विविधा

अन्ना का जादू और अद्भुत आन्दोलन

डॉ. राजेश कपूर, पारंपरिक चिकित्सक.

अन्ना के आन्दोलन को बुद्धि की कसौटी पर परखने वालों को गांधी जी के नमक सत्याग्रह को ज़रूर याद कर लेना चाहिए. तब भी अनेकों ने कहा होगा कि नमक और आज़ादी का क्या सम्बन्ध ? पर दूरद्रष्टा गांधी भारत के समाज की नब्ज समझते थे. उस समय के नेताओं में शायद एक मात्र गांधी ही ऐसे नेता थे जिन्होंने भारत के जन मानस को ठीक से समझा और उसे जगाने व आंदोलित करने में सबसे अधिक सफल हुए. भारत की संस्कृति और मानसिकता की समझ जनता को जोड़ने की उनकी अद्भुत सफलता का कारण रही. … अन्ना ने भारत के जन मानस को समझ कर तो यह आन्दोलन शुरू नहीं किया पर हुआ कमाल है. केवल अपनी संवेदनशीलता के स्वभाव और जान हित के संस्कारों के कारण वे इस संघर्ष में कूद पड़े. निस्वार्थ तपस्वी तो वे हैं ही, मृत्यु से वे डरते नहीं. उन्हें कोई खरीद नहीं सकता, कोई डरा नहीं सकता; हाँ कुछ देर तक उनकी सरलता का लाभ उठा कर उनका दुरूपयोग कर सकता है. पर वह भी कुछ देर तक.

किसी ने नहीं सोचा था कि भ्रष्टाचार का मुद्दा भारत को इतनी गहराई से आंदोलित करदेगा. आज देश में कितनी महंगाई है, इससे पहले भी तो अनेकों ने भ्रष्टाचार का मुद्दा काफी सशक्त ढंग से उठाया पर परिणाम इतने ज़बरदस्त नहीं आये, क्यूँ ? सीधे-सरल अन्ना में क्या चमत्कार है जो लोगों को भा गया ? अन्ना का चमत्कार है उनका निष्कलंक जीवन और समर्पण. एक बहुत बड़ा कारण है उनकी गहन साधना. कई-कई घंटों तक गहन साधना चार दशकों से भी अधिक समय से चल रही है. उसका मुकाबला ये स्वार्थी, नास्तिक, सेक्युलरिस्ट, आकंठ भोगों में डूबे बौने क्या करेंगे. उनकी ताकत है ब्रह्मचर्य, गहन साधना और छल-कपट रहित, देश सेवा से भरा कोमल भावुक ह्रदय. इस ताकत का मुकाबला यह भ्रष्ट, अनैतिक सरकार नहीं कर पाएगी.

अन्ना को ख़तरा तोप-बंदूक वाली सरकार से नहीं, उस जमावड़े से हो सकता है जो न तो समाज सेवी है और न देशभक्त है. इटली के नहीं तो अमेरिका या चीन के इशारों पर ‘भारत तोड़ो’ अभियान में जुटे लोग हैं और आज अन्ना का लाभ लेने के लिए उन्हें घेरे हुए है. पर आशा करनी चाहिए कि ये लोग भी समय आने पर ‘नग्न’ हो जायेंगे. ….

कुल मिलाकर इतना निश्चित है कि महर्षि अरविन्द, विवेकानंद की भविष्यवानियाँ आश्चर्यजनक रूप से सही साबित होती नज़र आ रहीं हैं. लक्षण कह रहे हैं कि सन २०१४ तक सचमुच भारत विश्व शक्ति होगा और भारत में शुद्ध राष्ट्रवादियों की सरकार होगी. अद्भुत, आल्हादित कर देने वाली परिस्थितियाँ प्रकट हो रही हैं. सारे आकलन धरे के धरे रह गए और भविष्य में भी ये पश्चिम प्रेरित मीडिया और विचारकों के आकलन धरे ही रह जायेंगे. अद्भुत, अविश्वसनीय घटता ही जाएगा.

आईये हम भी इस अभूतपूर्व इतिहास के केवल द्रष्टा नहीं, सक्रिय अंग बन कर जीवन को ऊर्जा और उत्साह से भर लें, इस जन्म को सार्थक कर लें ! अन्ना के आन्दोलन में अपना योगदान करके इस अधूरी-लंगड़ी आज़ादी को पूरी तरह प्राप्त कर लें. मेरी ५४ साल की धर्म पत्नी अभी-अभी कह कर गयी है की वह भी अन्ना के समर्थन में जेल जायेगी. मेरे मित्र डा. राजेन्द्र वर्मा के पत्नी उनसे कह रही है कि  वे ५-७ दिन की छुट्टी लेकर अन्ना के आन्दोलन में भाग लेने क्यूँ नहीं जाते, जाना चाहिए. …..

