प्रवक्ता न्यूज़

धार्मिक सौहार्द के लिए अंतरधार्मिक शिखर वार्ता

krishna-christहाल में मुम्बई में हुए काथलिक-हिन्दू धर्मगुरूओं के बीच वार्ता की खबर बहुत उम्मीद जगाने वाली थी। यह खबर चूंकि मीडिया में सुर्खियां नहीं बटोर पाई। इसलिए इसकी जानकारी बहुत कम लोगों को होगी।

इस अंतरधार्मिक शिखर वार्ता के संबंध में वेटिकन काउंसिल के अध्यक्ष कार्डिनल ज्यां-लुई तोरां ने वेटिकन रेडियो को एक साक्षात्कार में बताया कि- उक्त वार्ता पिछले वर्ष अगस्त में उड़ीसा के कंधमाल में हुए सांप्रदायिक हिंसा की पृष्ठभूमि पर रखी गई थी। समाचार पत्र में छपी खबर के अनुसार उसमें बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए और लोगों का भय से पलायन अब भी जारी है। इस भय के वातावरण को सौहार्द में बदलने के प्रयास की कड़ी के रूप में इस वार्ता को देखा जा सकता है।

 

वार्ता में शामिल हिन्दू और ईसाइ प्रतिनिधियों ने बातचीत के पश्चात संयुक्त रूप से एक संवाददाता सम्मेलन को मुम्बई के षन्मुखानन्द परिसर में संबोधित किया। जिसमें दोनों धर्मो के प्रतिनिधियों ने भारत में बलात धर्मान्तरण की घोर निन्दा की।

ईसाई और हिन्दू धर्मगुरुओं ने प्रेस के समक्ष कहा कि यह वार्ता दोनों धर्मों के बीच स्थायी शांति कायम करने की दिशा में सकारात्मक पहल साबित होगी। कार्डियल ग्रेसियस ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन को कलीसियाई शिक्षा के बिल्कुल खिलाफ बताया और कड़े शब्दों में इस तरह की गतिविधि संलग्न लोगों की निन्दा की। कैथोलिक बिशप कान्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) की वेबसाइट के अनुसार बलात धर्म परिवर्तन में काथलिक चर्च शामिल नहीं है, इस बात को जोर देकर काथलिक धर्माधिकारियों ने हिन्दू धर्मगुरुओं के सामने रखा।

कार्डिनल ग्रेसियस ने हिन्दू धर्मगुरुओं को काथलिक और प्रोस्टेटंट के अंतर को समझाया। कार्डिनल के अनुसार बातचीत से ऐसा प्रतीत हुआ जैसे हिन्दू धर्मगुरुओं को काथलिक और प्रोस्टेटंट के बीच के अंतर की जानकारी कम थी या नहीं थी। जब हिन्दू धर्मगुरूओं ने एक क्षेत्र विशेष में लगभग 160 के आसपास नए ‘गिरजाघर’ बनाए जाने की बात रखी तो आर्कबिशप ने उनके काथलिक गिरजाघर होने से साफ इंकार किया। उन्होंने अनुमान से कहा कि वे प्रोटेस्टंट मुख्यालय हो सकते हैं। जो बड़ी संख्या में एवांजेलिकल समुदायों की उपस्थिति की ओर संकेत करते हैं। एवांजेलिकल थेयोलॉजिकल सोसायटी (ईटीएस) की वेबसाइट के अनुसार इस समुदाय की शुरूआत उत्तारी अमेरिका में वर्ष 1949 में बाइबल के प्रचार-प्रसार के लिए हुई थी।

