राजनीति आजाद भारत के महानायक डॉ0 अम्बेडकर का संकल्प September 22, 2025 / September 22, 2025 | Leave a Comment डॉ0 अम्बेडकर संकल्प दिवस – 23 सितंबर 1917 ओ पी सोनिक भारत में स्कूली जीवन से ही पढ़ाया-सिखाया जाता है कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ यानी कि पूरी दुनिया ही एक कुटुम्ब है। दुनिया में मानवता को जिन्दा रखने के लिए इससे बेहतर कोई विचार नहीं हो सकता। फिर क्या कारण हैं कि समुद्र पार की यात्राएं धर्म विरूद्ध घोषित कर दी जाती हैं। जिन विद्यालयों में कुटुम्बकम का पाठ पढ़ाया जाता है, उन्हीं विद्यालयों में अम्बेडकर को सामाजिक अस्पृश्यताओं से जूझना पड़ता है। अम्बेडकर से समय की समस्याएं आजादी के बाद भी समाज में देखी जा सकती हैं। स्कूलों में किसी दलित बच्चे द्वारा मटके से पानी पीने के प्रयासों में शिक्षक द्वारा जातिगत रूप से प्रताड़ित किया जाता है। दलित दूल्हे को घोड़ी पर चढ़ते हुए देखना गंवारा नहीं होता। भारत में दलितों के नरसंहारों का भी अपना इतिहास रहा है। ऐसी तमाम घटनाएं बताती हैं कि भारत में सामाजिक रूप से समता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं हो पा रहे हैं पर यह सच है कि भारतीय समाज में सामाजिक विषमताओं की जड़ें जितनी गहरी हैं, सामाजिक परिवर्तन का इतिहास भी उतना ही पुराना है। बुद्ध से लेकर ज्योतिबा फूले और अम्बेडकर से लेकर कांशीराम ने वंचित वर्गों को सामाजिक विषमताओं से मुक्ति दिलाने के लिए सामाजिक परिवर्तन के संघर्ष को जारी रखा। किसी भी समाज में सामाजिक परिवर्तन की परंपरा को जारी रखने के लिए संकल्पों एवं प्रतिज्ञाओं का अपना महत्व होता है। संकल्प की महत्ता को 23 सितंबर 1917 को वडोदरा में डॉ0 अम्बेडकर द्वारा लिए गए संकल्प से समझा जा सकता है। भारतीय इतिहास में यह दर्ज है कि बचपन से ही उन्हें सामाजिक विषमताओं का सामना करना पड़ा। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद समाज की संकीर्ण मानसिकता ने उन्हें अपमानित करने का काम किया। जब वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर भारत लौटे और बड़ौदा नरेश के साथ हुए समझौते के अनुसार बड़ौदा राज्य में सैनिक सचिव की नौकरी स्वीकार की। बड़ौदा नरेश के फरमान के बावजूद उन्हें न तो शासकीय सम्मान मिला और न ही सामाजिक सम्मान। इतना ही नहीं, जातिवादी व्यवस्था के कारण बड़ौदा में किराए पर मकान नहीं मिल पाया. उस समय अस्पृश्यता की जड़ें लगभग सभी धर्मों से जुड़़ी थीं। पारसी के यहॉं उन्हें किराए पर रहने का अवसर तो मिला पर वहॉं भी उन्हें जातीय उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा। डॉ0 अम्बेडकर को यह अनुभव हुआ कि उनकी शिक्षा और योग्यता के बावजूद उन्हें केवल अछूत होने के कारण सामाजिक सम्मान नहीं मिलता। इन्हीं कटु अनुभवों ने उनके भीतर यह दृढ़ निश्चय पैदा किया कि जब तक समाज की संरचना नहीं बदलेगी, तब तक वंचितों के जीवन में परिवर्तन संभव नहीं होगा । उन्होंने सामाजिक परिवर्तन के संकल्प को भारतीय संविधान की रचना करके पूरा किया है । डा0 अम्बेडकर ने जहॉ सामाजिक परिवर्तन का संकल्प लिया था, उस संकल्प भूमि पर उनके अनुयायी प्रतिवर्ष संकल्प दिवस मनाते हैं। हजारों लोग बगैर किसी आह्वान के इकट्ठा होते हैं और सामाजिक परितर्वन के संकल्प को दोहराते हैं। इस संकल्प भूमि को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक बनाने के सरकारी प्रयास भी जारी है। संकल्प दिवस के सौ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 23 सितंबर 2017 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने संकल्प भूमि स्मारक का शिलान्यास किया था। 