बिहार में ‘भोज के समय कोहड़ा (सीता-फ़ल) रोपने’ की कवायद 

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-आलोक कुमार-

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बिहार के २३ जिले सूखे की चपेट में आ चुके हैं और सरकार अभी नींद से पूरी तरह जागी भी नहीं है l मुख्यमंत्री अपने गाँव और गृह -जिले के विकास से आगे देख नहीं पा रहे हैं, चंद दिनों पहले ही मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक तौर पर ये कहा कि अपने गृह-जिले और उससे सटे जिले जहानाबाद का विकास उनकी प्राथमिकता है, ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या बिहार सिर्फ इन दो जिलों तक ही सीमित है ? या मुख्यमंत्री ये मान कर चल रहे हैं कि विधानसभा चुनावों के बाद उन्हें फिर से इस कुर्सी पर काबिज होना ही नहीं है तो कम से कम अपने क्षेत्र में कुछ काम कर विधानसभा में अपने पुनः प्रवेश को तो सुनिश्चित कर लें! पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश जी ने भी यही गलती की थी, उन्हें भी अपने गृह-जिले नालंदा और राजगीर से आगे बिहार नजर ही नहीं आता था, जिसका खामियाजा उन्हें लोकसभा चुनावों में भुगतना भी पड़ा l

पूर्व मुख्यमंत्री के कार्यकाल की भांति नए मुख्यमंत्री के कार्यकाल में भी जमीनी हकीकतों को समझे बिना रोज सिर्फ नए-नए निर्देश दिए जा रहे हैं, जनता की आखों में धूल झोंकेने वाली समीक्षा बैठकों का दौर जारी है। सूखे की समस्या से निपटने के लिए पहले से कोई तैयारी नहीं की गई और जब समस्या अपने विकराल रूप में सामने आ कर खड़ी हो गई तो बैठकों और बयानबाजी का दौर शुरू हुआ, वहीं दूसरी तरफ बरसात की शुरुआत हो जाने के पश्चात उत्तर-बिहार के तटबंधों की सुरक्षा के लिए अनेकों दिशा-निर्देश जारी किए गए (जिनका जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं है), सचिवालय और कार्यालयों में बैठकों का दौर चला, मीडिया की मदद से लम्बी-चौड़ी बातें प्रचारित की गईं लेकिन कार्यों की समीक्षा हेतु कोई उच्च अधिकारी शायद ही अभी तक वहां (जहां वास्तविक कार्य किया जाना है) पहुंच पाया हैl

कमोबेश यही हाल शहरों में नाला- उड़ाही और नाला -निर्माण के संदर्भ में भी है l बाकी जगहों की बात छोडकर अगर राजधानी पटना की ही बात की जाए तो बरसात के इस मौसम में भी पटना के एक बड़े हिस्से में अभी नाला-निर्माण का कार्य चल रहा है l सड़क निर्माण, नाला निर्माण और जलापूर्ति के नाम पर बरसात के मौसम में बेतरतीब ढ़ंग से खुदाई भी बिहार में सजग नौकरशाही के सरकारी दावों का माखौल ही उड़ाती हैं l वैसे भी पिछले लगभग नौ सालों में सुशासन की सरकार में “भोज के समय कोहड़ा (सीता-फ़ल) रोपने की कवायद” ही होती आयी है l ये सारी परिस्थितियां सुशासनी सरकार में संगठित ठेकेदारी राज के प्रभाव का नतीजा है l पिछले नौ सालों में नौकरशाही की शह पर ठेकेदारों और दलालों का एक संगठित गठजोड़ सरकारी योजनाओं की लूट में लिप्त है। सुशासन के लाख दावों के बावजूद सरकार नौकरशाही के चरित्र को बदलने में नाकामयाब ही रही है। इसका सबसे सटीक उदाहरण हाल ही में मुख्यमंत्री के उस बयान में देखने को मिला जिसमें उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि सूखे से जुड़ीं सही खबरें और सही तस्वीर उनके पास अधिकारियों ने नहीं पहुंचने दी l ऊपर से नीचे तक फैले बाबुओं के तंत्र के सामने राजनीतिक सत्ता नतमस्तक है। क्यूं नतमस्तक है ? इसे समझना कोई ‘रॉकेट-साइन्स ‘ समझने की तरह जटिल नहीं है l यह ‘तंत्र’ बेशर्मी से आम जनता का हक छीन रहा है। यह बिहार के संदर्भ में व्यापक चिंता का विषय है, लेकिन इसकी तरफ आँख उठाकर देखने की भी फुर्सत ‘किसी’ को नहीं है।

1 COMMENT

  1. You are absolutely right . Nitish was a disaster and the present C.M. has no clue either.
    We are in deep trouble due J.D.U. in particular and before that Laloo – Rabari destroyed the administration.
    Future is so uncertain. Laloo, nitish have joined hands and may fool the people again. Why is out of jail? where is the law and order.
    we need change like as it is in Delhi sooner the better.

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