किशन बाबूराव उर्फ अण्णा हजारे का अनशन आज दसवें दिन भी जारी है। मंगलवार को संजीदा दिखने वाली सरकार ने अचानक ही इस मामले में यू टर्न लेते हुए टीम अण्णा को उसके हाल पर छोड़ दिया है। सरकार की ओर से टीम अण्णा से निपटने के लिए अब कुटिल रणनीतिकारों की मदद लेना आरंभ कर दिया गया है। दिल्ली पुलिस ने अब शिकंजा कसना आरंभ कर दिया है। कानून के उल्लंघन के अनेक मामलों की वीडियो क्लीपिंग्स पुलिस ने कब्जे में लेकर मंत्रणा की तैयारी कर ली है।
मंगलवार को टीम अण्णा और सरकार के बीच हुई बातचीत को सौहाद्रपूर्ण का दावा किया जा रहा था, वह अचानक ही बुधवार को रणभूमि में तब्दील हो गई। बैठक से लौटकर टीम अण्णा के सदस्य प्रशांत भूषण, अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी ने सरकार पर धमकाने का आरोप लगाया। टीम अण्णा का आरोप था कि सरकार द्वारा साफ कह दिया गया है कि अण्णा का अनशन सरकार का सरदर्द नहीं है। सरकार के इस रूख से टीम अण्णा की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलक आई हैं।
दूसरी तरफ सरकार की ओर से सलमान खुर्शीद का कहना है कि सरकार बातचीत को तैयार है, टीम अण्णा आए और चर्चा करे। खुर्शीद ने आरोप लगाया कि टीम अण्णा ही बातचीत छोड़कर गई थी। टीम अण्णा के आरोपों के जवाब में खुर्शीद ने कहा कि टीम अण्णा खुद ही तय करे कि उसे किससे बात करनी है। उन्होंने कहा कि सरकार क्या खामोशी से सारी बातें सुनने और मानने के लिए है? क्या सरकार को बोलने का हक नहीं है? सरकार अगर कुछ बोलती है तो टीम अण्णा उसे गलत तरीके से जनता के सामने लाती है।
कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि टीम अण्णा को मिलने वाले व्यापक जनसमर्थन से घबराकर अब सरकार ने टीम अण्णा से निपटने की जवाबदारी शातिर और कुटिल रणनीतिकारों को सौंप दी है। सूत्रों ने बताया कि इन्हीं के निर्देश पर दिल्ली पुलिस ने कानून तोड़ने के कुछ मामलों की फेहरिस्त बनाना आरंभ कर दिया है। दिल्ली पुलिस ने सर्वोच्च न्यायालय के रात दस बजे के बाद स्पीकर न बजाने के निर्देश का उल्लंघन, दिल्ली में वादे बावजूद भी मशाल जलूस निकालने और रामलीला मैदान में भड़काउ भाषण की वीडियो रिकार्डिंग अपने कब्जे में कर ली है। आज अपरान्ह आईटीओ स्थित दिल्ली पुलिस मुख्यालय में इस मसले पर आला अधिकारी सर जोड़कर बैठने वाले हैं।
लिम्ती, आप के विचार
उत्तम हैं
आप अब पर्पक्वा होते नज़र आ रहे है.
सरकार की नीयत शुरू से ही मामले को उलझाने और लटकाए रखने की रही है. आखिर जिन्हें वो बचाना चाहते है वो तो बच ही रहे हैं. जब उनका गुप्त अजेंडा अर्थात अपने लोगों के काले धन को ठिकाने बदलने का काम पूरा हो जायेगा तो आधा अधुरा लोकपाल बिल पास परा देंगे. लेकिन एक बार भावनाओं के वर्तमान ज्वार से अलग होकर ठन्डे दिमाग से सोचें की क्या लोकपाल बन जाने से भ्रष्टाचार व काले धन की समस्या समाप्त हो जाएगी. अन्नाजी की टीम शायद ये कहेगी की एक बार लोकपाल बन जाने दो उसके बाद और किसी मुद्दे पर विचार करेंगे. लेकिन कुछ विषय अनन्योआश्रित हैं. कला धन व भ्रष्टाचार भी ऐसे ही विषय हैं. यदि काले धन पर प्रहार किया जाये तो लोग काले धन को रखने से परहेज करेंगे. और साथ ही भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून बनाने से कालेधन के स्रोत पर भी प्रहार होगा. लेकिन एक और विषय भी महत्त्व पूर्ण है. हमारे यहाँ लागू संसदीय लोकतंत्र की मौजूद व्यवस्था में कानून बनाने की जो प्रक्रिया लागू है. उसमे सड़क पर कानून बनाने की व्यवस्था नहीं है. इसके लिए संविधान का भी परिवर्तन करना होगा. संविधान में बहुत सी खूबियाँ हैं. लेकिन कुछ चीजें जो विदेशी संविधानों से नक़ल की गयी हैं उनपर पुनर्विचार आवश्यक हो गया लगता है. देश एक जबरदस्त संक्रमण के दौर से गुजर रहा है. कुछ चीजें सामने हैं लेकिन कुछ और चीजों का अभी विकसित होकर सामने आना आवश्यक है.उम्मीद है की इस आन्दोलन के संचालाक्गन इन बिन्दुं पर मंच से अलग हटकर बेकरूम में बैठकर गंभीरता से विचार करना चाहिए.ऐसी कोई रीत कायम करते समय भविष्य में उसके परंपरा बन जाने से पड़ने वाले प्रभावों पर भी विचार किया जाये.
भ्रष्ट तंत्र के जाल को तोड़ पाना इताना आसान नही होगा। क्यों की मेरी विचार में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए पहली लडाई खुद से लडनी होगी,मौका न मिले तो सभी ईमानदार है पर मौका मिलने पर भी इमानदार रहना असल इमानदारी है।