8 जुलाई 2022 राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण ने भारतीय संविधान के निर्माता एवं महान समाज सुधारक डॉ0 अम्बेडकर से जुड़े दो स्थलों को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित करने की सिफारिश की थी। वडोदरा स्थित संकल्प भूमि बरगद के पेड़ परिसर जहॉं डॉ0 अम्बेडकर ने 23 सितम्बर 1917 को अस्पृश्यता उन्मूलन का संकल्प लिया था, यह स्थान सौ साल से भी अधिक पुराना है और डॉ0 अम्बेडकर द्वारा सामाजिक परिवर्तन के लिए शुरू किए गए संघर्ष का गवाह रहा है। राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण ने सतारा स्थित प्रताप राव भोसले हाई स्कूल को भी राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किए जाने की सिफारिश की है। इसी स्कूल में डॉ0 अम्बेडकर ने प्राथमिक शिक्षा पूरी की थी। भारत में समय समय पर बाबा साहब डॉ0 अम्बेडकर की 22 प्रतिज्ञाओं की चर्चा विभिन्न मंचों से होती रहती है। सभी उपस्थितों को शपथ दिलायी जाती है कि सभी जीवन में उक्त प्रतिज्ञाओं का पालन करेंगे। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार में दलित वर्ग से मंत्री बने एक नेता 22 प्रतिज्ञाओं को लेकर इतने चर्चित हुए कि उन्हें पहले मंत्री पद और बाद में पार्टी को भी छोड़ना पड़ा। फिर उन्होंने एक ऐसी पार्टी ज्वाइन कर ली, बाबा साहब डा0 अम्बेडकर ने दलितों को जिससे दूर रहने को कहा था, यानी कि 22 प्रतिज्ञाओं के चक्कर में एक बड़ी राजनीतिक प्रतिज्ञा को तिलांजलि दे दी गयी। अक्सर भारतीय राजनीति गिरगिट से भी ज्यादा रंग बदलती है। दलित वर्ग में ऐसे कई नेताओं के उदाहरण यहॉं दिए जा सकते हैं जिन्होंने अम्बेडकरवाद की हुंकार भरते भरते गॉंधीवादी राजनीति के सामने समर्पण कर दिया। थोड़ी देर के लिए मान लें कि अगर डॉ0 अम्बेडकर भी गॉंधीवादी राजनीति के सामने समर्पण कर देते तो क्या वो आज के अम्बेडकर बन पाते। दलित नेताओं को बस इतनी सी बात समझने की जरूरत है। डॉ0 अम्बेडकर के उक्त संकल्प के कई गहरे संदेश निकलते हैं। उनका मानना था कि किसी भी व्यक्ति का मूल्य जन्म से नहीं बल्कि उसके कर्म और आचरण से तय होना चाहिए। आत्मसम्मान और स्वतंत्रता के लिए आवश्यकता पड़ने पर परंपराओं को तोड़ देना चाहिए। राजनीतिक आजादी तभी तक सार्थक है, जब समाज के सभी वर्गों को समान अधिकार और अवसर मिलें। 