राजनीति विश्ववार्ता बेहद खतरनाक है सीरिया की असद सरकार की पराजय को इस्लामिक स्टेट की जीत से जोड़ कर प्रचारित करना December 30, 2024 / December 30, 2024 | Leave a Comment गौतम चौधरी अभी हाल ही में सीरिया के बशर अल असद सरकार को अपदस्थ कर एक नयी राजनीतिक व्यवस्था खड़ी की गयी है। सीरिया की इस हालिया घटनाक्रम को कट्टरपंथी सोंच वाले इस्लामिक स्टेट की जीत से जोड़ कर प्रचारित कर रहे हैं। यह प्रचाार भ्रामक है और चिंताजनक भी है। सबसे चिंताजनक बात यह […] Read more » सीरिया की असद सरकार की पराजय
राजनीति राष्ट्र-राज्य के धर्मनिरपेक्ष छवि को नुकसान पहुंचा रहा है वक्फ बोर्ड का वर्तमान अधिकार December 3, 2024 / December 3, 2024 | Leave a Comment गौतम चौधरी वक्फ बोर्ड, वक्फ की संपत्ति इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। सबसे पहले वक्फ क्या है और यह किस प्रकार काम करता है, इसे जानना जरूरी है। तो, वक्फ का मतलब होता है, ‘अल्लाह के नाम’, यानी ऐसी जमीनें जो किसी व्यक्ति या संस्था के नाम नहीं है। वक्फ बोर्ड का […] Read more » वक्फ बोर्ड का वर्तमान अधिकार
राजनीति भारतीय लोकतंत्र और इस्लामी मूल्यों के खिलाफ है वैश्विक खिलाफत की काल्पनिक अवधारणा November 28, 2024 / November 29, 2024 | Leave a Comment गौतम चौधरी वैश्विक खिलाफत की काल्पनिक अवधारणा उसी प्रकार गैरवाजिब है जैसे पुरातनपंथी हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा। यह दोनों अवधारणा काल्पनिक है और आधुनिक लोकतांत्रिक विश्व में इसका कोई स्थान नहीं है। दरअसल, आज इस बात की चर्चा इसलिए जरूरी है कि दुनिया के कुछ इस्लामिक चरमपंथियों ने एक बार फिर से वैश्विक खिलाफत की बात प्रारंभ की है। विगत कुछ वर्षों में भारत सहित दक्षिण एशिया के कई देशों में इस विचार के प्रेरित युवकों को असामाजिक व गैरराष्ट्रवादी गतिविधियों में संलिप्त देखा गया है। हाल के वर्षों में हिज्ब उत-तहरीर की गतिविधियों को लेकर भारत में चिंता बढ़ी है। पहले तो हमें हिज्ब उत-तहरीर को समझना होगा। यह एक अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक संगठन है, जिसका उद्देश्य इस्लामी खिलाफत को पुनः स्थापित करना है। इसका नाम अरबी में ‘‘हिज्ब-उत-तहरीर’’ है जिसका अर्थ, ‘‘मुक्ति की पार्टी’’ है। वर्ष 1953 में एक फिलिस्तीनी इस्लामिक चरमपंथी, उकीउद्दीन नबहानी ने जेरूसलम में इसकी स्थापना की थी। हिज्ब-उत-तहरीर का दावा है कि वह राजनीतिक, बौद्धिक और वैचारिक तरीकों से काम करता है और हिंसा में कोई विश्वास नहीं करता लेकिन इसके कार्यकर्ता दुनिया के लगभग 50 देशों में हिंसक गतिविधियों में संलिप्त पाए गए हैं। यहां तक कि कई इस्लामिक देशों में भी यह संगठन वहां की सत्ता के चुनौती बना हुआ है। संगठन का मानना है कि मुसलमानों को एक खलीफा के नेतृत्व में एकजुट होना चाहिए जो शरियत कानून के अनुसार शासन करे। इसका मुख्य उद्देश्य एक वैश्विक इस्लामी खिलाफत की स्थापना है जो मुसलमानों की राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन को इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार नियंत्रित करे। वस्तुतः इस संगठन का