कविता

एक और नई सुबह

एक और नई सुबह

सुरभित गर्वित

स्वतंत्र स्वछंद।

उन्मुक्त गगन

मन आतुर अधीर

आसमान छूने को

भरने नई उड़ान।

जाना किधर

किञ्चित विचलित,

दिखेगी जो राह

सरपट दौड़ेंगे कदम

बिना सोचे विचारे।

लक्ष्य अडिग

पुष्पित पल्लवित

पथ नहीं पाथेय नहीं 

अनजान सुनसान राह

दूर करके सभी अवरोध

मिलेगी ‘नवीन’ मंजुल मंजिल।

          -सुशील कुमार ‘ नवीन’