चुनाव

विधानसभा चुनावों में परिवर्तन की बयार

मृत्युंजय दीक्षित

अप्रैल और मई माह में देश के पांच महत्वपूर्ण प्रान्तों पं. बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम एवं पुड्डुचेरी के विधानसभा चुनाव सम्पन्न होने जा रहे हैं। इस बार के चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक, महत्वपूर्ण व परिवर्तनकारी होने जा रहे हैं। इन चुनावों मे सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन पं.बंगाल व केरल में होने जा रहा है जहां अब तक प्राप्त रूझानों से स्पष्ट संकेत प्राप्त होने लगे हैं कि इस बार वामपंथियों का शासन अस्त की ओर हैं। भारत में वामपंथी राजनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार होने जा रहा है कि पं.बंगाल व केरल जहां के लिए वामपंथी अपने आप पर बड़ा ही गर्व अनुभव करते थे अब वहां की सत्ता से उनका नियंत्रण पहली बार समाप्त होने जा रहा है। पहली बार वामपंथियों को अपनी हार स्पष्ट रूप से नजर आने लगी है। विगत 34 वर्षों में पं.बंगाल में वामपंथियों ने जिस प्रकार से शासन किया है उसके लिए वे अब जनता के बीच माफी मांग रहे हैं ।आज पूरा बंगाल वामपंथियों की विकास विरोधी हठधर्मिता के चलते औद्योगिक विकास व आई.टी विकास में पिछड़ गया है। बंगाल में भुखमरी, गरीबी तथा बेरोजगारी का आलम यह है कि वहां पर कई स्थानों पर राशन की दुकानें लूट ली गयीं। बंगाल में रतन टाटा द्वारा छोटी कारों के लिए कारखाना लगाए जाने को लेकर वामपंथियों व ममता बनर्जी के बीच किस प्रकार की राजनीति हुई इसे पूरे देश ने देखा। रतन टाटा के अपमान को भुलाया नहीं जा सकता। पं.बंगाल में नारी सम्मान को तार-तार कर देने वाली घटनाएं प्रकाश में आयी हैं।कई घटनाओं ने बंगाल को ही नहीं अपितु पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया।आज स्थिति यह है कि पं.बंगाल में वामपंथियों को माफी देने के लिए कोई मार्ग भी नहीं बचा है। पं.बंगाल व बांग्लादेश से खुली सीमा से बांग्लादेशी घुसपैठियों, हथियारों व व नकली नोटों का आवागमन हो रहा है। बांग्लादेश से खुली सीमा अनाज,गोवंश के तस्करों व लड़कियों व बच्चों के तस्करों को खूब रास आ रही हैैं। माओवाद- नक्सलवाद की समस्या प्रांत मे भयावह रूप से सामने आयी है तथा माओवादियों से संबंधों को लेकर वामपंथियों व ममता बनर्जी के बीच आरोपों – प्रत्यारोपों का खूब दौर चला और दोनों ने ही एक- दूसरे पर माओवादियों का हितैषी होने का आरोप लगाया। बंगाल विधानसभा चुनाव में जो सर्वाधिक खतरनाक परिदृश्य सामने आया है वह है ममता बनर्जी द्वारा वामपंथियों को सत्ता से बेदखल करने के लिए उनके ही पैदा किए हुए माओवादियों से हाथ मिलाना। यही कारण है कि जब पुलिस संत्रास विरोधी समिति ने ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस जैसी ट्रेन को विस्फोट से उड़ा दिया तो सब कुछ जानते हुए भी रेलमंत्री ममता बनर्जी कुछ न कर सकीं।