21वीं सदी का भारत तकनीक और अर्थव्यवस्था में भले ही आगे बढ़ रहा हो, पर जातीय भेदभाव, सामाजिक असमानता और धार्मिक कट्टरता आज भी भारत के लिए चुनौतियॉं बनी हुई हैं। ऐसे में डॉ0 अम्बेडकर का बड़ौदा संकल्प हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ केवल राजनीतिक आजादी नहीं बल्कि सामाजिक और मानसिक गुलामी से मुक्ति भी है। भारत के इतिहास में डॉ0 अम्बेडकर एक ऐसे महामानव के रूप में स्मरण किए जाते हैं, जिन्होंने केवल अपने व्यक्तिगत उत्थान का मार्ग नहीं चुना बल्कि पूरे समाज के लिए समानता और न्याय का पथ प्रशस्त किया। उनकी सोच और संघर्ष ने शोषित एवं वंचित वर्गों को आत्मसम्मान और अधिकारों की चेतना दी। डॉ0 अम्बेडकर का जीवन कई निर्णायक पड़ावों से गुजरा परन्तु 23 सितम्बर 1917 का दिन विशेष महत्व रखता है। भारतीय पटल से दुनिया को वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश देने के लिए जरूरी है कि डॉ0 अम्बेडकर के उक्त संकल्प को पूरा किया जाए। ओ पी सोनिक Read more » Resolution of Dr. Ambedkar the great leader of independent India डॉ0 अम्बेडकर संकल्प दिवस
कला-संस्कृति माताजी की घट स्थापना के शुभ मुहूर्त्त September 20, 2025 / September 20, 2025 | Leave a Comment आश्विन शरद नवरात्रि दिनांक 22 सितम्बर सोमवार से प्रारंभ होगा। इस बार नवरात्रि 10 दिनों की रहेगी। दुर्गाष्टमी 30 सितम्बर को रहेगी। दुर्गा नवमी 1 अक्टूबर की रहेगी। इस बार मां दुर्गा का आगमन सोमवार के दिन हो रहा है, इसलिए इस बार उनका वाहन हाथी होगा। मान्यता है कि हाथी पर आगमन होने से […] Read more » माताजी की घट स्थापना के शुभ मुहूर्त्त
लेख विधि-कानून न्यायिक ढांचे में विस्तारक विकेन्द्रीयकरण जरूरी September 18, 2025 / September 18, 2025 | Leave a Comment धीतेन्द्र कुमार शर्मा गुजरे 12 सितम्बर को राजस्थान की वकील बिरादरी में तूफानी हलचल थी। राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर और जयपुर दोनों पीठ, राजधानी जयपुर, और कोचिंग कैपिटल कोटा, झीलों की नगरी उदयपुर के अलावा कई स्थानों पर बार एसोसिएशनों (अधिवक्ताओं के संगठन) ने तल्ख प्रदर्शनों के साथ हड़ताल (न्यायिक कार्य बहिष्कार) रखी। वजह बना केन्द्रीय कानून […] Read more » न्यायिक ढांचे में विस्तार
राजनीति शख्सियत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर September 16, 2025 / September 16, 2025 | Leave a Comment राजनीति के अंधियारे में सूर्य निकल आया जैसेएक अपाहिज देश आज फिर पैदल चल आया जैसेकिसी चक्रवर्ती राजा ने मोदी बनकर जन्म लियास्वयं इन्द्र प्यासी धरती पर लेकर जल आया जैसे सेनाओं में प्राण आ गए, देश शक्ति बनकर उभरासोया पडा समर्पण जागा, देश भक्ति बनकर उभरानतमस्तक है विश्व सामने, एक सन्त की माया हैयह […] Read more » 75th birthday of narendra modi
कविता गयाजी धाम September 12, 2025 / September 12, 2025 | Leave a Comment पितृ पक्ष में पितर तृप्तिका होता सुंदर काम है ।विश्व पटल पर सबसे पावनपूज्य गया जी धाम है ॥अद्भुत नगरी , प्यारी नगरीविष्णु जी की दुलारी नगरीमंगला गौरी , अक्षयवट औरविष्णुपद की पौरी – पौरीपिंड – पिंड में यहां लिखापितरों का ही नाम है ।विश्व पटल पर सबसे पावनपूज्य गया जी धाम है ॥ कर्मकांड […] Read more » गयाजी धाम
मनोरंजन डिजिटल डिटॉक्स क्यों जरूरी है ? September 11, 2025 / September 11, 2025 | Leave a Comment डा वीरेन्द्र भाटी मंगल वर्तमान समय डिजिटल युग का है। मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया ने हमारी दुनिया को छोटा कर दिया है। सूचना, शिक्षा और मनोरंजन हमारी उंगलियों पर हैं लेकिन यही सुविधा धीरे-धीरे हमारी सबसे बड़ी समस्या भी बनती जा रही है। लोग घंटों-घंटों मोबाइल स्क्रीन पर समय बिताने लगे हैं जिसके कारण […] Read more » Why is digital detox necessary डिजिटल डिटॉक्स
