अंतिम दौर का चुनाव और शाह को क्लीन-चिट

-प्रवीण गुगनानी-
amit shah

अमित शाह को क्लीन चिट -बनाम- छद्म सेकुलरों के हाथ से एक और तोते का उड़ना वर्तमान में चल रहे लोकसभा चुनावों में सीबीआई के इशरत जहाँ मामले में अमित शाह को क्लीन चिट देने के निर्णय की टाइमिंग ही एक मात्र तथ्य है जो नमो के चमकते भाग्य के अनुसार सुखद सही तो आया किन्तु समय पर नहीं आया! देशभर में चल रहे लोकसभा चुनावों के मध्य किन्तु 90% सीटों यानि 502 सीटों पर मतदान हो जाने के बाद इस निर्णय के आने से बढ़े नैतिक बल का चुनावी लाभ नमो टीम नहीं ले पाएंगी! यदि यह निर्णय लोकसभा चुनावों के पूर्व या मध्य में भी आ गया होता तो नमो टीम जिसे इस चुनाव में सबसे अगड़ा खिलाड़ी माना जा रहा है। अब की स्थिति से बहुत सुरक्षित और बहुत आगे भी होती और कांग्रेस सहित समूचे विपक्ष के तीखे और अब झूठे साबित हो गए आरोपों पर तीखे व्यंग्य सुनने से बच गई होती.

पिछले दिनों नरेन्द्र मोदी को गुजरात दंगों के सन्दर्भों में न्यायालय से मिली राहत और अब इशरत जहां मामले के सीबीआई के इस ताजा निर्णय ने भारतीय राजनीति में चल रही एक अंतर्कथा को उजागर कर दिया है. सीबीआई के हाल में दिए गए निर्णय में इशरत जहां मामले में सीबीआई के विश्वास मीणा ने सम्मानपूर्वक अमित शाह का नाम लेते हुए उनके विरुद्ध सीबीआई द्वारा आरोप पत्र दाखिल न किये जाने का निर्णय दिया. कांग्रेस द्वारा सतत नमो टीम और अमित शाह के चरित्रहनन के लिए लिखी जा रही अंतर्कथा का मुख्य चरित्र (दुश्चरित्र) स्वयं कांग्रेस ही है जो अपने विकास कार्यक्रमों, प्रशासनिक एजेंडे, भ्रष्टाचार और सुशासन के मुद्दों को भूलकर केवल गुजरात दंगों, इशरत एनकाउन्टर मामले और महिला जासूसीकाण्ड के आधार पर नमो टीम को घेरने के भरोसे ही लोकसभा चुनाव की नैया पार करने की कल्पना में डूब गई थी. अब जब सीबीआई ने इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले में साक्ष्यों के घोर अभाव का हवाला देते हुए नरेन्द्र मोदी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह को क्लीन चिट दे दी है तो स्पष्ट ही लगता है कांग्रेस के हाथों का लगभग अंतिम तोता भी उड़ गया है और चेहरे का रंग भी! वैसे नरेन्द्र मोदी एंड टीम को घेरने के अभियान में कांग्रेस और समूचे छद्म धर्मनिरपेक्षता वादियों के बहुत से छद्म तोते समय समय पर उड़ते रहे हैं और संभवतः कांग्रेस के हाथों का यह लगभग अंतिम तोता भी उड़ ही गया है. बात केवल यहीं ख़त्म नहीं हो रही है, आगे सीबीआई के अधिकारी मीणा ने कहा कि “पूरे सम्मान के साथ कहा जा रहा है कि गुजरात के पूर्व गृह राज्यमंत्री अमित शाह के विरुद्ध इस मामले में आरोपपत्र पेश नहीं किया जा रहा है” और साथ ही उनके द्वारा इशरत जहां के साथ मारे गए जावेद शेख उर्फ़ प्राणेश पिल्लई के पिता गोपीनाथ पिल्लई की ओर से दायर याचिका भी रद्द करने की मांग की गई है”.

यदि हम इशरत जहां मामले का सहज-सामान्य अध्ययन करें तो पायेंगे कि किस प्रकार इस मामलें की नोंक पर रखकर अमित शाह की चरित्र और राजनैतिक ह्त्या का षड्यंत्र रचा गया था. 2004 में घटित इशरत जहाँ एवं तीन अन्य की फर्जी मुठभेड़ में ह्त्या के आरोप में शिकायतकर्ता जावेद शेख के पिता की दायर याचिका में कभी मोदी के कथित तौर पर नजदीकी रहे डीजी वंजारा के त्याग पत्र का जिक्र किया है और आरोप लगाया था कि राज्य सरकार ने इस मामले में जेल में बंद आरोपी पुलिस अधिकारियों को राज्य की नमो सरकार ने सरंक्षण नहीं दिया था. इस याचिका में जमानत पर चल रहे अमित शाह पर यह भी आरोप लगाया गया था कि जेल में बंद आरोपी पुलिस अधिकारियों ने राज्य सरकार की कथित नीतियों का ही पालन किया था. हाल ही में शाह को अत्यधिक राहत पहुंचाने वाले इस निर्णय में कथित तौर पर चर्चित गुजरात पुलिस के आयुक्त डीजी बंजारा के त्यागपत्र का भी उल्लेख किया गया है. बंजारा ने अपनें त्यागपत्र में शाह के सम्बन्ध में कहा था कि वे नमो को प्रभावित करने वाली एक बुराई है! किन्तु अमित शाह के विरुद्ध आरोप पत्र पेश नहीं करने के अपने इस निर्णय में सीबीआई ने कहा है कि इस मामले में किसी भी प्रकार के तथ्य और साक्ष्यों का अभाव है. उल्लेखनीय है कि इस बहुचर्चित मामलें में यह क्रम और प्रपंच कोई नया नहीं है! इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ एवं हत्याकांड मामले में अमित शाह को कथित तौर पर केंद्र सरकार की योजना से फंसाये जाने की कलई तभी खुल गई थी जब जुलाई 2013 में भी एक विवाद सामने आया था और गृह मंत्रालय के पूर्व अंडर सेक्रेटरी आरवीएस मणि ने आरोप लगाया था कि सीबीआई उनपर अपने वरिष्ठ अधिकारियों को मिथ्या आरोपों में फंसाने के लिए दबाव बना रही है.

