विपिन किशोर सिन्हा
साधु, चोर और लंपट, ज्ञानी,
जस अपने तस अनका जानी।
साधु, चोर, लंपट और ज्ञानी, अपने समान ही औरों को भी समझते हैं।
यह कहावत अन्ना हजारे पर शत-प्रतिशत खरी उतरती है। अन्ना जन्मजात सन्त हैं, बाल ब्रह्मचारी हैं, सत्याग्रही हैं, भारत माता के पुजारी हैं और महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी हैं। लेकिन यही बातें उनके सलाहकारों पर लागू नहीं होतीं। वे सभी अपना राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हैं और इस काम के लिए अन्ना के साफ सुथरे चरित्र का दोहन कर रहे हैं। अन्ना के सलाहकार नंबर-१ हैं – प्रशान्त भूषण। प्रशान्त जी कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह की तरह अपने विवादास्पद बयानों के लिए कुख्यात हैं। वे जब चुप रहते हैं, तो बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन जब बोलते हैं, तो जहर उगलते हैं। पाकिस्तान, इस्लामी आतंकवाद और नक्सलवाद के प्रबल समर्थक प्रशान्त जी ने अभी हाल ही में बयान दिया था कि कश्मीर से भारत को अपनी सेना को पूरी तरह हटाकर जनमत संग्रह के माध्यम से कश्मीर को आज़ादी दे देनी चाहिए। जिस युवा शक्ति ने अन्ना के लिए ऐतिहासिक अगस्त क्रान्ति की थी, उसी शक्ति को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि दिनांक १२ अक्टुबर को प्रशान्त भूषण के सुप्रीम कोर्ट स्थित चैंबर में घुसकर लात-घूंसों से उनकी जबर्दस्त पिटाई कर दी। युवकों के इस व्यवहार की प्रशंसा नहीं की जा सकती, लेकिन उन्हें यह काम करने के लिए प्रशान्त भूषण ने ही मज़बूर किया था। कश्मीर के मुद्दे पर प्रशान्त जी का वह देशद्रोही वक्तव्य वन्दे मातरम और भारत माता की जय के साथ अन्ना की जयकार बोलने वाले समस्त युवा वर्ग को अत्यन्त आपत्तिजनक लगा है। यह दुर्घटना भावों की अभिव्यक्ति के रूप में आई है। यह बात और है कि तरीका प्रशंसनीय नहीं था। लेकिन कल्पना कीजिए कि अगर प्रशान्त भूषण चीन में होते और तिब्बत की आज़ादी के विषय में ऐसी ही राय जाहिर करते, तो क्या होता?
अन्ना जी ने प्रशान्त भूषण को अपने विवादास्पद बयान के लिए माफ़ी मांगने का कोई निर्देश नहीं दिया है, जबकि उनसे ऐसी अपेक्षा थी। उनकी चुप्पी को प्रशान्त भूषण के बयान का समर्थन न समझ लिया जाय, अतः उन्हें स्पष्ट रूप से उस बयान की निन्दा करनी चाहिए और अविलम्ब प्रशान्त भूषण को अपनी टीम से निकाल बाहर करना चाहिए। प्रशान्त भूषण के बयान पर अन्ना की चुप्पी उनके करोड़ों युवा भक्तों में मतिभ्रम की स्थिति पैदा कर देगी।
अन्ना स्वामी अग्निवेश पर भी बहुत विश्वास करते थे। अग्निवेश २१ अगस्त, २०११ तक टीम अन्ना के सक्रिय सदस्य थे। भला हो किरण बेदी का जिनकी खुफ़िया दृष्टि के कारण अग्निवेश बेनकाब हुए। वे टीम अन्ना नहीं, टीम सिब्बल के एजेन्ट थे। कपिल सिब्बल से स्वामी अग्निवेश की गोपनीय बातचीत का आडियो-वीडियो टेप आज भी U-Tube पर उपलब्ध है।