खान-पान सार्थक पहल केला : खाएं भी और फैशन भी चमकाएं September 10, 2025 / September 10, 2025 | Leave a Comment चंद्र मोहन केले का कई तरह से इस्तेमाल होते देखा या सुना है. केले या केले के तने का इस्तेमाल अलग-अलग तरह से किया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि केले के रेशों का इस्तेमाल अब फैशन इंडस्ट्री में भी होने लगा है, वो भी अलग-अलग तरह के कपड़े तैयार करने में. जो केला […] Read more » केले के रेशों का इस्तेमाल
लेख आत्महत्या किसी भी सामान्य जीव की नैसर्गिक प्रवृत्ति है ही नहीं September 9, 2025 / September 9, 2025 | Leave a Comment डॉ. एच.एस. राठौर पृथ्वी पर जीवन विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे, पशु-पक्षी एवं सूक्ष्म जीवों के रूपों में प्रकट होता है और एक समय पर इनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है जिसे मृत्यु कहते है। मनुष्य जीवों में सर्वश्रेष्ठ है एवं विकासवाद के क्रम में सर्वोच्च स्थान पर है। सबसे परिष्कृत मस्तिष्क एवं किसी भी ऋतु […] Read more » आत्महत्या आत्महत्या किसी भी सामान्य जीव की नैसर्गिक प्रवृत्ति है ही नहीं
लेख हिंदी दिवस हिंदी हैं, हम वतन है, हिन्दुस्तां हमारा! September 9, 2025 / September 9, 2025 | Leave a Comment (14 सितंबर हिंदी राजभाषा दिवस पर विशेष लेख) वेदव्यास इस बार भी 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाएगा और हिंदी भाषी राज्यों में परम्परा के अनुसार सरकारी खर्च पर सरकारी संस्थानों में खूब तालियां और थालियां बजेगी और बधाइयां भी बंटेगी। मुझे इस बात की खुशी भी है कि साल में एक दिन […] Read more »
लेख स्वास्थ्य-योग प्लास्टिक किसी को न भाये – उसका कचरा सबका दर्द भगाये September 8, 2025 / September 8, 2025 | Leave a Comment चंद्र मोहन बाजार से खरीदारी करके घर लौटते सभी के हाथों मे छोटे बड़े प्लास्टिक के थैलों को हर कोई आसानी से देखता है. प्यास लगी हो तो पानी की बोतल भी प्लास्टिक की ही बाजार मे उपलब्ध है. रेलगाड़ी मे सफर करो तो स्टेशन पर भी पानी की प्लास्टिक बोतल भी सभी पहचानते हैँ. […] Read more » प्लास्टिक से पैरासिटामोल
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म श्रद्धा से जुड़ती है आत्मा – पितृ पक्ष का संदेश ! September 8, 2025 / September 8, 2025 | Leave a Comment हमारी भारतीय संस्कृति दुनिया की सबसे प्राचीन और समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं में से एक मानी जाती है। इसमें धर्म, दर्शन, जीवन मूल्य, सामाजिक संरचना, पारिवारिक संबंध और प्रकृति के प्रति श्रद्धा का विशेष स्थान है। भारतीय समाज में परिवार और पूर्वजों के प्रति आदर और कृतज्ञता को बहुत महत्व दिया जाता है। इन्हीं मूल्यों का […] Read more » – पितृ पक्ष का संदेश श्रद्धा से जुड़ती है आत्मा