दावा और हकीकत दोनों एक-दूसरे के विपरीत हैं। यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के मुताबिक, ये संगठन गैर-सैन्य तरीकों से खिलाफत की पुनः स्थापना पर काम करता है। इसलिए कई देश, संगठन पर प्रतिबंध लगा चुके हैं। हिज्ब-उत-तहरीर पर प्रतिबंध लगाने वाले देशों में बांग्लादेश और चीन के अलावा जर्मनी, रूस, इंडोनेशिया, लेबनान, यमन, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं। दुनिया के अन्य कई देश हिज्ब-उत-तहरीर इस संगठन पर निगरानी कर रहे हैं क्योंकि वहां की राजनीतिक व्यवस्था के लिए भी यह चुनौती पैदा करने लगा है। इसके बावजूद यह संगठन दुनिया के 50 से अधिक देशों में सक्रिय है। 10 लाख से अधिक इसके सक्रिय सदस्यों की संख्या बतायी जाती है। हिज्ब-उत-तहरीर का भारत में बहुत व्यापक आधार नहीं नहीं है लेकिन हाल के वर्षों में इसके प्रभाव और गतिविधियों पर ध्यान दिया गया है। हिज्ब-उत-तहरीर का मुख्य उद्देश्य एक इस्लामिक खिलाफत स्थापित करना है जो भारत के संविधान और धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांतों के विपरीत है। हिज्ब-उत-तहरीर ने भारत में बहुत अधिक खुले तौर पर गतिविधियां नहीं की है लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्ट और सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, यह गुप्त रूप से भारत में सक्रिय है। संगठन के सदस्यों पर भारत के विभिन्न हिस्सों में युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और खिलाफत की विचारधारा का आरोप लगा है। भारत में सुरक्षा एजेंसियां इस संगठन पर नजर रख रही है और इसकी संभावित नेटवर्क को रोकने के प्रयास करती है। इस क्रम में भारत सरकार ने हाल ही में इस कट्टरपंथी समूह को प्रतिबंधित संगठन घोषित किया है। इसपर प्रतिबंध के मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि हिज्ब-उत-तहरीर का लक्ष्य लोकतांत्रिक सरकार को जिहाद के माध्यम से हटाकर भारत सहित विश्व स्तर पर इस्लामिक देश और खिलाफत स्थापित करना है। मंत्रालय ने अपने आदेश में कहा है कि हिज्ब-उत-तहरीर भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है। सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर हिज्ब-उत-तहरीर को एक आतंकवादी संगठन के रूप में सूचीबद्ध करने के साथ, यह समझना महत्वपूर्ण है कि न केवल इसकी गतिविधियां भारतीय कानून के तहत अवैध हैं बल्कि यह मूल इस्लामिक सिद्धांतों के खिलाफ भी है। इससे भारतीय मुस्लिम समुदाय के लिए दोहरी दुविधा पैदा होती है। भारत का संविधान धर्म और राज्य के मामलों के बीच स्पष्ट अंतर बनाए रखते हुए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को सुनिश्चित करना है। यह अपने सभी नागरिकों के लिए लोकतंत्र, मतदान और मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करता है। हिज्ब-उत-तहरीर के सदस्यों की हरकतें, जिनमें लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भागीदारी के खिलाफ प्रचार करना, संविधान को चुनौती देना और शरिया कानून द्वारा शासित वैकल्पिक राज्यों को बढ़ावा देना शामिल है जो अंतातोगत्वा देश के धर्मनिर्पेक्ष ताने-बाने को खतरे में