गजल मुहोब्बत की भला इससे बड़ी March 16, 2013 | 1 Comment on मुहोब्बत की भला इससे बड़ी मुहोब्बत की भला इससे बड़ी सौगात क्या होगी जला कर घर खड़ा हूँ मै यहाँ अब रात क्या होगी || गुनाहों में गिना जाने लगा दीदार करना अब हसीनो के लिए इससे बड़ी खैरात क्या होगी || सुबह से शाम तक देखे कई पतझड़ दरीचे में गरजते बादलों की रात है बरसात क्या […] Read more »
कविता राजनीति के सिलबट्टे पर घिसता पिसता आम आदमी March 15, 2013 / March 15, 2013 | 1 Comment on राजनीति के सिलबट्टे पर घिसता पिसता आम आदमी राजनीति के सिलबट्टे पर घिसता पिसता आम आदमी मजहब के मंदिर मस्जिद पर बलि का बकरा आम आदमी || राजतंत्र के भ्रष्ट कुएं में पनपे ये आतंकी विषधर विस्फोटों से विचलित करते सबको ये बेनाम आदमी || क्या है हिन्दू, क्या है मुस्लिम क्या हैं सिक्ख इसाई प्यारे लहू एक हैं – एक जिगर […] Read more » राजनीति के सिलबट्टे पर घिसता पिसता आम आदमी
कविता फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो March 12, 2013 / March 12, 2013 | 1 Comment on फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो कभी गुलामी के दंशों ने , कभी मुसलमानी वंशों ने मुझे रुलाया कदम कदम पर भोग विलासीरत कंसो ने जागो फिर से मेरे बच्चों शंख नाद फिर से कर डालो फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो|| मनमोहन धृष्टराष्ट बन गया कलयुग की पहचान यही है गांधारी पश्चिम से आकर जन गण […] Read more » फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो
महिला-जगत ममता की आधारशिला तुम March 9, 2013 / March 8, 2013 | Leave a Comment मनोज नौटियाल ममता की आधारशिला तुम, प्रेममयी नूतन आशा हो मानवता की केंद्रबिंदु हो , नवजीवन की परिभाषा हो माँ बनकर सबसे पहले तुम मिली मुझे पहली परछाई नौ माहों की कठिन तपस्या , माँ तुमने निस्वार्थ निभाई करुणा की मूरत बनकर जो बचपन को आधार दिया है कर्ज कभी ना दे पाऊंगा माँ तुमने […] Read more »
गजल सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं March 8, 2013 / March 8, 2013 | Leave a Comment मनोज नौटियाल सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं || नहीं है तू कहीं भी अब मेरी कल की तमन्ना में जूनून -ए – इश्क की अब भी मगर अंगड़ाइयां क्यूँ हैं ? मिटा डाले सभी नगमे मुहोबत्त के तराने […] Read more » सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं
कविता मेरी जीवन रामायण में March 6, 2013 / March 8, 2013 | 1 Comment on मेरी जीवन रामायण में मनोज नौटियाल मेरी जीवन रामायण में एक अकेला मै वनवासी मै ही रावण मै ही राघव द्वन्द भरी लंका का वासी कभी अयोध्या निर्मित करने की मन में अभिलाषा आये डूब गयी वह विषय सिन्धु में ,जब तक निर्मित हुयी ज़रा सी || सुख -दुःख की आपाधापी में जीवन की परिभाषा डोले मन की […] Read more »