प्रह्लाद सबनानी

प्रह्लाद सबनानी

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सेवा निवृत उप-महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
ग्वालियर
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आर्थिकी लेख

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती उत्पादों की मांग

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भारत में आज भी लगभग 60 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है एवं अपने जीवन यापन के लिए मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र पर ही आश्रित रहती है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार किये जा रहे विकास कार्यों के चलते इन क्षेत्रों में विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत व्यय की जाने वाली राशि में अतुलनीय वृद्धि दर्ज हुई है। इससे, ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजगार के नए अवसर निर्मित होने लगे हैं एवं ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन कुछ कम हुआ है। विशेष रूप से कोरोना महामारी के खंडकाल में शहरों से ग्रामीण इलाकों की ओर शिफ्ट हुए नागरिकों में से अधिकतर नागरिक अब ग्रामीण क्षेत्रों में ही बस गए हैं एवं अपने विशेष कौशल का लाभ ग्रामीण क्षेत्रों में नागरिकों को प्रदान कर रहे हैं।     हाल ही में जारी किए गए कुछ सर्वे प्रतिवेदनों के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोग की एक नई कहानी लिखी जा रही है क्योंकि अब विभिन्न उत्पादों की मांग ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से बढ़ती दिखाई दे रही है। उपभोक्ता वस्तुओं एवं ऑटो निर्माता कम्पनियों द्वारा प्रदान की गई जानकारी के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में हाल ही के समय में उपभोग की जाने वाली विभिन्न वस्तुओं एवं दोपहिया एवं चार पहिया वाहनों (ट्रैक्टर सहित) की मांग में तेजी दिखाई दे रही है, जो कि वर्ष 2023 में लगातार कम बनी रही थी। यह संभवत: रबी फसल के सफल होने के चलते भी सम्भव हो रहा है।   उक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने भी हाल ही में सम्पन्न अपनी द्विमासिक मोनेटरी पॉलिसी की बैठक में रेपो दर में किसी भी प्रकार की वृद्धि नहीं की है, ताकि बाजार, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के बाजार में, उत्पादों की मांग विपरीत रूप से प्रभावित नहीं हो, ताकि इससे अंततः वित्तीय वर्ष 2024-25 में देश के आर्थिक विकास की दर भी अच्छी बनी रहे।  भारत में पिछले कुछ समय से ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न उत्पादों की मांग, शहरी क्षेत्रों में उपलब्ध मांग की तुलना में कम ही बनी रही है। परंतु, वित्तीय वर्ष 2023-24 की तृतीय तिमाही के बाद से इसमें कुछ परिवर्तन दिखाई दिया है एवं अब ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादों की मांग में तेजी दिखाई देने लगी है। यह तथ्य विकास के कुछ अन्य सूचकांकों से भी उभरकर सामने आ रहा है। जनवरी-फरवरी 2024 माह में दोपहिया वाहनों की बिक्री में, पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान की बिक्री की तुलना में, 30.3 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की गई है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान दोपहिया वाहनों की बिक्री में 9.3 प्रतिशत की वृद्धि दर रही है, जो हाल ही के कुछ वर्षों में अधिकतम वृद्धि दर मानी जा रही है। दोपहिया वाहनों की बिक्री ग्रामीण इलाकों (लगभग 10 प्रतिशत) में शहरी इलाकों (लगभग 7 प्रतिशत) की तुलना में अधिक रही है। महात्मा गांधी नरेगा योजना के अंतर्गत प्रदान किए जाने वाले रोजगार के अवसरों की मांग में भी फरवरी-मार्च 2024 माह के दौरान 9.8 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है क्योंकि ग्रामीण इलाकों में निवासरत नागरिकों को रोजगार के अवसर अन्य क्षेत्रों में उपलब्ध हो रहे हैं। इसी प्रकार, ट्रैक्टर की बिक्री में भी जनवरी-फरवरी 2024 माह के दौरान 16.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत में कुल 892,313 ट्रैक्टर की बिक्री हुई है जो पिछले वित्तीय वर्ष 2022-23 की तुलना में 7.5 प्रतिशत अधिक है।     भारत के मौसम विभाग द्वारा जारी की गई भविष्यवाणी के अनुसार, वर्ष 2024 के मानसून मौसम के दौरान भारत में मानसून की बारिश के सामान्य से अधिक रहने की प्रबल सम्भावना है। इससे भारत के किसानों में हर्ष व्याप्त है क्योंकि मानसून के अच्छे होने से खरीफ की फसल के भी बहुत अच्छे रहने की सम्भावना बढ़ गई है। मौसम विभाग के सोचना है कि इस वर्ष अल नीनो के स्थान पर ला नीना का प्रभाव दिखाई देगा। अल नीनों के प्रभाव में देश में बारिश कम होती है एवं ला नीना के प्रभाव में देश में बारिश अधिक होती है। साथ ही, भारतीय किसान अब तिलहन, दलहन एवं बागवानी की फसलों की ओर भी आकर्षित होने लगे हैं। दालों, वनस्पति, फलों एवं सब्जियों के अधिक उत्पादन से किसानों की आय में वृद्धि दृष्टिगोचर है। केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न खाद्य उत्पादों की बिक्री के लिए ई-पोर्टल के बनाए जाने के बाद से तो भारतीय किसान अपनी फसलों को वैश्विक स्तर पर सीधे ही बेच रहे हैं और अपने मुनाफे में वृद्धि दर्ज कर रहे हैं। भारतीय खाद्य पदार्थों की मांग अब वैश्विक स्तर पर भी होने लगी है एवं खाद्य पदार्थों के निर्यात में भी नित नए रिकार्ड बनाए जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादों की मांग सामान्यतः अच्छे मानसून के पश्चात अच्छी फसल एवं विभिन्न सरकारों, केंद्र एवं राज्य सरकारों, द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यों पर किए जा रहे खर्चो में बढ़ौतरी के चलते ही सम्भव होती है। केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में लागू की गई विकास की विभिन्न योजनाओं पर व्यय में लगातार वर्ष दर वर्ष वृद्धि की जा रही है एवं इसके लिए केंद्रीय बजट में भी बढ़े हुए व्यय का प्रावधान प्रति वर्ष किया जा रहा है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर निर्मित हो रहे हैं एवं इन इलाकों में विभिन्न उत्पादों की मांग भी बढ़ती हुई दिखाई दे रही है।   नीलसन द्वारा किए गए एक सर्वे के यह बताया गया है कि जनवरी एवं फरवरी 2024 माह में भारत में विभिन्न उत्पादों की शहरी क्षेत्रों में मांग 1.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में मांग 2.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। विशेष रूप से फरवरी 2024 के बाद से ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादों की मांग में वृद्धि लगातार बढ़ती दिखाई दे रही है। रबी की फसल के भी अच्छे रहने की सम्भावना बलवती हुई है जिसके कारण किसानों की मनोदशा भी सकारात्मक बन रही है और यह वित्तीय वर्ष 2024-25 में देश की आर्थिक वृद्धि दर को बलवती करने के मुख्य भूमिका निभाने जा रही है। आज देश की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है यदि ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत नागरिकों की मनोवृत्ति सकारात्मक हो रही है तो निश्चित ही वित्तीय वर्ष 2024-25, आर्थिक विकास की दृष्टि से अतुलनीय परिणाम देने वाला वर्ष साबित होने जा रहा है।     प्रहलाद सबनानी 

