डॉ. अरुण कुमार दवे
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राजस्थान के एक कॉलेज में शिक्षक पद पर कार्यरत | कविता, ग़ज़ल, लघुकथा व व्यंग्य लेखन में रुचि. फक्कड़ाना अंदाज में फक्कड़वाणी लिखकर विषमताओं एवं विद्रूपताओं के कारक तत्वों को खरी-खरी सुनाने का शगल | लेखक के शब्दों में-
मेरी वाणी अपना धर्म निभाती है,
अत्याचारी को औकात दिखाती है,
लोकविमुख बेजान शिलाओं में हरकत
जोशीली वाणी से मेरी आती है,
मैं युग का चारण हूँ अपना धर्म निभाता हूँ,
जनमन के भावों को अपने स्वर में गाता हूँ.