कि विदेशों में भी हर वैज्ञानिक यहां के शोध कार्य से परिचित हैं। इग्लैंड के प्रो. हैज का कहना था कि शैवाल पर जो सम्मेलन आज यहां हुआ उसमें काई से संबंधित तमाम क्षेत्रों की चर्चा की गई है। हम चाहते हैं कि आगे कुछ विशेष क्षेत्र चुनकर जिसमें वैकल्पिक ऊर्जा, फोडर (पशुओं का चारा), फर्टिलाइजर्स या फिर अन्य विषय भी हो सकता है पर विस्तृत कार्य किया जाना चाहिए।

इस अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी के अवसर पर कार्यक’म सचिव प्रो. सुरेंद्र सिंह ने सभी अतिथियों का आभार माना तथा विदेशी और देश के वैज्ञानिकों को आश्वस्त किया कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का वनस्पति विज्ञान विभाग शैवाल तथा अन्य वनस्पतियों को लेकर गंभीर शोध कार्य करेगा। वहीं कार्यक्रम संयोजक प्रो. अश्विनी कुमार राय ने विदेशी वैज्ञानिक मेहमानों को आश्वस्त करते हुए कहा कि उनके सुझाव भारत के विज्ञान जगत के लिए महत्वपूर्ण हैं। बीएचयू का वनस्पति विभाग कोशिश करेगा कि उन्हें अमल में ला सके। यहाँ आए सभी सुझावों को यूजीसी, ह्यूमन रिसर्च सेंटर और साईंस टेक्नालॉजी केंद्रों को भेजेंगे।

इस संगोष्ठी में भारत के अनेक वैज्ञानिकों द्वारा आपसी सहयोग बनाकर शैवाल के क्षेत्र में नयी शोध परियोजनाओं पर कार्य करने की बात भी उभर कर सामने आयी। इस मौके पर शोध पत्रिका का विमोचन भी किया गया। विभागाध्यक्ष प्रो. बीआर चौधरी ने विभाग की उपलब्धियां बताईं। विषय स्थापना आयोजन सचिव प्रो. सुरेंद्र सिंह, स्वागत संयोजक प्रो. एके राय, संचालन डॉ. नंदिता घोषाल व धन्यवाद ज्ञापन प्रो. आरके अस्थाना के द्वारा किया गया।