लेख साहित्य शिकार करने का जन्मसिद्ध अधिकार April 5, 2016 | Leave a Comment एक बार जंगल राज्य में राजा का चुनाव होना था. अजी चुनाव क्या… बस खाना-पूर्ति तो करनी थी ताकि जंगल लोकतंत्र का भी ख्याल रखा जा सके. भला वर्षों पुरानी इस प्राचीन प्रथा को नया जंगल निजाम कैसे बदल सकता है? जंगल के राजा के चुनाव में कोई जीते या हारे … राजा तो नागनाथ […] Read more » Featured जन्मसिद्ध अधिकार शिकार
राजनीति विधि-कानून मृतपत्र 356 का पुनर्जन्म April 1, 2016 | Leave a Comment आरिफा एविस डॉ. बी. आर अम्बेडकर ने अनुच्छेद 356 के विषय में कहा था कि मैं यह उम्मीद करता हूँ कि यह एक ‘मृत पत्र’है जिसका कभी भी प्रयोग नहीं होगा। लेकिन अफसोस यह है कि भारतीय लोकतंत्र में न सिर्फ इसमें संसोधन किया गया बल्कि 1950 में भारतीय संविधान के लागू होने के बाद से केन्द्र सरकार द्वारा इसका […] Read more » article 356 of constitution Featured misuse of article 356 of constitution use of article 356 of constitution मृतपत्र 356 का पुनर्जन्म
व्यंग्य साहित्य पुरस्कार का मापदंड March 30, 2016 | Leave a Comment आरिफा एविस पुरस्कार किसी भी श्रेष्ठ व्यक्ति के कर्मो का फल है बिना पुरस्कार के किसी भी व्यक्ति को श्रेष्ठ नहीं माना जाना चाहिए. बिना पुरस्कार व्यक्ति का जीवन भी कुछ जीवन है? जैसे “बिन पानी सब सून.” इसलिए कम से कम जीवन में एक पुरस्कार तो बनता है जनाब. चाहे वह राष्ट्रीय, प्रदेशीय, धार्मिक, जातीय या कम से […] Read more » पुरस्कार का मापदंड
व्यंग्य साहित्य घोड़े की टांग पे, जो मारा हथौड़ा : व्यंग्य March 26, 2016 / March 26, 2016 | 1 Comment on घोड़े की टांग पे, जो मारा हथौड़ा : व्यंग्य आरिफा एविस बचपन में गाय पर निबन्ध लिखा था. दो बिल्ली के झगड़े में बन्दर का न्याय देखा था. गुलजार का लिखा गीत ‘काठी का घोड़ा, घोड़े की दुम पे जो मारा हथौड़ा’ भी मिलजुलकर खूब गाया था. लेकिन ये क्या घोड़े की दुम पर, हथौड़ा नहीं मारा गया बल्कि उसकी टांग तोड़ी गयी. देखो […] Read more » घोड़े की टांग पे जो मारा हथौड़ा