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राजनीति

भारतीय संस्कृति में भगवा रंग :  वीरता का द्योतक

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 वात्सत्य रूपी मातृभूमि भारत, प्रत्येक भारतीय से समान रूप में ममत्व रूपी प्रेम से हृदय चेतना व अंर्तआत्मा को तृप्त करती है। मातृभूमि भारत क्षुधा व पिपासा से तृप्ति हेतु अमृतरूपी भोजन व जल से इस देह को तृप्ति प्रदान करती है। वात्सल्यमयी माता, निस्वार्थ भाव से हमारा पालन-पोषण, संरक्षण करती है। इस माता पर मानव जन्म लेता है और इसी में विलीन हो जाता है। मनुष्य भले ही इस माँ को चेतनारहित, निर्जीव मान इसका शोषण करे परन्तु यह माँ ही चेतनासहित समस्त जीव-जन्तु, वृक्ष, आदि को जीवन प्रदान करती है। मातृभूमि धैर्यरूपी पर्वत है। भारतीय संस्कृति में इस जन्मभूमि को माँ के रूप में वर्णित किया है। अन्यत्र कहीं भी इस जीवनजननी को माँ की उपाधि से अलंकृत नहीं किया गया है, वहाँ राष्ट्र एक निर्जीव व भौतिक आवश्यकता है। भारतीय संस्कृति का अनादि प्रतीक परम पूज्यनीय आदरणीय भगवा रंग इस संस्कृति के भौतिक, मानसिक, आध्यात्मिक, तथा बौद्धिक दृष्टिकोणों की पराकाष्ठा के कारण ही पूज्यनीय है। ब्रह्माण्ड के उत्पत्ति के समय तीव्र हवाने ॐ आज भी भारतीयों के हृदय में विद्यमान है। भारतीयों द्वारा अन्य रंगों में केवल भगवा को चुनने के कारण निम्न हैं।भारतीयों ने सर्वप्रथम अपना गुरु सूर्यदेव को माना है, अन्य प्राचीन सभ्यताओं में भी सूर्य को वही स्थान प्राप्त था, आज सभी स्थानों पर ऐसे चित्र विद्यमान हैं जिनमें सूर्य की पूजा हो रही है. मिश्र सभ्यता, माया सभ्यता, सिन्धु घाटी सभ्यता इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। तम अर्थात अंधकार को हरने वाली प्रकाश किरण भगवा ही होती है जो जीवन में नयी स्फूर्ति व उत्साह को जन्म देती है। भगवान द्वारा दी गयी प्रथम किरण होने के कारण ही यह किरण भगवा कहलायी। आधुनिक समय में वही स्फूर्ति व उत्साह को विटामिन D रूपी भगवा किरण देती है इसी कारण भारत अर्थात प्रकाश की खोज में लगे रहने वाले भारतीय भगवा को परम पवित मानते हैं। लेडा Lead जो एक क्षयरूपी धातु है, मनुष्य के लिये हानिकारक है, उसका आक्सीकरण करने पर भी वह अपना गुण नहीं त्यागती, पुन: आस्कीकरण करने पर भी वह क्षय रोग का कारण होती है परंतु जब उसका पुन: आक्सीकरण कर लेड ट्रेटा आक्साइड [Lead tebra oxide] बनता है जो भगवा रंगी सिन्दूर होता है जिसे भारतीय महिला धारण करती हैं एवं श्रीहनुमान जी को भी यही सिन्दूर से सुशोभित किया जाता है। भारतीय संस्कृति में विद्यमान भगवा ही इस राष्ट्र का प्रतीक है।