रामस्वरूप रावतसरे
पराग जैन का नाम खुफिया हलकों में ‘सुपर जासूस’ के तौर पर गूँजता है चाहे वह ‘ऑपरेशन सिंदूर‘ में आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद करना हो, जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर खुफिया नेटवर्क बनाना हो या फिर कनाडा और श्रीलंका में भारत-विरोधी साजिशों को नाकाम करना हो। आईपीएस पराग जैन ने हर मोर्चे पर अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है। वो हमेशा पर्दे के पीछे रहकर भारत की सुरक्षा की ढाल बने रहे हैं।
पराग जैन ने भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (आर-एडब्ल्यु) का 1 जुलाई 2025 को प्रमुख का पद भार संभाल लिया है। मोदी सरकार ने 28 जून 2025 को पंजाब कैडर के 1989 बैच के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी पराग जैन को रॉ का नया प्रमुख नियुक्त किया था। आज जब भारत को पाकिस्तान, चीन, खालिस्तानी नेटवर्क और साइबर हमलों जैसे कई बाहरी खतरों का सामना करना पड़ रहा है। तब पराग जैन की नियुक्ति एक मजबूत संदेश देती है कि भारत अब अपनी खुफिया रणनीति को और सशक्त करने जा रहा है।
1989 बैच के पंजाब कैडर के इस आईपीएस अधिकारी ने अपने करियर की शुरुआत तब की, जब पंजाब आतंकवाद की आग में जल रहा था। भटिंडा, मानसा और होशियारपुर जैसे संवेदनशील जिलों में उन्होंने आतंकवादियों के खिलाफ मोर्चा संभाला। उस दौर में जैन ने जमीनी स्तर पर खतरनाक ऑपरेशनों को अंजाम दिया। बाद में वे चंडीगढ़ के एसएसपी और लुधियाना के डीआईजी बने, जहाँ उन्होंने आतंकवाद-विरोधी अभियानों में अहम भूमिका निभाई लेकिन पराग जैन की असली ताकत तब सामने आई, जब वे रॉ से जुड़े। वर्तमान में वे रॉ के विशेष निदेशक हैं और एविएशन रिसर्च सेंटर (एआरसी ) का नेतृत्व कर रहे हैं। एआरसी वो इकाई है जो हवाई निगरानी और तकनीकी खुफिया जानकारी जुटाने में माहिर है। जैन ने इसे और मजबूत किया। उनकी खासियत है कि वे इंसानों से मिली खुफिया जानकारी और तकनीकी जानकारी को मिलाकर ऐसी रणनीति बनाते हैं, जो दुश्मनों के लिए पहेली बन जाती है।
जानकारी के अनुसार उनका करियर सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहा। कनाडा और श्रीलंका में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने खालिस्तानी नेटवर्क और भारत-विरोधी साजिशों पर गहरी नजर रखी। 1 जनवरी 2021 को उन्हें पंजाब में पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) का प्रमोशन मिला लेकिन तब वे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर थे, इसलिए सिर्फ नाममात्र का लाभ मिला। फिर भी उन्हें केंद्रीय डीजीपी के समकक्ष पद पर रखा गया जो उनकी साख को दर्शाता है। पराग जैन का नाम हाल के समय में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के लिए सबसे ज्यादा चर्चा में रहा। ये ऑपरेशन भारत की खुफिया और सैन्य ताकत का एक शानदार नमूना है। इस ऑपरेशन में जैन की अगुआई में रॉ और एआरसी ने पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में आतंकी ठिकानों की सटीक जानकारी जुटाई जिसके आधार पर मिसाइल हमले किए गए। बाहर से देखने में ये हमले कुछ मिनटों की कार्रवाई लगते हैं लेकिन इसके पीछे सालों की मेहनत थी। जैन और उनकी टीम ने जमीनी स्तर पर खुफिया नेटवर्क बनाया, लोगों से सूचनाएँ जुटाईं, सैटेलाइट तस्वीरों और अन्य तकनीकों से जानकारी को सत्यापित किया। ये काम इतना आसान नहीं था। पाकिस्तान जैसे दुश्मन देश में खुफिया जानकारी जुटाने के लिए साहस, रणनीति और धैर्य चाहिए। जैन ने अपने अनुभव और तकनीकी दक्षता के दम पर इसे मुमकिन बनाया।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद करने के साथ-साथ ये संदेश भी दिया कि भारत अपनी सीमाओं से बाहर भी दुश्मनों को जवाब दे सकता है। ये ऑपरेशन भारत की रणनीतिक ताकत का प्रतीक बन गया और इसके पीछे पराग जैन जैसे सिपाही थे, जो पर्दे के पीछे काम करते हैं।
जैन का जम्मू-कश्मीर में गहरा अनुभव और पाकिस्तान से जुड़े मामलों की उनकी समझ उन्हें इस चुनौती से निपटने के लिए सबसे सशक्त बनाती है। अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण और बालाकोट एयर स्ट्राइक जैसे मौकों पर उन्होंने जमीनी खुफिया जानकारी जुटाने में अहम भूमिका निभाई। पाकिस्तान में खुफिया नेटवर्क बनाना आसान नहीं है, क्योंकि वहाँ की खुफिया एजेंसी आईएसआई हर कदम पर नजर रखती है। फिर भी जैन ने अपने नेटवर्क और रणनीति से कई बार पाकिस्तान को चौंका दिया है।