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आर्थिकी राजनीति

वित्तीयवर्ष 2023-24 में भारत का व्यापार घाटा 36 प्रतिशत कम हुआ

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विदेशी व्यापार के क्षेत्र में भारत के लिए एक बहुत अच्छी खबर आई है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान  भारत के व्यापार घाटे में 36 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई है। यह विशेष रूप से भारत में आयात की जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं में की गई कमी के चलते सम्भव हो सका है। केंद्र सरकार लगातार पिछले 10 वर्षों से यह प्रयास करती रही है कि भारत न केवल विनिर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने बल्कि विदेशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं का उत्पादन भी भारत में ही प्रारम्भ हो। अब यह सब होता दिखाई दे रहा है क्योंकि भारत के आयात तेजी से कम हो रहे हैं एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराईल-हम्मास युद्ध, लाल सागर व्यवधान, पनामा रूट पर दिक्कत के साथ ही वैश्विक स्तर पर मंदी के बावजूद एवं विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के हिचकोले खाने के बावजूद भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात में मामूली बढ़ौतरी दर्ज हुई है। जिसका स्पष्ट प्रभाव भारत के व्यापार घाटे में आई 36 प्रतिशत की कमी के रूप में दृष्टिगोचर हो रहा है। भारत का कुल व्यापार घाटा वित्तीय वर्ष 2022-23 के 12,162 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में कम होकर वित्तीय वर्ष 2023-24 में 7,812 करोड़ अमेरिकी डॉलर हो गया है।  वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत में वस्तुओं का कुल आयात 67,724 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है जो वित्तीय वर्ष 2022-23 के 71,597 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में 5.41 प्रतिशत कम है। जबकि वस्तुओं के कुल निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में मामूली 3.11 प्रतिशत गिरकर 43,706 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रहे हैं। देश के कुल निर्यात एवं आयात के बीच के अंतर को व्यापार घाटा कहा जाता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान देश में वस्तुओं के निर्यात एवं आयात के अंतर का व्यापार घाटा 24,017 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है। परंतु, यदि वस्तुओं के निर्यात एवं आयात के आंकड़ों में सेवाओं के निर्यात एवं आयात के आंकड़े भी जोड़ दिए जाएं तो स्थिति बहुत अधिक सुधर जाती है। भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं का कुल निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 में पिछले वर्ष के उच्चत्तम रिकार्ड स्तर से भी आगे बढ़कर 77,668 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है, यह वित्तीय वर्ष 2022-23 में 77,640 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा था। इसमें वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान किया गया सेवाओं का निर्यात, जो 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 33,962 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, भी शामिल है।  वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं में विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों, औषधियों एवं इंजीनीयरिंग वस्तुओं का अच्छा प्रदर्शन रहा है। इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का निर्यात वित्तीय वर्ष 2022-23 के 2,355 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 2,912 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 23.64 प्रतिशत अधिक है। इसी प्रकार, दवाओं एवं औषधियों का निर्यात भी 9.67 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए वित्तीय वर्ष 2022-23 के 2,539 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में बढ़कर वित्तीय वर्ष 2023-24 में 2,785 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। साथ ही, इंजीनीयरिंग वस्तुओं का निर्यात भी 2.13 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वित्तीय वर्ष 2023-24 में 10,932 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। कुल मिलाकर, भारत से वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान निर्यात में वृद्धि इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, दवाएं एवं चिकित्सा, इंजीनियरिंग उत्पादों, लौह अयस्क (वृद्धि दर 117.74 प्रतिशत), सूती धागा (यार्न एवं फैब्रिक में वृद्धि दर 6.71 प्रतिशत), फल एवं सब्जी (वृद्धि दर 13.86 प्रतिशत), तम्बाकू (19.46 प्रतिशत), मांस, डेयरी और पौलट्री उत्पाद (12.34 प्रतिशत), अनाज एवं विविध प्रसंस्कृत वस्तुएं (8.96 प्रतिशत), मसाला (12.30 प्रतिशत), तिलहन (7.43 प्रतिशत), आयल मील्स (7.01 प्रतिशत), हथकरघा उत्पाद एवं सेरेमिक उत्पाद तथा कांच के बर्तनों (14.44 प्रतिशत) के निर्यात के चलते सम्भव हो सकी है। साथ ही, यह वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के प्रमुख निर्यात बाजार में अमेरिका, यूनाइटेड अरब अमीरात, यूरोपीयन यूनियन देशों, ब्रिटेन, सिंगापुर, मलेशिया, बांग्लादेश, नीदरलैंड, चीन व जर्मनी जैसे देशों के शामिल होने से भी सम्भव हो सका है। वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक तनाव के चलते भी विशेष रूप से मार्च 2024 माह में तो भारत से वस्तुओं का निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 में अपने उच्चत्तम स्तर 4,168 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, जबकि वस्तुओं के आयात मार्च 2024 माह में 5.98 प्रतिशत की कमी दर्ज करते हुए हुए 5,728 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर नीचे आ गए हैं। इस प्रकार मार्च 2024 माह में वस्तुओं का व्यापार घाटा लगातार कम होकर केवल 1,560 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रह गया है। इसकी पूर्ति सेवाओं के क्षेत्र से निर्यात में हो रही लगातार बढ़ौतरी से सम्भव हो रही है। अब तो सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत कुल विदेश व्यापार में आधिक्य की स्थिति भी हासिल कर ले। वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात में वृद्धि के साथ एवं वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात में लगातार हो रही कमी के चलते यह सम्भव हो सकता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के कुल व्यापार घाटे (वस्तुओं एवं सेवाओं को मिलाकर) में आई भारी कमी के चलते अब यह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि आगे आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए की मांग भी बढ़ सकती है और पिछले कई दशकों के दौरान भारतीय रुपए में आ रही लगातार गिरावट को रोककर अब भारतीय रुपया न केवल स्थिर हो जाएगा (वैसे पिछले लगभग एक वर्ष के दौरान भारतीय रुपया 83 रुपए प्रति डॉलर के आसपास लगभग स्थिर तो हो ही चुका है) बल्कि भारतीय रुपए की कीमत भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ सकती है। भारतीय रुपए की अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के साथ विनिमय दर वर्ष 1982 में 9.46 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर से 31 मार्च 2023 में 82.17 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर हो गई थी। परंतु, पिछले एक वर्ष के दौरान यह विनिमय दर लगभग स्थिर ही रही है। दूसरे, अब कई देश भारत के साथ विदेशी व्यापार को रुपए एवं उन देशों की स्वयं की मुद्रा में करने को सहमत हो रहे हैं। जिसके कारण भारत एवं इन देशों के बीच होने वाले विदेशी व्यापार का भुगतान करने हेतु अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता कम होगी, बल्कि भारतीय रुपए में ही भुगतान सम्भव हो सकेगा। इस प्रकार के व्यवहार यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों के बीच बढ़ते हैं तो विश्व में विडालरीकरण की प्रक्रिया को भी गति मिल सकती है। भारतीय रुपए में व्यापार करने हेतु रूस, सिंगापुर, ब्रिटेन, मलेशिया, इंडोनेशिया, हांगकांग, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, ओमान, कतर सहित लगभग 32 देशों ने भारत के साथ समझौता किया है एवं भारतीय रिजर्व बैंक के साथ अपना वोस्ट्रो खाता भी खोल लिया है ताकि इन देशों को भारत के साथ किए जाने वाले विदेशी व्यवहारों के निपटान को भारतीय रुपए में करने में आसानी हो सके।               प्रहलाद सबनानी 

