कविता क्या हो गया है इन औरतों को? June 10, 2025 / June 10, 2025 | Leave a Comment क्या हो गया है इन औरतों को?अब ये आईना क्यों नहीं झुकातीं?क्यों चलती हैं तेज़ हवा सी,क्यों बातों में धार रखती हैं?कल तक जो आंचल से डर को ढँकती थीं,अब क्यों प्रश्नों की मशालें थामे हैं?क्या हो गया है इन औरतों को —जो रोटी से इंकलाब तक पहुंच गईं?कोमल थीं, हाँ, थीं नर्म हथेलियाँ,अब उनमें […] Read more »
खान-पान मिलावट: मुंह में नहीं, ज़मीर में घुला ज़हर June 9, 2025 / June 9, 2025 | Leave a Comment मिलावट अब केवल खाने-पीने तक सीमित नहीं रही, यह हमारे सोच, संबंध, और व्यवस्था तक में घुल चुकी है। मूँगफली में पत्थर हो या दूध में डिटर्जेंट, यह मुनाफाखोरी की संस्कृति का विस्तार है। उपभोक्ता की चुप्पी, सरकार की ढील और समाज की “चलता है” मानसिकता ने इसे स्वीकार्य बना दिया है। मिलावट एक नैतिक […] Read more » Adulteration: Poison mixed in conscience मिलावट
लेख बेवफाई की हनीमून डायरी June 9, 2025 / June 9, 2025 | Leave a Comment ✍️ प्रियंका सौरभ मैंने देखा था एक जोड़ाहाथों में हाथ, आँखों में स्वप्न लिएवो कहते थे – “हमसफ़र”पर शायद किसी एक के लिएये सफर सिर्फ “अंत” था। मेघालय की वादियों मेंजहाँ झीलें चुपचाप सब सुनती हैं,वहीं गूंजा था एक मौन चीत्कारएक प्रेमी पति,जो पत्नी के हृदय में नहीं,उसके षड्यंत्र में जी रहा था। राजा…जिसे लगा […] Read more » Honeymoon Diaries of Infidelity
लेख राखीगढ़ी: भारत की स्त्री-केंद्रित सभ्यता की झलक June 6, 2025 / June 6, 2025 | Leave a Comment इतिहास की परतों में छुपी स्त्री, संस्कृति और सभ्यता का पुनर्पाठ हरियाणा स्थित राखीगढ़ी हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल है, जहाँ से मिले 4600 साल पुराने महिला कंकाल, शंख की चूड़ियाँ और ताम्र नृत्यांगना की प्रतिमा सभ्यता में स्त्री की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करते हैं। डीएनए विश्लेषण ने ‘आर्य आक्रमण सिद्धांत’ पर सवाल […] Read more » राखीगढ़ी
लेख मौन की राख, विजय की आँच June 4, 2025 / June 4, 2025 | Leave a Comment प्रियंका सौरभ छायाओं में ढलती साँझ सी,वह हार जब आयी चुपचाप,न याचना, न प्रतिकार…बस दृष्टि में एक बुझा हुआ आकाश। होठों पर थरथराती साँसें,मन भीतर एक अनसुनी रागिनी,जिसे किसी ने सुना नहीं,जिसे कोई बाँध न सका आँसू की धार में। वह पुरुष…जो शिखरों का स्वप्न लिएघाटियों में उतर गया था चुपचाप,कहीं कोई पतझड़ था उसकी […] Read more » मौन की राख विजय की आँच
लेख समाज दुल्हन फर्जी, रिश्ता असली बेवकूफी का! June 3, 2025 / June 3, 2025 | Leave a Comment फर्जी रिश्तों का व्यापार: शादी नहीं, ठगी का धंधाभारत में शादियों को लेकर एक सांस्कृतिक उत्सव, पारिवारिक प्रतिष्ठा और भावनात्मक जुड़ाव की भावना जुड़ी होती है। लेकिन जब इस पवित्र रिश्ते को ठगों का व्यवसाय बना दिया जाए, तो यह सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि पूरे समाज के विश्वास की हत्या होती है। हरियाणा के […] Read more » दुल्हन फर्जी