परम पवित्र अग्नि भी भगवा रंग की होती है, प्रत्येक यज्ञ में आग्निदेव को ही आहुति देकर यज्ञ किया जाता है। भगवा ज्ञान स्वरूप है, अंतआत्मा को तृप्त कर देता है चक्षुओं में एक अभूतपूर्व आनन्द व प्रेरणा का अनुभव कराता है एवं सम्पूर्ण विस्तृत भारतवर्ष के दर्शन कर आत्मतृप्त हो जाती है। भगवा को प्रकृति में केसर से प्राप्त किया जाता है, इसी कारण कभी-कभी इसका रूप केसरिया ने ले लिया परन्तु कहीं भी इसे नारंगी शब्द से सम्बोधित नहीं किया गया, नारंगी व भगवा दो अलग रंग है। न ही नारंगी इस भगवा से तुलनीय है और न हि केसरिया ।भगवा वर्ण को वस्त्र पर सुशोभित कर भारतीयों ने परम पूज्यनीय भगवा ध्वजा का निर्माण किया। पवित्र अग्नि के समय  निर्मित हुई आकृति  ध्वज को समर्पित की गई।समस्त भारतवासियों द्वारा भगवा ध्वज को स्वीकार्य किया गया।महाभारत से रामायण; रामायण  से आज तक भारतीयों ने भगवा को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार्य किया।दुर्भाग्यवश अनादि काल से चला आ रहा राष्ट्रीय ध्वज आज स्वयं भारतीयों का राष्ट्रीय ध्वज नहीं है। माँ सीता द्वारा, सिंदूर लगाने का उद्देश्य मानकर श्रीहनुमानजी ने श्रीराम के प्रति श्रद्धा व प्रेम के कारण स्वयं को सिंदूरमयी कर दिया।भारतीय संस्कृति में जन्में सभी पंथों ने भगवा को वही सम्मान दिया।सनातनी, बौद्ध, सिख सभी ने भगवा को परम पवित्र रूप में स्वीकार्य किया नन्द गुरुगोबिन्द सिंह आदि ने भी बौद्ध शिक्षु, महात्मा बुद्ध, आदि गुरु शंकराचार्य ने भगवा वस्त्र धारण किया। महाराणा प्रताप, शिवाजी महाराज, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, सम्राट विक्रमादित्य, सम्राट अशोक आदि सभी के ध्वज भगवा थे। हरियाली से बचित रेगीस्तानी अरबवासी देशों के झंडे हरे हैं। भगवारूपी भारतवर्ष को हरेपन में ढ़कने हेतु भीषण नरसंहार, धर्मपरिवर्तन, हत्यायें व अत्याचार हुये।एक किताब एक भगवान को मानने वालों ने भारतवर्ष में मन्दिर तोड़े, भारतीयों को पाषाणों पर भगवा रंग डालकर बजरंगवली बना लिये।चालीसों का दल लाये आतंकीयो को भक्त शिरोमणी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा लिखकर समाज कर दिया। आतंकी मन्दिर तोड़ते, भारतीय सिंदूर डालकर हनुमान बना लेते। स्वयं को श्रेष्ठ समझकर अगला आक्रमण किया सफेद चमड़ी वाले नर-पिशाचों नें यूरोपीयनों ने भारतीयों का धर्म परिवर्तन कराया, हत्याये की, नरसंहार किये।मन्दिर तोडने वालो के वंशजों ने राष्ट्र को तोड़ा है।1947 में भारतवर्ष स्वतंत्र नहीं बल्कि विभाजित हुआ, भारतवर्ष से दोनों बजरंगवली की भुजायें विभाजित हो गयीं। उन्हें ढक दिया गया चाँद-सितारे व हरे झण्डो में, विभाजन के समय जो लोग बैठे हये ये उन्हें राष्ट्र के गौरवशाली इतिहास में कोई रूचि नहीं थी वे भारत को भौतिक आवश्यकता मानते थे। खंडित भारतवर्ष को भी दुर्भाग्यवश भगवा ध्वज न मिल सका। सफेद व हरेपन से ढक दिया गया।उसे भी नारंगी अखण्ड भारतवर्ष को विभाजित कर दो अरब विचारधारा के हरे झण्डे वाले मुल्क बना दियो।आज भी भारतवासी अपना ध्वज भगवा ध्वज को धार्मिक रूप व क्षेत्र मे रखते हैं। उनकी अंर्तआत्मा में भगवा सदा विद्यमान था, विद्यमान है, विद्यमान रहेगा।अखण्ड भारतवर्ष के परमपूजनीय भगवा ध्वज की जय ! पवन प्रजापति