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आर्थिकी लेख

भारत का सकल घरेलू उत्पाद अगले 50 वर्षों में 52 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाने की सम्भावना

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गोल्डमेन सेच्स नामक अंतरराष्ट्रीय निवेश संस्थान ने अपने एक रिसर्च पेपर में बताया है कि आगे आने वाले 50 वर्षों में भारत का सकल घरेलू उत्पाद 52 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। इस प्रकार भारत इस संदर्भ में अमेरिका को भी पीछे छोड़ते हुए विश्व में प्रथम स्थान पर आ जाएगा। वर्तमान में भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक आदि विभिन्न वित्तीय संस्थानों ने भी आगे आने वाले समय में भारत की आर्थिक वृद्धि दर को 7.2 प्रतिशत रहने की प्रबल संभावनाएं जताईं हैं। जबकि, आज विश्व के कई देश, विशेष रूप से ब्रिटेन, जर्मनी आदि, आर्थिक संकुचन के दौर से गुजर रहे हैं। रूस यूक्रेन युद्ध के चलते कई विकसित देश तो ऊर्जा की कमी के संकट से जूझ रहे हैं। भारत के विदेशमंत्री, डॉक्टर एस जयशंकर भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विश्व के लगभग समस्त सशक्त देशों के साथ अच्छे सम्बंध बनाने में सफल रहे हैं। आज रूस को भी भारत की आवश्यकता है तो अमेरिका को भी। रूस, भारत को कच्चे तेल एवं सुरक्षा के लिए भारी मात्रा में शस्त्र उपलब्ध कराता है। वर्ष 2022 में भारत ने रूस से 4,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का सामान आयात किया था। वर्ष 2023 में यह बढ़कर 5,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर होने की प्रबल सम्भावना है। वहीं अमेरिका, भारत को अपना स्ट्रेटेजिक सहयोगी मानता है। आज विश्व की समस्त बड़ी शक्तियां भारत के साथ सौहार्द पूर्ण सम्बंध चाहती हैं। रूस, अमेरिका, यूरोपीयन देश एवं अरब देश भारत के साथ अपने व्यापार को विस्तार देना चाहते हैं। रूस भी भारत के साथ अच्छे सम्बंध चाहता है तो यूक्रेन भी। उधर इजराईल भी भारत के साथ अच्छे सम्बंध चाहता है तो इरान भी। भारत जी-20 समूह का सदस्य है तो भारत यू2आई2 एवं ब्रिक्स का भी सदस्य है। इस प्रकार कुल मिलाकर भारत का डंका आज पूरे विश्व में बज रहा है। आज भारत के पास विश्व की चौथी सबसे बड़ी फौज है। पश्चिमी बॉर्डर पर चीन से युद्ध की स्थिति में भारत आज इससे निपटने को पूर्णत: तैयार है।  भारत के पास आज युवा जनबल है। भारत की 66 प्रतिशत जनसंख्या 35 वर्ष की कम आयु की है। 40 प्रतिशत जनसंख्या 13 से 35 वर्ष के बीच में है। भारत के पास 35 वर्ष से कम आयु की जनसंख्या अमेरिका की कुल जनसंख्या से भी अधिक है। इसके विपरीत चीन, जापान, इटली, फ्रान्स आदि कई देशों की जनसंख्या अब धीमे धीमे कम हो रही है। इन देशों में आर्थिक गतिविधियों को बनाए रखने के लिए आज युवाओं की सख्त आवश्यकता है जो पूरे विश्व में केवल भारत ही उपलब्ध करा सकता है। वर्ष 2064 तक भारत की जनसंख्या बढ़ती रहेगी, ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इस प्रकार वैश्विक स्तर पर भारत विश्व में विकास के इंजन के रूप में अपनी भूमिका लम्बे समय तक निभाता रहेगा।  उक्त संदर्भ में दूसरा सबसे बड़ा कारण बताया गया है, भारत में हाल ही के समय में किया गया डिजिटलीकरण। इससे देश के ग्रामीण इलाकों में भी नागरिकों की दक्षता एवं उत्पादकता बढ़ गई है। भारत में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग की वित्तीय एवं बैंकिंग संस्थानों द्वारा भरपूर आर्थिक सहायता की जा रही है इससे यह उद्योग तेजी से आगे बढ़ रहे हैं एवं देश में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित कर रहे हैं। पूर्व में केवल बड़े उद्योगों को ही बैकों द्वारा वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती रही है परंतु भारत में अब यह ट्रेंड बदला है। कोविड महामारी के बाद से तो इस सम्बंध में बड़ा बदलाव देखने में आया है। डिजिटलीकरण के कारण छोटे छोटे व्यवसाईयों की क्रेडिट हिस्ट्री निर्मित हो रही है जिसके कारण बैकों को इन छोटे छोटे व्यापारियों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने में आसानी हो रही है। ‘आधार’ ने तो देश के समस्त नागरिकों की एक अलग पहचान ही बना दी है। यूपीआई प्लेटफोर्म ने भी इस संदर्भ में ग्रामीण इलाकों में