डालेगा। लोकतंत्र के प्रति हिज्ब-उत-तहरीर का वैचारिक विरोध खुद को उन मूल सिद्धांतों के खिलाफ खड़ा करता है, जिन्होंने मुसलमानों सहित विभिन्न समुदायों को भारत में शांतिपूर्वक सहअस्तित्व की अनुमति दी है। संविधान विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देकर संगठन न केवल मुसलमानों और बहुसंख्यक समाज के बीच दरार पैदा करता है बल्कि एक अलगाववादी रवैये को भी बढ़ावा देता है जो इस्लाम के सामाजिक सामंजस्य सिद्धांत के खिलाफ है। हिज्ब-उत-तहरीर की गतिविधियां इस्लामिक शिक्षाओं का भी खंडन करती है। इस्लामिक चिंतकों के अनुसार, इस्लाम एक आस्था के तौर पर अराजकता से बचने को महत्व देता है। इस्लामिक राजनीतिक विचार में एक प्रमुख सिद्धांत यह है कि किसी भी वैध इस्लामिक शासन को एक वैध प्रक्रिया के माध्यम से बदला जा सकता है, विशेष रूप से व्यापक सामुदायिक समर्थन वाले मुस्लिम शासक के नेतृत्व में ही यह संभव है। अराजकता के माध्यम से शासन बदला जाना इस्लामिक राजनीतिक सिद्धांत के खिलाफ है। इस्लाम के पवित्र ग्रोंथ में इसके बारे में साफ चेतावनी दी गयी है। साफ तौर पर कहा गया है कि इस्लामी राज्य के लिए अनाधिकृत आह्वान के जरिए फूट को बढ़ावा देने के बजाए स्थापित प्राधिकरण के जरिए एकता और न्याय को बनाए रखना ही बेहतर है। वास्तव में दुनिया भर के इस्लामी विद्वानों ने नेतृत्वहीन आन्दोलन के खिलाफ चेतावनी दी है जो अशांति भड़का कर व्यवस्था बदलने की कोशिश करते हैं। हिज्ब-उत-तहरीर की तरह ये आन्दोलन न केवल समुदाय के हितों को नुकशान पहुंचाते हैं बल्कि समाजिक शांति और सदभाव प्राप्त करने के व्यापक इस्लामिक उद्देश्य के भी विपरीत हैं। हिज्ब-उत-तहरीर की वकालत के सबसे चिंताजनक पहलुओं में से एक मुस्लिम युवाओं पर इसका प्रभाव है, जो अक्सर अपने कार्यों के परिणामों को पूरी तरह से समझे बिना एक काल्पनिक इस्लामिक राज्य के वादे से बहक जाते हैं। हिज्ब-उत-तहरीर की विचारधारा से प्रभावित कई युवा मुस्लिम ऐसी गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं जो भारतीय कानून के तहत अवैध हैं, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार किया जाता है और लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता है। ये युवा, समाज के योगदानकर्ता सदस्य बनने के बजाय घोषित अपराधी बन जाते हैं। इस्लामी शासन के तहत बेहतर जीवन के हिज्ब-उत-तहरीर के वादे खोखले हैं, क्योंकि वे युवाओं को ऐसे रास्तों पर ढकेलते हैं, जो उन्हें अपराधी बना देता है। मुस्लिम युवाओं को यह एहसास कराने की जरूरत है कि इस्लाम सामाजिक शांति को बाधित करने वाले कार्यों की वकालत नहीं करता है और हिंसक विरोध या संवैधानिक व्यवस्था को उखाड़ फेंकने का आह्वान उन्हें गुमराह कर रहा है। मौजूदा लोकतांत्रिक ढ़ांचे के भीतर सामाजिक आर्थिक विकास, शिक्षा और राजनीतिक भागीदारी की ज्यादा जरूरत है, बजाए इसके कि एक अप्राप्य और विभाजनकारी लक्ष्य के लिए फालतू का प्रयास किया जाए, जो भारतीय कानून और इस्लामी सिद्धांतों दोनों के विपरीत हैं। इस मामले में यह जरूरी है कि मुस्लिम विद्वान, नेता और सामुदायिक संगठन हिज्ब-उत-तहरीर जैसे संगठनों द्वारा बताए