कला-संस्कृति लेख साहित्य परसाई के बहाने August 22, 2017 | Leave a Comment आरिफा एविस हिंदी साहित्य के मशहूर व्यंग्यकार और लेखक हरिशंकर परसाई से आज कौन परिचित नहीं है और जो परिचित नहीं है उन्हें परिचित होने की जरूरत है. मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के जमानी गाँव में 22 अगस्त 1924 में पैदा हुए परसाई ने लोगों के दिलों पर जो अपनी अमिट छाप छोड़ी है. उसका […] Read more » Featured poet Hari Shankar Parsai मशहूर व्यंग्यकार और लेखक हरिशंकर परसाई हरिशंकर परसाई
कहानी साहित्य कब्र का अजाब July 18, 2017 | Leave a Comment आरिफा एविस ‘नहीं, मदरसे में रूही नहीं जायेगी . ‘पर क्यों अम्मी?’ ‘कहा ना अब वो नहीं जायेगी मदरसे में बस..’ ‘तो क्या रूही आपा अपना कुरआन पूरा नहीं कर पाएंगी ?’ ‘मैंने यह तो नहीं कहा कि रूही अपना कुरआन पूरा नहीं करेगी. मैंने तो इतना ही कहा कि वो अब मदरसे में पढ़ने […] Read more » Featured punishment in the grave कब्र का अजाब
व्यंग्य सेल्फी सेल्फी सेल्फी April 9, 2017 | Leave a Comment एक महाशय सुबह से इसी बात पे नाराज थे कि जिसे देखो वो सेल्फी खींच कर डालने पर अड़ा है, पड़ा है सड़ा है . सेल्फी देख देखकर कुढा रहे थे.’ मैंने भी पूछ ही लिया -“क्या हुआ भाई क्यों बडबडा रहे हो… बैठे बैठे.’ ‘क्या बताएं मैडम जिसे देखो वो सेल्फी लेकर फेसबुक और […] Read more » सेल्फी
व्यंग्य साहित्य बेवकूफी का तमाशा April 3, 2017 | 2 Comments on बेवकूफी का तमाशा अरे जमूरे ! आजकल के बुद्धिजीवी और लेखक भी तो लोगों का अप्रैल फूल बनाते हैं. ऐसे मुद्दों पर लिखते और ऐसे विषयों पर चर्चा करते हैं जिसका अवाम से कुछ भी लेना देना नहीं होता.लेकिन अपना स्वार्थ सिद्ध जरूर पूरा हो जाये अवाम पर लिखकर . अरे भाई अगर उनको अवाम के बारे में सोचना ही होता तो वो बुद्धिजीवी ही क्यों कहलाते, बुद्धिजीवी सिर्फ विमर्श करते, फर्श पर कुछ नहीं करते.' Read more » बेवकूफी का तमाशा
व्यंग्य बहिष्कारी तिरस्कारी व्यापारी October 14, 2016 | 2 Comments on बहिष्कारी तिरस्कारी व्यापारी हिष्कार जनता को नहीं करना है. यह काम नेताओं का है क्योंकि वे लोग तो दिलो जान से स्वदेशी हैं. देखो न सदियों से अब तक सफेदपोश ही हैं. खादी पहन कर ही सारे समझौते विदेशी कम्पनियों से हो सकते हैं. बहिष्कार करना स्वदेशी होने की निशानी है लेकिन विदेशी कम्पनियों से नित नए समझौते करना और लुभावने ऑफर देकर अपने यहाँ स्थापित करना उससे बड़ा स्वदेशीपन है Read more » तिरस्कारी बहिष्कारी व्यापारी
व्यंग्य देशभक्ति की ओवर डोज : व्यंग्य August 12, 2016 / August 12, 2016 | 1 Comment on देशभक्ति की ओवर डोज : व्यंग्य आरिफा एविस नए भारत में देशभक्ति के मायने औए पैमाने बदल गये हैं. इसीलिए भारतीय संस्कृति की महान परम्परा का जितना प्रचार प्रसार भारत में किया जाता है शायद ही कोई ऐसा देश होगा जो यह सब करता हो. सालभर ईद, होली, दीवाली, न्यू ईयर पर सद्भावना सम्मेलन, मिलन समारोह इत्यादि राजनीतिक पार्टियाँ करती रहती […] Read more » देशभक्ति की ओवर डोज