रोकड़ के उपयोग को कम कर डिजिटल प्लेटफोर्म पर वित्तीय व्यवहारों को हस्तांतरित किया है। छोटे छोटे व्यवसाईयों, किसानों, सामान्य नागरिकों को भी वित्तीय प्लेटफोर्म पर लाने में यह डिजिटलीकरण बहुत सफल रहा है। इससे वित्तीय समावेशन का कार्य भी आसान बन पड़ा है। भारत में डिजिटल व्यवहारों की संख्या आज संयुक्त रूप से अमेरिका, चीन एवं यूरोप से भी अधिक है। जबकि अमेरिका, चीन एवं यूरोप के देश भारत से अधिक विकसित देश हैं। इससे यह झलकता है कि भारत ने डिजिटलीकरण के मामले में पूरे विश्व को पीछे छोड़ दिया है। अब तो भारत का यूपीआई सिस्टम अमेरिका के स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम को भी पीछे छोड़कर वैश्विक स्तर पर डिजिटलीकरण के मामले में अपनी धाक जमाने की ओर आगे बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत का यूपीआई सिस्टम सिंगापुर, फ्रान्स, श्रीलंका एवं यूएई में लागू किया जा चुका है। भारत के प्रधानमंत्री ने फ्रान्स में भारतीय यूपीआई सिस्टम का उद्घाटन किया था, ताकि फ्रान्स में जाने वाले पर्यटक यूपीआई सिस्टम के माध्यम से फ्रान्स में वित्तीय व्यवहार कर सकें। न्यूजीलैंड में भी यूपीआई को लागू किए जाने पर विचार किया जा रहा है।  उक्त संदर्भ में तीसरा सबसे बड़ा कारण है चीन के, विस्तरवादी नीतियों के चलते, विश्व के अन्य देशों के साथ लगातार खराब होते सम्बंध। आज विश्व के कई देश चीन के साथ आर्थिक व्यवहार करने से कतराने लगे हैं। यह स्थिति भारत के आर्थिक विकास को गति दे सकती है क्योंकि चीन+1 की नीति का अनुपालन विश्व के कई विकसित देश आज करने लगे हैं एवं ये देश भारत में विनिर्माण के क्षेत्र में अपनी इकाईयों को स्थापित करते जा रहे हैं। ताईवान आदि देशों पर चीन की नीति की पूरे विश्व में भर्त्सना हो रही है। चीन के अपने बॉर्डर पर लगने वाले लगभग समस्त देशों के साथ चीन के सम्बंध अच्छे नहीं हैं। इन देशों का चीन पर अब भरोसा समाप्त सा होता जा रहा है। ऐपल एवं टेस्ला जैसी कम्पनियां अब भारत में अपनी विनिर्माण इकाईयां स्थापित कर रही हैं। ऐपल ने तो अपने आईफोन-15 का उत्पादन भारत में चालू भी कर दिया है। इससे भारत में न केवल रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं बल्कि विदेशी निवेश भी बढ़ रहा है। आज भारत में विदेशी मुद्रा भंडार 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के आसपास रिकार्ड स्तर पर पहुंच गए हैं। साथ ही, आज भारत का पूंजी बाजार (स्टॉक मार्केट) विश्व में चौथे स्थान पर आ गया है।  भारत द्वारा अपने बुनियादी ढांचे को विकसित करने में भारी भरकम राशि खर्च की जा रही है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में 11.11 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि का बजट बुनियादी ढांचे के लिए निर्धारित किया गया है, जबकि वित्तीय वर्ष 2023-24 में 10 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि इस मद पर खर्च की गई थी। अयोध्या, वाराणसी, उज्जैन, हरिद्वार, जम्मू कश्मीर जैसे अन्य कई धार्मिक स्थलों को विकसित किया जा रहा है ताकि धार्मिक पर्यटन को भारत में बढ़ावा दिया जा सके। इन शहरों के बुनियादी ढांचे का अतुलनीय विकास किया जा रहा है। जिससे रोज़गार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं। एयरपोर्ट की संख्या पिछले 10 वर्षों में दुगने से भी अधिक होकर 150 तक पहुंच गई है और इसे वर्ष 2025 तक 200 की संख्या तक ले जाया जा रहा है। रेल्वे का विद्युतीकरण किया गया है। रेलगाड़ियों की स्पीड बढ़ाई गई है, जिससे देश में कार्यक्षमता के  स्तर में सुधार हो रहा है। भारत के बड़े शहरों में मेट्रो रेल का जाल बिछाया जा रहा है। आज भारत का रोड नेट्वर्क चीन से भी अधिक होकर विश्व में केवल अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर आ गया है। भारत सरकार की वर्ष 2024 से वर्ष 2030 के बीच देश के बुनियादी ढांचे को विकसित करने पर 2 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि खर्च करने की योजना है। इस प्रकार भारत को वर्ष 2047 तक विकसित देशों की श्रेणी में शामिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। वर्ष 2027 तक भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा, ऐसी सम्भावना भी व्यक्त की जा रही है।     प्रहलाद सबनानी 

