”सीआईए के इशारे पर काम कर रही टीम अन्ना”

उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने अन्ना हजारे और उनकी टीम के कुछ सदस्यों पर अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के इशारे पर कार्य करने का आरोप लगाते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। शर्मा के इन आरोपों की सत्यता की जांच के लिए न्यायालय ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। नोटिस में तीन महीने के भीतर जांच पूरी कर रिपोर्ट न्यायालय में पेश करने को कहा गया है। न्यायालय का कहना है कि वह जांच रिपोर्ट देखने के बाद ही मामले पर आगे की सुनवाई करेगा। इस मुद्दे पर पत्रकार पवन कुमार अरविंद ने अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा से मामले के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत है संक्षिप्त अंश- 

यह याचिका दायर करने की प्रेरणा आपको कहां से मिली ?

अन्ना हजारे को मैं पिछले कई वर्षों से जानता हूं। हालांकि वह मुझसे परिचित हैं या नहीं, मैं नहीं जानता। हजारे ने जब भ्रष्टाचार और लोकपाल की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर अपना पहला अनशन शुरू किया, तो उनके आंदोलन को लेकर कई प्रकार की बातें कही जा रही थीं। लेकिन मुझे ये बातें आसानी से हजम नहीं हो पा रही थीं। जिसके बाद मैं हजारे के आंदोलन के अंदरूनी पहलुओं की पड़ताल में जुट गया। इस दौरान कुछ ऐसे तथ्य मिले, जो वास्तव में देशहित में नहीं कहे जा सकते। मेरे लिए यह बर्दाश्त के बाहर था। इसलिए मैंने हजारे और उनकी टीम के सदस्यों की पोल खोलने के लिए स्वयं की प्रेरणा से यह याचिका दायर की।

 

क्या है याचिका में ?

याचिका में आठ लोगों को प्रतिवादी बनाया गया है। जिसमें केंद्र सरकार, अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के अंतर्गत काम करने वाला ट्रस्ट फोर्ड फाउंडेशन, अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, शांति भूषण, प्रशांत भूषण और किरण बेदी शामिल हैं। इन लोगों के द्वारा भ्रष्टाचार भगाने की यह मुहिम फोर्ड फाउण्डेशन के पैसे से चल रही है, जो कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए का फ्रंटल आर्गेनाइजेशन है और दुनिया के कुछ देशों में सिविल सोसायटी नाम से मुहिम चला रही है। फोर्ड फाउंडेशन दुनिया भर में सरकार विरोधी आन्दोलनों को समर्थन देता है, फंड देता है और उनके माध्यम से उन देशों पर अपना एजेंडा लागू करवाता है। फाउंडेशन ने रूस, इजरायल, अफ्रीका आदि देशों में सिविल सोसाइटी नाम के ग्रुप बना रखे हैं। इनके ज़रिये वे बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, कलाकारों, उद्योगपतियों और नेताओं को अपनी तरफ खींचते हैं और सरकार के खिलाफ आन्दोलन करवाते हैं। हजारे और उनकी टीम के सदस्य संयुक्त रूप से फोर्ड फाउंडेशन से धन लेते हैं। केजरीवाल ने खुद स्वीकारा है कि उन्होंने फोर्ड फाउंडेशन, डच एम्बेसी और यूएनडीपी से पैसा लिया है। फोर्ड फाउंडेशन के रीजनल डाइरेक्टर ने भी अरविंद केजरीवाल की ‘कबीर’ नामक एनजीओ को फंड मिलने की बात स्वीकारी है। फाउंडेशन की वेबसाईट के मुताबिक 2011 में केजरीवाल की कबीर नामक एनजीओ को दो लाख अमेरिकी डालर का अनुदान मिला। फारेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट-2010 के मुताबिक विदेशी पैसा पाने के लिए भारत सरकार की अनुमति लेना और पैसा खर्च करने के लिए निर्धारित मानकों का पालन करना जरूरी होता है, लेकिन टीम अन्ना के सदस्यों ने नियमों का पालन नहीं किया। न्यायालय ने याचिका का संज्ञान लेते हुए 30 मई 2012 को केंद्र सकार को नोटिस जारी किया, जिसमें मेरे द्वारा लगाये गये आरोपों की सत्यता जांचने के लिए केंद्र को तीन महीने का समय दिया गया है। उसके बाद ही मेरे आरोपों पर अदालत विचार करेगी। 30 अगस्त 2012 को तीन महीने पूरे हो जाएंगे। मुझे उस रिपोर्ट का बेसब्री से इंतजार है।