अन्ना के तीसरे विश्वासपात्र हैं – अरविन्द केजरीवाल। इनका अथक प्रयास है कि जनलोकपाल बिल में एन.जी.ओ., मीडिया और कारपोरेट घराने शामिल न होने पाएं। वे अपने को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टीस और प्रधान मंत्री से भी उपर मानते हैं। ज्ञात हो कि जनलोकपाल बिल का जो मसौदा टीम अन्ना द्वारा पेश किया गया है उसमें प्रधान मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को शामिल करने का तो प्रावधान है लेकिन एन.जी.ओ., मीडिया और कारपोरेट घराने को बाहर रखने की सिफारिश की गई है। कारण है टीम अन्ना के अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और किरण बेदी के द्वारा कई एन.जी.ओ. संचालित होते हैं जिन्हें कारपोरेट घरानों से करोड़ों रुपए प्राप्त होते हैं। इन्हें ईसाई मिशनरियों, इस्लामी आतंकवादियों और नक्सलवादियों की तरह विदेशों से भी अकूत धन प्राप्त होते हैं। प्रसिद्ध अंगेरेजी पत्रिका OUTLOOK ने अपने १९.९.११ के अंक में अमेरिका के फोर्ड फाउन्डेशन से वित्तीय सहायता प्राप्त कई एन.जी.ओ. के नाम का खुलासा, प्राप्त रकम के साथ किया है। अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया द्वारा संयुक्त रूप से चलाए जाने वाले एन.जी.ओ. ‘कबीर’ ने फोर्ड फाउन्डेशन से ३,९७,००० डालर प्राप्त किए। अन्य लाभार्थियों की सूची निम्नवत है –
१. योगेन्द्र यादव (CSDS) – 3,50,000 डालर
२. पार्थिव साह (CMAC) – 255000 डालर
३. नन्दन एम निलकेनी (NCAER) – 230000 डालर
४. अमिताभ बेहर, National Foundation for India – 2500000 डालर
५. ग्लेडविन जोसफ (ATREE) – 1319031 डालर
६. किनशुक मित्रा (WIN ROCK) – 800000 डालर
७. संदीप दीक्षित (CBGA) – 650000 डालर
८. इन्दिरा जयसिंह (Lawyers’ Collective) – 1240000 डालर
९. Shiwadas Centre for Advocacy & Research – 500000 डालर
१०. प्रताप भानु मेहता (Centre for Policy Research) – 687888 डालर
११. जे. महन्ती (Credibility Alliance) – 600000 डालर
१२. JNU Law & Governance – 400000 डालर
फोर्ड पाउन्डेशन के अतिरिक्त इन लोगों ने कोका कोला और लेहमन ब्रदर्स से भी करोड़ों रुपए प्राप्त किए हैं। आजकल एन.जी.ओ. चलाना बहुत फ़ायदे का धंधा है। इसपर मन्दी का असर नहीं पड़ता है। मनीष सिसोदिया जी टीवी के कर्ताधर्ता हैं। इन्होंने अन्ना आंदोलन में सभी न्यूज चैनलों द्वारा रामलीला मैदान के कार्यक्रमों के २४-घंटे के कवरेज की प्रशंसनीय अभूतपूर्व व्यवस्था की थी। प्रस्तावित जनलोकपाल बिल की परिधि से एन.जी.ओ., मीडिया और कारपोरेट घराने को बाहर रखने का यही मूल कारण है।
अन्ना के एक और विश्वस्त सहयोगी हैं, पूर्व कानून मंत्री शान्तिभूषण। वे मुकदमा कम लड़ते हैं क्रिकेट की तर्ज़ पर मुकदमा फिक्स ज्यादा करते हैं। मुलायम सिंह और अमर सिंह के साथ एक मुकदमें के लिए २ करोड़ रुपए के खर्चे में सुप्रीम कोर्ट से मनपसन्द निर्णय दिलवाने संबन्धित उनकी बातचीत का व्योरा कुछ ही महीने पूर्व एक सीडी के माध्यम से सभी न्यूज चैनलों ने प्रसारित किया था। मुलायम ही नहीं, उत्तर प्रदेश की वर्तमान मुख्य मंत्री मायावती के भी वे कानूनी सलाहकार हैं। स्मरणीय है कि ये दोनों आय से अधिक संपत्ति रखने के मामलों में सुप्रीम कोर्ट में कई मुकदमें लड़ रहे हैं। अन्ना जी भ्रष्टाचार का जड़-मूल से उन्मूलन चाहते हैं और उनके सलाहकार मुलायम और मायावती जैसे लोगों को संरक्षण देते हैं। कैसा विरोधाभास है! घोर आश्चर्य तो तब हुआ जब अन्ना जी के सलाहकारों ने उन्हें तो आमरण अनशन पर बैठा दिया लेकिन स्वयं एक दिन का प्रतीक अनशन भी नहीं किया। किरण बेदी तो रंग बिरंगे परिधान बदलने में ही व्यस्त रहीं। हद तो तब हो गई जब उन्होंने अन्ना जी की उपस्थिति में उसी मंच से दुपट्टे की सहायता से तरह-तरह के नाटक अभिनीत करना शुरु कर दिया। अन्ना जी इतने सरल हृदय और शरीफ़ हैं कि वे सबमें अपनी ही छवि देखते हैं। इसे गुण भी कह सकते हैं और सद्गुण विकृति भी। अन्ना जी, चाटुकार और स्वार्थी सलाहकारों से होशियार रहने की जरुरत है, क्योंकि ———-