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धर्म-अध्यात्म लेख

भारत में वर्ष प्रतिपदा हिंदू कालगणना के वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर मनाई जाती है

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भारत में हिंदू सनातन संस्कृति के अनुसार नए वर्ष का प्रारम्भ वर्षप्रतिपदा के दिन होता है। वर्षप्रतिपदा की तिथि निर्धारित करने के पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य छिपे हुए हैं। ब्रह्मपुराण पर आधारित ग्रन्थ ‘कथा कल्पतरु’ में कहा गया है कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन सूर्योदय के समय ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी और उसी दिन से सृष्टि संवत की गणना आरम्भ हुई। समस्त पापों को नष्ट करने वाली महाशांति उसी दिन सूर्योदय के साथ आती है।  वर्षप्रतिपदा का स्वागत किस प्रकार करना चाहिए इसका वर्णन भी हमारे शास्त्रों में मिलता है। सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की पूजा ‘ॐ’ का सामूहिक उच्चारण, नए पुष्पों, फलों, मिष्ठानों से युग पूजा और सृष्टि की पूजा करनी चाहिए। सूर्य दर्शन, सुर्यध्र्य प्रणाम, जयजयकार, देव आराधना आदि करना चाहिए। परस्पर मित्रों, सम्बन्धियों, सज्जनों का सम्मान, उपहार, गीत, वाध्य, नृत्य से सामूहिक आनंदोत्सव मनाना चाहिए तथा परस्पर साथ मिल बैठकर समस्त आपसी भेदों को समाप्त करना चाहिए। चूंकि यह ब्रह्मा द्वारा घोषित सर्वश्रेष्ठ तिथि है अत इसको प्रथम पद मिला है, इसलिए इसे प्रतिपदा कहते हैं। हमारा यह शास्त्रीय विधान पूर्णत: विज्ञान सम्मत है। जागरण के इस काल में हमें काल पुरुष जगा रहा है, ऐसी सनातन संस्कृति में मान्यता है। आइये, हम भी हिंदुत्व के उगते सूरज के सम्मान और अभ्यर्थना में उठ खड़े हों। वैदिक शुभकामना  स्वस्ति न इन्द्रो वृद्श्र्वा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:।  स्वस्ति नस्ताक्श्र्यो अरिष्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पतिरदधातु।। अर्थात, महान यशस्वी इंद्र एश्वर्य प्रदान करें, पूषा नामक सूर्य तेजस्विता प्रदान करें। ताक्षर्य नामक सूर्य रसायन तथा बुद्धि द्वारा रोग-शोक का निवारण करें तथा बृहस्पति नामक गृह सभी प्रकार के मंगल तथा कल्याण प्रदान करते हुए उत्तम सुख समृधि से ओतप्रोत करें। उक्त मन्त्र में खगोल स्थित क्रान्तिव्रत के समान चार भाग के परिधि पर समान दूरी वाले चार बिन्दुओं पर पड़ने वाले नक्षत्रों क्रमशः इंद्र, पूषा ताक्षर्य एवं बृहस्पति अर्थात चित्रा, रेवती, श्रवण व् पुष्य नक्षत्रों द्वारा क्रान्ति व्रत पर 180 अंश का कोण बनता है। यह वैदिक पुरुष द्वारा की गई जन कल्याण की कामना है।     वर्ष प्रतिपदा हिंदू काल गणना पर आधारित है और इसके साथ अन्य कई वैज्ञानिक तथ्य भी जुड़े हैं। इसी दिन वासंतिक नवरात्रि का भी प्रारम्भ होता है और वर्ष प्रतिपदा से ही नौ दिवसीय शक्ति पर्व प्रारम्भ होता है तथा सनातनी हिंदू इसी दिन से शक्ति की भक्ति में लीन हो जाते हैं। सतयुग के खंडकाल में भारतीय (हिन्दू) नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदाके दिन प्रारंभ हुआ था क्योंकि इसी दिन ब्रह्माजी द्वारा सृष्टि की रचना का प्रारंभ किया गया था। आगे चलकर त्रेतायुग में वर्षप्रतिपदा के दिन ही प्रभु श्रीराम का लंका विजय के बाद राज्याभिषेक हुआ था। भगवान श्रीराम ने वानरों का विशाल सशक्त संगठन बनाकर असुरी शक्तियों (आतंक) का विनाश किया था। इस प्रकार अधर्म पर धर्म की विजय हुई और रामराज्य की स्थापना हुई थी। अगले खंडकाल अर्थात द्वापर युग में युधिष्ठिर संवत का प्रारम्भ भी वर्षप्रतिपदा के दिन हुआ था। महाभारत के धर्मयुद्ध में धर्म की विजय हुई और राजसूय यज्ञ के साथ युधिष्ठिर संवत प्रारम्भ हुआ। आगे कलयुग के खंडकाल में विक्रम संवत प्रारम्भ हुआ। सम्राट विक्रमादित्य की नवरत्न सभा की चर्चा आज भी चहुंओर होती है। यह भारत के परम वैभवशाली इतिहास का एक अति महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। इस नवरत्न सभा में निम्नलिखित रत्न शामिल थे –  (1)  धन्वन्तरि-आर्युवेदाचार्य; (2) वररुचि-व्याकरणचार्य; (3) कालीदास-महाकवि; (4) वराहमिहिर-अंतरिक्षविज्ञानी; (5) शंकु-शिक्षा शाश्त्री; (6) अमरसिंह-साहित्यकार; (7) क्षणपक-न्यायविद दर्शनशास्त्री; (8) घटकर्पर-कवि; (9) वेतालभट्ट-नीतिकार। भारतीय सनातन संस्कृति पर आधारित कालगणना को विश्व की सबसे प्राचीन पद्धति माना जाता है। दरअसल भारत में कालचक्र प्रवर्तक भगवान शिव को काल की सबसे बड़ी इकाई के अधिष्ठाता होने के चलते ही उन्हें महाकाल कहा गया। वहीं कलयुग में विक्रमादित्य द्वारा नए संवत का प्रारम्भ परकीय विदेशी आक्रमणकारियों से भारत को मुक्त कराने के महाअभियान की सफलता का प्रतीक माना गया है।    