राजनीति भीम मीम की राजनीति : बाबासाहेब व जोगेंद्र मंडल की दृष्टि से April 13, 2021 / April 13, 2021 | Leave a Comment भारतीय दलित राजनीति वर्तमान समय में सर्वाधिक दिग्भ्रमित दौर में है। दुर्भाग्य से वर्तमान समय ही इतिहास का वह संधिकाल या संक्रमणकाल है जबकि दलित राजनीति को एक दिशा की सर्वाधिक आवश्यकता है। भीम मीम के नाम का सामाजिक जहर बाबासाहेब अम्बेडकर के समूचे चिंतन को लील रहा है।भीम मीम के इतिहास को देखना, पढ़ना […] Read more » Politics of Bheem Meem Politics of Bheem Meem: From the point of view of Babasaheb and Jogendra Mandal view of Babasaheb and Jogendra Mandal
लेख शख्सियत भारत के स्पार्टाकस तिलका मांझी February 10, 2021 / February 10, 2021 | Leave a Comment वैसे तो विधर्मी आक्रांताओं के विरुद्ध भारत भूमि ने हजारों-लाखों लाल जन्मे हैं किंतु औपनिवेशिक आक्रांताओं के विरुद्ध जो आदि विद्रोही हुये या प्रथम लड़ाके हुये उस वीर को तिलका मांझी के नाम से जाना जाता है। तिलका मांझी को जबरा पहाड़िया नाम से भी जाना जाता है। ऐसा निस्संकोच कहा जा सकता है कि […] Read more » तिलका मांझी
विश्ववार्ता शख्सियत समाज स्वामी विवेकानंद : भारत के विश्वपुरुष January 11, 2021 / January 12, 2021 | Leave a Comment स्वामी विवेकानंद जी ने भारत को व भारतत्व को कितना आत्मसात कर लिया था यह कविवर रविन्द्रनाथ टैगोर के इस कथन से समझा जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि –‘यदि आप भारत को समझना चाहते हैं तो स्वामी विवेकानंद को संपूर्णतः पढ़ लीजिये’। नोबेल से सम्मानित फ्रांसीसी लेखक रोमां रोलां ने स्वामी जी के […] Read more » Swami Vivekananda स्वामी विवेकानंद
राजनीति शख्सियत संघ प्रवाह के समग्र साक्ष्य: मा. गो. वैद्य December 30, 2020 / December 30, 2020 | Leave a Comment राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रथम सरसंघचालक से लेकर अब तक के सभी यानि छहों संघ प्रमुखों के साथ जिन्होंने न केवल कार्य किया हो अपितु जीवंत संपर्क व तादात्म्य भी रखा हो ऐसे स्वयंसेवक संभवतः दो-पाँच भी नहीं होंगे। आदरणीय माधव गोविंद वैद्य ऐसे ही सौभाग्यशाली स्वयंसेवक थे। उनके देहांत पर अपने शोकसंदेश मे […] Read more » मा. गो. वैद्य संघ प्रवाह के समग्र साक्ष्य
राजनीति बिरसा मुंडा जयंती: आर्य अनार्य विमर्श के अवसान का अवसर November 12, 2020 / November 12, 2020 | Leave a Comment बिरसा मुंडा महान क्रांतिकारी थे, जनजातीय समाज को साथ लेकर उलगुलान किया था उन्होने। उलगुलान अर्थात हल्ला बोल, क्रांति का ही एक देशज नाम। वे एक महान संस्कृतिनिष्ठ समाज सुधारक भी थे, वे संगीतज्ञ भी थे जिन्होंने सूखे कद्दू से एक वाद्ध्ययंत्र का भी अविष्कार किया था जो अब भी बड़ा लोकप्रिय है। इसी वाद्ध्ययंत्र […] Read more » Birsa Munda Jayanti आर्य अनार्य विमर्श के अवसान का अवसर बिरसा मुंडा जयंती
राजनीति शाहबानों से शाहीन बाग तक मातृशक्ति की गलत व्याख्या October 30, 2020 / October 30, 2020 | Leave a Comment संदर्भ: सोनियाजी का प्रकाशित लेख सोनिया गांधी ने पिछले दिनों एक राष्ट्रीय समाचार पत्र मे एक लेख लिखा है। इस लेख मे वैसे तो कई कई विडंबनापूर्ण बाते हैं किंतु मैं मुख्यतः दो विषयों पर केंद्रित कर पाया हूं। एक देश मे लोकतंत्र की हत्या व दूजा विषय है देश की समूची मातृशक्ति की अस्मिता, कार्यक्षमता […] Read more » Misinterpretation of mother power from shahbans to shaheen bagh मातृशक्ति की गलत व्याख्या शाहबानों से शाहीन बाग तक सोनिया गांधी