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राजनीति

जाति जनगणना: गिनती नहीं, पहचान 

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सचिन त्रिपाठी भारत केवल एक भूगोल नहीं है। यह संवेदनाओं, विविधताओं, संघर्षों और चेतनाओं की जीवित भूमि है। यहां हर नदी की धारा, हर पर्वत की छाया, हर गांव की मिट्टी में एक कथा छिपी है  और इन सब कथाओं को जोड़ने वाली जो सबसे महीन और गहरी रेखा है, वह है जाति। जाति  यह शब्द जितना साधारण दिखता है, उतना ही जटिल है इसकी गुत्थी। यह किसी व्यक्ति के नाम के साथ चलती है, कभी उसके आगे तो कभी उसके पीछे, परंतु उससे अलग कभी नहीं होती। यह उसके खाने, पहनने, बोलने, चलने, बैठने, यहां तक कि स्वप्न देखने के अधिकार को भी निर्धारित करती है। ऐसे में अगर कोई कहे कि भारत को जाति जनगणना की आवश्यकता नहीं, तो यह वैसा ही होगा जैसे कोई आंखें मूंदकर सूरज को नकार दे। जातियों की गणना कोई नया विचार नहीं है। ब्रिटिश भारत में 1931 में अंतिम बार व्यापक जातिवार जनगणना हुई थी। उसके बाद भारत स्वतंत्र हुआ, संविधान बना, लोकतंत्र आया, लेकिन जातियों का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हुआ। वे हमारे सामाजिक व्यवहार में बनी रहीं।  किसी के आंगन की चौखट तक सीमित तो किसी के सपनों की ऊंचाई तक पहुंचने में बाधा बनीं। इसलिए जब हम जाति जनगणना की बात करते हैं तो हम महज आंकड़ों की नहीं, बल्कि उन कहानियों की बात करते हैं जो आंकड़ों के पीछे छुपी हैं। वंचना की कहानियां, उपेक्षा की पीड़ाएं और संघर्ष की ज्वालाएं। क्या यह आवश्यक नहीं कि हम जानें, कौन-कौन से समाज अब भी अधूरे हैं? कौन-से वर्ग अब भी हाथ में पात्र लेकर अवसरों की भिक्षा मांग रहे हैं? भारत ने संविधान में वादा किया था। सबको समान अवसर मिलेगा। पर बिना यह जाने कि कौन कहां खड़ा है, यह समानता महज़ एक कविता बन जाती है सुंदर लेकिन असंभव। जाति जनगणना उसी कविता को गद्य में बदलने का पहला कदम हो सकती थी। जब तक हमें यह न पता चले कि किस जाति की कितनी जनसंख्या है, उनका आर्थिक स्तर क्या है, वे शिक्षा से कितनी दूर हैं। तब तक उनकी समस्याओं का समाधान कैसे संभव है? मान लीजिए, एक गांव में पांच जातियां हैं। एक ऊंची जाति, जो वर्षों से सब संसाधनों पर अधिकार रखती आई है, और चार वे जो छाया बनकर जीती रही हैं। यदि सबको समान रूप से योजनाएं दी जाएँ, तो क्या यह वास्तव में न्याय होगा? जाति जनगणना एक ऐसी दृष्टि प्रदान करती जिससे योजनाएं अंधेरे में तीर चलाने के बजाय सटीक निशाने पर उतरतीं। भारतीय लोकतंत्र जाति से अनभिज्ञ नहीं है। हर चुनाव, हर टिकट, हर नारा कहीं न कहीं जाति की गणित में उलझा रहता है। राजनीतिक दल जब ‘बहुजन हिताय’ की बात करते हैं, तो उनका गणना तंत्र जातियों के अनुमानों पर आधारित होता है, न कि ठोस आंकड़ों पर। अगर जाति जनगणना होती, तो इस अनुमान का स्थान ज्ञान ले लेता। कौन जातियां अभी भी प्रतिनिधित्व से दूर हैं? किन्हें बार-बार सत्ता में हिस्सेदारी मिली और किन्हें केवल नारे? यह जानना आवश्यक है। बिहार द्वारा 2023 में किये गए जातीय सर्वेक्षण से जब यह सामने आया […]

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ज्योतिष धर्म-अध्यात्म राशिफल