कविता कृषक की गाथा — मिट्टी से मन तक June 2, 2025 / June 2, 2025 | Leave a Comment मिट्टी की महक से है उसकी आराधना,खेत-खलिहान में वो करता नित नमन।धूप-छाँव में जो तपे, जो झूके न कभी,कृषक है धरती का सबसे बड़ा सजन। खून-पसीने से लिखी उसकी यह कहानी,संघर्ष की लौ में जलती है आह्वान।फसलें बोए, सपने रोपे, मन के वीर,हरियाली से भर दे वह वीरान मैदान। बूंद-बूंद में समेटे अमृत सावन के,हवा […] Read more » The story of a farmer - from soil to mind कृषक की गाथा
कविता स्त्रियाँ जो द्रौपदी नहीं बनना चाहतीं June 2, 2025 / June 2, 2025 | Leave a Comment वे स्त्रियाँअब चीरहरण नहीं चाहतीं,ना सभा की नपुंसक दृष्टि,ना कृष्ण का चमत्कारी वस्त्र-प्रदर्शन।वे अब प्रश्न नहीं करतीं —“सभागृह में धर्म कहाँ है?”वे खुद ही धर्म बन चुकी हैं।वे स्त्रियाँन तो द्रौपदी हैं,ना सीता,ना कुंती,वे अपना नाम खुद रखती हैं —कभी विद्रोह,कभी प्रेम,कभी ‘ना’।वे अब अग्निपरीक्षा नहीं देतीं,क्योंकि वे जान चुकी हैं —आग से नहीं,सवालों से […] Read more » स्त्रियाँ जो द्रौपदी नहीं बनना चाहतीं
लेख समाज सात शव और एक सवाल: हम सब कब जागेंगे? May 28, 2025 / May 28, 2025 | Leave a Comment “मरते एक हैं, दोषी हम सब हैं” “मौन अपराध है: पंचकूला की त्रासदी से सीख” “हर आत्महत्या एक पुकार है, क्या हम सुन रहे हैं?” “जब रिश्ते रह गए सिर्फ़ त्योहारों तक” “आर्थिक तंगी से नहीं, सामाजिक बेरुख़ी से मरे वो लोग” सिर्फ़ खबर नहीं थी वो, एक सामूहिक अपराध का दस्तावेज़ थी > “आखिरकार […] Read more » Seven members of a family committed mass suicide in Panchkula
लेख समाज फेसबुक या फूहड़बुक?: डिजिटल अश्लीलता का बढ़ता आतंक और समाज की गिरती संवेदनशीलता May 27, 2025 / May 27, 2025 | Leave a Comment लेखिका: प्रियंका सौरभ जब सोशल मीडिया हमारे जीवन में आया, तो उम्मीद थी कि यह विचारों को जोड़ने, संवाद को मज़बूत करने और जन-जागरूकता फैलाने का एक सशक्त माध्यम बनेगा। लेकिन आज, 2025 में, विशेषकर फेसबुक जैसे मंच पर जिस तरह से अश्लीलता और फूहड़ता का आतंक फैलता जा रहा है, वह न केवल चिंताजनक […] Read more » Facebook or Fuchbook? The growing terror of digital pornography and the falling sensitivity of society फेसबुक या फूहड़बुक
महिला-जगत लेख बदलते युग का नया तमाशा: संस्कारों की सिसकियाँ May 26, 2025 / May 26, 2025 | Leave a Comment (समाज में बदलती नैतिकता, रिश्तों की उलझन और तकनीक के नए असर पर) समाज में अब बेटी की निगरानी नहीं, दादी और सास की होती है। तकनीक और आज़ादी के इस युग में रिश्तों की परिभाषा बदल गई है। जहाँ पहले लड़कियों की सुरक्षा सबसे बड़ी चिंता थी, अब वही महिलाएं अपनी आज़ादी के साथ […] Read more » संस्कारों की सिसकियाँ
राजनीति सिन्दूर: अब श्रृंगार ही नहीं, शौर्य का प्रतीक May 18, 2025 / May 22, 2025 | Leave a Comment सिन्दूर, जो कभी सिर्फ वैवाहिक प्रेम का प्रतीक था, आज ऑपरेशन सिंदूर की नायिकाओं वियोमिका और सोफिया की साहसिक कहानियों का प्रतीक बन गया है। ये महिलाएं सिर्फ सजी-धजी मूरतें नहीं, बल्कि अदम्य साहस, बलिदान और नारी शक्ति का जीवंत उदाहरण हैं। उन्होंने न केवल अपने हौसले से दुश्मनों को मात दी, बल्कि यह भी […] Read more » but a symbol of bravery operation sindoor Sindoor: Now not just makeup ऑपरेशन सिंदूर