मृतपत्र 356 का पुनर्जन्म

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article 356 of constitutionआरिफा एविस

डॉ. बी. आर अम्बेडकर ने अनुच्छेद 356 के विषय में कहा था कि मैं यह उम्मीद करता हूँ कि यह एक ‘मृत पत्र’है जिसका कभी भी प्रयोग नहीं होगा। लेकिन अफसोस यह है कि भारतीय लोकतंत्र में न सिर्फ इसमें संसोधन किया गया बल्कि 1950 में भारतीय संविधान के लागू होने के बाद से केन्द्र सरकार द्वारा इसका प्रयोग 100 से भी अधिक बार किया गया। जिसमें बिहार, पंजाब, मणिपुर उत्तर प्रदेश में तो सात से अधिक बार प्रयोग किया गया है

अनुच्छेद 356, केंद्र सरकार को किसी राज्य सरकार को बर्खास्त करने और राष्ट्रपति शासन लागू करने की अनुमति उस अवस्था में देता है, जब राज्य का संवैधानिक तंत्र पूरी तरह विफल हो गया हो। लेकिन इस अनुच्छेद का प्रयोग अधिकतर केंद्र सरकार अपने नफे-नुकसान को देखते हुए लागू करती है। इसका लोकतंत्र से कोई लेना देना नहीं है क्योंकि लोकतंत्र और भारतीय लोकतंत्र में जमीन आसमान का अंतर है।

अधिकतर समय राजनैतिक विरोधियों की सरकार को बर्खास्त करने के लिए एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए कुछ लोगों के द्वारा इसे संघीय राज्य व्यवस्था के लिए एक खतरे के रूप में देखा जाता है। केरल में भी कम्युनिस्ट सरकार बर्खास्त करने के लिए ऐसा किया गया था। इस अनुच्छेद का इस्तेमाल कांग्रेस ने भी भाजपा शासित राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करके किया था कि ये सरकारे धार्मिक संगठनों पर प्रतिबंध लगाने में नाकाम रही है।

उत्तराखंड विधानसभा में कुल 70 सदस्य हैं. सत्ताधारी कांग्रेस के पास 36 विधायक हैं. इसे तीन निर्दलियों, दो बहुजन समाज पार्टी और उत्तराखंड क्रांति दल के एक विधायक का समर्थन भी हासिल है. राज्य में राजनीतिक संकट उस समय पैदा हुआ जब विधानसभा अध्यक्ष ने विधानसभा में विनियोग विधेयक पारित घोषित कर दिया था. यह पहली बार हुआ है. कारण यही है कि लूट का बंटवारा ठीक नहीं था वर्ना ये नौबत आती ही नहीं क्योंकि भारतीय संवेधानिक लोकतंत्र में सभी पार्टियां आर्थिक मुद्दों पर एक हैं। उनकी निजीकरण, उदारीकरण, वैश्वीकरण की नीतिया एक हैं बाकि मुद्दों में चाहे दिखने में अलग क्यों न हो.

भाजपा और कांग्रेस के बागी नेता जो दावा कर रहे थे कि उनके मत विभाजन की मांग को अनुमति नहीं मिली। उन्होंने आरोप लगाया कि उपस्थित बहुसंख्यक सदस्यों द्वारा ध्वनिमत से विधेयक गिराया गया और  विधानसभा अध्यक्ष ने उचित ढंग से मतविभाजन में इसका परीक्षण नहीं किया और इसे पारित घोषित कर दिया। जबकि 35 विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को पहले से पत्र लिखकर कहा था कि वे विधेयक के खिलाफ मत देंगे लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने इस पर विचार करने से इंकार कर दिया।

असल में उतराखंड में जोड़तोड़ करके जो सरकार बनाई गई यह शुरू से ही अल्पमत सरकार  थी । जिसे कभी भी गिराया जा सकता था जिसे बहुमत में बदलने के लिए धनबल, भू माफिया और धनिकों का इस्तेमाल बड़े पैमाने कभी भी किया जा सकता है और यह उचित समय लगा यह भी सम्भावना हो सकती है कि कल की खबर ये हो कि उतराखंड में अब बी.जे.पी की सरकार बन रही है ।

देश के नेता और बुद्धिजीवी कह रहे हैं कि ये लोकतंत्र की हत्या है जबकि ये सिर्फ भारतीय संवेधानिक लोकतंत्र की दिशा और दशा है । केंद्र में कोई भी सरकार हो वो यही करती आयी है जिसका इतिहास मैं आपको बता ही चुकी हूं।

राष्ट्रपति शासन किसी भी केंद्र सरकार का कुछ घंटों का एक खेल बन कर रह गया है जिसका उदाहरण उतराखंड है । राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रविवार सुबह दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किये ।  शनिवार रात को उत्तराखंड के राजनीतिक संकट पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की आपातकालीन बैठक हुई, जिसमें राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफ़ारिश की गई।

उधर जेटली ने तुरंत घोषणा कर दी कि ‘उत्तराखंड प्रशासनिक मशीनरी के चरमराने का असली उदाहरण है और संविधान के लिहाज़ से जो कुछ भी ग़लत हो सकता था वो वहां हुआ है । आप दिए गए समय का इस्तेमाल प्रलोभन देने और रिश्वत देने में इस्तेमाल कर रहे हैं जो कि संविधान का उल्लंघन है।”

जबकि राज्य में कांग्रेस के नौ विधायकों की बग़ावत के बाद हरीश रावत सरकार को 28 मार्च तक बहुमत साबित करने का मौका मिल चुका था फिर इतनी हड़बड़ी क्यों? इसका उत्तर शायद सभी राजनीतिक पंडित अच्छी तरह से जानते हैं ।

इस घटना ने हमारी राजनीतिक विद्रूपता की पोल ही नहीं खोली, बल्कि उसे और अधिक अविश्वसनीय बनाने में महतवपूर्ण योगदान दिया है । सरकारें बचाने के तमाम हथकंड़ों से जनता परिचित हो चुकी है और केंद्र की महत्वकांक्षी मंशा को भी जमीन पर ला दिया गया है. अब हमें लोकतंत्र और भारीतय लोकतंत्र में अंतर तो करना ही होगा वर्ना भारतीय संसदीय राजनीति इस “मृतपत्र” अनुच्छेद का प्रयोग कर हर बार यूँ ही अवाम को बेवकूफ बनाती रहेगी।

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