जंग बढ़ा रहे हैं गडकरी

5
137

तेजवानी गिरधर

प्रोजेक्ट न करने की कह कर भी जंग बढ़ा रहे हैं गडकरी

बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की ओर से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में अस्वीकार किए जाने पर हालांकि भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भले ही यह कह कर एनडीए में विवाद को विराम देने की कोशिश की हो कि भाजपा प्रधानमंत्री के रूप में किसी को प्रोजेक्ट नहीं करेगी, मगर साथ भाजपा में एक से अधिक नेताओं को प्रधानमंत्री पद के योग्य बता कर अपनी ही पार्टी में घमासान को बढ़ावा दे दिया है। कौन-कौन नेता प्रधानमंत्री पद के योग्य है, इसकी गिनती करवाने से जाहिर सी बात है कि वे खुद ब खुद दावेदारी की स्थिति में आ जाते हैं। लोगों की छोडिय़े, अगर खुद पार्टी अध्यक्ष ही कुछ नेताओं को प्रधानमंत्री पद के योग्य करार देंगे तो स्वाभाविक है कि वे मौका पडऩे पर दावेदारी करने से क्यों चूकेंगे।

ज्ञातव्य है कि हाल ही आगरा में गडकरी ने कहा कि भाजपा प्रधानमंत्री के रूप में किसी को प्रोजेक्ट नहीं करेगी। भावी प्रधानमंत्री पर फैसला लोकसभा चुनाव के बाद एनडीए करेगा। हालांकि उन्होने पार्टी के भीतर प्रधानमंत्री पद के दावेदारों का नाम भी गिना दिया। उन्होंने कहा कि भाजपा में लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और राजनाथ सिंह प्रधानमंत्री पद के योग्य हैं। साथ ही गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय नेता बता कर उन्हें भी उसी श्रेणी में शामिल कर दिया।

यहां उल्लेखनीय है कि घोटालों से घिरी कांग्रेस नीत यूपीए गठबंध की सरकार के फिर सत्ता में नहीं आने की धारणा के बीच भाजपा में प्रधानमंत्री पद के लिए पहले से ही घमासान जारी है। भाजपा भले ही वह अकेले अपने दम पर सरकार न बना पाए, मगर भाजपा नीत एनडीए तो सत्ता में आने की उम्मीद है ही। जाहिर तौर पर भाजपा सबसे बड़ा विपक्षी दल होगा, तो उसी का नेता प्रधानमंत्री पद पर काबिज हो जाएगा। यही वजह है कि भाजपा नेताओं में इस पद को लेकर लार टपक रही है।

पिछली बार कमजोर मनमोहन सिंह बनाम मजबूत लाल कृष्ण आडवाणी के नाम पर चुनाव में पराजय हासिल होने के बाद आडवाणी की दावेदारी स्वत: ही काफी कमजोर हो गई थी, बावजूद इसके वे अपनी दावेदारी को कमतर नहीं मानते। इसी के चलते उन्होंने पिछले दिनों रथयात्रा निकाली। जब यह सवाल उठा कि क्या वे प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किए जाने की तैयारी कर रहे हैं तो उन्होंने साफ कर दिया कि आडवाणी की यात्रा प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के रूप में नहीं। अब एक बार फिर खुद गडकरी ही उन्हें प्रधानमंत्री के योग्य बता कर उनके दावे को मजबूत कर रहे हैं।

जहां तक सुषमा स्वराज व अरुण जेटली का सवाल है, वे खुद ही अपने आपको प्रबल दावेदार मानते हैं और इसी के चलते पैंतरेबाजी करते रहते हैं। दोनों के बीच चल रही प्रतिस्पद्र्धा किसी से छिपी नहीं है।

अगर मोदी की बात करें तो वे सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि वे कभी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी कर सकेंगे या दावेदार माने भी जाएंगे, मगर गुजरात दंगों से जुड़े एक मामले में उच्चतम न्यायायल की व्यवस्था को उन्होंने अपनी सांप्रदायिक छवि को सुधारने के रूप में इस्तेमाल किया। उसी दौरान अमेरिकी कांग्रेस की रिसर्च रिपोर्ट में उनकी तारीफ करते हुए ऐसा माहौल बना दिया गया कि अगले आम चुनाव में प्रधानमंत्री पद का मुकाबला मोदी और राहुल गांधी के बीच हो सकता है। इससे मोदी का हौंसला और बढ़ गया और ‘शांति और साम्प्रदायिक सद्भावÓ के लिए तीन दिन के उपवास के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर सर्वमान्य नेता बनने का प्रयास किया। हालांकि तब भी शरद यादव ने मोदी के उपवास का उपहास किया था, मगर मोदी का अभियान नहीं रुका। कट्टरवादी हिंदू मानसिकता के लोगों ने तो बाकायदा फेसबुक व ट्विटर पर अभियान सा छेड़ रखा है। बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से उनके पक्ष में माहौल बनाया जा रहा है। इसी से चिढ़े बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने ताल ठोक कर कह दिया कि एनडीए को धर्मनिरपेक्ष चेहरा ही स्वीकार्य होगा। उनका सीधा सा इशारा मोदी को प्रोजेक्ट न किए जाने को लेकर है। हालांकि इस बात को लेकर एनडीए संयोजक शरद यादव ने ऐतराज किया है कि इस विषय को उठाना ठीक नहीं है। वैसे भी यह भाजपा का अंदरुनी मामला है कि वह किसी को प्रोजेक्ट करती है या नहीं। उसके बाद भी किसी को अंतिम रूप से प्रोजेक्ट किए जाने का निर्णय एनडीए को करना है। अत: अभी से इस पर चर्चा करके माहौल नहीं बिगाड़ा जाना चाहिए। कदाचित इसी वजह से गडकरी ने यह कह कर उफनते दूध पर छींटे डालने की कोशिश की है कि भाजपा किसी को प्रोजेक्ट नहीं करेगी। मगर साथ ही जब मोदी सहित कुछ और नेताओं को प्रधानमंत्री पद के योग्य करार दिया तो क्या इस बात की आशंका नहीं रहेगी कि वे एक-दूसरे को काटने की कोशिश करेंगे। सुना तो यह तक जाता है कि कुछ दिग्गज नेता मोदी का नाम ज्यादा प्रचारित होने से परेशानी में हैं और यदि उनका जोर चला तो वे मोदी को गुजरात विधानसभा चुनाव में ही निपटा देंगे।