लेख समाज अतिथि शिक्षकों की यह कैसी मेहमाननवाजी September 3, 2025 / September 3, 2025 | Leave a Comment ओ पी सोनिक ऐसा माना जाता है कि भारतीय समाज के व्यवहार में अतिथि को देवता के समान मानने की भावना समाहित है। पिछले कई वर्षों से भारत की शिक्षा व्यवस्था में शिक्षकों के लिए प्रयुक्त अतिथि शब्द जितना ट्रेंड करता रहा है, उतना पहले कभी नहीं देखा गया। जब शिक्षकों की भारी कमी का मुद्दा विभिन्न माननीय न्यायालयों में सरकारों के गले की फांस बनने लगा तो सरकारों द्वारा शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए एक ऐसा अस्थाई जुगाड़ ईज़ाद कर लिया जिससे देश की डगमगाती शिक्षा व्यवस्था फिर से चलने लगी। सरकारी शिक्षण संस्थानों में नियमित शिक्षकों की अपेक्षा अतिथि शिक्षकों की बढ़ती संख्या को देखकर लगता है कि फिर से चलने वाली व्यवस्था अब लंगड़ी व्यवस्था का रूप ले रही है। विभिन्न राज्यों में ऐसे शिक्षकों को अतिथि शिक्षक, शिक्षा मित्र, संविदा शिक्षक, पारा शिक्षक, शिक्षक सेवक और विद्या वालंटियर्स जैसे भावनात्मक नामों से जाना जाता है। काम चाहें चुनाव का हो या मतदाता सूचियों का या किसी अन्य गैर शैक्षिणिक गतिविधि का, आमतौर पर नियमित शिक्षक उक्त गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं। ऐसे में बच्चों को पढ़ाने का ज्यादा दायित्व अतिथि शिक्षकों के कंधों पर टिका होता है। अधिकांश राज्यों में शिक्षकों के प्रति राजनीतिक उदासीनता ने उन्हें मजदूरों के स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया है। मजदूरों को भी कार्य दिवसों के हिसाब से पारिश्रमिक मिलता है और अतिथि शिक्षकों को भी। जिन राज्यों में मासिक आधार पर निर्धारित धनराशि देने का प्रावधान है भी तो वह अपर्यात है। मजदूरों और अतिथि शिक्षकों में बस फर्क सिर्फ इतना रह गया है कि अतिथि शिक्षकों को मजदूरों की तरह काम के लिए चौराहों पर खड़ा नहीं होना पड़ता। महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना में मजदूरों को वर्ष में 100 दिनों के रोजगार की सरकारी गारंटी है, लेकिन सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में काम करने वाले अतिथि शिक्षकों को वर्ष में कितने दिन का काम मिलेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। लाला जी की दुकान पर काम करने वालों और घरों में काम करने वाली महिलाओं को महीने की तय धनराशि के आधार पर काम पर रखा जाता है। आमतौर पर इन्हें सप्ताह में एक दिन छुट्टी मिलती है जिसके पैसे नहीं कटते। और इन कार्यो को करने के लिए कोई शैक्षणिक योग्यता भी निर्धारित नहीं है, जो मानवीय पहलू के सकारात्मक पक्ष को दर्शाता है। शैक्षणिक योग्यता प्राप्त अतिथि शिक्षक विपरीत परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। अधिकांश राज्यों में उन्हें कोई साप्ताहिक अवकाश नहीं मिलता। रविवार एवं राजपत्रित अवकाशों के पैसे काट लिए जाते हैं। दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरने वाले देश में क्या राज्य सरकारें आर्थिक रूप से इतनी कमजोर हो गयी हैं कि अतिथि शिक्षकों को रविवार एवं राजपत्रित अवकाशों के पैसे देने में असमर्थ हैं। अतिथि शिक्षकों पर कभी भी कार्यमुक्त होने का खतरा मंडराता रहता है। ऐसे शिक्षकों के रोजगार की अनिश्चितता शोले फिल्म के उस डायलाग की याद दिलाती है जिसमें गब्बर सिंह बसंती