इधर स्वतंत्र भारत की सरकार द्वारा राष्ट्रीय पंचांग निश्चित करने के उद्देश्य से प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. मेघनाद साहा की अध्यक्षता में एक ‘कलैंडर रिफार्म कमेटी’ का गठन किया गया था। वर्ष 1952 में ‘साइंस एंड कल्चर’ पत्रिका में प्रकाशित एक प्रतिवेदन के अनुसार, लगभग पूरे विश्व में लागू ईसवी सन का मौलिक सम्बंध ईसाई पंथ से नहीं है और यह यूरोप के अर्धसभ्य कबीलों में ईसामसीह के बहुत पहले से ही चल रहा था। इसके अनुसार एक वर्ष में 10 महीने और 304 दिन ही होते थे। वर्ष के कैलेंडर में जनवरी एवं फरवरी माह तो बाद में जोड़े गए हैं। पुरानी रोमन सभ्यता को भी तब तक ज्ञात नहीं था कि सौर वर्ष और चंद्रमास की अवधि क्या थी। यही दस महीने का साल वे तब तक चलाते रहे जब तक उनके नेता सेनापति जूलियस सीजर ने इसमें संशोधन नहीं कर लिया। ईसा के 530 वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद, ईसाई बिशप ने पर्याप्त कल्पनाएं कर 25 दिसम्बर को ईसा का जन्म दिवस घोषित किया। वर्ष 1572 में तेरहवें पोप ग्रेगोरी ने कैलेंडर को दस दिन आगे बढ़ाकर 5 अक्टोबर (शुक्रवार) को 15 अक्टोबर माना, जिसे ब्रिटेन द्वारा 200 वर्ष उपरांत अर्थात वर्ष 1775 में स्वीकार किया गया। साथ ही, यूरोप के कैलेंडर में 28, 29, 30, 31 दिनों के महीने होते हैं, जो विचित्र है क्योंकि यह न तो किसी खगोलीय गणना पर आधारित हैं और न ही किसी प्रकृति चक्र पर।  उक्त वर्णित कारणों के चलते कैलेंडर रिफोर्म कमेटी ने विक्रम संवत को राष्ट्रीय संवत बनाने की सिफ़ारिश की थी। विक्रम संवत, ईसा संवत से 57 साल पुराना था। परंतु, दुर्भाग्य से भारत में अंग्रेज़ी मानसिकता से ग्रसित लोगों के यह सुझाव पसंद नहीं आया और देश में यूरोप के कैलेंडर को लागू कर दिया गया। हालांकि, विदेशी सिद्धांतो पर आधारित गणनाओं में कई विसंगतियाँ पाई गई हैं।  चिल्ड्रन्स ब्रिटानिका के प्रथम खंड (1964) में कैलेंडर का इतिहास बताया गया है। इसमें यह बताया गया है कि अंग्रेजी कैलेंडरों में अनेक बार गड़बड़ हुई हैं एवं इसमें समय समय पर कई संशोधन करने पड़े हैं। इनमें  माह की गणना चंद्र की गति से और वर्ष की गणना सूर्य की गति पर आधारित है। आज भी इसमें कोई आपसी तालमेल नहीं है। ईसाई मत में ईसा मसीह का जन्म इतिहास की निर्णायक घटना मानी गई है। अतः कालक्रम को BC (Before Christ) और AD (Anno Domini) अर्थात In the year of our Lord में बांटा गया। किंतु, यह पद्धति ईसा के जन्म के बाद भी कुछ सदियों तक प्रचलन में नहीं आई थी। इसके साथ ही, आज के ईस्वी सन का मूल रोमन संवत है। यह ईसा के जन्म के 753 वर्ष पूर्व रोम नगर की स्थापना से प्रारम्भ हुआ। तब इसमें 10 माह थे (प्रथम माह मार्च से अंतिम माह दिसम्बर तक) वर्ष होता था 304 दिन का। बाद में राजा नूमा पिंपोलियस ने दो माह (जनवरी एवं फरवरी) जोड़ दिए। तब से वर्ष 12 माह अर्थात 355 दिन का हो गया। यह ग्रहों की गति से मेल नहीं खाता था, तब जूलियस सीजर ने इसे 365 और 1/4 दिन का करने का आदेश दे दिया। इसमें कुछ माह 30 दिन व कुछ माह 31 दिन के बनाए गए और फरवरी के लिए 28 दिन अथवा 29 दिन बनाए गए। इस प्रकार पश्चिमी कैलेंडर में गणनाएं प्रारम्भ से ही अवैज्ञानिक, असंगत, असंतुलित विवादित एवं काल्पनिक रहीं। इसके विपरीत सनातन हिंदू संस्कृति पर आधारित काल गणना पूर्णतः वैज्ञानिक सिद्ध पाई गईं हैं। इस दृष्टि से वर्षप्रतिपदा का महत्व अपने आप ही बढ़ जाता है और भारत में आज हिंदू सनातनियों द्वारा वर्षप्रतिपदा के दिन ही नए वर्ष का प्रारम्भ माना जाता है एवं वर्ष भर की काल गणना भी हिंदू सनातन संस्कृति के आधार पर की जाती है, जिसे अति शुभ माना गया है।  प्रहलाद सबनानी 