ALL IS NOT WELL
श्री सिन्हा के लेख पर जो टिप्पणी मैंने की थी उसके उत्तर में उन्होंने मेरे निजी मेल पर एक पत्र भेजा था जो कि मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ताकि प्रवक्ता के प्रवुद्ध पाठक वृन्द भी इसको देख सके.ऐसे जहां तक मेरा विचार है ,प्रवक्ता में प्रकाशित लेख या टिप्पणियों का उत्तर यहीं दिया जाना चाहिए,जिससे अधिक से अधिक लोग इसका लाभ उठा सकें.अब हम लोग पहले सिन्हा जी के उत्तर का अवलोकन करें.
“अगर शासन प्रणाली ईमानदार होती तो जनलोकपाल की क्या आवश्यकता थी? इस शासन प्राणाली पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए ही अन्नाजी लोकपाल चाहते हैं। लेकिन लोकपाल विधेयक को ड्राफ़्ट करने वाले अगर प्रशान्त भूषण, शान्ति भूषण, अग्निवेश और अरविन्द केजरीवाल जैसे लोग होंगे, जो अपने निजी हितों को ज्यादा प्रश्रय देते हैं, तो इस बिल के दुष्परिणामों की आसानी से कल्पना की जा सकती है। अन्नाजी के रूप में हमें एक ऐसा राष्ट्र नायक मिला है जिसकी आवाज़ पूरा हिन्दुस्तान बड़ी श्रद्धा से सुनता है। अगर वे सावधानी नहीं बरतेंगे, तो ये सलाहकार उनको ले डूबेंगे। तब ऐसी स्थिति आ सकती है कि जनता राजनीतिक नेताओं की तरह समाजसेवियों पर भी अविश्वास करना शुरु कर देगी। यह स्थिति भयावह होगी जो देश के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।
जहां तक एन.जी.ओ. के लिए विदेशी पैसा प्राप्त करने की बात है, विदेशों से धन प्राप्त करना बहुत कठिन काम नहीं है. भारत की सारी कम्युनिस्ट पार्टियां रुस और चीन से धन प्राप्त करती रही हैं। इस्लामी मदरसों और आतंकवादियों को पाकिस्तान की आई.एस.आई. से धन प्राप्त होने के ढ़ेर सारे प्रमाण हैं। इसाई मिशनरी विदेशों से लगातार धन प्राप्त करते हैं। कोई भी विदेशी एजेन्सी बिना अपने विशेष स्वार्थ के किसी को एक पैसा भी नहीं दे सकती। यह साफ़ है कि उनका स्वार्थ अपने देश से ही जुड़ा होगा, भारत से नहीं। अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और किरण बेदी द्वारा संचालित एन.जी.ओ. के बजट करोड़ों-अरबों में हैं। इन्हें क्यों लोकपाल के दायरे में नहीं आना चाहिए? गांधीजी स्वच्छ चरित्र वालों को ही अपने साथ रखते थे। अन्नाजी प्रखर गांधीवादी हैं, इसलिए उनसे अपेक्षा है कि गलत लोगों से दूरी बनाएं। प्रशान्त भूषण को विवादस्पद किसी और ने नहीं बनाया, बल्कि उनके स्वयं के बयानों ने ही बनाया। इस मुद्दे पर अन्नाजी की चुप्पी अखरने वाली है। हिन्दुस्तान में ईमानदार और स्वच्छ छवि वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं की कमी नहीं है। अगर आप प्रशान्त भूषण से दामन नहीं छुड़ा सकते, तो किस मुंह से मनमोहन सिंह से कह सकते हैं कि चिदंबरम को मंत्रिपरिषद से बाहर कीजिए?”