प्रवक्ता न्यूज़ योग के बहाने June 22, 2016 | Leave a Comment गुप्ता साहब ने यूँ तो कभी योगा किया नहीं. पर भला आज कैसे न करते. ह्म तो कहते हैं ऐसे योग रोज हों जिसमें रोजाना कुछ न कुछ मिले. अब देखो न आज योग दिवस मनाया गया. किसी ने सुचना दी कि योग के लिए जाओगे तो टी.शर्ट, योगा मैट, बैग वगैरह मिलेगा. तो चल […] Read more » योग के बहाने
पुस्तक समीक्षा साहित्य व्यंग्य नव लेखन में ऊँचे दर्जे का अधिकार : शिकारी का अधिकार June 1, 2016 | 1 Comment on व्यंग्य नव लेखन में ऊँचे दर्जे का अधिकार : शिकारी का अधिकार समीक्षक : वरिष्ठ व्यंग्यकार सुरेशकांत पिछले दिनों आयोजित तीन दिवसीय ‘व्यंग्य की महापंचायत’ में कई अनोखी बातें हुईं। पहली तो यही कि बन्दा ‘अट्टहास’ के प्रोग्राम में पहली बार शामिल हुआ । व्यंग्य में गाली-गलौज के प्रयोग और सपाटबयानी पर मेरे विचारों से सभी अवगत हैं, क्योंकि मैं इन पर बहुत कह और लिख चुका […] Read more » शिकारी का अधिकार
समाज मई दिवस की संघर्ष गाथा April 30, 2016 / May 3, 2016 | 1 Comment on मई दिवस की संघर्ष गाथा आरिफा एविस मई दिवस को पूरी दुनिया में मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन मजदूर आन्दोलनों की उपलब्धियों और खामियों का लेखा-जोखा लेने वाला दिन है. मई दिवस का इतिहास मजदूर वर्ग के निरन्तर संघर्स, बलिदान और उनके विकास का इतिहास है. मई दिवस हमारे लिए संकल्प का दिवस है. यह […] Read more » 1st May Diwas Featured majdoor diwas मई दिवस
व्यंग्य साहित्य पानी नहीं है तो क्या हुआ कोका कोला पियो April 10, 2016 | 2 Comments on पानी नहीं है तो क्या हुआ कोका कोला पियो देखो भाई बात एकदम साफ है, क्रिकेट ज्यादा जरूरी है या खेती-किसानी? जाहिर है क्रिकेट ही ज्यादा जरूरी है क्योंकि ये तो राष्ट्रीय महत्व का खेल बन चुका है जो हमारे देश की आन बान शान है. यह सिर्फ देशभक्ति पैदा करने के लिए खेला जाता है. महानायक से लेकर नायक तक सिर्फ देश के […] Read more »
व्यंग्य साहित्य पुल गिरा है कोई पहाड़ नहीं April 7, 2016 | 1 Comment on पुल गिरा है कोई पहाड़ नहीं पुल गिरा है कोई पहाड़ नहीं गिरा जो इतनी आफत कर रखी है. रोज ही तो दुर्घटनाएं होती हैं. अब सबका रोना रोने लगे तो हो गया देश का विकास.और विकास तो कुरबानी मांगता है खेती का विकास बोले तो किसानों की आत्महत्या. उद्योगों का विकास बोले तो मजदूरों की छटनी, तालाबंदी. सामाजिक विकास […] Read more » पहाड़ पुल गिरा है
व्यंग्य साहित्य हरेक बात पर कहते हो घर छोड़ो April 7, 2016 / April 7, 2016 | Leave a Comment (व्यंग्य आलेख) घर के मुखिया ने कहा यह वक्त छोटी-छोटी बातों को दिमाग से सोचने का नहीं है. यह वक्त दिल से सोचने का समय है, क्योंकि छोटी-छोटी बातें ही आगे चलकर बड़ी हो जाती हैं. मैंने घर में सफाई अभियान चला रखा है और यह किसी भी स्तर पर भारत छोड़ो आन्दोलन से कम […] Read more » घर छोड़ो