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”सीआईए के इशारे पर काम कर रही टीम अन्ना”

उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने अन्ना हजारे और उनकी टीम के कुछ सदस्यों पर अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के इशारे पर कार्य करने का आरोप लगाते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। शर्मा के इन आरोपों की सत्यता की जांच के लिए न्यायालय ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। नोटिस में तीन महीने के भीतर जांच पूरी कर रिपोर्ट न्यायालय में पेश करने को कहा गया है। न्यायालय का कहना है कि वह जांच रिपोर्ट देखने के बाद ही मामले पर आगे की सुनवाई करेगा। इस मुद्दे पर पत्रकार पवन कुमार अरविंद ने अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा से मामले के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत है संक्षिप्त अंश- 

यह याचिका दायर करने की प्रेरणा आपको कहां से मिली ?

अन्ना हजारे को मैं पिछले कई वर्षों से जानता हूं। हालांकि वह मुझसे परिचित हैं या नहीं, मैं नहीं जानता। हजारे ने जब भ्रष्टाचार और लोकपाल की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर अपना पहला अनशन शुरू किया, तो उनके आंदोलन को लेकर कई प्रकार की बातें कही जा रही थीं। लेकिन मुझे ये बातें आसानी से हजम नहीं हो पा रही थीं। जिसके बाद मैं हजारे के आंदोलन के अंदरूनी पहलुओं की पड़ताल में जुट गया। इस दौरान कुछ ऐसे तथ्य मिले, जो वास्तव में देशहित में नहीं कहे जा सकते। मेरे लिए यह बर्दाश्त के बाहर था। इसलिए मैंने हजारे और उनकी टीम के सदस्यों की पोल खोलने के लिए स्वयं की प्रेरणा से यह याचिका दायर की।

 

क्या है याचिका में ?

याचिका में आठ लोगों को प्रतिवादी बनाया गया है। जिसमें केंद्र सरकार, अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के अंतर्गत काम करने वाला ट्रस्ट फोर्ड फाउंडेशन, अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, शांति भूषण, प्रशांत भूषण और किरण बेदी शामिल हैं। इन लोगों के द्वारा भ्रष्टाचार भगाने की यह मुहिम फोर्ड फाउण्डेशन के पैसे से चल रही है, जो कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए का फ्रंटल आर्गेनाइजेशन है और दुनिया के कुछ देशों में सिविल सोसायटी नाम से मुहिम चला रही है। फोर्ड फाउंडेशन दुनिया भर में सरकार विरोधी आन्दोलनों को समर्थन देता है, फंड देता है और उनके माध्यम से उन देशों पर अपना एजेंडा लागू करवाता है। फाउंडेशन ने रूस, इजरायल, अफ्रीका आदि देशों में सिविल सोसाइटी नाम के ग्रुप बना रखे हैं। इनके ज़रिये वे बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, कलाकारों, उद्योगपतियों और नेताओं को अपनी तरफ खींचते हैं और सरकार के खिलाफ आन्दोलन करवाते हैं। हजारे और उनकी टीम के सदस्य संयुक्त रूप से फोर्ड फाउंडेशन से धन लेते हैं। केजरीवाल ने खुद स्वीकारा है कि उन्होंने फोर्ड फाउंडेशन, डच एम्बेसी और यूएनडीपी से पैसा लिया है। फोर्ड फाउंडेशन के रीजनल डाइरेक्टर ने भी अरविंद केजरीवाल की ‘कबीर’ नामक एनजीओ को फंड मिलने की बात स्वीकारी है। फाउंडेशन की वेबसाईट के मुताबिक 2011 में केजरीवाल की कबीर नामक एनजीओ को दो लाख अमेरिकी डालर का अनुदान मिला। फारेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट-2010 के मुताबिक विदेशी पैसा पाने के लिए भारत सरकार की अनुमति लेना और पैसा खर्च करने के लिए निर्धारित मानकों का पालन करना जरूरी होता है, लेकिन टीम अन्ना के सदस्यों ने नियमों का पालन नहीं किया। न्यायालय ने याचिका का संज्ञान लेते हुए 30 मई 2012 को केंद्र सकार को नोटिस जारी किया, जिसमें मेरे द्वारा लगाये गये आरोपों की सत्यता जांचने के लिए केंद्र को तीन महीने का समय दिया गया है। उसके बाद ही मेरे आरोपों पर अदालत विचार करेगी। 30 अगस्त 2012 को तीन महीने पूरे हो जाएंगे। मुझे उस रिपोर्ट का बेसब्री से इंतजार है।

 

तो आपने अन्ना हजारे को भी नहीं छोड़ा, जबकि देश के लोग उनको महात्मा गांधी से कम नहीं मानते?

