कविता आर्तनाद October 16, 2019 / October 16, 2019 | Leave a Comment पर्णकुटी के छिद्रों से पहली रश्मि रोशनी देखता हूँ गौशाला में कुम्हलाती बछियां रंभाती गवैं देखता हूँ नहीं पता किस धारा किस सेक्शन से बबाल मचा है मैं दिन की बाटी सांझ चूल्हे का जुगाड़ देखता हूँ अरुणोदय से गोधूलि तक मिट्टी में खटकता हूँ दो कौर के उदर को, उदरों के लिए जुतता हूँ […] Read more »
कविता खुशियों के कुछ पलों के लिए October 3, 2012 / October 3, 2012 | Leave a Comment बलबीर राणा “भैजी” खुशियों के कुछ पलों के लिए घोंसले में चहकता है पंछी पंखो के बाहुपाश में समेटता चमन को । चोंच टकराता घरोंदे के ओर- छोर, उमंग ढूंढता जीतना चाहता अपने मौन को । मस्तमंगल धुन में, संसार के पराभव को गाना चाहता खुशी की व्यंजना में प्रेम का शब्दावरण पहनाना चाहता। क्रूर […] Read more » poem by balbir rana
कविता हिन्दी की दशा या दुर्दषा September 13, 2012 / September 13, 2012 | 1 Comment on हिन्दी की दशा या दुर्दषा बलबीर राणा “भैजी” राष्ट्रभाषा अपनी क्षीणतर हो चली हिन्दी का हिंग्लिस बन खिंचडी बन चली अपनो के ही ठोकर से अपने ही घर में पराई बनके रह गयी आज विदेशी भाषा अपने ही घर में घुस मालिकाना हक जता रही उसके प्यार में सब उसे सलाम बजा रहे यस नो वेलकम सी यू कहकर शिक्षित […] Read more » हिन्दी की दशा या दुर्दषा
कविता ऊसर जीजिविषा और वो August 26, 2012 / August 26, 2012 | Leave a Comment बलबीर राणा भैजी सुनशान स्याह रात बैठा वह प्रहरी । अन्धयारे में आँख विछाये] उस अन्धकार को ढूंढता जो माँ के अस्तित्व को ध्वस्त करने को आतुर। यकायक सचेत हाsती निगाहें पलकें बिचरण करती] खोजती हर उस शाये और आहट को जो कहर ना बन जाये मातृभूमी पर। उसके दर्द की कोई सीमा नहीं] सीमा […] Read more » poem by balbir rana ऊसर जीजिविषा
कविता राजनीति तेरा चेहरा August 18, 2012 / August 18, 2012 | Leave a Comment बलबीर राणा “भैजी” राजनीति तेरा चेहरा कितना बदल गया जन हित छोड स्वहित पर टिक गया राज नेता राज के लिये नहीं केवल ताज पहनने के लिये होते हैं देश प्रेम में महानुभाव देशद्रोहियों को पालते हैं विकाश की परपाटी को भ्रष्टाचार से पोतते हैं राजनीति तेरा चेहरा कितना बदल गया जन हित छोड […] Read more » poem by balbir rana राजनीति तेरा चेहरा
कविता निर्दयी मेघ August 7, 2012 / August 7, 2012 | Leave a Comment उत्तराखंड में भीषण मेघ वर्षा का मंजर देखकर मन उद्वेलित होता है, प्रकृति के इस क्रूर व्यवहार से अब किसको दोष दिया जाय नियति या………………….? ??????????????? बलबीर राणा “भैजी” निर्दयी मेघ ये क्या कर गया आना था धरती को सींचने विभित्सिका छोड़ गया हाहाकार मचा गया निर्दोष जीवन पर दोष लगाकर चल गया इतना भी […] Read more »
कविता कविता:शांति की खोज July 30, 2012 / July 30, 2012 | Leave a Comment बलबीर राणा शांति खोजता रहा धरती के ओर चोर भटकता रहा कहाँ है शांति कहीं तो मिलेगी इस चाह में जीवन कटता रहा समुद्र की गहराई में गोता लगाता रहा झील की शालीनता को निहारता रहा चट्टाने चडता रहा घाटियाँ उतरता रहा पगडंडियों में संभालता रहा रेगिस्तानी में धंसता रहा कीचड़ में फिसलता […] Read more » kavita by balbir rana कविता:शांति की खोज
कविता कविता:चोराहे पर खड़ा हूँ-बलबीर राणा July 26, 2012 / July 26, 2012 | Leave a Comment किधर जाऊं चोराहे पर खड़ा हूँ सुगम मार्ग कोई सूझता नहीं सरल राह कोई दिखता नहीं कौन है हमसफ़र आवाज कोई देता नहीं किधर जाऊं चोराहे पर खड़ा हूँ इस पार और भीड़ भडाका उस पार सूनापन एक और शमशान डरावन एक और गर्त में जाने का दर डर लगता किधर जाऊं चोराहे पर […] Read more » :चोराहे पर खड़ा हूँ-बलबीर राणा poem by balbir rana कविता:चोराहे पर खड़ा हूँ कविता:चोराहे पर खड़ा हूँ-बलबीर राणा
कविता कविता:अमानुष बना कैसे July 25, 2012 / July 25, 2012 | 1 Comment on कविता:अमानुष बना कैसे बलबीर राणा मा ने प्यार दिया पिता ने दुलार भाई ने साथ दिया बहन ने आभार अमानुष बना कैसे समाज ने एकतादी जाती ने अपनापन धर्म ने सतमार्ग दिया वेद पुराण कुरान बाईबल ने मानवता फिर अमानुष बना कैसे रीfत रिवाजों ने अनुसरण दिया इतिहास ने पुनरावृति गुरु ने ज्ञान दिया ग्रंथों […] Read more » poem by balbir rana कविता:अमानुष बना कैसे
कविता कविता:अडिग सैनिक July 24, 2012 / July 24, 2012 | 1 Comment on कविता:अडिग सैनिक बलबीर राणा बर्फीले तूफान के आगे अघोरजंगलके बीच समुद्री लहरों के साथ , पर्वतकी चोटियों पर अडिग खड़ा हूँ मा की ममता से दूर पिता के छांव से सुदूर पत्नी के सानिंध्य के बिना पुत्र मोह से अलग अडिग खड़ा हूँ दुश्मन की तिरछी निगाहों के सामने देश विद्रोहियों के बीच दुनिया समाज […] Read more » कविता:अडिग सैनिक