राहु-केतु बदलेंगे राशि , सभी राशियाँ  होगी प्रभावित।

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ज्योतिर्विद मनीष भाटिया           वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मायावी ग्रह राहु और केतु ने लगभग 18 महीने के बाद,18  मई 2025 से अपना स्थान परिवर्तन किया है । राहु ग्रह मीन राशि से निकलकर कुंभ राशि में गोचर करेंगे और केतु ग्रह कन्या राशि से निकलकर सिंह राशि में गोचर करेंगे। राहु केतु की इस उल्टी चाल से लगभग सभी राशियां प्रभावित होंगीं। राहु केतु का यह राशि परिवर्तन कुछ राशियों के लिए तो बहुत ही शुभ रहेगा, औऱ कुछ  राशि वालों के लिए बहुत ही सावधानी बरतने की आवश्यकता होगी। अलग-अलग राशियों पर राहु केतु के इस राशि परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ेगा।मेष राशि :-  मेष राशि वाले जातकों के लिए राहु का राशि परिवर्तन लाभ स्थान से होगा । राहु का लाभ स्थान में गोचर बहुत ही शुभ माना जाता है। राहु के इस अच्छी परिवर्तन से मेष राशि वाले जातकों को कई स्रोतों से धन लाभ होने का योग बनेगा। वही केतु का गोचर मेष राशि वालों के पंचम भाव से होगा जो पेट संबंधित समस्याएं दे सकता है तथा विद्या अध्ययन में बाधा उत्पन्न करेगा। मेष राशि वालों के लिए शनि की साडेसाती भी चल रही है और धन का काफी व्यय और नुकसान होने के योग बन रहे हैं। राहु के गोचर से लाभ और शनि के गोचर से नुकसान, व्यय का योग बन रहा है। क्योंकि मेष राशि वालों की धनी की साडेसाती भी लगी हुई है अतः इनका बहुत ही सावधानी से चलना चाहिए। नौकरी और पारिवारिक जीवन में भी विवाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। मेष राशि वालों को हनुमान चालीसा पढ़ते रहने से तथा हनुमान मंदिर में जाकर दर्शन करने से काफी राहत महसूस होगी।वृष राशि :- वृषभ राशि वालों के लिए राहु का गोचर दसवें भाव से होगा तथा केतु का गोचर चौथे भाव से होगा।नौकरी में लाभ, स्थान परिवर्तन के योग तथा घरेलू सुख में बाधा उत्पन्न होने के योग हैं।माता की सेहत भी प्रभावित हो सकती है तथा माता के सुख में कुछ कमी आ सकती। वाहन सुख में भी कमी आएगी। वृषभ राशि वालों को अभी कोई भी जमीन ज्यादाद से संबंधित निवेश नहीं करना चाहिए। मां दुर्गा की पूजा करते रहने से लाभ के रास्ते खुलेंगे।मिथुन राशि :- मिथुन राशि वालों के लिए राहु का गोचर भाग्य भाव से होगा तथा केतु का गोचर तीसरे भाव से होगा।भाग्य में वृद्धि किंतु भाई बहनों से तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है। मिथुन राशि वालों को जो घरेलू परेशानियों चल रही थी उनसे काफी रात महसूस होगी। नई जमीन ज्यादाद एवं वाहन खरीदने के योग बनेंगे। मिथुन राशि वालों को गणेश भगवान जी की पूजा करते रहना चाहिए ।कर्क राशि :- राहु का गोचर अष्टम भाव तथा केतु का गोचर द्वितीय भाव में होगा। कर्क राशि वालों को आपकी चाहत का बहुत ध्यान रखना चाहिए तथा चोट चपेट से बचें, वाहन सावधानी से चलाएं। वाणी पर नियंत्रण रखें तथा पारिवारिक विवादों से बचें । कर्क राशि वालों को ससुराल पक्ष से तनाव होने के योग बनेंगे। विवादों से बचने का प्रयास करें। भगवान कृष्ण की शरण में रहे।सिंह राशि :- सिंह राशि वालों के लग्न में केतु और सप्तम भाव में राहु का गोचर होगा।  बहुत ज्यादा गुस्सा आएगा। छोटी-छोटी बातों पर भी बहुत तनाव हो जाएगा और गुस्सा आ जाएगा। जीवनसाथी से भी तनाव की स्थिति उत्पन्न होगी। अपने गुस्से पर काबू करें । जीवनसाथी की सेहत भी प्रभावित होगी। अभी पार्टनरशिप के किसी भी कार्य में हाथ ना डालें। आपका शनि का अष्टम भाव भी चल रहा है। वर्तमान समय में सूर्य का गोचर दसवां भाग से चल रहा है। सूर्य के इस गोचर के प्रभाव से आपकी नौकरी में पिछले कई महीनो से जो समस्याएं चली आ रही थी वह पिछले एक महीने से काफी कम हो गई है और आप काफी राहत महसूस कर रहा है। किंतु 14 अगस्त के बाद जब सूर्य का गोचर आपके 12 वें भाव से होगा तो नौकरी में फिर से समस्याएं उठने लगेंगी । आपके लिए राहु, केतु,  मंगल और शनि का गोचर अभी शुभ नहीं चल रहा और कर्क राशि के मंगल भी बारहवे भाव में चल रहा है। नौकरी में स्थानांतरण के योग बन रहे हैं। मंगल के गोचर से आपको नौकरी में कोई बड़ी समस्या आने के योग हैं किंतु सूर्य के गोचर राहत मिल  रही है। रविवार का व्रत रखें एवं  सूर्य भगवान को रोज जल देते रहे।