छोड़ने का सवाल ही नहीं है। हजारे की असलियत का पता न्यायमूर्ति पीबी सावंत आयोग की रिपोर्ट से साफ चलता है। इस रिपोर्ट पर यदि महाराष्ट्र सरकार ने कार्यवाही की होती तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता। लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया, यह समझ से परे है।

 

न्यायमूर्ति पीबी सावंत आयोग की रिपोर्ट में क्या है?

महाराष्ट्र सरकार ने अपने चार मंत्रियों और अन्ना हजारे के हिंद स्वराज ट्रस्ट समेत कई लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए सितंबर 2003 में न्यायमूर्ति पीबी सावंत के नेतृत्व में जांच आयोग का गठन किया था। आयोग ने 22 फरवरी 2005 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट में हजारे पर लगे आरोप सही पाए गये थे। हजारे ने अपने हिंद स्वराज्य ट्रस्ट के मद में लिये गये धन में से करीब 2.2 लाख रालेगण सिद्धि में आयोजित अपने जन्मदिन समारोह में खर्च किया था। हालांकि हजारे ने इस बात को स्वीकार भी किया है। न्यायमूर्ति सावंत का कहना था कि आप ट्रस्ट के धन का इस्तेमाल अपने निजी मकसद से नहीं कर सकते। यह भ्रष्टाचार के समान है। हालांकि हजारे पर और भी कई आरोप लगाये गये थे, जिसको न्यायमूर्ति सावंत ने सही नहीं पाया।

 

न्यायमूर्ति पीबी सावंत ने तो अधिकांश आरोपों से हजारे को बरी कर दिया था, मात्र एक आरोप को ही सही पाया, फिर आप हजारे के पीछे क्यों पड़े हैं ?

नहीं, मैं पीछे नहीं पड़ा हूं बल्कि वास्तविकता समाने लाना चाहता हूं। अन्ना हजारे ने सैन्य सेवा से वापस आने के बाद कुछ युवकों की टीम बनायी और आसपास के व्यापारियों व शराब बिक्रेताओं को ब्लैकमेल कर पैसा ऐंठते थे, और पैसा नहीं देने पर अनशन की धमकी देते थे। हजारे ने 1979 से आज तक केवल यही किया है। कुछ राजनीतिकों के कहने पर अनशन करना और उन्हीं के इशारे पर समाप्त कर देना। इन नेताओं में कांग्रेस और भाजपा; दोनों के नेता शामिल हैं। ये सारी बातें मैं तथ्यों के आधार पर कह रहा हूं।

 

क्या अन्ना हजारे को टीम अन्ना ने हाईजेक कर लिया है ?

अन्ना हजारे को टीम के सदस्यों ने हाईजेक नहीं किया है, बल्कि इन सबको सीआईए ने हाईजेक कर लिया है। ये सभी लोग संयुक्त रूप से अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के लिए काम कर रहे हैं। इन लोगों के लिए भ्रष्टाचार भगाने का आंदोलन कालेधन को सफेद बनाने का एक सुगम रास्ता है।

 

हजारे के इस बार के आंदोलन को न तो केंद्र सरकार ने कोई तवज्जो दी और न ही मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने अपना समर्थन दिया?

अन्ना और उनकी टीम की असलियत की पोल जैसे-जैसे खुलेगी, लोग उनसे छिटकते जाएंगे और उनके विरोधी हो जाएंगे। इस सत्यता को उजागर करने के पीछे मेरी याचिका की भी कुछ भूमिका है।

 

टीम अन्ना के राजनीतिक पार्टी बनाने की बात पर आप क्या कहेंगे ?

मैं क्या कहूंगा। यह तो होना ही था। बस इतना ही कहूंगा कि जो बातें मैं पहले से ही कह रहा था, वे अब धीरे-धीरे सामने आ रही हैं।

 

क्या आपको विश्वास है कि न्यायालय का फैसला अन्ना और उनकी टीम के सदस्यों के खिलाफ आएगा ?

केंद्र सरकार की जांच रिपोर्ट का इंतजार है। रिपोर्ट में सबकी पोल खुल जाएगी कि कौन क्या है।