गए आख्यानों का खंडन करे, जो न केवल अवैध है बल्कि धार्मिक रूप से भी गलत है। इस्लामिक शिक्षाएं मुसलमानों को अपने समाज में न्यायपूर्ण और सक्रिय भागीदार बनने, कानून के दायरे में अच्छाई को बढ़ावा देने और नुकशान को रोकने के लिए प्रोत्साहित करती है। विभाजनकारी विचारधाराओं का शिकार होने के बजाए, मुस्लिम समुदाय को भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के साथ रचनात्मक जुड़ाव पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। इसमें मतदान, राजनीतिक भागीदारी और समान अधिकारों की वकालत शामिल है। विद्रोह या कट्टरपंथ के विनाशकारी परिणामों के बिना समुदाय का उत्थान हो सकता है। मुस्लिम युवाओं को यह समझना चाहिए कि सच्चा इस्लामी शासन न्याय, व्यवस्था और शांति पर आरूढ होता है। ये ऐसे मूल्य हैं जिन्हें भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के भीतर बरकरार रखा गया है। उथल-पुथल के इस दौर में कट्टरपंथी आह्वानों को अस्वीकार करके, मुसलमान एक ऐसे भविष्य की दिशा में काम कर सकते हैं, जहां वे अपने विश्वास या अपनी स्वतंत्रता से समझौता किए बिना समाज में सकारात्मक योगदान दे सकें। गौतम चौधरी Read more » वैश्विक खिलाफत की काल्पनिक अवधारणा हिज्ब-उत-तहरीर
राजनीति समावेशी राष्ट्र बनाना है तो पसमांदा मुसलमानों की ताकत को पहचाने भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान November 22, 2024 / November 22, 2024 | Leave a Comment गौतम चौधरी वर्ण और जाति, पारंपरिक भारतीय समाज की नींव है। सामाजिक संरचना की यदि बात करें तो इसे आप किसी कीमत पर नजरअंदाज नहीं कर सकते । इस व्यवस्था की संरचना एक-दो वर्ष या फिर एक-दो सौ सालों में नहीं हुआ है। इसका लंबा इतिहास है। पक्ष-विपक्ष, हानी-लाभ की बात करें तो कई तर्क […] Read more » strength of Pasmanda Muslims. पसमांदा मुसलमानों की ताकत
विश्ववार्ता भारत-बांग्लादेश कूटनीतिक संबधों की समीक्षा जरूरी August 22, 2012 / August 22, 2012 | Leave a Comment गौतम चौधरी बांग्लादेश के सीमावर्ती क्षेत्रों वाले भारतीय भूभाग पर आंतक और अव्यवस्था जो दिख रहा है वह निःसंदेह बांग्ला देश द्वारा प्रायोजित है। भारत का केन्द्रीय नेतृत्व इस सच्चाई को चाहे कितना भी झुठलाये यह सवासोलह अना सत्य है कि बिहार, असम, पश्चिम बंगाल के साथ ही साथ पूर्वोतर में बांग्लादेश अपनी विदेशी नीति […] Read more » भारत-बांग्लादेश
विविधा गोगोई सरकार की देन है असम की वर्तमान समस्या August 8, 2012 | 1 Comment on गोगोई सरकार की देन है असम की वर्तमान समस्या गौतम चौधरी इन दिनों असम कई मामलों को लेकर सुर्खियों में है। संयोग कहिए या साजिश इन सारे मामलों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बांग्लादेशी मुसलमानों का हाथ बताया जा रहा है। पहली घटना एक महिला विधायक का है, जिसने अपनी राजनीति की शुरूआत भारतीय जनता पार्टी से की फिर कांग्रेस मे चली गयी। […] Read more » असम में हिंसा