निरंतर खुलती कलई के इस गढ़े और मिथ्या रूप से रचे गए इस फर्जी मुठभेड़ और ह्त्या के मामले का निर्णय यदि लोकसभा चुनावों के पूर्व आ जाता तो निस्संदेह जनता के सामने अमित शाह और नमो टीम की छवि भंजन करने के कांग्रेसी प्रयास कुंठित और कुंद हो गए होते और चुनावी वातावरण नमो के पक्ष में और अधिक चमकदार और प्रभावी होता. नरेन्द्र मोदी ने भारतीय राजनीति के बहुत से मिथक तोड़े हैं और बहुत से नए बनाएं भी है; और सतत नए मिथक बनाते भी जा रहे हैं. वर्ष 2002 में नरेन्द्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बननें से लेकर हुए उदय के बाद से आज 12 वर्षों बाद तक राजनैतिक क्षेत्रों में नमो और उनकी टीम को चल रहा वितंडावाद और बिना अपराध का आरोप वाद एक अंधड़ की तरह चलाया जा रहा है. सर्वविदित है कि नरेन्द्र मोदी की गुजरात मॉडल की विकास गाथा और गोधरा हत्याकांड से लेकर गुजरात दंगों की कथाओं के बवंडर और चहुंओर से घिरने के के मध्य भी नरेन्द्र मोदी ने विरोधियों पर बढ़त बनाए रखी. नमो ने अपने पहले कार्यकाल में उल्लेखनीय रूप से और फिर बाकी के कार्यकाल में स्वाभाविक रूप से कठोर हिंदुत्व के पैरोकार होने के साथ-साथ सख्त प्रशासक की छवि बनाई और गुजरात में किसी भी प्रकार के दंगे या सामाजिक सौहाद्र बिगड़ने नहीं देनें का नया कीर्तिमान भी बनाया. नमो के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह और उनकी साथी टीम ने बड़ी ही व्यवस्थित, पैनी किन्तु साफ़ स्वच्छ योजना पर चलते हुए प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के माध्यम से नमो के कार्यों, योजनाओं, विकास और उनकी भावी योजनाओं के ब्लूप्रिन्ट्स को जनता के सामने रख-रखकर नमों को लब्ध ख्यात कर दिया तो विरोधियों का चेतना, जागृत होना स्वाभाविक ही था. नमो के इन बारह वर्षों के मुख्यमंत्रित्व की सबसे बड़ी ख़ास बात तो यह ही रही कि इन बारह वर्षों में दस वर्षों तक उन्हें मां-बेटे चलित मनमोहन सरकार से हर मोर्चे पर जूझते रहना पड़ा. इस सरकार ने हरसंभव वह प्रयास किया, जिससे गुजरात विकास का क्रम दुष्प्रभावित होता. कांग्रेस के रणनीतिकारों ने इस बढ़ते खतरे को वर्ष 2007 के आते-आते तक भलीभांति पहचान लिया था और यही कारण था कि बहुत ही व्यवस्थित रूप से गोधरा घटना का गलत आकलन और विश्लेषण करने के साथ-साथ इसके साक्ष्यों को भी छेड़ा-बिगाड़ा गया. इस घटना के सामाजिक विश्लेषण और कानूनी पहलुओं को समझने के स्थान पर केंद्र की संप्रग सरकार ने और देश में कायर्रत अन्य तथाकथित छद्म धर्मनिरपेक्षता वादियों ने नमो के विरूद्ध तरह-तरह के प्रपंच, वितंडे और हथकंडे अपनाएं. नमो की बढ़ती लोकप्रियता और भाजपा द्वारा निरंतर नमो को राष्ट्रीय मंचों पर अपने प्रमुख चेहरे के रूप में पेश करने के निहितार्थों को कांग्रेस के रणनीतिज्ञ भलीभांति समझ चुके थे। फलस्वरूप उन्होंने भी इशरत जहां एनकाउन्टर केस जैसे मामलों को खोजना और उन पर होमवर्क करके येन-केन प्रकारेण नमो को और उनकी टीम के महत्वपूर्ण व्यक्तियों को लक्ष्य बनाना प्रारम्भ कर दिया था। इशरत जहां एनकाउन्टर मामले में नरेन्द्र मोदी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह का फंसना, उस कुत्सित अभियान का ही हिस्सा था जो संभवतः अब समाप्त होने को है.

1 COMMENT

  1. बहुत प्रयास के बाद भी सत्य मलिन नहीं हुआ।
    झूठे आरोप लगाने वाले लोगों पर आवश्यक क़ानूनी होनी चाहिए.
    आतंकवादी को अपना रिश्तेदार (बिहार की बेटी) बताने वाले नेतागण का बहिष्कार होना चाहिए.

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