व्यंग्य साहित्य इंशा अल्लाह अब मेरे नाम के आगे भी लिखा जाएगा ‘‘बाबाजी का ठुल्लू एवार्ड प्राप्त’’ July 5, 2017 | Leave a Comment आज सुलेमान काफी संजीदा लग रहा था। मेरे लेखन कक्ष में सामने बैठा पता नहीं कुछ सोच रहा था, मैंने उसे डिस्टर्ब करना भी उचित नहीं समझा था। वह सोच रहा था और मैं लिख रहा था। कुछ देर उपरान्त वह बोल पड़ा- भाई कलमघसीट अब देर मत करो- ऐक्शन में आवो वर्ना……..कुछ हासिल नहीं […] Read more » बाबाजी का ठुल्लू एवार्ड प्राप्त
लेख साहित्य मुझे भी सम्मान की दरकार, क्या सम्भव है? November 2, 2015 | Leave a Comment डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी/ पाठकों मैं वादा करता हूँ कि यदि मुझे कोई सम्मान मिला तो मैं उसे कभी भी किसी भी परिस्थिति में लौटाने की नहीं सोचूँगा। एक बात और बता दूँ वह यह कि मेरी कोई पहुँच नहीं और न ही मैंने राजनीति के शिखर पर बैठे लोगों, माननीयों का नवनीत लेपन ही […] Read more » मुझे भी सम्मान की दरकार सम्मान की दरकार
कहानी विविधा साहित्य हरामजादा September 27, 2015 | Leave a Comment डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी कहानी काफी पुरानी और वास्तविक घटना पर आधारित है। इसकी समानता किसी भी तरह से अन्य लोगों से नहीं हो सकती क्योंकि यह मेरी अपनी कहानी है। इसके पात्र काल्पनिक न होकर मेरे अपने ही करीबी परिवारी जन हैं। अब तो मैंने अपनी इस कहानी का जिसे आगे लिख रहा हूँ […] Read more » Featured हरामजादा
चुनाव राजनीति ऐसे में कैसे बन पाऊंगा बेहूदा…? May 10, 2014 | Leave a Comment -डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी- सुर्खियों में रहने के लिए कुछ अनाप-शनाप करना पड़ता है। कभी जुबान फिसलाना पड़ता है तो कभी दुष्कर्म करने पड़ते हैं। जुबान माननीयों/नेताओं की फिसलती है तो मीडिया में वे छा जाते हैं। एक बार मीडिया में नाम रौशन हुआ नहीं कि उनका भविष्य उज्जवल हो जाता है। दुष्कर्म करने वालों […] Read more » राजनीति राजनीति का गिरता स्तर राजनीतिक बयानबाजी
विविधा शक, शक्की, शक्काइटिस April 15, 2014 / April 15, 2014 | Leave a Comment -डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी- मैं सौ फीसद पत्रकार हूं। क्या बात है किसी को कोई शक? शक का इलाज भी होता है बशर्ते शक्की चाहे तब। हमारे इर्दगिर्द कई ऐसे भी मानव प्राणी हैं, जिन्हें ‘शक्काइटिस’ नामक भयंकर बीमारी ने जकड़ रखा है। मैं चाहता हूं कि इन लोगों को शक की इस बीमारी से […] Read more » doubt never ends शक शक्काइटिस शक्की
व्यंग्य शराबी के मुंह की दुर्गन्ध मां और पत्नी को महसूस नहीं होती February 8, 2014 / February 8, 2014 | Leave a Comment -डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी- हमारे खानदान के सभी ढाई, तीन, साढ़े तीन अक्षर नाम वाले लोग निवर्तमान नवयुवक हो चुके हैं, कुछ तो जीवन की अर्धशतकीय पारी खेल रहे हैं तो कई जीवन के आपा-धापी खेल से रिटायर भी हो चुके हैं। कुछ जो बचे हैं वे लोग अर्धशतकीय और उसके करीब की पारियां […] Read more » satire on indian soceity शराबी के मुंह की दुर्गन्ध मां और पत्नी को महसूस नहीं होती
व्यंग्य शहर में लगे ‘कर्फ्यू’ की वजह…? June 6, 2013 / June 6, 2013 | 1 Comment on शहर में लगे ‘कर्फ्यू’ की वजह…? शहर में ‘कर्फ्यू’ लग ही गया। ‘कर्फ्यू’ की अवधि में शहरवासियों का साँस लेना दूभर हो गया था। बूटो की खट खटाहट से शहर के वासिन्दे सहमे-सहमें मनहूस ‘कर्फ्यू’ से छुटकारा पाने की सोच रहे थे। शहर के ‘कर्फ्यू ग्रस्त’ इलाके में हर जाति/धर्म के लोग रहते हैं, सभी के लिए ‘कर्फ्यू’ कष्टकारी रहा, लेकिन […] Read more » शहर में लगे ‘कर्फ्यू’ की वजह...?
व्यंग्य साहित्य थानेदार ढिल-ढिल पाण्डेय का अपना स्टाइल June 5, 2013 / June 6, 2013 | Leave a Comment पुरानी बात है जिले के एक थाना क्षेत्र में चोरियों की बाढ़ आ गई थी। जिससे आम आदमी की नींद हराम हो गई थी। जिले के आला अफसरों से लेकर पुलिस महकमें के सूबे स्तरीय अधिकारी इसको लेकर काफी चिन्तित थे। यह उस समय की बात है जब सूबे के पुलिस महकमें का मुखिया आई.जी. […] Read more » थानेदार ढिल-ढिल पाण्डेय का अपना स्टाइल