 

तो आपने अन्ना हजारे को भी नहीं छोड़ा, जबकि देश के लोग उनको महात्मा गांधी से कम नहीं मानते?

छोड़ने का सवाल ही नहीं है। हजारे की असलियत का पता न्यायमूर्ति पीबी सावंत आयोग की रिपोर्ट से साफ चलता है। इस रिपोर्ट पर यदि महाराष्ट्र सरकार ने कार्यवाही की होती तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता। लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया, यह समझ से परे है।

 

न्यायमूर्ति पीबी सावंत आयोग की रिपोर्ट में क्या है?

महाराष्ट्र सरकार ने अपने चार मंत्रियों और अन्ना हजारे के हिंद स्वराज ट्रस्ट समेत कई लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए सितंबर 2003 में न्यायमूर्ति पीबी सावंत के नेतृत्व में जांच आयोग का गठन किया था। आयोग ने 22 फरवरी 2005 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट में हजारे पर लगे आरोप सही पाए गये थे। हजारे ने अपने हिंद स्वराज्य ट्रस्ट के मद में लिये गये धन में से करीब 2.2 लाख रालेगण सिद्धि में आयोजित अपने जन्मदिन समारोह में खर्च किया था। हालांकि हजारे ने इस बात को स्वीकार भी किया है। न्यायमूर्ति सावंत का कहना था कि आप ट्रस्ट के धन का इस्तेमाल अपने निजी मकसद से नहीं कर सकते। यह भ्रष्टाचार के समान है। हालांकि हजारे पर और भी कई आरोप लगाये गये थे, जिसको न्यायमूर्ति सावंत ने सही नहीं पाया।

 

न्यायमूर्ति पीबी सावंत ने तो अधिकांश आरोपों से हजारे को बरी कर दिया था, मात्र एक आरोप को ही सही पाया, फिर आप हजारे के पीछे क्यों पड़े हैं ?

नहीं, मैं पीछे नहीं पड़ा हूं बल्कि वास्तविकता समाने लाना चाहता हूं। अन्ना हजारे ने सैन्य सेवा से वापस आने के बाद कुछ युवकों की टीम बनायी और आसपास के व्यापारियों व शराब बिक्रेताओं को ब्लैकमेल कर पैसा ऐंठते थे, और पैसा नहीं देने पर अनशन की धमकी देते थे। हजारे ने 1979 से आज तक केवल यही किया है। कुछ राजनीतिकों के कहने पर अनशन करना और उन्हीं के इशारे पर समाप्त कर देना। इन नेताओं में कांग्रेस और भाजपा; दोनों के नेता शामिल हैं। ये सारी बातें मैं तथ्यों के आधार पर कह रहा हूं।

 

क्या अन्ना हजारे को टीम अन्ना ने हाईजेक कर लिया है ?

अन्ना हजारे को टीम के सदस्यों ने हाईजेक नहीं किया है, बल्कि इन सबको सीआईए ने हाईजेक कर लिया है। ये सभी लोग संयुक्त रूप से अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के लिए काम कर रहे हैं। इन लोगों के लिए भ्रष्टाचार भगाने का आंदोलन कालेधन को सफेद बनाने का एक सुगम रास्ता है।

 

हजारे के इस बार के आंदोलन को न तो केंद्र सरकार ने कोई तवज्जो दी और न ही मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने अपना समर्थन दिया?

अन्ना और उनकी टीम की असलियत की पोल जैसे-जैसे खुलेगी, लोग उनसे छिटकते जाएंगे और उनके विरोधी हो जाएंगे। इस सत्यता को उजागर करने के पीछे मेरी याचिका की भी कुछ भूमिका है।

 

टीम अन्ना के राजनीतिक पार्टी बनाने की बात पर आप क्या कहेंगे ?