विश्ववार्ता नेपाल में आत्मघाती रणनीति अपना रहा है भारत June 29, 2012 / June 29, 2012 | 2 Comments on नेपाल में आत्मघाती रणनीति अपना रहा है भारत गौतम चौधरी इन दिनों नेपाल की राजनीति बडी तेजी से बदल रही है। आशंका के अनुरूप नेपाली माओवादी आपस में विभाजित हो गये हैं। इधर डॉ0 बाबुराम मट्टराई ने बिना किसी संवैधानिक अधिकार के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जमे हुए है, जबकि उन्होंने खुद लोकसभा को भंग कर फिर से चुनाव की घोषणा की है। […] Read more » नेपाल भारत
राजनीति नितिश का जातिवादी चेहरा एवं समाजवादी पाखण्ड June 21, 2012 | 1 Comment on नितिश का जातिवादी चेहरा एवं समाजवादी पाखण्ड गौतम चौधरी विगत कुछ दिनों से खुर्राट समाजवादी और बिहार के मुख्यमंत्री नितिश कुमार कुछ ज्यादा ही मुखर हो गये हैं। बिहार में सुशासन का दावा करने वाले कुमार और कुमारी कुनबां अब यह साबित करने के प्रयास में है कि जनता दल (यूनाइटेड) में नितिश कुमार से बडा कोई नेता नहीं है। हालांकि कुछ […] Read more » जातिवाद नितिश कुमार
राजनीति क्या फिर से पंजाब में आतंकवाद की हो सकती है वापसी? May 3, 2012 | Leave a Comment गौतम चौधरी विगत दिनों पंजाब में घटी घटनाओं को देखकर कयास लगाया जाने लगा है कि प्रदेश में एक बार फिर से आतंकवाद की वापसी हो सकती है। हालांकि प्रेक्षकों का विश्लेषन है कि इस बार आतंकवाद के विस्तार की संभावना कम है लेकिन प्रदेश के लोगों में डर और अविश्वास का बातावरण बनने लगा […] Read more » आतंकवाद पंजाब
राजनीति मोदी, कांग्रेस और अहमद की तिकड़ी का गुजरात January 31, 2012 / June 23, 2012 | 1 Comment on मोदी, कांग्रेस और अहमद की तिकड़ी का गुजरात गौतम चौधरी हिन्दी के दैनिक अखबार में गुजरात के यशस्वी मुख्यमंत्री नरेन्द्रभाई दामोदरभाई मोदी से संबघित एक खबर पढी। इस बार गुजरात कांग्रेस ने मोदी के बारे में प्रशंसा का विज्ञापन छपवाया है। खबर का कुल लब्बोलुआब, अखबार के खबरची यह साबित करने पर तुले हैं कि प्रशंसा वाला यह विज्ञपन प्रदेश कांग्रेस की किसी […] Read more » ahmad patel Congress Narendra Modi
राजनीति विधानसभा चुनाव पंजाब चुनाव पर इस बार भी हावी है ताकत, पैसा, शराब January 28, 2012 / January 28, 2012 | 1 Comment on पंजाब चुनाव पर इस बार भी हावी है ताकत, पैसा, शराब गौतम चौधरी इस बार के पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाली शिरोमणी अकाली दल नीत गठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला है। जहां एक ओर अकाली गठबंधन निवर्तमान सरकार का नेतृत्व कर रही थी वही कांग्रेस पहले सरकार का नेतृत्व कर चुकी है। पंजाब में जिस कांग्रेस ने शासन किया […] Read more » Punjab पंजाब
राजनीति माओवादियों को खत्म करना है तो ईसाई चर्च पर लगाम लगाये सरकार January 23, 2012 / January 23, 2012 | 4 Comments on माओवादियों को खत्म करना है तो ईसाई चर्च पर लगाम लगाये सरकार गौतम चौधरी लाल कुत्ता जो भौंकता है, काटने के लिए दौड़ता, बडा खतरनाक है। मैंने भी मान लिया। कुत्ता कुछ अलग किस्म का है। इसकी रगों में माओ और लेनिन दोनों के खून बह रह है। यह अपने देष का नहीं, विदेशी नस्ल का है, क्योंकि इसके पुंछ कट हुए हैं। ऐसे ही कुछ कुत्तों […] Read more » conversion of religion in India maoism ईसाई चर्च धर्मांतरण माओवाद