आज वामपंथियों पर हार का भय इस कदर छाया हुआ है कि उन्होंने 9 मंत्रियों सहित 149 विधायकों को टिकट नहीं देकर एक अभूतपूर्व कीर्तिमान स्थापित किया। 34 वर्षो बाद राइटर्स बिल्डिंग पर ममता बनर्जी के रूप में एक महिला मुख्यमंत्री का शासन स्थापित होने जा रहा है। इस बार पं. बंगाल व केरल में वामपंथियों की विफलता के लिए प्रांतीय व केंद्रीय नेतृत्व जिम्मेदार होंगे। वामपंथियों की पराजय की कहानी भारतीय इतिहास में लिखा जाएगा। राजनैतिक दृष्टि से तमिलनाडु एक महत्वपूर्ण प्रांत है। जहां पर दो प्रमुख क्षेत्रीय शक्तियों द्रमुक गठबंधन व अन्नाद्रमुक गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है। तमिलनाडु की राजनीति में इस बार भ्रष्टाचार एक बहुत बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है। जिसके कारण मुख्यमंत्री के रूप में करूणानिधि की वापसी काफी कठिन हो गयी है तथा जयललिता एक बार फिर मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो सकती हैं। तमिलनाडु में भी वंशवाद निशाने पर है मुख्यमंत्री करूणानिधि व उनके परिवार 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन के जांच के दायरे में आ चुका है जिसके कारण इस परिवार की छवि जनता के बीच तार- तार हो चुकी है। विधानसभा चुनावों मे सीटों के बंटवारे को लेकर भी द्रमुक व कांग्रेस के बीच तनातनी हुई जिसमें द्रमुक को कांग्रेस के आगे घुटने टेकने पड़ गये।लेकिन सर्वाधिक चिंता इस बात की है कि तमिलनाडु में नेतृत्व परिवर्तन होने पर सुश्री जयललिता के नेतृत्व में जो अन्नाद्रमुक गठबंधन सत्ता में वापस आएगा भ्रष्टाचार को लेकर उनके भी दाग अच्छे नहीं हैं। अतः अब तमिलनाडु में वंशवाद की राजनीति का अंत करने के लिए यहां पर राष्ट्रीय दलों को अपनी पैठ बढ़ानें के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। नही ंतो यह प्रांत अभी भी एक दशक तक द्रमुक अन्नाद्रमुक की राजनीति मेंं उलझा रहेगा। वैसे भी इस बार तमिलनाडु में सत्ता परिवर्तन एकदम साफ दिखाई पड़ रहा है इसलिए यहां के राजनैतिक दल अपने मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए निःशुल्क लैपटाप देने व महिलाओं को मंगलसूत्र बनवाने के लिए 20 किलो सोना देने की घोषणाएं कर रहे हैं। तमिलनाडु में अभिनेता विजयकांत के नेतृत्ववाला नया दल डीएमडीके भी राजनैतिक विश्लेषकों को चौका सकता है।वहीं तमिलनाडु का पड़ोसी प्रांत पुड्डुचेरी है तो छोटी सी विधानसभा जो बहुत अधिक चर्चा में भी नहीं रहती है लेकिन यहां भी राजनीति तमिलनाडु के समान है और द्रमुक-अन्नाद्रमुक के बीच झूलती रहती है।यदि तमिलनाडु में राजनैतिक परिवर्तन हुआ तो पुड्डुचेरी का भी निजाम बदल जाएगा। पांचवा और अन्तिम सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रांत असम हैं ।यहां के विध्धनसभा चुनावों में फिलहाल कोई विशेष बयार व हवा बहती नहीं दिखाई पड़ रही है ।विभाजित विपक्ष के कारण दस वर्षों से शासन कर रहे मूुख्यमंत्री तरूण गोगोई एक बार फिर वापस आने का सपना संजोए हैं ।जबकि विपक्षी दल असम गण परिषद् व भारतीय जनता पार्टी सत्तारूढ़ पार्टी के प्रति असमिया जनमानस में नकारात्मक उभारों को आधार बनाकर सत्तारूढ़ हो सकते हैं। राजनैतिक विश्लेषकों का मत है कि यदि असम गण परिषद व भारतीय जनता पार्टी बेहतर तालमेल के साथ चुनावी मैदान में उतरती तो कांग्रेस को परेशानी हो सकती थी। हालांकि भारतीय जनता पार्टी कई सीटों पर बहुत मजबूती से लड़ रही है और ऐसी तैयारी कर रही है कि विधानसभा चुनावों के बाद त्रिशंकु परिणाम होने की स्थिति में सरकार गठन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सके। असम में आज बांग्लादेशी घुसपैठ एक बड़ी समस्या बन चुका है तथा दो दर्जन से अधिक ऐसी सीटें हो गयीं हैं जहां पर बांग्लादेशी घुसपैठिये चुनावी गणित को उलझा सकते हैं । असम- बांग्लादेश से लगी सीमा घुसपैठियों, तस्करों व देश विरोधी तत्वों के लिए एक बेहद आसान मार्ग बन चुका है। असम में उल्फा की समस्या बेहद गंभीर है जिसके लिए कांग्रेस की नीतियां ही जिम्ममेदार हैं। आज असम के विधानसभा चुनावों को लेकर देश में कोई विशेष चर्चा व हलचल नहीं दिखाई पड़ रही है लेकिन यहां के चुनाव परिणाम भी आश्चर्य मिश्रित हो सकते हैं। उक्त विधानसभा चुनावों का राष्ट्रीय राजनैतिक परिदृश्य पर कोई विशेष प्रभाव तो नहीं पड़ेगा।लेकिन वामपंथियों को राजनैतिक दृष्टि से एक गहरी चोट लगने जा रही है ।इन चुनाव परिणामों से वामपंथियों का ग्राफ राष्ट्रीय राजनीति में बहुत नीचे चला जाएगा और और उनका महत्व बहुत कम हो जाएगा तथा उन्हें भविष्य की अपनी रूपरेखा पर फिर से चिंतन मनन करना होगा।वहीं राष्ट्रीय स्तर पर यूपीए सरकार को अपने कामकाज को लेकर भी अतिरिक्त सतर्कता बरतनी पड़ेगी क्योंकि यह चुनाव भ्रष्टाचार पर ही केंद्रित होने जा रहे हैं और यदि भ्रष्टाचार का मुददा और गरमाया तो यह यूपीए के लिए एक खतरे की घंटी भी साबित होगा। रही बात राजग की तो उसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है अपितु इन प्रांतों में भाजपा का खाता भी खुलता है तो यह उसकी उपलब्धि ही होगी।