मैं क्या कहूंगा। यह तो होना ही था। बस इतना ही कहूंगा कि जो बातें मैं पहले से ही कह रहा था, वे अब धीरे-धीरे सामने आ रही हैं।

 

क्या आपको विश्वास है कि न्यायालय का फैसला अन्ना और उनकी टीम के सदस्यों के खिलाफ आएगा ?

केंद्र सरकार की जांच रिपोर्ट का इंतजार है। रिपोर्ट में सबकी पोल खुल जाएगी कि कौन क्या है।

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पवन कुमार अरविन्द
देवरिया, उत्तर प्रदेश में जन्म। बी.एस-सी.(गणित), पी.जी.जे.एम.सी., एम.जे. की शिक्षा हासिल की। सन् १९९३ से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में। पाँच वर्षों तक संघ का प्रचारक। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्तीय मीडिया सेण्टर "विश्व संवाद केंद्र" गोरखपुर का प्रमुख रहते हुए "पूर्वा-संवाद" मासिक पत्रिका का संपादन। सम्प्रतिः संवाददाता, ‘एक्सप्रेस मीडिया सर्विस’ न्यूज एजेंसी, ऩई दिल्ली।

11 COMMENTS

  1. आलेख निसंदेह समसामयिक और प्रमाणिक है. कुछ लोग सत्य को स्वीकार नहीं करने के लिए सदा -सर्वदा अभिशप्त हैं इसलिए इधर उधर की अनावश्यक वातों को प्रस्तुत विषय के साथ गडमड कर अपनी ‘मनोव्यथा’दर्शाने के लिए इस सटीक और सार्थक ‘वार्तालाप’ का सत्यानाश करने पर तुले हुए हैं.अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा द्वारा प्रस्तुत ‘वाद’ हो सकता है कि न्यायालय निरस्त कर दे किन्तु उन्होंने पाखंड की कलई खोलने का देशभक्तिपूर्ण कार्य तो किया है.साथी अरविन्द ने उनका इंटरव्यू लिया और आलेख के रूप में प्रवक्ता.कॉम ने मौजूदा दौर में उसे प्रकाशित किया इसके लिए इनकी भूरी-भूरी प्रशंसा करता हूँ.

  2. very good and equrate analysis of the Anna and compny. Anna ,Ramdev,kejrivaal ,prshaant bhushan ,subrmanaym swami ,kiran vedi and other activist have . got much immunity by the presenet regime in India . Their so called ‘bhrushtachaar hataao’ agitation,black mony movement are totaly failure and taay-taay fush……

  3. लेखक की विश्वसनीयता के बारे में हम कुछ नहीं जानते. पर जो तर्क मेरे सामने हैं वे ये हैं:
    # पैसे लेकर अपराधी के पक्ष में लड़ना इनका पेशा तो है ही. अतः इन्हें फीस देकर कम तो कोई भी करवा सकता है. जब फीस मोटी हो तो बात ही क्या.
    # जो लोग अन्ना को निकट से जानते हैं, जिन्होंने उनका काम रालेगन सिंदी जाकर देखा है; वे आन्ना पर संदेह कर ही नहीं सकते. एक और ख़ास बात है अन्ना का व्यक्तित्व और उनकी आवाज़ की पिच. दूरदर्शन पर उन्हें पहली बार देखने और सुनाने वाला कोई भी संवेदनशील व्यक्ती जान्लेगा कि यह व्यक्ती सही है, प्रमाणिक है, इनकी कथनी-करनी एक है. ऐसे व्यक्ती को धनलोलुप किसी अनाम वकील के प्रमाणपत्र की क्या ज़रूरत. भारत की करोड़ों जनता का प्रमाणपत्र उनके पास है.
    # अन्ना ने अपने ग्राम में क्या किया और वे कितने त्यागी, तपस्वी, पर्माथी हैं; इसे करोड़ों लोगों ने देखा – जाना है. जब लेखक महोदय उनके विरुद्ध अनाप-शनाप आरोप लगा रहे हैं तो फिर मना पडेगा कि उनकी नीयत सही नहीं.
    अन्ना जी के साथियों के बारे में मेरी जानकारी का कोई प्रमाणिक सूत्र नहीं है. पर जब अन्ना जैसे तपस्वी को बदनाम करने वाला कोई वकील उन्हें बुरा कहे तो यही मानना पडेगा कि वे लोग ज़रूर सही हो सकते हैं.
    # इन लेखक महोदय से मेरा प्रश्न है कि इस देश के सर्वोच्च शिखर पर बैठे व्यक्तित्व पर डा. सुब्रमनियन ने ‘केजीबी’ के लिए कम करने का आरोप लगाया है, देश का खरबों रूपया विदेशी बहकों के माध्यम से शक्तिशाली शासकों व धनपतियों द्वारा बाहर भेजा जा रहा है. आप आजतक उनके विरुद्ध तो बोले नहीं ?फीस नहीं मिली होगी न ? दो लाख जैसी राशि के लिए शोर मचा रहे हैं. सब जानते हैं कि तकनीकी रूप से कमी निकाल देना और बेईमानी करना, दोनों एक बात नहीं हैं. फिर अन्ना टीम ही क्यूँ इनके निशाने पर ? इसे की फीस मिली होगी न ?

