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बेल बॉन्ड के सन्दर्भ में: अरविन्द केजरीवाल और यशवंत सिन्हा

-आर. सिंह-
kejriwal

जब अरविन्द केजरीवाल ने नितिन गडकरी द्वारा दाखिल मानहानि के मुकदमे में बेल बॉन्ड नहीं भरा था और उन्ही के पार्टी एक सदस्य योगेन्द्र यादव ने उसी दौरान एक अन्य केस में बेल बॉन्ड भरा तो बहुत हल्ला मचा था. मीडिया के साथ भाजपा वाले आवाज में आवाज मिला कर इसे नाजायज ठहरा रहे थे और क़ानून का खुलम खुला उल्लंघन मान रहे थे. उनका यह भी कहना था कि जब योगेन्द्र यादव ने बेल बॉन्ड भरा तो अरविन्द केजरीवाल ने ऐसा करने से मना क्यों किया? आज जब यशवंत सिन्हा और उनके समर्थकों ने बेल बॉन्ड नहीं भरा तो यह प्रश्न फिर से सामने आ गया है. फर्क इतना ही है कि अब मीडिया के साथ वे हल्ला मचाने वाले भी खामोश हैं.

बात आगे बढ़ती है, तब पता चलता है कि योगेन्द्र यादव ने धारा १४४ का उल्लंघन किया था, जबकि अरविन्द केजरीवाल एक ऐसे मामले में दोषी थे, जो खुद विवास्पद है. अरविन्द केजरीवाल ने नितिन गडकरी द्वारा किये गए भ्रष्टाचार का मामला उठाया था. इसके बारे में उन्होंने सबूत पेश किया था. उनका सीधा तर्क यह था कि जब तक उस मामले की पूरी जांच नहीं हो जाती, तब तक वे मानहानि वाले जुर्म के दोषी कैसे हैं? जब मजिस्ट्रेट ने इस तर्क को मानने से इन्कार किया तो इस तर्क को आगे बढ़ने के लिए उन्होंने जेल जाना उचित समझा और साथ ही साथ इसको हाई कोर्ट में सुनवाई के लिए पेश किया गया. उनका यह भी तर्क था कि इससे तो उन सब लोगों के हाथ में एक हथियार आ जाएगा, जिनके दुष्कर्मों के विरुद्ध कोई आवाज उठाना चाहता है. ऐसा नहीं था कि वे दस हजार नहीं दे सकते थे, पर जिसके पास जमानत देने के लिए पैसे न हो, वह किसी अन्याय के प्रति आवाज न उठाये यह कहां का न्याय है? क्या इन्ही कारणों से आज जेल में ७०% से ज्यादा उनलोगों की संख्या है, जिनके विरुद्ध कोई चार्ज नहीं लगाया गया है?

यशवंत सिन्हा और योगेन्द्र यादव के क़ानून की अवहेलना के कारणों पर न जाकर अगर उसे केवल क़ानून की दृष्टि से देखा जाए, तो मेरे विचार से वे दोनों एक ही श्रेणी में आते हैं. दोनों मामलों में देश का क़ानून तोडा गया है.दोनों मामलों में सरकारी कर्मचारियों को उनके आफिसियल कार्य करने में बाधा पहुंचाई गयी है, अतः दोनों एक ही श्रेणी में आते हैं,जबकि अरविन्द केजरीवाल का मामला इससे एक दम अलग है. अगर इस पैमाने पर देखा जाए, तो अरविन्द केजरीवाल का बॉन्ड न भरना यद्यपि क़ानून का उल्लंघन है,तथापि यह क़ानून के एक ऐसी कमी को सामने लाता है, जिस पर पुनर्विचार आवशयक है.’जबकि यशवंत सिन्हा का जमानत न लेना एक ऐसे अराजक माहौल को जन्म देता है, जिससे क़ानून को हाथ में लेने वालों को प्रोत्साहन मिलेगा.

हाई कोर्ट ने अरविन्द केजरीवाल द्वारा उठाये गए मुद्दे को सुनने के लिए ३१ जुलाई का तारीख तय किया है, जबकि यशवंत सिन्हा के जेल जाने में मेरे विचार से वैसा कोई मुद्दा नहीं बनता. एक अन्य प्रश्न भी है. क्या नितिन गडकरी के विरुद्ध अरविन्द केजरीवाल द्वारा लांछन जायज है, तो इसका फैसला भी तो अदालत ही करेगी. इसके लिए अदालत अपनी और से भी जांच का आदेश दे सकती है. जब तक यह न सिद्ध हो जाये क़ि नितिन गडकरी इस मामले में निर्दोष हैं, तब तक अरविन्द केजरीवाल को दोषी नहीं ठहराया जा सकता…