को डांस करने को मजबूर करता है और फिर कहता है, कि जब तक तेरे पैर चलेंगे, तब तक उसकी यानी वीरू की सांसे चलेंगी। अतिथि शिक्षकों की नौकरी भी तभी तक लगातार चल पाती है जब तक कि उस पोस्ट पर कोई नियमित शिक्षक नहीं आ जाता। नियमित शिक्षक के आने पर अतिथि शिक्षक स्वतः ही कार्यमुक्त हो जाते हैं। उन्हें शिक्षक के रूप में फिर से काम करने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों एवं कस्बों की ओर आए बेरोजगार युवक निराश होकर वापस गांव लौट जाते हैं। अतिथि शिक्षकों को उनके निवास से इतनी दूर के स्कूलों में नियुक्त कर दिया जाता है कि उनका अधिकांश समय आने जाने में ही व्यतीत हो जाता है। जब भी कभी अतिथि शिक्षकों का कोई आंदोलन सक्रिय होता है तो गिद्ध की दृष्टि लगाए बैठी राजनीति आंदोलन का राजनीतिक अपहरण कर उसको निष्प्रभावी बनाने का काम करती है। देश की राजधानी दिल्ली में अतिथि शिक्षकों के ऐसे कई आंदोलन राजनीतिक अपहरण का शिकार हो चुके हैं। यही वजह है कि दिल्ली में अतिथि शिक्षकों को पक्का करने की खोखली घोषणाएं कच्ची साबित हुई हैं। ऐसी घोषणाओं के लगे पोस्टर कई स्कूलों में आज भी देखे जा सकते हैं। अतिथि शिक्षकों की कुंठा एक ऐसी असमंजसता में फंसी है जो उन्हें न तो रोजगार में होने की अनुभूति होने देती है और न ही बेरोजगार होने की। भारत में हर वर्ष परीक्षा पर चर्चा होती है पर नौकरियों के लिए आयोजित उन प्रतियोगी परीक्षाओं पर चर्चा नहीं होती जिनमें पेपर लीक होने के कारण नियुक्तियों की प्रक्रिया को लम्बे समय तक टाल दिया जाता है। समय समय पर देश के कई राज्यों में अतिथि शिक्षकों के मामले माननीय न्यायालयों में सरकारी उदासीनता की भेंट चढ़ जाते हैं। भारत में सरकारी क्षेत्र में बढ़ती ठेकेदारी प्रथा ने एक अलग तरह के सामन्तवाद को जन्म देने का काम किया है। शिक्षा से संबंधित संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार देश में शिक्षकों के करीब दस लाख पद खाली पड़े हैं। चौंकाने वाली यह भी है कि केन्द्रीय सरकार द्वारा संचालित केन्द्रीय विद्यालयों और जवाहर नवोदय विद्यालयों में रिक्त पद अपेक्षाकृत अधिक हैं। उक्त आंकड़ों के आधार पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि दूर दराज के क्षेत्रों में शिक्षकों के रिक्त पदों की हालत क्या होगी। उक्त संसदीय समिति ने जल्द ही खाली पदों को भरने को कहा है ताकि शिक्षा व्यवस्था की सुचारूता को सुनिश्चित किया जा सके। भारत जिस शिक्षा व्यवस्था के दम पर विश्व गुरू बनने के सपने देख रहा है, वह अभी कोसों दूर नजर आता है। जब शैक्षणिक संस्थानों में बच्चों को पढ़ाने वाले पर्याप्त संख्या में नियमित गुरू ही नहीं होंगे तो भारत विश्व गुरू कैसे बन पाएगा। अतिथि शिक्षकों की यह कैसी मेहमाननवाजी है जो उन्हें बेरोजगारी से जूझने को विवश कर रही है। चंद राज्यों ने अस्थाई शिक्षकों के हित के लिए सराहनीय प्रयास भी किए हैं पर यह समस्या राष्ट्रीय स्तर की है तो इसके समाधान भी राष्ट्रीय स्तर के होने चाहिए। बेहतर होगा कि अतिथि या अस्थाई शिक्षकों के लिए स्थाई रोजगार की व्यवस्था पर अधिक ध्यान दिया जाए। ओ पी सोनिक Read more » What kind of hospitality is this from guest teachers अतिथि शिक्षक