  4. केजरीवाल के ऊपर लगाये गए आरोप सच है इसकी पुष्टि तो निर्मला शर्मा और कैलाश गोधुका से पूछने से ही पता चल जायेगा बहुत कम लोगो को मालूम है की इन दोनों के यहाँ से ही इसकी शुरुआत हुई जहा पैदा हुआ उनको ही नहीं छोड़ा इसमे चाहे गोविंदाचार्य हो या अरुणा राय सबको इसने युज किया और समय आया तो सम्बन्ध होने से भी इनकार कर दिया झुठ्ठा तो बहुत बड़ा है ये मैंने गोविन्दाचार्य के मंचो पर खूब देखा बाद में आर आर एस के साथ सम्बन्ध होने से ही एंकर कर दिया इसने

  5. मुझे अन्नाजी से कोई दिक्कत नहीं है. उनका मेरे दिल में पूरा सम्मान है. वो एक इमानदार सज्जन और नेतिकता की स्थापने हेतु सदैव पर्यत्नशील व्यक्ति हैं. उनका रालेगांव सिद्धि का प्रयोग भी वास्तव में नेतिक मूल्यों पर आधारित आदर्श समाज की स्थापना का प्रयोग था. लेकिन उनकी टीम में शामिल सारे ही लोग उन जैसे सज्जन नहीं थे. मंच से भारत माता का चित्र हटाना, भारतमाता की जय का विरोध करने वालों के दरवाजे पर जाकर उनकी खुशामद करना और देश की दिन रात चिंता करने और देश में डेढ़ लाख से अधिक सेवा प्रकल्प चलने वाले आर एस एस की आलोचना करना उनके दोहरे चरित्र को दिखता है. पिछले एक सौ साल से देश में हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रयास होते रहे हैं लेकिन क्या ये सद्प्रयास देश की अखंडता को बचा पाए? क्या विभाजन को रोक पाए? और आज भी देश को तोड़ने के प्रयासों में लिप्त शक्तियों को खुशामद से ह्रदय परिवर्तन नहीं किया जा सकता. लगभग पेंतालिस साल पहले महेश्वर अनंत करंदीकर द्वारा लिखित पुस्तक “इस्लाम इन इण्डिया’ज ट्रांजिशन टू मोडरनिटी ” की भूमिका लिखते समय प्रसिद्द समाजवादी चिन्तक अच्युत पटवर्धन ने लिखा था की फोनी सेकुलरिज्म को छोड़कर अब साफ्गोएँ से बात करने का वक्त आ गया है. लेकिन कुछ लोग आज भी तुष्टिकरण को ही एकता का रास्ता मानते हैं जबकि इस रास्ते पर चलकर देश खंडित हो चूका है. ऐसे में अगर टीम अन्ना के कुछ लोगों पर विदेश से पैसा लेने का रोप लगते हैं तो उन्हें समरिली ख़ारिज नहीं किया जाना चाहिए. हमारे बुद्धिजीवी किस हद तक बिक सकते हैं इसका अगर कुछ साक्ष्य चाहिए तो सोवियत संघ से भागे हुए के जी बी के पूर्व अधिकारी मित्रोखिन द्वारा डोकुमेंट्स के आधार पर लिखी पुस्तक मित्रोखिन आर्काईव्स-२ को पढ़कर देख लें शायद आँखें खुल जाएगी.मेरे मित्र, केवल मिडिया द्वारा बनायीं इमेज पर न जाएँ तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में देश का हित सामने रखकर विचार करें. जहाँ तक करप्शन के खिलाफ संघर्ष का सवाल है तो इस मुद्दे पर तो सारा देश अन्नाजी के साथ है की करप्शन, चाहे जैसे भी हो, समाप्त होना ही चाहिए.

