राजनीति

निराधार नहीं हैं, केजरीवाल के आरोप

प्रमोद भार्गव

सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल के दिग्गज राजनेता और उनके वंशजों व रिशतेदारों पर लगाए आरोप निराधार अथवा बेबुनियाद नहीं हैं। आरोप कहीं न कहीं गड़बडि़यों की जड़ से जुड़े दिखार्इ दे रहे हैं, लिहाजा उनमें पर्याप्त दम है। संकट यह है कि नेता कांग्रेस के रहे हों अथवा भाजपा या अब एनसीपी के शरद पवार, एक ने भी इतना नैतिक बल और इच्छाशक्ति नहीं दिखार्इ कि आरोप लगने के बाद पद से इस्तीफा देते और निष्पक्ष जांच की खुद मांग करते। ऐसा इसलिए संभव नहीं हुआ कि भ्रष्टाचार के दलदल में सभी आरोपी गले-गले डूबे हैं। अब तो यह साफ हो गया है कि दाल में थोड़ा नहीं बहुत कुछ काला है और चोर-चोर मौसेरे भार्इ हैं। क्योंकि जब कांग्रेसियों का कच्चा चिटठा केजरीवाल समूह खोल रहा था तब भाजपा के प्रवक्त्ता इस्तीफा मांगते हुए निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे थे, किंतु यही आरोप जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी पर लगे तो भाजपा के पैरों तले की जमीन खिसक गर्इ और वे कांग्रेस प्रवक्ताओं के सुर में सुर मिलाते दिखार्इ दिए। इसी चालाक परिपाटी का अनुसरण एनसीपी ने किया। जाहिर है, नेता से व्यवसायी या व्यवसायी से नेता बने सभी आरोपी एक ही थाली के चटटे-बटटे हैं।

अरविंद केजरीवाल और उनके समूह के साहस को दाद देनी होगी। एक ओर तो उनकी टीम का पोल खोल अभियान जारी है, दूसरे उनके साहस का विस्तार हो रहा है। क्योंकि नितिन गडकरी का जमीन और अजीत पवार का सिंचार्इ घोटाला अंजलि दामनिया ने उनके साथ मिलकर किया। वहीं शरद पवार के लवासा मामले का भंडाफोड़ एक पूर्व आर्इपीएस अधिकारी वार्इपी सिंह ने किया। इधर ग्वालियर अंचल में सिंधिया ट्रस्ट में जमीन घोटालों को हवा मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष प्रभात झा दे रहे हैं। यही वजह है कि जहां सत्तापक्ष से जुड़े राजनेताओं की हवा खराब हैं, वहीं विपक्ष भी गडकरी पर आरोप के बाद हलाकान है। सामाजिक कार्यकर्ताओं के लगातार सामने आने की स्थिति इसलिए बन रही है, क्योंकि लगे आरोपों की जांच कराने को कोर्इ भी व्यक्ति या दल तैयार नहीं हैं और कार्यकर्ताओं द्वारा किए जा खुलासों को मीडिया में बराबर जगह मिल रही है। सलमान खुर्शीद ने फर्रूखाबाद यदि केजरीवाल आए तो लौटकर नहीं जाएंगें वाली जो धमकी दी है, उसमें सलमान के साथ पूरी कांग्रेस के खिलाफ घृणा का वातावरण बन रहा है और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जनता की सहानभूति हासिल हो रही है। यही कारण है कि यदि हम तत्काल अरविंद ओर उनके कालांतर में असितत्व में आने वाले राजनीतिक दल के भविष्य की बात छोड़ भी दें तो जिन दलों के रहनुमाओं पर आरोप लगे हैं, उनकी लोकप्रियता का जरुर क्षरण होने लग गया है।

यहां सवाल उठते हैं कि राबर्ट बडरा और डीएलएफ के बीच यदि लेनदेन सही था और करारनामा नियमानुसार था तो राजस्व अधिकारी अशोक खेमका ने इस डील को खारिज क्यों किया। जब बडरा का कारोबार संकट में था, तब महज 50 लाख की धनराशि से उनकी संपतित पांच सौ करोड़ से भी ज्यादा की कैसे हो गर्इ ? बडरा और डीएलएफ के प्रमुख के बीच हुए लेनदेन महज दो व्यापारियों का कारोबार था, तो पूरी कांग्रेस और सप्रंग में शामिल कांग्रेस के मंत्री और कर्नाटक के राज्यपाल हंसराज भारद्वाज क्यों सफार्इ के लिए पेश आए ? दरअसल हरियाणा में कांगे्रस की सरकार है और बडरा एवं डीएलएफ की जो संपतितयां वजूद में आर्इं हैं, वे भी हरियाणा में हैं। हरियाणा सरकार का कार्य व्यवहार यदि नीति-सम्मत है और वाकर्इ सत्ता का दुरुपयोग कर लाभ नहीं पहुंचाया गया है, तो निष्पक्ष जांच में आपतित क्यों है ?

