अंतवस्त्रों और चप्पलों पर हिन्दू देवी देवताओं की तस्वीर

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अवनीश सिंह

कुछ दिन पहले भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में चित्रकार मकबूल फ़िदा हुसैन ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हिन्दू देवी देवताओं की नग्न तस्वीरें बनाकर अपनी लोकप्रियता में चार चाँद लगाया था। उसके कुछ ही दिन बाद एक विदेशी वेश्या काली का रूप धरकर मर्दों से आलिंगन करती हुई अपने आपको सबसे अलग दिखाने की कोशिश में मशहूर हो गयी।

पिछले दिनों ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में हुए एक फैशन शो में लिसा ब्लू नामक फैशन डिज़ाईनर द्वारा खुल कर हिन्दू देवी-देवताओं के अपमान का मामला सामने आया है। इस फैशन शो में डिजाइनर लीजा ब्लू ने जो कलेक्शन पेश किया उसमें हिंदू देवी-देवताओं के चित्रों को अश्लील तरीके से इस्तेमाल किया गया। फैशन शो में एक मॉडल के अंत वस्त्रों पर और जूते चप्पलों पर हिन्दू देवी देवताओं की तस्वीरों का प्रदर्शन किया गया, और हमेशा की तरह धर्मनिरपेक्षता के चलते दुनिया के एक मात्र हिन्दू बहुसंख्यक देश भारत की नपुंसक सरकार ने इस मामले में रूचि लेना तो दूर की बात अंतरराष्ट्रीय समाज में इस कुकृत्य के लिए कोई विरोध दर्ज कराना भी उचित नहीं समझा।

ऐसी हास्यास्पद घटनाओं की जितनी निंदा की जाए, कम है। बार बार हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान हो रहा है। यह इस देश की विडंबना है अगर ऐसी घटना किसी अन्य समुदाय के साथ हो तो सरकार तुरंत हरकत में आ जाती है। यह घृणात्मक कृत्य इस बात का द्योतक है कि पश्चिमी समाज कितना असभ्य, आशालीन और शैतानियत का नेतृत्व करने वाला समाज है। हिन्दुओ में जागरूकता, विवेक, हौंसले तथा संगठन की कमी है जिस कारण यदा-कदा कोई न कोई घटना देश या फिर विदेश में घटती ही रहती है। मुसलमानो का गुस्सा इस असभ्य समाज के प्रति कितना सही है वास्तव मे अब कुछ लोगों को समझ मे आ रहा होगा। डेनमार्क में एक कार्टून बनता है और पूरे विश्व का मुसलमान सड़कों पर उतर जाता है।

हालांकि, विदेशों में इस तरह की हरकत का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी सस्ती लोकप्रियता और विवादों में बने रहने के लिए और भी कई हस्तियों ने देवी-देवताओं के चित्रों को मोहरा बनाया। कभी जूते-चप्पल पर, तो कभी टॉयलेट शीट पर देवी-देवताओं की तस्वीरें बनाई जा चुकी हैं। पिछले साल ही एक नामी मल्टिनैशनल कंपनी ने भगवानों की तस्वीरों वाले जूते बाजार में उतारे थे। एक नामी फैशन डिजाइनर ने तो सारी हदें ही पार कर स्विमवेयर पर देवी-देवताओं की तस्वीरें बनाई थीं, उसका भी जमकर विरोध हुआ था और उसे अपनी ड्रेस वापस लेनी पड़ी थीं। ये मानसिक रुप से कितने दिवालिए हो सकते हैं, यह इन तस्वीरों को देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है।