राजनीति साक्षात्कार भारतीय समाज के भविष्य का रोडमैप October 16, 2020 / October 16, 2020 | Leave a Comment संदर्भ: मोहनजी भागवत का चर्चित साक्षात्कार विश्वप्रसिद्ध दार्शनिक व विचारक प्लेटो के शिष्य रहे हैं अरस्तू। अरस्तू सिकंदर के गुरु भी रहे हैं। अरस्तू का प्रसिद्ध ग्रंथ है “पालिटिक्स”। पालिटिक्स मे अरस्तू ने कहा है – प्रत्येक क्रांति रक्तपात से हो यह आवश्यक नहीं। अरस्तू ने आगे कहा, संविधान में होने वाला छोटा बड़ा परिवर्तन, […] Read more » मोहनजी भागवत का चर्चित साक्षात्कार वह हमारे राष्ट्र के भविष्य का रोडमैप हीं हैं
विश्ववार्ता भारत के लिए अनुकूल समय है,चीन पर से हर तरह की निर्भरता ख़त्म करने का August 10, 2020 / August 10, 2020 | Leave a Comment अब यदि भारत को आत्म निर्भर बनाने की स्थिति में लाना है तो हमें अपने मौलिक चिंतन में भी परिवर्तन करना होगा। आज यदि हम वैश्विक बाज़ारीकरण की मान्यताओं पर विश्वास करते हैं तो इस पर देश को पुनर्विचार करने की सख़्त ज़रूरत है। वर्ष 1991 में भारत में आर्थिक सुधार कार्यक्रम लागू होने के […] Read more » चीन की निर्भरता ख़त्म चीन पर से हर तरह की निर्भरता ख़त्म चीन से हर तरह की निर्भरता ख़त्म
राजनीति लेख बिरसा मुंडा का उलगुलान ही मूलनिवासी दिवस का खंडन है August 9, 2020 / August 9, 2020 | Leave a Comment मूलनिवासी दिवस या इंडिजिनस पीपल डे एक भारत मे एक नया षड्यंत्र है। सबसे बड़ी बात यह कि इस षड्यंत्र को जिस जनजातीय समाज के विरुद्ध किया जा रहा है, उसी समाज के काँधों पर रखकर इसकी शोभायमान पालकी भी चतुराई पूर्वक निकाल ली जा रही है। वैश्विक दृष्टि से यदि देखा जाये तो जिस […] Read more » The Ulagulan of Birsa Munda The Ulagulan of Birsa Munda is the denial of the native day. बिरसा मुंडा
राजनीति श्रीराम जन्मभूमि: देश का मानस एवं विमर्श August 4, 2020 / August 4, 2020 | Leave a Comment कर सारंग साजि कटि भाथा । अरिदल दलन चले रघुनाथा ।। प्रथम किन्ही प्रभु धनुष टंकोरा। रिपु दल बधिर भयहू सुनि सोरा ।। लगभग पाँच सौ वर्षों के सतत, दुधुर्ष व उत्कट संघर्ष के बाद 5 अगस्त को अयोध्या मे रामलला जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण की प्रथम शिला रखी जानी है। जो समय के भीतर झांक सकते हैं वे जानते हैं कि मंदिर निर्माण की प्रक्रिया तो 6 दिसंबर 1992 के दिन ही प्रारंभ हो गई थी जिस दिन बाबरी ढांचे का कलंक भारत भूमि से हटा था। बाबरी ढांचे से लेकर भव्य निर्माण तक का ये घटनाक्रम और आरोह अवरोह, सब प्रारब्ध है और रामरचित लीला मात्र है। श्रीराम भारत के गुलामी से जकड़े हुये समाज जागरण हेतु जितने बरस स्वयं की जन्मभूमि को आतताइयों के कब्जे मे रहने देना चाहते थे उतने बरस उन्होने रहने दिया। जब श्रीराम का मन किया कि अब लीला को नवस्वरूप देना है और नवविलास करना है तो वे तिरपाल को त्याग कर नए भवन की ओर अग्रसर हो गए हैं। होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥अस कहि लगे जपन हरिनामा। गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥ मैं स्वयं अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि यदि इतिहास मे 6 दिसंबर की वीरोचित घटना नहीं हुई होती तो 9 नवंबर 2019 का विवेकपूर्ण निर्णय भी नहीं हो सकता था। साथ ही यह भी कहना ही होगा कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या मे जितने भी रामभक्त बाबरी विध्वंस मे प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित थे उन सभी मे उस दिन रामेश्वरम रामसेतु के निर्माण मे संलग्न देव तुल्य वानरों की आत्मा प्रवेश कर गई थी। गिलहरी, नल, नील, जांबवंत, सुग्रीव, अंगद, हनुमान, सहित भैया लक्ष्मण और श्रीराम वहाँ स्वयं स्वयंसेवक रूप मे उपस्थित थे और एक नए युग के जन्म की कथा का प्रारंभ स्वयं अपने हाथों से लिख रहे थे। गोस्वामी तुलसीदास के इन शब्दों को प्रत्येक स्वयंसेवक कहते हुये आगे बढ़ रहा था – कटि तूनीर पीत पट बाँधें। कर सर धनुष बाम बर काँधें॥पीत जग्य उपबीत सुहाए। नख सिख मंजु महाछबि छाए॥ कमर में तरकस और पीतांबर बाँधे हैं। हाथों में बाण और कंधों पर धनुष तथा पीले यज्ञोपवीत सुशोभित हैं। नख से लेकर शिखा तक सब अंग सुंदर हैं, उन पर महान शोभा छाई हुई है और वे साथ साथ चलते जा रहे हैं। लंका दहन, क्षमा कीजिये बाबरी विध्वंस के बाद देश भर व विश्व मे चले विमर्श के संदर्भ मे कभी किसी प्रसिद्ध लेखक ने लिखा था कि वह विमर्श बड़ा ही भयावह था। समूचे भारतीय व वैश्विक मीडिया ने बड़ा ही अनैतिक, अनर्गल व अनावश्यक प्रलाप किया था। भारतीय सेकुलर विधवा विलाप कर रहे थे और बीबीसी से लेकर न्यूयार्क टाइम्स, मिरर, वाशिंगटन पोस्ट, एकानामिक टाइम्स आदि आदि वही कह रहे थे जो पाकिस्तान का “द डान” कह रहा था। द टाइम मेगज़ीन ने तो लिखा था कि “पवित्र काम भारत मे शांति नष्ट किए दे रहा है।“ टाइम ने उस समय “राम का क्रोध” नाम से भी एक स्टोरी भी प्रकाशित की थी। यूनिवर्सिटी आफ केलिफोर्निया से Ayodhya and the Politics of India’s Secularism: A Double-Standards Discourse जैसा शोध पत्र भी प्रकाशित हुआ था। इस समूचे विमर्श मे एक ही बात पर बल दिया जा रहा था कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ढाँचा गिराए जाने को ग़ैरक़ानूनी घोषित कर दिया है। बाबरी विध्वंस के बाद देश भर मे ऐसे लेखन को प्रायोजित किया गया जो हिंदू समाज मे घनघोर आत्मग्लानि, दुख, कुंठा व खेद का वातावरण तैयार करे। वामपंथी, तथाकथित सेकुलर व कांग्रेस ने भारत मे इस वितंडावादी वातावरण को निर्मित करने हेतु एड़ी चोटी के प्रयास किए। वस्तुतः बाबरी विध्वंस राम काज था, गौरावान्वित कर देने वाला अवसर था, पाँच सौ वर्षों की कुंठा, अवसाद व कलंक को मिटा देने वाला अवसर था। बाबरी विध्वंस पर 6 दिसंबर 1992 से लेकर 9 अक्तूबर 2019 तक न्यायालय द्वारा जितनी भी प्रतिकूल, अनुकूल प्रतिकूल टिप्पणियां की गई थी उन सभी को इस राष्ट्र के हम हिंदू बंधुओं ने न तो स्मरण करना चाहिए और न ही उन्हें विस्मृत करना चाहिए। मुझे लगता है बाबरी विध्वंस पर हुई तमाम न्यायलीन टिप्पणियों का यथासमय श्माशोधन / न्याय हमारे समाज द्वारा स्वमेव ही कर दिया जाएगा। एक सर्वव्यापी मंथन कभी न कभी होगा जो इस विमर्श के सत्व को स्थापित करेगा। जिस राष्ट्र ने श्रीराम को अपना पूर्वज, अपना कुटुंबपति, अपना पुरोधा, अपना प्रभु, अपना नीतिनियंता और अपना आदर्श माना हो उस समाज मे रामकाज करना प्रत्येक नागरिक का प्रथम कर्तव्य है। निस्संदेह