कविता साहित्य रजनीगन्धा हूँ मैं, May 8, 2016 | Leave a Comment के डी चारण रजनीगन्धा हूँ मैं, रंगोआब खुशबू से शेष जी, हां रजनीगंधा ही हूँ मैं, वह रंगोआब, खुशबू वाला पुष्प नहीं, जो जीवन में भाव भरता है, नयापन लाता है। समय रंगकर होठों की लाली बढाने वाली, पीक के लाल छर्रों वाली, मुलायम-कठोर कणों के गुण धर्म वाली रजनीगन्धा ही हूँ मैं। एक पतली […] Read more » रजनीगन्धा हूँ मैं
कविता गिद्ध का बयान January 10, 2015 / January 10, 2015 | 3 Comments on गिद्ध का बयान (अचानक एक मटमैले और कुरूप से पक्षी का प्रवेश होता है, वहां उपस्थित लोग चौक जाते है।) क्या हुआ ? चौक गये………..? मुझे देखकर………. अरे! मैं भी मूर्ख हूं, कई दिनों बाद देखा होगा, मेरी प्रजाति का वंशज, मैं गिद्ध हूं, मिट्टी का भक्षक, कालचक्र का अदना सा राही, चौकिए मत…….. एक सच बयान करना था, […] Read more » गिद्ध का बयान
कविता रे देवों के अंश जाग जा……… September 23, 2014 | 3 Comments on रे देवों के अंश जाग जा……… रे देवों के अंश जाग जा……… कौटिक देखे कर्मरत, पर तुझसा दिखा न कोई। इतने सर संधान किये,फिर क्यों तेरी भाग्य चेतना सोई।। आज रौशनी मद्धम-मद्धम, तारों की भी पांत डोलती, खाली उदर में आती-जाती, सांय-सांय सी सांस बोलती, कितने घर चूल्हा ना धधका, सब घर चाकी सोई है। रे ! देवों के अंश […] Read more » रे देवों के अंश जाग जा
कविता मेरा मौन September 4, 2014 / September 4, 2014 | 4 Comments on मेरा मौन के.डी. चारण मुझमें एक मौन मचलता है, भावों में आवारा घुलकर मस्त डोलता है, मुझमें एक मौन मचलता है। शिशुओं की करतल चालों में, आवारा यौवन सालों में, मदिरा के उन्मत प्यालों में, बुढ्ढे काका के गालों में, रोज बिलखता है। मुझमें एक मौन मचलता है। लैला मज़नू की गल्पें सुनकर, औरों की आँँखों […] Read more » मेरा मौन