कार्डिनल से मिली जानकारी के बाद हिन्दू नेताओं ने उन ईसाई समुदायों से मिलने की भी इच्छा जताई। इस वार्ता को कई अर्थों में महत्वपूर्ण कहा जा सकता है। इसमें बातचीत के बाद दोनों पक्ष एक-दूसरे की बातों से आश्वस्त हुए। हिन्दू धर्मगुरूओं ने माना कि उन्हें काथलिक समाज से कोई गिला शिकवा नहीं है। कार्डिनल के अनुसार हिन्दू धर्मगुरूओं ने इस बात के लिए आश्वस्त किया कि यदि कोई समाज का व्यक्ति अपनी धार्मिक आस्था किसी खास धर्म में व्यक्त करता है तो उन्हें आपत्ति नहीं है। हिन्दू धर्मगुरूओं ने कंधमाल में हुई हिंसा से खुद को अलग करते हुए कहा कि वहां जो कुछ हुआ, वह वास्तविक भारत नहीं है। स्वामी जैनेन्द्र सरस्वती ने कहा कि भारत का स्वरूप अति आध्यात्मिक है। यहां हिंसा के लिए स्थान नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की जगह आध्यात्मिक राष्ट्र कहा जाना चाहिए। चूंकि यह अति आध्यात्मिक देश है, इसलिए यहां अल्पसंख्यकों पर अत्याचार नहीं होना चाहिए।

कार्डिनल ओसवाल्ड ग्रेसियस ने स्कूल के पाठयक्रम में नैतिक शिक्षा की बातों का समावेश करने की वकालत की। ताकि बच्चे इसे पढ़कर अच्छे प्रोफेशनल के साथ-साथ अच्छे इंसान भी बने। दोनों पक्ष इस बात के समर्थन में थे कि धर्म के नाम पर हिंसा गलत है और भारत की बहुधार्मिक विशिष्टता को बचाए रखने पर यह एक कुठाराघात है। दोनों धर्मों के संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में स्वामी जैनेन्द्र सरस्वती ने अपने ग्यारह सूत्री वक्तव्य में भारत में हो रहे धर्मपरिवर्तनों को चिन्ताजनक बताया और उसकी भर्त्सना की। इसके अलावा उन्होंने शिक्षण और समाज सेवा के नाम पर आ रहे विदेशी धन और भारतीय मामलों में विदेशी हस्तक्षेप पर कड़ा एतराज जताया। उन्होंने इस्रायल में संत पापा द्वारा यात्रा के दौरान दिए गए संदेश को उद्धृत करते हुए कहा कि ‘काथलिक कलिसिया को यहूदियों के बीच सभी मिशनरी और धर्मपरिवर्तन कार्य रोक देने चाहिए।’ यह संत पापा का वक्तव्य है।

कंधमाल में हुई हिंसा की जांच के लिए भारत आने को उत्सुक अमेरिकी कमीशन की भी स्वामीजी ने तीखी आलोचना की। उन्होंने इसे भारत के मामलों में विदेशी सरकार के घुसपैठ की नीति की संज्ञा दी।

इस वार्ता में काबिलेगौर बात यह रही कि बातचीत के बाद काथलिक धर्मगुरुओं ने एक हिन्दू मंदिर में आयोजित उपासना कार्यक्रम में हिस्सा लिया और हिन्दू धर्मगुरूओं ने मुम्बई के महागिरजा घर में शाम की प्रार्थना की।

वार्ता में कांची कामकोटी पीठ के शंकराचार्य जैनेन्द्र सरस्वती और श्री श्री रविशंकर के नेतृत्व में 12 अध्यात्मिक धर्मगुरूओं का दल शामिल हुआ। वहीं ईसाई शिष्टमंडल में कार्डिनल ज्यां लुई तोरां, भारत में वेटिकन के राजदूत आर्चबिशप पेद्रो लोपज क्विंताना, मुम्बई आर्च बिशप पेद्रो लोपज क्विनताना के साथ 11 कैथोलिक प्रतिनिधि और शामिल हुए।

सामाजिक सौहार्द को बढावा देने वाली इस खबर की जितनी चर्चा मीडिया में होनी चाहिए थी, उतनी नहीं हुई। क्योंकि मीडिया को कंधमाल और गुजरात में हुए हिंसक वारदातों में तो दिलचस्पी है लेकिन इस तरह की दुर्घटनाएं दुबारा ना हो इसके लिए कोई सार्थक प्रयास कहीं हो रहा है तो उसमें उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है।

बहरहाल, इस तरह की वार्ताएं नियमित होनी चाहिए, इससे एक-दूसरे धर्म के संबंध में जानने का मौका दोनों पक्षों को मिलेगा और कई तरह की गलतफहमियां भी दूर होंगी।

-आशीष कुमार ‘अंशु’