दिल्ली से मुम्बई तक चली अन्ना की आंधी आखिर काँग्रेस और केंद्र सरकार का कुछ नही बिगाड़ पाई, जिस लोकपाल को लेकर अन्ना दिल्ली से मुम्बई जाकर लाखो खर्च कर के ये सोचकर अनशन पर बैठे थे कि सरकार द्वारा रचा गया लोकपाल पास न हो आखिरकार वो ही लोकपाल, सरकार का अपना बनाया लोकपाल, राजनेताओ को बचाने वाला लोकपाल, भ्रष्ट ग्रुप सी और डी के कर्मचारियो की सहायता करने वाला लोकपाल मंगलवार 27 दिसम्बर 2011 को संसद में धवनीमत से पास हो गया। और अन्ना अपने मकसद में फैल हो गयें। वही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ये दावा कर रहे है कि सरकार द्वारा पेश लोकपाल बिल पूरी तरह से सही है और इस बिल के पास होने से देश में फैला भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा, क्यो कि सरकार ने इस में भ्रष्टाचार के खात्मे हेतु तमाम कदम उठाये है। पर कहना पडेगे कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर हमारे सांसद और देश के राजनीतिक दल कितने गम्भीर है इस की झलक संसद में चली लोकपाल बिल पर बहस के दौरान अच्छी तरह से देखने को मिली। जहा एक ओर काँग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार स्थायी समिति द्वारा पेश लोकपाल बिल को खुद मियां मिठठू बन मजबूत लोकपाल बिल बताते हुए अपनी पीठ अपने आप थपथपा रही थी, जब कि पूरे विपक्ष ने इस बिल को त्रुटिपूर्ण नामुकम्मल करार देते हुए इसे सिरे से खारिज कर दिया।
मेरी एक बात आजतक समझ नही आई कि कुछ रानीतिक दलो और राजनेताओ को लोकपाल से इतना डर क्यो है। कल जब लोकसभा में लोकपाल-लोकायुक्त बिल पर बहस शुरू हुई तो भाजपा सहित तमाम विपक्षी पार्टियो ने बिल में कई खामिया गिनाकर सरकार पर निशाना साधा, हमारे देश के राजनीतिक लोग लोकपाल से इतने खफा इतने नाराज और डरे हुए क्यो है ? ये प्रशन मेरे मन में बार उमड़ रहा है। राजद प्रमुख लालू जी कहते है कि ‘ इस बिल के द्वारा पूरे सिस्टम को नेस्तनाबूद किया जा रहा है। इसे वापस स्टैंड़िग कमेटी को भेजा जाये। ये पारित होने लायक नही है और हम (सांसदो) के लिये ये डेथ वारंट है’। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव जी सांसद से इस मुद्दे पर वाक्आउट करते है और कहते है ‘ सरकार ये बिल जनता नही अपने हित के लिये ला रही है, मौजूदा बिल से सांसदो पर उंगली उठेगी वो दोबारा जनता क बीच कैसे जायेगे’। जद(यू) प्रमुख शरद यादव जी भी कहते है कि नौकरशाहो, सरकारी कर्मियो की वजह से देश चल रहा है सभी भ्रष्ट नही, कर्मियो पर लोपाल की तलवार लटकाने से कामकाज ठप हो जायेगा’। भाजपा की नेता प्रतिवक्ष सुषमा जी प्रधानमंत्री मनमोहन सिह जी की तारीफ करती है पर लोकपाल को असंवैधानिक बताती है। इन लोगो की बाते सुनकर मुझे कुछ कुछ समझ आ गया ये लोग बहुत बडे वाले मदारी है और पहॅुचे हुए राजनेता चूकी फरवरी में उत्त्र प्रदेश, पंजाब, गोवा, मणिपुर, उत्तराखंड़ में विधानसभा चुनाव होने है जिस के लिये चुनाव आयोग ने आचार संहिता भी लागू कर दी है, यानि भीख की भीख माईयो के दीदार भी, कहने का मतलब है पूरा देश देख भी रहा है सुन भी रहा है सरकार पर अतिरिक्त संसद के सत्र का बोझ बढ रहा है मौके का फायदा उठाओ बस ये ही सोच इन राजनीतिक दलो के लोगो ने अपनी गर्दन बचाने की भी सोची और जनता को अपनी मीठी मीठी बातो से लुभाने की भी, बस फिर क्या जनता के ये प्रतिनिधि जो कुछ भी बोले अपने अपने वोट बैंक के हिसाब से बोले।
भाजपा ने अल्पसंख्यको, अनुसूचित जाति/जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग एंव महिलाओ के लिये 50 प्रतिक्षत आरक्षण के मुद्दे पर आपत्ति अपने हिसाब से की क्यो कि वो अल्पसंख्यक आरक्षण का विरोध कर अपनी हिंदूवादी छवि को एक बार फिर से आमजनो तक पहुचाना चाहती है। दरअसल हमारे देश में अल्पसंख्यक के मायने मुसलमान से निकाला जाता है जब कि ऐसा कतई नही है देश कि लगभग 19 प्रतिशत आबादी अल्पसंख्यक आबादी आरक्षण के हाशिये पर है इस वर्ग में मुसलमानो के अलावा सिख, जैन, बौद्व, ईसाई देश की कई जातिया इस वर्ग में आती है। भारतीय संविधान के अनुसार देश में आरक्षण किसी भी समुदाय या वर्ण-वर्ग का विशेषाधिकार नही। चूकि कि देश के संविधान रचनाकारो की ये सोच और दृष्टि के आधार पर ही आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक , सांस्कृतिक तौर पर पिछड़ी और वंचित जातियो, समुदाय के लिये केवल 10 वर्ष का आरक्षण तय किया था। पर हमारे राजनेताओ की बदौलत कुछ राजनीतिक दलो ने इस का उपयोग वोट बैंक के हथियार के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, और धीरे धीरे ये राजनीतिक लाभ का बढिया हथियार साबित होने लगा और देश की सरीखी सम्पन्न जातियो जाट और गुर्जर भी आरक्षण के लिये देश में आन्दोलित हो गई। हम सब जानते है कि न्याय मूर्ति राजेन्द्र सच्चर आयोग हो या समय समय पर मुसलमानो के उत्थान के लिये गठित की गई समितिया सभी ने हर बार मुसलमानो की दयनीय स्थिति पर सुझाव दिये सारे आयोग और गठित समितिया इस सवाल पर एकमत है कि मुस्लिमो में शिक्षा का आभाव इस स्थिति का मुख्य कारण है। मुसलमानो की तरक्की के लिये कई कमिसन बने। कई आयोग गठित किये गये पर सिर्फ कागजो पर। आखिर मुसलमानो ने कौन सा बड़ा पाप किया है जो उन्हे जब भी आरक्षण मिलने का नंबर आता कुछ राजनीतिक पार्टिया उस में रोडा अटका देती है। आखिर लोकपाल बिल के जरिये सरकार देश की मुख्यधारा से पिछड़ चुकी कुछ जातियो को आरक्षण देना चाहती है तो इस में भाजपा सहित अन्य दलो को क्यो आपत्ति हो जाती है समझ नही आता।
40 सालो से लोकपाल का मामला का जिस प्रकार से अटका है ये राजनेता इसे इसी प्रकार अटकाए रखना चाहते है। इन लोगो को वास्तव में देश की चिंता नही है दरअसल इन सब लोगो को अपने बुढापे की फिक्र है और हर बार लोकपाल का मामला जहा से शुरू होता है, कई बहस कई अनशनो के बाद भी सरकार, विपक्ष, और अन्ना टीम के बीच गहरे मतभेदे और तीखे होते जनता और सरकार के बीच संवादो, के बाद भी दूर तक जाता हुआ दिखाई नही दे पा रहा है। देश के राजनेता वो चाहे किसी भी पार्टी के हो सरकार और लोकपाल के खिलाफ सिर्फ हंगामा कर के अपना उद्देष्य और अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते है। बुनियादी बात यह है कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था बनी ही इस लिये है कि तमाम मुद्दो पर लोकतान्त्रिक तरीको से चर्च हो सके और फैसले किये जाये। विधायी संस्थाए हमारे लोकतंत्र की सर्वोच संस्थाए है क्योकि यहॅा वे लोग होते है जिन्हे जनता चुनती है और जो जनता के प्रतिनिधि होने के नाते उस के प्रति जवाबदेह होते है। पर इन लोगो पर अभी से हावी होता लोकपाल का डर बता रहा है कि हमारे इन प्रतिनिधियो में कुछ न कुछ खोट है, अन्ना हजारे जिस प्रकार अनशन कर रहे है और देश की जनता उन का साथ दे रही है वो सही है या गलत इस का फैसला करना थोड़ा मुश्किल है पर जिस संसद को सांसद सर्वपरि बता रहें है वो भी जनता जर्नादन द्वारा ही स्थापित की जाती है।
भारतीय लोकतंत्र में बिना हिंसा किये किसी भी मुद्दे पर राह निकालने की तरकीब एकमात्र बातचीत ही है जो आज संसद में, संसद के बाहर, राजनीतिक मंचो पर, गली मोहल्लो में जारी है अभी जनता बडे सुकून और धैर्य के साथ सब कुछ देख और सुन रही है और शायद मन ही मन अपनी बारी आने का इन्तेजार कर रही है, कल जब देश की जनता अपनी बारी आने पर अपना फैसला सुनाए तो हो सकता है देश के कई राजनेता, कई राजनीतिक दल, और न जाने कितने वो लोग जिन लोगो ने लगभग जनता को सत्ता के घमंड़ और राजसी बिलासता के कारण आज बिल्कुल भूला दिया है। लालबत्ती लगी गाड़ियो के बजाये सड़क पर पैदल चलते नजर आये।
||ॐ साईं ॐ|| सबका मालिक एक है……..
लोकपाल पास अन्ना फेल…..भ्रष्टाचार पास ….लोकतंत्र फ़ैल
देश की जनता को सरकारी लोकपाल की और से अगले २०० वर्षो के लिए भ्रष्टाचार,आतंकवाद,जेहाद,महंगाई,गरीबी,बेरोजगारी,आरक्षण ,विदेशी कंपनिया और संस्कृति की मुबारकबाद …..और अंग्रेजी में “हेप्पी करप्शन”
सरकारी व्यापार भ्रष्टाचार
शादाब जफर‘शादाब’,बिल तो लटक गया.यह भी सत्य है कि राजनीति के दलालों पर अंकुश कसने वाला कोई भी बिल संसद में पारित हो ही नहीं सकता..यद्यपि जानकारों की दृष्टि में यह लोक पाल बिल बहुत कमजोर है,फिर भी यह नहीं पारित हो सका तो मजबूत लोकपाल बिल क्या पारित होगा?यह सही है कि बिल पर बहस के दौरान बहुत से चेहरों पर से नकाब उठ गए,पर उससे भी क्यां फर्क पड़ता है?
आप तो ऐसे बात कर रहे है जैसे आप कोई सुप्रीम कोर्ट के जज हो…..
मुझे नहीं लगता है की पत्रकारिता में इस तरह से केवल अपने ही विचारों को थोपा जाए…..