रॉ का काम भारत की सीमाओं के बाहर खुफिया जानकारी जुटाना और देश की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। लेकिन विदेशों में ऑपरेशन्स चलाना बच्चों का खेल नहीं है। सबसे बड़ी चुनौती है गुप्त रूप से काम करना। अगर किसी एजेंट की पहचान उजागर हो जाए तो उसकी जान को खतरा हो सकता है। इसके अलावा, दुश्मन देशों में तकनीकी निगरानी, साइबर हमले और ड्रोन जैसे खतरे बढ़ गए हैं। पाकिस्तान और चीन जैसे देशों में खुफिया नेटवर्क बनाना बेहद जटिल है। वहाँ की सरकारें और उनकी खुफिया एजेंसियाँ भारत के हर कदम पर नजर रखती हैं। फिर भी जैन ने कनाडा में खालिस्तानी नेटवर्क पर नजर रखकर और श्रीलंका में भारत के हितों को बढ़ावा देकर दिखाया कि वे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी माहिर हैं। कनाडा में उन्होंने खालिस्तानी नेटवर्क की साजिशों को समय रहते उजागर किया और दिल्ली को चेतावनी दी कि ये नेटवर्क बड़ा खतरा बन सकता है। श्रीलंका में उन्होंने तमिल संगठनों और चीन की बढ़ती मौजूदगी पर नजर रखी।
रॉ भारत की बाहरी सुरक्षा की रीढ़ है। सरकार को इस एजेंसी पर भरोसा इसलिए है क्योंकि ये बार-बार अपनी काबिलियत साबित कर चुकी है। चाहे वह बालाकोट एयर स्ट्राइक हो, ऑपरेशन सिंदूर हो या फिर अनुच्छेद 370 के बाद जम्मू-कश्मीर में स्थिरता बनाए रखना, रॉ ने हमेशा सटीक और समय पर जानकारी दी। इस एजेंसी की खासियत है कि ये गुप्त रूप से काम करती है और इसके ऑपरेशन्स की जानकारी आम लोगों तक नहीं पहुँचती। रॉ के पास अनुभवी अधिकारी, आधुनिक तकनीक और वैश्विक नेटवर्क हैं। ये न केवल दुश्मन देशों पर नजर रखती है बल्कि दोस्त देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी भी बनाए रखती है। पराग जैन जैसे अनुभवी नेतृत्व के साथ सरकार को उम्मीद है कि रॉ और प्रभावी होगी।
पराग जैन 1 जुलाई 2025 से दो साल के लिए रॉ प्रमुख का कार्यभार संभालेंगे, यानी उनका कार्यकाल जून 2027 तक रहेगा। इस दौरान उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी होगी भारत की बाहरी सुरक्षा को मजबूत करना। पाकिस्तान और चीन के अलावा, खालिस्तानी गतिविधियां, साइबर हमले और दक्षिण एशियाई देशों में अस्थिरता जैसे मुद्दों पर उनकी नजर रहेगी।
जैन पर भरोसा है कि वे रॉ को और आधुनिक बनाएँगे। ड्रोन तकनीक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और साइबर खुफिया जानकारी जैसे क्षेत्रों में रॉ को और भी मजबूत करना उनकी प्राथमिकता होगी। साथ ही जमीनी नेटवर्क को और गहरा करना भी जरूरी है, ताकि भविष्य में पहलगाम जैसे हमले रोके जा सकें। पराग जैन की नियुक्ति सिर्फ एक प्रशासनिक बदलाव नहीं है बल्कि भारत की खुफिया रणनीति में एक बड़ा कदम है। रॉ प्रमुख की दौड़ में सुनील अचौया जैसे नाम भी चर्चा में थे लेकिन सरकार ने जैन पर भरोसा जताया। इसका कारण है उनकी संतुलित सोच, जमीनी अनुभव और तकनीकी समझ।
जानकारों की माने तो जैन चुपचाप लेकिन असरदार ढंग से काम करते हैं। वे टीम के साथ मिलकर काम करने में यकीन रखते हैं और सिस्टम में बदलाव लाने की कला जानते हैं। उनकी नियुक्ति ये बताती है कि सरकार रॉ को सिर्फ एक जासूसी संस्था नहीं, बल्कि एक रणनीतिक सुरक्षा स्तंभ के रूप में देख रही है।
बताया जाता है जैन की सबसे बड़ी खासियत है कि वे फाइलों और कागजी काम तक सीमित नहीं रहते। वे ग्राउंड लेवल पर मजबूत नेटवर्क बनाते हैं। चाहे वो कनाडा हो, कश्मीर हो या खाड़ी देश, जैन हर जगह भारत की खुफिया मौजूदगी को और मजबूत कर सकते हैं। उम्मीद है कि वे रॉ को ड्रोन तकनीक, साइबर खुफिया, और रॉ जैसे क्षेत्रों में और सशक्त करेंगे। साथ ही, वे जमीनी नेटवर्क को और गहरा करेंगे ताकि भारत को हर खतरे की समय रहते जानकारी मिल सके।
पराग जैन का रॉ प्रमुख बनना सिर्फ एक नियुक्ति नहीं बल्कि भारत की खुफिया रणनीति में एक नया अध्याय है। ऑपरेशन सिंदूर, बालाकोट, और जम्मू-कश्मीर जैसे उनके पिछले कारनामों ने उनकी काबिलियत को साबित किया है लेकिन चुनौतियाँ कम नहीं हैं। पाकिस्तान, चीन, खालिस्तानी नेटवर्क और साइबर हमले जैसे खतरे उनके सामने हैं। ऐसे में जैन का अनुभव और उनकी रणनीतिक सोच रॉ को और मजबूत कर सकती है। आने वाले दो साल भारत की खुफिया और सुरक्षा नीतियों के लिए बेहद अहम होंगे। जैन की अगुआई में रॉ न केवल भारत की सुरक्षा को और सशक्त करेगी बल्कि वैश्विक खुफिया मंच पर भारत को और मजबूत बनाएगी।
रामस्वरूप रावतसरे