  6. “फोर्ड फाउंडेशन के रीजनल डाइरेक्टर ने भी अरविंद केजरीवाल की ‘कबीर’ नामक एनजीओ को फंड मिलने की बात स्वीकारी है। फाउंडेशन की वेबसाईट के मुताबिक 2011 में केजरीवाल की कबीर नामक एनजीओ को दो लाख अमेरिकी डालर का अनुदान मिला। फारेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट-2010 के मुताबिक विदेशी पैसा पाने के लिए भारत सरकार की अनुमति लेना और पैसा खर्च करने के लिए निर्धारित मानकों का पालन करना जरूरी होता है, लेकिन टीम अन्ना के सदस्यों ने नियमों का पालन नहीं किया। न्यायालय ने याचिका का संज्ञान लेते हुए 30 मई 2012 को केंद्र सकार को नोटिस जारी किया, जिसमें मेरे द्वारा लगाये गये आरोपों की सत्यता जांचने के लिए केंद्र को तीन महीने का समय दिया गया है।”

    यदि उक्त बात सही है तो फिर सरकार से कोर्ट द्वारा मांगी गयी रिपोर्ट का हर देशभक्त को इन्तजार और स्वागत करना चाहिए! लेकिन यदि रिपोर्ट याचिका का समर्थन करने वाली नहीं हुई तो देश का एक विशेष वर्ग (जिसका वेब मीडिया पर कब्ज़ा है और जो एन केन प्रकारेण एक दल विशेष को पूर्ण बहुमत के साथ कम से कम पचास साल के लिए देश की सत्ता की बागडोर सौंपना चाहता है) इसे अन्ना टीम की जीत बताने में पीछे नहीं रहने वाला और यदि रिपोर्ट में ऐसा कुछ निकलकर सामने आया, जिससे याचिका के तथ्यों की पुष्टि हो गयी तो इसी महान वर्ग के विद्वान लेखक और टिप्पणीकार सरकार की निष्ठां पर ही सवाल उठाएंगे, न की याचिका दायर करने वाले का समर्थन करेंगे! अन्ना टीम का विरोध करने का तो सवाल ही नहीं उठता!

    ऐसे हालत में फ़िलहाल इस मामले को तीस अगस्त तक से लिए स्थगित रखा जाना ही उचित लगता है!

