रामस्वरूप रावतसरे
असम के गुवाहाटी में 5 अगस्त 2024 को भारी बारिश के बाद अचानक बाढ़ आ गई थी। पहाड़ी इलाकों से आया पानी जराबात और मालीगाँव जैसे निचले इलाकों में भर गया जिससे सड़कें डूब गईं, ट्रैफिक रुक गया और भारी नुकसान हुआ। उस समय असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने मेघालय की यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (यूएसटीएम) पर ‘जमीन कब्जाने’ का आरोप लगाते हुए इसे ‘फ्लड जिहाद’ कहा था। इस बयान पर काफी विवाद हुआ।
यूएसटीएम के चांसलर महबूब-उल-हक ने तब दावा किया था कि यूनिवर्सिटी पूरी तरह वैध है और मेघालय सरकार से सभी मंजूरी ली गई है। उन्होंने गुवाहाटी की खराब ड्रेनेज व्यवस्था को बाढ़ का असली कारण बताया था लेकिन अब, एक साल बाद, सुप्रीम कोर्ट की नियुक्त सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (सीईसी) की जाँच में यूएसटीएम पर गंभीर गड़बड़ियाँ सामने आई हैं। जाँच में पाया गया कि यूनिवर्सिटी ने बड़े पैमाने पर अवैध तरीके से जमीन पर कब्जा किया, पहाड़ काटे और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुँचाया। इन कामों की वजह से ही गुवाहाटी के निचले इलाकों में बाढ़ की स्थिति बनी।
यूएसटीएम एक निजी संस्था है जिसकी स्थापना 2008 में एजुकेशन रिसर्च एंड डेवलपमेंट फाउंडेशन ने की थी। यह मेघालय के री-भोई जिले के 9जी माइल इलाके में, असम की सीमा से लगे जराबात के पास स्थित है।
असम सरकार लंबे समय से इस यूनिवर्सिटी पर जंगल काटने और पहाड़ नुकसान पहुँचाने के आरोप लगाती रही है। असम में रहने वाले एक युवक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर री-भोई और ईस्ट खासी हिल्स (मेघालय) में हो रहे पर्यावरण नुकसान और उसका असर असम पर पड़ने की शिकायत की थी। मई 2025 में असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि ब्म्ब् इस मामले की निगरानी और जाँच करे।
यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी मेघालय (यूएसटीएम ) का कैंपस लगभग 100 एकड़ पहाड़ी इलाके में फैला हुआ है। यहाँ अकादमिक इमारतों के साथ-साथ पीए संगमा मेमोरियल मेडिकल कॉलेज, ऑडिटोरियम और अन्य ढाँचे बनाए गए हैं। रिपोर्टों के अनुसार, 2011 से अब तक यूनिवर्सिटी ने कम से कम 5 पहाड़ों को समतल कर दिया ताकि निर्माण के लिए जमीन तैयार हो सके। खास बात यह है कि ज्यादातर कटाई मेघालय की तरफ नहीं बल्कि गुवाहाटी की दिशा वाली ढलानों पर की गई।
पहाड़ों और प्राकृतिक अवरोधों को काटने से जो पहले बारिश के पानी की रफ्तार को धीमा करते थे, अब पानी सीधे और तेजी से नीचे की ओर बहने लगा। इसका नतीजा यह हुआ कि मानसून का पानी सीधे उमखराह और बासिष्ठा नदियों में पहुँचने लगा, जो आगे गुवाहाटी में बाढ़ की स्थिति पैदा करता है। भारी जंगल कटाई और खुदाई से मिट्टी ढीली हो गई जिससे बड़े पैमाने पर कटाव और भूस्खलन शुरू हो गए। इसके कारण नदियों में भारी मात्रा में मिट्टी जमा होने लगी। सबसे अहम बात यह भी है कि जिन इलाकों में यह खुदाई और पहाड़ काटे गए, वह ‘डिम्ड फॉरेस्ट’ क्षेत्र थे, जिन्हें फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट, 1980 के तहत सुरक्षित माना जाता है। यहाँ प्राकृतिक ढलान और पेड़-पौधे बरसात के पानी को नियंत्रित करने के लिए बेहद जरूरी थे।
सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ( सीईसी ) की रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि केवल मौजूदा मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ही नहीं, बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने भी पहले कई बार जराबात इलाके को बाढ़ का बड़ा कारण बताते हुए सीमा पार हो रही जंगल कटाई पर चिंता जताई थी।
सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी ( सीईसी ) की जाँच में सामने आया है कि यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी मेघालय (यूएसटीएम) ने बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन किया है। रिपोर्ट के मुताबिक यूनिवर्सिटी ने लगभग 25 हेक्टेयर ‘डिम्ड फॉरेस्ट’ जमीन पर बिना अनुमति कब्जा कर लिया, जिसमें से 15.71 हेक्टेयर क्षेत्र पर निर्माण हुआ है। इसमें से 13.62 हेक्टेयर यानी 87 प्रतिशत जमीन असल में जंगल थी। इसी तरह, पीए संगमा मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के लिए तय 12.13 हेक्टेयर जमीन में से करीब 7.64 हेक्टेयर (63 प्रतिशत) को तोड़ दिया गया। बाकी जमीन को 2021 तक जंगल माना जाता था लेकिन उस पर भी अवैध कब्जा कर लिया गया, जो 1973 के मेघालय फॉरेस्ट रेगुलेशन का सीधा उल्लंघन है।
जाँच में यह भी पाया गया है कि 2017 से लगातार बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई और खुदाई की गई है। केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय के आदेशों के बावजूद यूनिवर्सिटी ने कभी भी क्षतिपूरक वनीकरण नहीं किया। स्थिति यह है कि यूनिवर्सिटी का करीब 93 प्रतिशत हिस्सा अब नष्ट, खुदाई की गई और अवैध रूप से कब्जाई गई जंगल की जमीन है जिसे सीईसी ने ‘भयानक पर्यावरणीय आपदा’ बताया है। रिपोर्ट के अनुसार,असम की तरफ ढलानों पर बड़े पैमाने पर मिट्टी काटी गई और कृत्रिम नाले बनाए गए, जिससे पानी का बहाव और तेज हो गया। इसके बावजूद यूनिवर्सिटी ने कभी भी पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) नहीं कराया। इतना ही नहीं, री-भोई जिले में अवैध खनन भी जारी है। कुल मिलाकर, सीईसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 100 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में जंगल और पहाड़ काटने से गुवाहाटी में 2024 की बाढ़ और भी विनाशकारी हो गई, यहाँ तक कि सात किलोमीटर दूर तक के इलाके भी पानी में डूब गए।
सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी ( सीईसी ) ने यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी मेघालय (यूएसटीएम ) पर कड़ा कदम उठाते हुए कुल 150.35 करोड़ का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना जंगल की जमीन के अवैध इस्तेमाल, पेड़ कटाई, पर्यावरण क्षतिपूर्ति और बहाली की लागत को ध्यान में रखकर लगाया गया है, जिसकी गणना 2017 से हुई उल्लंघनों के आधार पर की गई है। सीईसी ने आदेश दिया है कि 25 हेक्टेयर क्षेत्र को एक साल के भीतर प्राकृतिक जंगल में बहाल किया जाए और वहां बने सभी अवैध ढाँचे हटाए जाएँ। साथ ही, बराबर क्षेत्रफल की गैर-जंगल जमीन पर क्षतिपूरक वनीकरण करने का भी निर्देश दिया गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि री-भोई जिले में फिलहाल चल रहे सभी अवैध खनन, पत्थर तोड़ाई और क्रशिंग कार्यों को तुरंत रोका जाए, जब तक कि इस पर व्यापक समीक्षा पूरी न हो जाए। सुप्रीम कोर्ट अब जल्द ही इस पूरे मामले की सुनवाई करेगा।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा लंबे समय से यूएसटीएम और उसके संस्थापक महबूब-उल-हक की अवैध गतिविधियों पर सवाल उठाते रहे हैं लेकिन कांग्रेस और अन्य लिबरल समूह इसे राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप बताते हुए महबूब-उल-हक का बचाव करते रहे है लेकिन सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी ( सीईसी ) ने यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी मेघालय (यूएसटीएम ) को लेकर जो जांच रिपोर्ट दी है उसके बाद मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की बात को बल मिला है।
रामस्वरूप रावतसरे