मंगलवार को लाल मसूर की दाल का दान करें।कन्या राशि :- राहु केतु के एक गोचर से कन्या राशि वालों को काफी राहत महसूस होगी क्योंकि केतु आप ही की राशि में चल रहे थे और अब आपकी राशि से निकलकर सिंह राशि में चले जाएंगे। राहु का गोचर आपकी छठे भाव में होगा। राहु केतु का या गोचर कन्या राशि वालों के लिए काफी शुभ साबित होगा। पिछले कई वर्षों से चली आ रही मानसिक समस्याएं खत्म होगी। आपके विरोधी परास्त होंगे। नौकरी व्यवसाय में लाभ की स्थिति बनेगी।धार्मिक यात्राओं के योग बनेंगे। देवी माता की पूजा करना आपके लिए बहुत शुभ रहेगा।तुला राशि :- तुला राशि वालों के लिए राहु केतु का यह गोचर सामान्य रहेगा। पेट संबंधित कुछ परेशानियां बनी रहेगी। आय वृद्धि के योग बनेंगे।वृश्चिक राशि :- वृश्चिक राशि वालों के लिए राहु केतु का गोचर, घरेलू सुख में कमी करेगा। नौकरी व्यवसाय में बहुत ही संभल कर चलने की आवश्यकता है, स्थानांतरण के योग बनेंगे। माता के सुख में कमी महसूस होगी एवं माता के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना होगा। हनुमान जी की पूजा करना आपके लिए बहुत ही शुभ रहेगा।धनु राशि :- धनु राशि वाले जातकों के लिए राहु केतु का यह गोचर शुभ रहेगा। अभी तक आपके चौथे भाव में राहु और शनि का पिशाच योग बना हुआ था,  अब राहु के वहां से निकल जाने से पिशाच योग भंग होगा। मानसिक तनाव में कमी आएगी परंतु मानसिक तनाव बना रहेगा क्योंकि आपका शनि का ढैया चल रहा है। घरेलू परेशानियों भी कुछ कम होगी। क्योंकि गुरु की दृष्टि आपकी लगन पर पड़ रही है इसलिए आपको मान सम्मान यश में वृद्धि होगी और गुरु के गोचर के प्रभाव से आपको काफी राहत मिलेगी।पीले चंदन का तिलक हर रोज अपने माथे पर लगाएं।मकर राशि :- राहु का गोचर आपके परिवार भाव में होगा और केतु का गोचर आपकी अष्टम भाव में होगा। अपनी सेहत का ध्यान रखें।अगर रीड की हड्डी से संबंधित कोई परेशानी है तो लापरवाही ना करें। पारिवारिक विवादों से बचने का प्रयास करें। अचानक से धन लाभ के योग भी बनेंगे। बिना कमाया हुआ धन मिलने का योग है। क्योंकि आपकी शनि की साडेसाती खत्म हो गई है और शनि का गोचर आपकी तृतीय भाव में है इसलिए शनि का लाभ आपको मिलता रहेगा। हनुमान जी की पूजा करते रहे एवं हनुमान चालीसा का जाप रोज करें।कुंभ राशि :-  राहु का गोचर आप ही की राशि में होने जा रहा है। मानसिक तनाव से बचना होगा। छोटी-छोटी बातों को दिल से ना लगाएं। जीवनसाथी से विवाद बिल्कुल भी ना करें एवं उनकी चाहत का ध्यान रखें। अपने माथे पर रोज पीले चंदन का तिलक लगाए एवं भगवान विष्णु अथवा उनके किसी भी अवतार की पूजा करते रहें।मीन राशि :- मीन राशि वालों का शनि की साडेसाती का दूसरा चरण चल रहा है। अभी वर्तमान समय में शनि और राहु का पिशाच योग आप ही की राशि में बना हुआ था। राहु के इस राशि परिवर्तन से शनि राहु का पिशाच योग खत्म हो जाएगा, जिससे आपकी मानसिक तनाव में काफी कमी आएगी परंतु राहु का गोचर आपका व्यय भाव में होने से आपके खर्चों में निरंतर वृद्धि होगी। अभी 14 जून तक सूर्य भगवान का गोचर आपकी तृतीय भाव में रहेगा जिससे आपका धन भाव और परिवार पाप कर्तवी योग में रहेगा।  राहु की पांचवी दृष्टि आपके घरेलू सुख पर पड़ेगी। अभी 15 जून तक कहीं भी किसी भी प्रकार का निवेश करने से बचे हैं क्योंकि आपका धन भाव पाप कर्तवी योग में चल रहा है। मीन राशि वाले जातकों की परेशानियां कुछ कम तो होगी लेकिन अभी खत्म नहीं होंगीं । हां गुरु बृहस्पति का गोचर आपके लिए शुभ रहेगा।अपने माथे पर रोज हल्दी का या पीले चंदन का तिलक लगाए।। ज्योतिर्विद मनीष भाटिया

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