धार्मिक मान बिंदु आस्था के प्रतीक होते हैं और हर समुदाय के अपने धार्मिक मान बिंदुओं के सम्मान की रक्षा का पूर्ण अधिकार है। बात-बात पर हिन्दुओं के विरुद्ध बोलने-लिखने वाले “सैकुलर” अब इन प्रश्नों का क्या जवाब देंगे। आज देश की राजनीति को अपने घर की बपौती समझने वाले, धर्मनिरपेक्ष शब्द का भी कहाँ पालन कर रहें हैं। यहाँ तो तुष्टिकरण का खेल चल रहा है, भारत के हित में सोंचने वालों को सांप्रदायिक करार दिया जाता है तथा संस्कृति का गला घोंटने वाले धर्मनिरपेक्ष कहलाते हैं। सेक्युलारिस्म की आड़ में आम इंसान को रौंदा जा रहा हैं। यह तुष्टीकरण की नीति एक बडी बीमारी है! इससे तथाकथित “अल्पसंख्यकों” के वोट खीचे जा सकते हैं लेकिन भारत का भला नहीं हो सकता। रही बात हिंदुत्व वाद की तो आज हिन्दुओ में दम ही नहीं है… उनके लिए एक जॉब, एक सुन्दर पत्नी और थोडा सा बैंक में मनी ही बहुत कुछ हैं। इसके विपरीत में गैर हिन्दूओं का स्लोगन हैं चाहे पंचर जोड़ेगे पर भारत को तोडे़गे। यह स्लोगन मैंने एक पत्रिका में पढ़े थे वाकई आज सही साबित हो रहा है।

आज तथाकथित धर्म निरपेक्षतावादियों के द्वारा जिस तरह से हमारी शाश्वत संस्कृत को धूमिल और मिटने के कुत्सित षड्यंत्र रचे जा रहे हैं वह निंदनीय और भत्सर्नीय नहीं अपितु दण्डनीय है। इस तरह के दुष्प्रचारकों को कड़ा से कड़ा दण्ड दिया जाना चाहिए। अब वक्त आ गया है कि इन कुकृत्यों का मुंह तोड जवाब दिया जाना चाहिए …और भारत सरकार को भी अब अपनी किन्नरी आदत को छोडकर बाहर आना चाहिए।

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अवनीश राजपूत
उत्तर प्रदेश के एक छोटे शहर,आजमगढ़ में जनवरी 1985 में जन्म और वहीँ स्नातक तक की शिक्षा। वाराणसी के काशी विद्यापीठ से पत्रकारिता एवं जनसंचार में परास्नातक की शिक्षा। समसामयिक एवं राष्ट्रीय मुद्दों पर नियमित लेखन। हैदराबाद और दिल्ली में ''हिन्दुस्थान समाचार एजेंसी'' में दो वर्षों तक काम करने के उपरांत "विश्व हिंदू वॉयस" न्यूज वेब-पोर्टल, नई दिल्ली में कार्यरत।

7 COMMENTS

  1. इससे ज्यादा शर्मनाक शायद ही कुछ हो ? सबको इससे खास फर्क नही पडता यदि होता तो यह सब करने ही हिम्मत ही शायद कोई उठा सकता हो।

  2. बड़े ही शर्म की बात है की हिन्दू देवी देवताओं को अपमानित किया जा रहा है. हर हिन्दू इसका विरोध करता है. किन्तु हमारी सरकार को चाहिए की अधिकारिक रूप से कड़े शब्दों में इसका विरोध दर्ज करना चाइये.
    भारत देश की सभ्यता, संस्कृति, आस्था का विदेशो में अपमान किया जाता रहा है. अगर हमारी सरकार इसका विरोध करेगी तो किसी की हिम्मत नहीं होगी आगे से इस तरह की करतूत करे. जाने क्यों हमरी सरकार डरती है हमरी रोटी मिलनी बंद हो जाएगी, या हमारा हुक्का पानी बंद हो जायेगा. हमे समझना चाइये की भारत सम्रद्ध देश है, हमे किसी की जरुरत नहीं बल्कि दुनिया को हमारी जरुरत है.
    धन्यवाद अवनीश जी.

  3. आदरणीय डॉ. राजेश कपूर जी आपने इस मंच पर दो मर्तबा मुझे भाई करके संबोधित किया
    मुझे अच्छा लगा क्योंकि जब आप जैसे गुणी लोग हम जैसे नाचीज की बात का सराहना करे तो यह यक़ीनन बड़ी बात है.
    मै जनता हूँ यहाँ पर व्यक्तिगत बात के लिए सही मंच नहीं लेकिन मेरे पास आपका मेल आई डी न होने के कारण मै आपको इसी मंच के माध्यम से अपना सलाम पेश करता हूँ.