यदि निष्पक्ष पर्यवेक्षकों की राय मानें तो भले ही मोदी व आडवाणी का जनाधार अन्य नेताओं के मुकाबले अधिक है, लेकिन दोनों पर कट्टरपंथी माना जाता है, इस कारण राजग के घटक दल उनके नाम पर सहमति नहीं देंगे। सुषमा व जेटली अलबत्ता कुछ साफ सुथरे हैं, मगर उनकी ताकत कुछ खास नहीं। इसलिए वे चुप रह कर मौके की तलाश कर रहे हैं। वे जानते हैं कि जैसे ही सरकार बनाने के लिए अन्य दलों के सहयोग की जरूरत होगी तब मोदी व आडवाणी की तुलना में उन्हें पसंद किया जाएगा।

कुल मिला कर गडकरी के ताजा बयान से भाजपा में प्रधानमंत्री पद के लिए चल रही खींचतान और बढ़ेगी

5 COMMENTS

  1. आपका बहुत बहुत शक्रिया, इसी प्रकार मार्गदर्शन करते रहियेगाश्, आपकी कुछ बातें तो एकदम सटीक हैं

  2. श्री नितिन गडकरी वही कर रहे हैं जो एक अध्यक्ष को करना चाहिए. अर्थात वक्त से पहले न बोलना.अभी से किसी भी नेता का नाम प्रधान मंत्री पद के लिए प्रायोजित करने से कोई लाभ नहीं है. उलटे अनवश्यक विवाद पैदा होंगे. लेकिन अगले लोक सभा चुनाव से पूर्व किसी मजबूत हिन्दुत्ववादी नेता को प्रोजेक्ट करना अतिआवश्यक होगा. अन्यथा ये प्रचार होगा की इनके पास तो कोई पी एम् पद के योग्य नेता नहीं है.ऐसा करने से यदि ‘सहयोगी’ दलों का कोई नेता या दल साथ छोड़ता है तो बेशक छोड़ दे. रिस्क लेकर भी अपनी बात पर डटे रहना भी जरूरी है. याद करें १९६९ में सारे बड़े नेताओं का साथ छोटने के बावजूद इंदिरा गाँधी जी ने रिस्क लिया और गरीबी हटाओ के नारे पर कामयाब हुईं. सारे दलों का गठ बंधन ‘ग्रांड एलायंस’ धराशायी हुआ. आने वाले दिनों में कांग्रेस की स्थिति और ख़राब होगी. लेकिन कांग्रेस के इस क्षरण का लाभ भाजपा केवल तभी उठा पायेगी जब वो एकजुट न केवल रहे बल्कि दिखाई भी पड़े. अद्वानिजी को अब स्वीकार कर लेना चाहिए की अब उनके बयानों में उम्र का असर दीखने लगा है. अतः उनको सार्वजनिक बयानबाजी और ट्विटर या ब्लॉग लिखने से बचना चाहिए. क्योंकि विरोध होने पर वो तुरंत बयां से पलट जाते हैं या बयां वापस ले लेते हैं.जिससे पार्टी की भद्द होती है.

    • आपका बहुत बहुत शक्रिया, इसी प्रकार मार्गदर्शन करते रहियेगाश्, आपकी कुछ बातें तो एकदम सटीक हैं, साधुवाद

  3. श्री तेजवानी जी का ये आलेख गहरे राजनैतिक विश्लेषण के साथ-साथ इस बात को तो पूरी तरह से सिद्ध करता है कि 2014 में यू पी ए की केंद्र सरकार जा रही है और एन डी ए की केंद्र सरकार आ रही है, जिसमें मुखिया का पद जेटली या स्वराज को मिल सकता है! हालाँकि आलेख को अच्छा विश्लेषण करने के बाद एकदम से समाप्त कर दिया है, इसमें और भी बहुत कुछ तेजवानी जी जैसा लेखक लिख सकता था!

    तो क्या भाजपा दूसरी महिला प्रधान मंत्री बनाने जा रही है? यदि ऐसा हुआ तो महिला आरक्षण विधेयक पारित होने की सम्भावना अधिक होगी और अटल बिहारी एवं आडवाणी के इर्द गिर्द के लोगों का सत्ता में महत्व बढ़ाना तय है! यदि तेजवानी जी का विश्लेष्ण सही निकला तो गडकरी का बोरिया बिस्तर भी बंधना तय है!

Leave a Reply to tejwani girdhar, ajmer Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here