  7. कभी पढ़ा था कि गंगा गए गंगा दास,यमुना गए यमुना दास.आज के बहुत टिप्पणी कारों पर यह बात बखूबी लागू होती है.अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा की अपनी हैसियत क्या है,मैं नहीं जानता,पर इतना कह सकता हूँ कि अगर सी.आई.ए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में भारत से भ्रष्टाचार से हटाने के लिए अपनी जान की बाजी लगाने वालों का साथ दे रहा है ,तो वह भारत का दुश्मन हुआ कि मित्र? असली दुश्मन तो वे हैं ,जो इस आन्दोलन के मार्ग में पग पग पर रोड़े अटका रहे हैं.फोर्ड फ़ौंडेशन के धन पर अगर भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन चल रहा है तो इसमे हर्ज क्या है?किस लोकतंत्र की अस्थिरता की बात माननीय अधिवक्ता कर रहे हैं?इस भ्रष्ट भारत में,जहाँ १६२ लोक सभा सदस्यों पर विभिन्न अपराधों के आरोप हैं,कौन सा लोकतंत्र है?. दुनिया के किस प्रजातंत्र में शासक वर्ग पर अंकुश लगाने के लिए लोकपाल जैसा क़ानून नहीं है?तो फिर भारत में आजतक ऐसा क्यों नहीं हुआ?आज भारत में भ्रष्टाचार का यह आलम है कि अगर इस तरह की चर्चा होती है तो. आम भारतीय की गर्दन झुक जाती है,,पर उन भ्रष्ट मोटी चमड़ी वालों को क्या कहा जा सकता है जो सोचते हैं कि देश जाए भांड में हमारी तो पौ बारह है ?मैंने पहले भी लिखा है कि कठिनाई यह है कि भ्रष्ट लोग ज्यादा मुखर हैं और अपने तरीके से अनाप सनाप धन कमा कर उन्होंने इस भ्रष्ट समाज में अपना महत्त्व पूर्ण स्थान भी बना लिया है.ऐसे मेरे इस व्यक्तव्य के लिए मुझ पर मुकदमा भी चलाया जा सकता हैं और मुझे सजा भी हो सकती है,पर मैं तो सदा इसके लिए तैयार रहता हूँ.

  8. आरोपों में कुछ दम लगता है. ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ की हमारा मिडिया इस समय अमेरिका परस्त चर्च संगठनों की गिरफ्त में है और अप्रेल २०११ में अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी पहले अनशन का रातोंरात जितना प्रचार प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मिडिया ने किया उसके कारन रातोंरात अन्नाजी देश की धड़कन बनते हुए दिखाई पड़े. जबकि भ्रष्टाचार और कालेधन के विरुद्ध पिछले तीन वर्षों से अनवरत रूप से संघर्ष कर रहे बाबा रामदेव को खलनायक की तरह प्रस्तुत किया गया. उनका मखौल उडाया गया.ये स्वाभाविक है क्योंकि रामदेवबाबा भगुवा वस्त्र धारण करते हैं और हमारे मेकालेवादी मीडियाकर्मी भागुवे रंग से ऐसे भड़कते हैं जैसे लाल कपडे को देखकर सांड भड़कता है. इसलिए सी आई ऐ के इशारे पर चर्च नियंत्रित हमारा मिडिया भागुवे का मजाक उडाता रहा और अन्नाजी और उनकी टीम को हीरो बनाने का अभियान चलाता रहा.बहरहाल,जांच रिपोर्ट आ जाने दो. रामदेव को ज्यादा भाव देने से हिंदुत्व वादी शक्तियों को ताकत मिलती जो संभवतः अमेरिकी हितों के लिए अनुकूल न होता. इसलिए भी रामदेवजी को डाऊन किया गया.लेकिन उनका काम पूरी पारदर्शिता से चल रहा है अतः इस दुष्प्रचार का कोई असर नहीं होगा.

    • शाबाश क्या विचार हैं .
      ऐसा लोजिक कहा से लाते हो यार ? शर्म आती है देख के की देश में ऐसे पढ़े लिखे अनपढ़ लोग भी हैं .

      नया सुना है की लोग भागुवे रंग से भड़कते हैं

      हा हा हा 🙂

      • I am living in America since several years. At least I can confirm you that here in America, nobody (other than indians) has interest whats going over there in INDIA. So please stop making this kind of misconceptions and spreading the rumors.

        In rumors se desh ka bhala nahi hone wala. Agar sach me apne baccho ke liye kuch karna chahte ho to desh ke liye kuch aacha socho. As per my belief, Team Anna is doing good, rest everybody has its own thought.

        & Please Don’t take my previous comment too personal.

      • केवल मेकाले वादी लोग चाहे वो मिडिया में हों या किसी अन्य छेत्र में, सभी भगवे रंग से चिढ़ते हैं. इसमें किसी प्रकार का आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

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