    अब्दुल रशीद
    सिंगरौली मध्य प्रदेश

  4. भाई अब्दुल रशीद ने सही सन्देश दिया है. शक्ति के प्रदर्शन के बिना कोई नहीं समझता.
    कोई पूछे इनसे की क्या आज तक हम भारतीयों ने जूते चप्पलों या अन्तः वस्त्रों पर ईसामसीह की तस्वीर बनाई ? क्यों नही बनाई ? क्योंकि हम असभ्य और अनैतिक नहीं. हम अपने इष्टों का आदर करते हैं तो दूसरों के इष्टों का आदर करने शालीनता व नैतिकता हम में है.
    दूसरों के मान बिन्दुओं को खंडित करना इन असभ्यों के स्वभाव में आज तक है. गोआ और केरल का इतिहास इनके बहाए रक्त से रंजित है.
    संसार को लूट कर एकत्रित की संपत्ति से सभ्यता नहीं आती. दूसरों को यातना देने, सताने व प्रताड़ित करने की इनकी प्रवृत्ती आज भी वही ही जो क्रुसेड के समय थी. तब भी अपनी हिंसक प्रवृत्ती के चलते इन लोगों ने करोड़ों की ह्त्या की थी और आज भी उसी स्वभाव का प्रदर्शन कर रहे हैं.
    ईसा को जितना हम ने आत्मसात किया, उतना ये यूरोप के ईसाई आज तक न कर पाए. विडंबना ही तो है की जो ईसा दूसरों के हित में, अहिंसा व्रत का पालन करते हुए सूली पर चढ़ गए, उनके ये अनुयायी मानसिक व शारीरिक हिंसा से आज भी बाज नहीं आ रहे.
    हिन्दू देवी-देवताओं का बार-बार अपमान करने के पीछे इनकी अतीत कालीन हिंसक व पर पीडक प्रवृत्ती ही एकमात्र कारण नहीं. ये लोग हमारी प्रतिक्रया को बार-बार परख कर उसका मूल्यांकन करते रहते है और देखते हैं की इनके प्रयासों से हिदू कितना दुर्बल हुआ.
    आप भूले न होंगे की यह वही आस्ट्रेलिया है जिसने भारतीय ईसाईयों की सुरक्षा के लिए हमारे प्रधानमंत्री को डांट पिलाई थी. और हमारे स्वाभिमान रहित प्रधानमंत्री इस राष्ट्रीय अपमान पर चुप रहे थे. यानी भारत के ईसाई भारत के नहीं आस्ट्रेलिया के वफादार हैं. दुःख की बात तो यह है की एक भी ईसाई नेता या मुखिया ये नहीं कहा की यह हमारा घर का मामला है, विदेशियों को इसमें दखल देने के ज़रूरत नहीं. पर जब प्रधानमंत्री ही ऐसा हो तो किसी और का क्या दोष.
    तो ऐसे साम्प्रदायिक सोच के देश आस्ट्रेलिया की यह करतूत कोई पहली बार नहीं और न अनजाने में हुई है. एक सोची- समझी साजिश का अंग है. उसकी असहनशील संकीर्ण पश्चिमी ईसाई , हिन्दू विरोधी मानसिकता की अभिव्यक्ति है. आप जानते हैं न की इन लोगों ने कई करोड़ गैर ईसाई आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की क्रूर ह्त्या की थी ? वही, वही हैं ये लोग. गोरी चमड़ी देख कर किसी भ्रम में न रहना. दिल वही पहले जैसे काले हैं.

  5. मानसिक रूप से अपंग लोग को मुहतोड़ जवाब देना बहुत जरूरी है. सभ्यताविहीन समाज को क्या मालूम धर्म का मतलब. और भारत की संस्कृती क्या है.
    शांत समुन्द्र की असलियत तब पता चलता है जब सुनामी आता है.
    भारत के शांत स्वभाव को कमजोरी न समझे,जवाब देना जानते है हम भारतीय.

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