विविधा “माई री मैं कासे कहूं पीर…!” July 2, 2014 | Leave a Comment -गिरीश बिलोरे- विधवा जीवन का सबसे दु:खद पहलू है कि उसे सामाजिक-सांस्कृतिक अधिकारों से आज़ भी समाज ने दूर रखा है. उनको उनके सामाजिक-सांस्कृतिक अधिकार देने की बात कोई भी नहीं करता. जो सबसे दु:खद पहलू है. शादी विवाह की रस्मों में विधवाओं को मंडप से बाहर रखने का कार्य न केवल गलत है, वरन […] Read more » विधवा विधवाएं विधवाओं की स्थिति
राजनीति यह कैसा बिहार प्रेम है? July 1, 2014 / July 1, 2014 | Leave a Comment -फखरे आलम- मैं कभी बड़ा हैरान और परेशान हो जाता हूं! जब बिहार के जनप्रतिनिधियों का व्यवहार देखता हूं। हमारे अपने ही प्रदेश और प्रदेश की जनता का विकास और प्रगति नहीं चाहते हैं। आपने और हमने कई बार संसद में और अन्य प्रदेशों के विधानसभाओं में सत्र के दौरान देखा है कि सांसद और […] Read more » बिहार बिहार प्रेम यह कैसा बिहार प्रेम है
कविता रेल क्यों हो रही है फेल July 1, 2014 | 2 Comments on रेल क्यों हो रही है फेल -रवि श्रीवास्तव- देश की रीढ़ बनी ये रेल, आख़िर क्यों हो रही है फेल ? जाने कैसे हो गई बीमार हो रही हादसे का शिकार । कभी एक दूसरे से टकराना, कभी पटरा से नाचे उतर जाना। असुविधा भरा हो रहा सफर, यात्रियों को सताता असुरक्षा का डर। ऐसे गम्भीर मुद्दे पर राजनीति न खेलें, […] Read more » रेल रेल कविता रेल फेल
कविता ये गली June 30, 2014 | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- ये गली आख़िर कहां जाती है, हर दो कदम पर मुड़ जाती है। मुझे तलाश है उसकी, जिसे देखा था इस गली में, चल रहा हूं कब ये अरमान लिए दिल में। शायद इत्तेफ़ाक ले मुलाकात हो जाए, हर मोड़ पर सोचता हू मंजिल मिल जाए। सकरे रास्ते और ये दलदल, चीखकर कहते […] Read more » कविता ये गली हिन्दी कविता
राजनीति आप की अग्नि परीक्षा June 27, 2014 | 1 Comment on आप की अग्नि परीक्षा -रवि श्रीवास्तव- एक साल पहले बनी आम आदमी पार्टी ने राजनीति में उथल-पुथल कर दिल्ली में अपनी सरकार बना तो ली थी, पर पहले ही दिन से उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। अपने वादों को लेकर दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप ने कांग्रेस जैसी बड़ी राजनीतिक पार्टी को मात दिया। और उसी […] Read more » आप आप की अग्नि परीक्षा आम आदमी पार्टी
कविता इंसान हूं नादान हूं… June 27, 2014 | Leave a Comment -नेहा राजोरा- इंसान हूं नादान हूं… बेसब्र हूं क्योंकि फिक्रमंद हूं… अपनी दुआओं पर है मुझको ऐतबार, तेरे रहमों करम पर भी है मुझको इख्तियार, तू सोचता होगा है, तुझ पर यकीन, फिर भी क्यों अंजान हूं… कहा न इंसान हूँ नादान हूं… बेसब्र हूं क्योंकि फिक्रमंद हूं… Read more » इंसान कविता इंसान हूं नादान हूं कविता हिन्दी कविता
राजनीति अपने निर्णय का सम्मान कीजिये June 25, 2014 | Leave a Comment -ऋतु के. चटर्जी- कैसे सोच लिया जनता ने कि जाने वाली सरकार उनके लिए अपने कार्यालयों में मिठाई के डब्बे छोड़ जाएगी. जब नयी सरकार, पुरानी सरकार द्वारा पहले से तैयार बजट को सामने लेकर आई तो लगे शोर मचाने, ठीक ही कहा है किसी ने कि सबको एकसाथ खुश रख पाना बेहद मुश्किल या […] Read more » नरेंद्र मोदी भाजपा सरकार यूपीए राजग सरकार
कविता दंगा बना देश का नासूर June 25, 2014 | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- क्यों होता है दंगा फसाद, कौन है इसका ज़िम्मेदार ? छोटी-छोटी हर बातों पर, निकल आते हैं क्यों हथियार। आक्रोश की आंधी में, लोग बहक जाते हैं क्यों ? एक दूसरे के आखिर हम, दुश्मन बन जाते हैं क्यों ? लड़कर एक दूसरे से देखो, करते हैं हम खुद का नुकसान। दंगा भड़काने […] Read more » एकता कविता दंगा दंगा बना देश का नासूर
गजल क्या करूं की तू मेरा हो जाये June 24, 2014 | Leave a Comment -नेहा राजोरा- क्या करूं की तू मेरा हो जाये, काश एक दिन ऐसा भी आये, रोऊं तो मैं तब भी पर आंसू तुझे पाने की खुशी के हो, क्या करूं की तू मेरा हो जाये, काश एक दिन ऐसा भी आये, झूठ तो मुझसे तब भी बोलेगा, फितरत मुझे पता है तेरी, पर वो झूठ […] Read more » क्या करूं की तू मेरा हो जाये गजल जीवन ग़ज़ल हिन्दी
विविधा सावधान, पाक झूठा है June 24, 2014 | Leave a Comment -निशा शुक्ला- भारत ने जब-जब भारत के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है, पाकिस्तान ने बदले में भारत की पीठ पर छुरा चलाया है। असल में यह पाकिस्तान की डीएनए में ही है, वह कभी दोस्ती और स्नेह को नहीं मान सकता है। 19 फरवरी 1999 को अटल बिहारी वाजपेई ने सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली […] Read more » अटल बिहारी वाजपेई नरेंद्र मोदी पाकिस्तान भारत पाकिस्तान
कविता मेहनत किसान की June 23, 2014 | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- आखिर हम कैसे भूल गये, मेहनत किसान की, दिन हो या रात उसने, परिश्रम तमाम की। जाड़े की मौसम वो ठंड से बड़े, तब जाके भरते, देश में फसल के घड़े। गर्मी की तेज धूप से, पैर उसका जले, मेहनत से उनकी देश में, भुखमरी टले। बरसात के मौसम में, न है भीगने […] Read more » मेहनत किसान की हिन्दी कविता
राजनीति आपातकाल और लोकतंत्र June 21, 2014 | Leave a Comment -विजय कुमार- -आपातकाल (26 जून) की 39वीं वर्षगांठ पर- जून महीना आते ही आपातकाल की यादें जोर मारने लगती हैं। 39 साल पहले का घटनाक्रम मन-मस्तिष्क में सजीव हो उठता है। छह दिसम्बर, 1975 को बड़ौत (वर्तमान जिला बागपत) में किया गया सत्याग्रह और फिर मेरठ जेल में बीते चार महीने जीवन की अमूल्य निधि […] Read more » आपातकाल इंदिरा गांधी इमरजेंसी लोकतंत्र