अब आईये इनके द्वारा उठाये गए मुद्दों पर विचार करें.अब अगर इनको ध्यान से देखा जाए तो पता चलेगा कि इन्होने जयादातर उन्ही बातों को दुहराया है,जिनको वे पहले भी कह चुके हैं .हाँ उन्होंने एन्जीओस को मिलाने वाले पैसे में इस्लाम और कयुनिष्ट रूस का नाम अवश्य जोड़ा है.मेरे अल्पज्ञान के अनुसार तो ऐसे एनजीओ एक तो हैं नहीं,दूसरे अगर हों भी तो अन्ना टीम के किसी सदस्य का उससे ताल्लुक है ऐसा मुझे नहीं लगता.रह गयी बात इन सब पर लगाम लगाने कि तो मैं फिर दुह्राताहूँ कि इमानदार शासन तंत्र इन सब पर अंकुश लगा सकता है और शासन तंत्र को ईमानदार बनाने के लिए ही जन लोक पाल या किसी अन्य सशक्त लोकपाल बिल कि आवश्यता है.ऐसे भी कहा जाता है कि एक ही साधे सब सधे सब साधे सब जाए.रह गयी बात समिति से लोगों को हटाने कि तो इसका अवसर भी आ सकता है,पर अन्ना जी को हम लोग पहले समझे तो सही.प्रशांत भूषण के कश्मीर वाले वक्तव्य पर अन्ना जी अपनी टिप्पणी दे चुकें हैं पर आपने शायद देखा हीं नहीं..ऐसे तो आप बहुत ही व्यस्त व्यक्ति हैं पर तनिक भी फुर्सत हो तो मेरा लेख नाली के कीड़े पढिये शायद उसके बाद बहुत बातों का खुलासा हो जाए.
श्री सिन्हा ने जो मुद्दे उठायें हैं,वे मुझे काफी विवादास्पद लग रहे हैं.पहली बात व्यक्तित्व की है.अगर अन्ना हजारे की तरह का व्यक्तित्व ढूंढा जाये तो शायद दूसरा मिले ही नही.इसका मतलब यह हुआ कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन अकेले अन्ना हजारे ही चलायें.इन्हीं सब पहलुओं पर अपने ढंग से विचार करते हुए मैंने एक लिखा था,नाली के कीड़े(प्रवक्ता १ मई)आज भी जो हालात मैं देख रहा हूँ उससे लगता है कि मैंने ठीक ही लिखा था कि हमसब नाली के कीड़े हैं..
अब दूसरी बात आती है कारपोरेट,मिडिया और एनजीओ को लोकपाल बिल में शामिल करने कि तो मेरे विचार से तो ऐसा लगता है हम लोग या तो पूरी तरह कन्फ्यूज्ड हैं या जान कर अनजान बन रहे हैं.मिडिया हो या कारपोरेट या फिर एनजीओ ही क्यों न हो इन सब पर एक इमानदार शासन प्रणाली पूरी तरह अंकुश लगा सकता है.ऐसे मेरा किसी एनजीओ से सम्बन्ध नहीं रहा है,पर जहां तक मेरा ज्ञान है विदेशी दाताओं से पैसा लेना इतना आसान नहीं होता.बिना आपकी प्रमाणित विश्वस्तता के वहां से पैसा मिलना संभव ही नहीं है.ऐसे भारत में बहुत एनजीओ बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं.मान लीजिये कि वे नहीं भी कर रहे हों तो एक बार यदि हमारा शासन तत्र ईमानदार हो जाए तो ये सबको सुधरना ही पडेगा .उसके लिए किसी लोकपाल की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.
बेहद उम्दा लेख है. है कहीं भाड में ठंडक . तब तो हम सही आदमी को खोजते ही रह जाएंगे.
जाएं तो जेम कहां .लौट फिर कर धूमिल की वह प्म्क्तियाम याद आती हेम की
जिस जिस की पूछ उठाई ………….
जब मानवीय उपाय कुंद होने लगें तो धीरज रखी की प्रकृति उसका कोइ विकल्प देगी जैसे की जननायक जय प्रकाश जी नारायण …