मंदिर निर्माण रामकाज ही है और बाबरी का विध्वंस भी रामकाज ही था। यदि समाज, देश व विश्व यह सोचता है कि अयोध्या मे श्रीराम मंदिर निर्माण ही अंतिम रामकाज है तो वह गलत सोचता है। आप चिंता न करें मैं यहां मथुरा, काशी आदि आदि की बात नहीं कर रहा हूँ। मथुरा काशी अपने आप मे एक सामाजिक कार्य है जो समय आने पर विधिवत अभियान का स्वरूप लेगा; मैं तो यहां यह चर्चा कर रहा हूँ कि ये जो पाँच सौ वर्षों तक हमारे माथे पर कलंक का टीका लगा रहा है वह मंदिर बनने मात्र से समाप्त नहीं होगा। इस कलंक को समाप्त करने हेतु हमें हमारे समाज मे चले पाँच सौ वर्षों के षड्यंत्रकारी व लज्जाधारी विमर्श के विरुद्ध भी एक व्यापक विमर्श खड़ा करना होगा। मंदिर स्थूल है किंतु मंदिर का व्यापक विमर्श एक दिव्य विचार है। हमें इस दिव्य विचार की स्थापना हेतु कार्य करना होगा ताकि हम हमारी आने वाली पीढ़ियों को आत्मग्लानि, कुंठा व खेद के भाव से निकालकर वीरोचित भाव से आत्मविभोर कर पाएँ। आप कल्पना कीजिये कि जिस देश मे नरेंद्र मोदी के पूर्व किसी प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक मंच से जय श्रीराम का उद्घोष ही नहीं किया, उस देश मे राममंदिर के निर्माण हेतु एक प्रधानमंत्री का जाना सतह के नीचे कितनी लहरों को जन्म दे रहा होगा। हम आज यदि लगभग बीते तीन दशकों के बाबरी ढांचा विध्वंस पर हुये विमर्श को जांचे परखे तो लगता है इस विषय पर बहुत दीर्घ, सतत व विस्तृत अध्ययन विमर्श की आवश्यता है। द वीक पत्रिका द्वारा जारी 7 सितंबर, 2003 की रिपोर्ट “ The layers of truth” हो, या आउटलूक इंडिया पत्रिका की “What If Rajiv Hadn’t Unlocked Babri Masjid? हो, या 3 अक्टूबर 2010 को प्रकाशित द हिन्दू की प्रकाशित स्टोरी Ayodhya verdict yet another blow to secularism: Sahmat हो, ऐसी पचासों स्टोरीज़ और दसियों पुस्तके हैं जिनके सामयिक विचारमंथन या समाशोधन (हिसाब किताब बराबर करना) की सख्त आवश्यकता हमारे समाज को है। निस्संदेह इस सामाजिक, अकादमिक समाशोधन हेतु यह समय सर्वाधिक उपयुक्त व समीचीन है। Read more » श्रीराम जन्मभूमि
राजनीति नेपाली संसद मे हिंदी का विरोध और नेपाली जनमानस का रोष July 3, 2020 / July 3, 2020 | Leave a Comment नेपाली संसद मे हिंदी भाषा को प्रतिबंधित करने की चर्चा बल पकड़ रही है। नेपाल मे भारत, भारतीयता व हिंदी का विरोध कम्यूनिज़्म की देन है। कम्यूनिज़्म क्या है? तो इस प्रश्न के उत्तर मे मैं गांधीवाद पर किसी विचारक की टिप्पणी का रूपांतरण रखता हूं – कम्यूनिज़्म वह होता है जिसमें कम्युनिस्ट नेता एक बात कहे, कम्युनिस्ट […] Read more » Opposition of Hindi in Nepali Parliament Opposition of Hindi in Nepali Parliament and fury of Nepali people नेपाली जनमानस का रोष नेपाली संसद नेपाली संसद मे हिंदी का विरोध
राजनीति आपातकाल की बड़ी भारी हथकड़ी और कोमल कलाई June 26, 2020 / June 26, 2020 | Leave a Comment देश मे आपातकाल लगाए जाने वाले काले 25 जून पर प्रतिवर्ष कुछ न कुछ लिखना मेरा प्रिय शगल रहा है। किंतु, आज जो मैं आपातकाल लिख रहा हूं, वह संभवतः इमर्जेंसी के सर्वाधिक कारुणिक कथाओं मे से एक कथा होगी। जिस देश मे मतदान की आयु शर्त 18 वर्ष हो व चुनाव लड़ने की 21 वर्ष हो वहां 14 वर्ष के अबोध बालक […] Read more » आपातकाल आपातकाल की बड़ी भारी हथकड़ी द संजय स्टोरी