एक जादू. एक विचित्र, अदृश्य ऊर्जा है जो अन्ना के व्यक्तित्व से ऊर्जित होती है. उनके भाषणों में कोई विद्वत्ता, लछेदार भाषा, भविष्य के बड़े-बड़े सपने आदि कुछ भी तो नहीं होता. पर कुछ ऐसा होता है जो गहरे से दिल को छू जाता है. आखों को आंसुओं से भर देता है, दिल को द्रवित कर देता है, साधारण व्यक्ति में भी संकल्प शक्ति जगा देता है………

एक चमत्कार घट रहा है, जिसे देखने की हमारे मीडिया की समझ नहीं या आदत नहीं. लाखों-लाख लोग आन्दोलन में सड़क पर निकलते हैं, रात-रात भर जागते, नारे लगाते हैं. पर किसी एक की भी जेब नहीं कटी, किसी महिला से दुर्व्यवहार नहीं, कोई गाड़ी नहीं जली किसी दूकान में लूटपाट नहीं. कैसे हो रहा है ये सब ? अरे भारत तो महा भ्रष्ट है, यहाँ के लोग महान नालायक हैं. दुनिया भर के सर्वेक्षण यही कह रहे हैं न वर्षों से ? भारत में रहने वाले (भारतीय तो उन्हें कहना गलत होगा) सेक्युलरिस्ट और मैकाले के मानस पुत्रों के अनुसार तो भारत सरीखा पतित देश कोई और है नहीं. अब क्यूँ ये सब बुद्धि के ठेकेदार चुप बैठे हैं ? ………

यही है वास्तविक भारत, भारत की संस्कृति से उपजी मानसिकता जो विध्वंसकारी नहीं निर्माणकारी है. अन्यथा जब भी कोई सम्मलेन, जान आन्दोलन विशेष कर राजनैतिक कार्यक्रम हुए तो महिलाओं की इज्ज़त, व्यापारी जान समाज असुरक्षित हो गया. मंदिरों तक से जुटे-चप्पल चोरी होते हैं. पर अब क्या हो रहा है, ये आन्दोलन इब सबसे अलग क्यूँ है ? वही भारतीय इतने बदल क्यूँ गए, कैसे बदल गए ? केवल नेतृत्व और और लक्ष्य सही होने से सब बदल गया ?

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार समूह, भीड़ की एक विशेष मानसिकता होती है. विश्व की अधिकाँश विचारधाराओं की सामूहिक सोच विनाशक है. पर भारत की सामूहिक सोच मूल रूप से ही निर्माणकारी है जिसका प्रमाण वर्तमान आन्दोलन है. ….. हर जगह गन्दगी, अव्यवस्था, अनुशासनहीनता अनैतिकता फ़ैलाने के लिए बदनाम भारतीयों का यह जो रूप इस आन्दोलन में नज़र आ रहा है, यह अवतार अनायास कैसे हो गया ? ?? मतलब साफ है की सारा कमाल नेतृत्व का है. भारत को यदि सही नेतृत्व मिले तो भारत और भारत के लोग संसार भर में अनुपम हैं. भारत के समाज और शासन की वर्तमान छवि व दुर्दशा के पीछे इसका चरित्रहीन शासन और चरित्रहीन नेता हैं. यदि देश को अन्ना जैसे नेता और शासक मिलें तो भारत तो केवल एक दिन में बदल जाएगा, इसमें अब तो किसे को संदेह नहीं होना चाहिए. समय लगेगा तो केवल इन भ्रष्ट शासकों को बदलने में. संवेदना हीन और पशु स्वभावी बन चुके इन शासक मानसिकता के शासकों से छुटकारा पाने के लिए देश को एक लंबा संघर्ष ( भविष्यवानियों के अनुसार सन २०१४ तक ) करना ही होगा.

ध्यान से सारे घटनाक्रम को देखने वालों ने समझ लिया है कि वर्तमान शासकों की मानसिकता पूरी तरह उपनिवेशवादी क्रूर अँगरेज़ शासकों वाली है. एक अन्ना क्या लोखों-करोड़ों भारतीयों का बलिदान भी हो तो इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. इन्हें न तो भारतीयों से प्यार है न भारत से. कल के सरकार के छली व्यव्हार से एक बार फिर से साफ़ हो गया की ये अत्यंत शातिर, झूठे, कुटिल, कपटी, अनैतिक और बेईमान है. ये जो विशेषण मैंने प्रयोग किये हैं ये कोई रोष से उपजे उद्गार नहीं हैं, इनकी वास्तविकता है. इसलिए इनके द्वारा कोई सही पग उठाये जाने की आशा करना ना समझी होगा. इनका केवल एक ही इलाज है की इन्हें भारत के हित में काम करने को मजबूर कर दिया जाए. जन हित में जनता की बात मानाने के इलावा इनके पास और कोई विकल्प न बचे.