कानून मंत्री सलमान खुशीद की विकलांग सेवा तो जगजाहिर हो चुकी है। इसमें कितनी उन्होंने विकलांगों की सेवा की और कितना अपने ट्रस्ट को लाभ पहुंचाया इसका खुलासा तो अब ‘आजतक के अलावा तमाम चैनलों, अखबारों और केजरीवाल ने विस्तार से कर दिया है। कर्इ अधिकारियों ने भी उनके फर्जी दस्तखत कर ट्रस्ट द्वारा ही दस्तावेज तैयार कर लेने की बात सार्वजनिक रुप से मंजूर कर ली है। बावजूद यदि सलमान खुशीद मंत्री पद पर काबिज हैं, तो यह देश और जनता का दुर्भाग्य है, केजरीवाल तो अपना काम करके आगे बढ़ चुके हैं।

गडकरी के मामले को लेकर केजरीवाल पर कुछ लोग यह आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने इस मामले का खुलासा करने में जल्दबाजी की और दस्तावेजों का कूट परीक्षण के साथ मौके का मुआयना नहीं किया। हो सकता है, ऐसा हो भी, किंतु गडकरी को महाराष्ट्र सरकार ने जिस तरह से महज चार दिन में सौ एकड़ जमीन पटटे पर 11 साल के लिए दे दी, यह जल्दबाजी ही इस बात का संकेत है कि आशिक ही सही, गड़बड़ी जरुर है। आनन-फानन में इस अनुबंध को अंजाम तक पहुचाना ही, इस बात का पुख्ता सबूत है कि भाजपा और एनसीपी के बीच सांठगांठ है और वे परपर हित साध रहे है। यदि नितिन गडकरी पाक-साफ हैं तो खुद अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर निष्पक्ष जांच की मांग करते ? यदि वे जांच कराने का उदाहरण पेश करते, तो राजनीतिक सुधार की दिशा में एक कदम आगे बढ़ता और निर्दोष साबित होने पर जनता उन्हें मसीहा मान लेती। लेकिन हिम्मत तो गडकरी तब न जुटा पाएंगे, जब दामन पाक हो ?

शरद पवार का लवासा काण्ड वार्इपी सिंह ने उठाया है। लवासा मामले में बड़े पैमाने पर गलत तरीके से किए भूमि अधिग्रहण का मामला सामने आया है। हालांकि इस मामले की पर्यावरण को हानि पहुंचाने को लेकर सुगबुगाहट बहुत पहले से थी और इस परिप्रेक्ष्य में लवासा का मामला उच्च न्यायालय मुंबर्इ में विचाराधीन भी है। लवासा के दायरे में राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार तो हैं ही, शरद की बेटी सुप्रिया सुले और उनके पति सदानंद सुले भी लवासा के लपेटे में हैं। यह मामला 348 एकड़ जमीन को मात्र 23 हजार रुपये प्रति माह की लीज से जुड़ा है। जबकि इस जमीन को कानूनन नीलामी के मार्फत हस्तांतरित करने की जरुरत थी।

अभी राजनीतिक के दिग्गजों से जुड़े ये चंद घोटाले सामने आए हैं, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं के साहस को जो उर्जा अरबिंद केजरीवाल से मिल रही है, उससे तो यह लगता है कि आने वाले दिनों में बड़ी संख्या में राजफाश होंगे। इसीलिए समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा है कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन के नेता अरविंद केजरीवाल से निपटने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि उन्हें तब तक नजरअंदाज किया जाए, जब तक वे अपने आरोप दोहराते हुए थक न जाएं। भ्रष्टाचार में डूबे मुलायम जैसे नेता यही कह सकते हैं क्योंकि सामाजिक कार्यकत्ताओं को या नकारो या लालू प्रसाद यादव की तरह उनकी नीयत पर ही सवाल खडे़ कर दो। राजनीति अपनाना और राजनीतिक दल बनाना किसी भी रुप में खराब नीयत का संकेत नहीं है। अब तक सामाजिक सरोकारों से जुड़े अरविंद केजरीवाल ने जो भी मुददे उठाए हैं, उनका सामाजिक , राजनीतिक और आर्थिक महत्व है। इसलिए जनता का भी दायित्व बनता है कि जो सामाजिक कार्यकर्ता जान जोखिम में डालकर ताकतवर भ्रष्टाचारियों के भ्रष्टाचार का खुलासा कर रहे हैं, उनके साथ वह खड़ी दिखार्इ दे। क्योंकि जमीनों का जिस तरह से व्यक्ति आधारित केंद्रीयकरण हो रहा है, वह किसान, मजदूर और वंचितों की आजीविका के लिए खतरनाक है।