व्यंग्य दुनिया के रिश्वतखोरों! एक हो January 12, 2016 | Leave a Comment अशोक मिश्र काफी दिनों बाद उस्ताद गुनाहगार से भेट नहीं हुई थी। सोचा कि उनसे मुलाकात कर लिया जाए। सो, एक दिन उनके दौलतखाने पर पहुंच गया। हां, दौलतखाना शब्द पर याद आया। लखनऊ की नजाकत-नफासत के किस्से तो सभी जानते हैं, लेकिन दौलतखाना और गरीब खाना शब्द का एक अजीब घालमेल है। लखनउवा जब […] Read more » रिश्वतखोरों
व्यंग्य साहित्य ‘प्रभु जी! यात्रियों की आदत मत बिगाडि़ए… January 4, 2016 | Leave a Comment अशोक मिश्र हद हो गई यार! हमारे रेलमंत्री को लोगों ने क्या पैंट्री कार का इंचार्ज, गब्बर सिंह या सखी हातिमताई समझ रखा है? जिसे देखो, वही ट्वीट कर रहा है, ‘प्रभु जी! मैं फलां गाड़ी से सफर कर रही हूं। गाड़ी में मेरे बच्चे ने गंदगी फैला दी है। जरा अपने किसी सफाई कर्मचारी […] Read more » 'प्रभु जी! यात्रियों की आदत मत बिगाडि़ए... prabhu ji dont spoil the habits of indians प्रभु यात्रियों की आदत
व्यंग्य साहित्य नए वर्ष में व्यंग्यकारों के तारे-सितारे December 26, 2015 | Leave a Comment अशोक मिश्र नया साल व्यंग्यकारों के लिए बड़ा चौचक रहने वाला है। नए वर्ष में व्यंग्यकारों की कुंडली के सातवें घर में बैठा राहु पांचवें घर के बुध से राजनीतिक गठबंधन कर रहा है। अत: संभव है कि प्रधानमंत्री और देश के 66 फीसदी राज्यों के मुख्यमंत्री व्यंग्यकार हो जाएं या फिर राजनीतिक उठापटक के […] Read more » नए वर्ष में व्यंग्यकारों के तारे-सितारे
व्यंग्य साहित्य ग्लोबल वॉर्मिंग का स्थायी समाधान December 14, 2015 | Leave a Comment अशोक मिश्र आप लोग यह बताएं कि दुनिया भर के बुद्धिजीवियों का अपर चैंबर खाली है क्या? अगर खाली नहीं होता, तो इतनी मामूली-सी बात को लेकर पेरिस में काहे मगजमारी करते। फोकट में अपनी-अपनी सरकारों का इत्ता रुपया-पैसा और टाइम खोटा किया। पेरिस के निवासियों को परेशान किया सो अलग। वह भी ग्लोबल वॉर्मिंग […] Read more » ग्लोबल वॉर्मिंग का स्थायी समाधान
राजनीति व्यंग्य भुक्खड़ नहीं होते ईमानदार December 7, 2015 / December 7, 2015 | 2 Comments on भुक्खड़ नहीं होते ईमानदार अशोक मिश्र केजरी भाई लाख टके की बात कहते हैं। अगर आदमी भूखा रहेगा, तो ईमानदार कैसे रहेगा? भुक्खड़ आदमी ईमानदार हो सकता है भला। हो ही नहीं सकता। आप किसी तीन दिन के भूखे आदमी को जलेबी की रखवाली करने का जिम्मा सौंप दो। फिर देखो क्या होता है? पहले तो वह ईमानदार रहने […] Read more » Featured भुक्खड़ नहीं होते ईमानदार
व्यंग्य साहित्य सेल्फी वाला पत्रकार नहीं हूं December 2, 2015 / December 7, 2015 | Leave a Comment अशोक मिश्र घर पहुंचते ही मैंने अपने कपड़े उतारे और पैंट की जेब से मोबाइल निकालकर चारपाई पर पटक दिया। मोबाइल देखते ही घरैतिन की आंखों में चमक आ गई। दूसरे कमरे से बच्चे भी सिमट आए थे। घरैतिन ने मोबाइल फोन झपटकर उठा लिया और उसमें कुछ देखने लगीं। मोबाइल को इस तरह झपटता […] Read more » सेल्फी वाला पत्रकार सेल्फी वाला पत्रकार नहीं हूं
राजनीति व्यंग्य रूसी भाषा में शपथ लूं, तो चलेगा? November 23, 2015 / December 7, 2015 | 2 Comments on रूसी भाषा में शपथ लूं, तो चलेगा? -अशोक मिश्र बंगाल में बड़े भाई को कहा जाता है दादा। ऐसा मैंने सुना है। उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में दादा पिताजी के बड़े भाई को कहते हैं। बड़े भाई के लिए शब्द ‘दद्दा’ प्रचलित है। समय, काल और परिस्थितियों के हिसाब से शब्दों के अर्थ बदलते रहते हैं। आज दादा का मतलब क्या […] Read more » Featured रूसी भाषा में शपथ
व्यंग्य साहित्य चरित्र पर तो नहीं पुती कालिख! November 2, 2015 / December 7, 2015 | Leave a Comment अशोक मिश्र जब मैं उस्ताद गुनाहगार के घर पहुंचा, तो वे भागने की तैयारी में थे। हड़बड़ी में उन्होंने शरीर पर कुर्ता डाला और उल्टी चप्पल पहनकर बाहर आ गए। संयोग से तभी मैं पहुंच गया, अभिवादन किया। उन्होंने अभिवादन का उत्तर दिए बिना मेरी बांह पकड़ी और खींचते हुए कहा, ‘चलो..सामने वाले पार्क में […] Read more » चरित्र पर तो नहीं पुती कालिख!