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लेख

सनातनी हिंदुओं कोआक्रांताओं से बचाने हेतु भगवान झूलेलाल अवतरित हुए

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9 अप्रेल वर्ष प्रतिपदा – जन्मदिन पर विशेष  भारत के प्राचीन काल में सिंध प्रांत को भारत का प्रवेश द्वार कहा जाता था क्योंकि सिंध प्रांत को पार करते हुए ही भारत में दिल्ली तथा अन्य राज्यों तक पहुंचा जा सकता था। सिंध का कराची बंदरगाह भारत के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में से एक था क्योंकि कराची बंदरगाह के माध्यम से भारत से कृषि पदार्थों आदि का निर्यात किया जाता था। सिंध के निवासी कई कई महीनों तक लगातार जलयान एवं नौकाओं के माध्यम से भ्रमण करते हुए अन्य देशों के साथ विदेशी व्यापार करते थे। सिंध प्रांत की बहिने अपने भाईयों, पिता एवं पति को बिदा करने समुद्र (दरयाह शाह) के किनारे आती थी और अपने सम्बंधियों के कुशलता पूर्वक विदेश से वापिस आने की जल देवता को प्रार्थना करती थीं। कुल मिलाकर सिंध प्रांत उस खंडकाल में अति विकसित अवस्था में गिना जाने वाला राज्य था। परंतु, 700 ईसवी आते आते शायद सिंध प्रांत को जैसे किसी की नजर लग गई और सिंध में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध प्रांत के राजा श्री दाहिर सेन को 712 ईसवी में विश्वासघात करके युद्ध में मार दिया। इस प्रकार, श्री दहिर सेन जी सिंध प्रांत के अंतिम हिंदू शासक सिद्ध हुए।  712 ईसवी के बाद अल हिलाज के खलीफा ने सिंध प्रांत को अपने राज्य में शामिल कर लिया और सिंध प्रांत पर खलीफा के प्रतिनिधियों द्वारा शासन किया जाने लगा। इसके बाद तो सिंध के सनातनी हिंदूओं पर जैसे दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा क्योंकि इस्लामिक आक्रमणकारियों द्वारा पूरे क्षेत्र में तलवार की नोंक पर हिंदुओं का धर्मांतरण कराया जाने लगा और इस्लाम को इस क्षेत्र में फैलाया जाने गया।      उस खंडकाल में सिंध राज्य की राजधानी थट्टा नामक नगर थी। इस नगर की अपनी एक अलग पहचान और अपना एक अलग प्रभाव था। इस क्षेत्र का शासक मिरखशाह न केवल अत्याचारी और दुराचारी था बल्कि एक कट्टर इस्लामिक आक्रमणकारी राजा था। मिरखशाह ने इस क्षेत्र में इस्लाम को फैलाने के लिए अनेक आक्रमण किए एवं नरसंहार किया। मिरखशाह के सलाहकारों और मित्रों ने उसे सलाह दी कि इस क्षेत्र में जितना अधिक इस्लाम को फैलाओगे उतने अधिक समय के लिए आपको मौत के बाद जन्नत अथवा सर्वोच्च आनंद की प्राप्ति होगी। सलाहकारों की इस सलाह के बाद मिरखशाह ने हिंदुओं के “पंच प्रतिनिधियों” को अपने पास बुलाया और उन्हें आदेश दिया कि आप सभी हिंदू लोग इस्लाम ग्रहण कर लो अथवा मरने के लिए तैयार हो जाओ। हिंदुओं के पंच प्रतिनिधियों ने मिरखशाह की इस सलाह पर विचार करने के लिए कुछ समय मांगा और मिरखशाह ने उन्हें 40 दिन का समय दे दिया।   जैसा कि हम सभी जानते हैं कि जब मनुष्य के लिए सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं तो वह प्रभु परमात्मा की शरण में जाने लगता है। इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ और अपने सामने मौत और धर्म पर संकट को देखते हुए सिंधी हिंदुओं ने जल के देवता वरुण देव की ओर रूख किया। चालीस दिनों तक हिंदुओं ने तपस्या की। इस बीच न तो उन्होंने अपने बाल कटवाए और ना ही कपड़े बदले और ना ही भोजन किया। इन 40 दिनों तक कठिन उपवास करते हुए केवल ईश्वर की स्तुति और प्रार्थना कर प्रभु परमात्मा से रक्षा की उम्मीद लिए नदी के किनारे बैठे रहे। 40वें दिन स्वर्ग से एक आवाज आई, जिसमें कहा गया कि “आप लोग डरो मत, मैं तुम्हें आक्रांताओं की बुरी नजर से बचाऊंगा। मैं एक नश्वर के रूप में इस पृथ्वी पर आऊंगा और माता देवकी के गर्भ से इस धरा पर जन्म लूंगा। यह सुनकर सिंधी समाज के सनातनी हिंदुओं ने मिरख शाह से जाकर अपने ईश्वर के आने तक रुकने की प्रार्थना की। जिसके बाद मिरख शाह ने इसे अपने अहंकार के रूप में देखा और “भगवान” से भी लड़ने की चाह में उसने हिंदुओं को कुछ दिन का और समय दे दिया। तीन माह बाद आसू माह (आषाढ़) के दूसरे तिथि में माता देवकी ने गर्भ में शिशु होने की पुष्टि की। इसके बाद पूरे हिन्दू समाज ने जल देवता की प्रार्थना कर अभिवादन किया। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन आकाश से बेमौसम मूसलाधार बारिश हुई और माता देवकी ने एक चमत्कारी शिशु को जन्म दिया। भगवान झूलेलाल के जन्म लेते ही उनके मुख को जब खोला गया तो उसमें सिंदु नदी के बहने का दृश्य दिखाई दिया। पूरे हिंदू समुदाय द्वारा बच्चे के जन्म लेते ही गीतों और नृत्यों के साथ उसका स्वागत किया गया। झूलेलाल जी का नाम बचपन में उदयचंद रखा गया। उदयचंद को उडेरोलाल भी कहा जाने लगा। नसरपुर के लोगो प्यार से झूलेलाल को अमरलाल भी कहते थे। जिस पालने में झूलेलाल रहते थे वह अपने आप ही झूलने लगता था, जिसके बाद ही उन्हें झूलेलाल कहा जाने लगा और इसी नाम से वे लोकप्रिय हो गए।  इधर काफी समय बीत जाने के बाद मिरखशाह के ऊपर मौलवियों द्वारा एक बार पुनः हिंदुओं को इस्लाम में लाने हेतु दबाव डाला जाने लगा तो मिरख शाह ने काफिरों (सनातनी हिंदुओं) को इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दे दिया। साथ ही, मौलवियों की बात और अपने इस्लामिक अहंकार में मिरखशाह ने उडेरोलाल से खुद मिलने का फैसला किया। मिरखशाह ने अहिरियो नामक व्यक्ति को उडेरोलाल से मिलने की व्यवस्था करने को कहा। अहिरियो, जो स्वयं इस बीच जलदेवता का भक्त बन चुका था, सिंधु नदी के तट पर गया और जल देवता से अपने बचाव में विनती करने लगा। पहिले, अहीरियो ने एक बूढ़े आदमी को सफेद दाढ़ी में देखा, जो एक मछली पर तैर रहा था। अहिरियो का सिर आराधना में झुका और उन्होंने समझा कि जल देवता उडेरोलाल ही है। फिर, कुछ पल में ही अहिरियो ने एक घोड़े पर उडेरोलाल को छलांग लगाते हुए देखा और और उडेरोलाल एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में एक झंडा लिए हुए निकल गए। अहिरियो, मिरखशाह को जब उडेरोलाल के सामने लाया तो भगवान झूलेलाल (उडेरोलाल) ने उन्हें ईश्वर का मतलब समझाया। लेकिन कट्टरपंथी मौलवियों की बातें और इस्लामिक कट्टरपंथ लिए बैठे मिरखशाह ने उन सभी बातों को अनदेखा कर अपने सैनिकों से भगवान झूलेलाल को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। जैसे ही, सैनिक आगे बढ़े वैसे ही पानी की बड़ी बड़ी लहरें आंगन को चीरती हुई आगे आ गई। आग ने पूरे महल को घेर लिया और सब कुछ जलना शुरू हो गया। वहां से भागने के सभी मार्ग बंद हो गए। उडेरोलाल (भगवान झूलेलाल) ने फिर कहा कि जब तुम्हारे और मेरे भगवान एक हैं तो फिर सनातनी हिंदुओं को तुम क्यों परेशान कर रहे हो? मिरखशाह यह सब देखकर घबरा गया और उसने भगवान झूलेलाल से विनती की कि मेरे भगवान, मुझे अपनी मूर्खता का एहसास हो गया है अतः आप  कृपया मुझे और मेरे दरबारियों को बचा लीजिए। इसके बाद वहां पानी की बौछार आई और आग बुझ गई। मिरखशाह ने सम्मानपूर्वक भगवान झूलेलाल को नमन किया और हिंदुओं और मुसलमानों के साथ एक जैसा व्यवहार करने के लिए सहमत हुआ। इसके बाद उडेरोलाल ने वहां उपस्थित सनातनी हिंदुओं से कहा कि वे उन्हें प्रकाश और पानी का अवतार समझें। उन्होंने एक मंदिर बनाने का आदेश देते हुए कहा कि इस मंदिर में हमेशा प्रकाश की लौ जलती रहनी चाहिए एवं पवित्र घूंट के लिए पानी उपलब्ध रहना चाहिए। यहीं उडेरोलाल ने अपने चचेरे भाई पगड़ को मंदिर का पहला ठाकुर (पुजारी) नियुक्त किया। भगवान झूलेलाल ने पगड़ को सात सिंबॉलिक वस्तुएं भी प्रदान कीं। इस प्रकार भगवान झूलेलाल ने पगड़ को मंदिरों के निर्माण और पवित्र कार्य को जारी रखने का भी संदेश दिया। साथ ही, यह भी कहा कि विकृत धर्माधता, घृणा, ऊंच-नीच और छुआछूत की दीवारे तोड़ो और अपने हृदय में मेल-मिलाप, एकता, सहिष्णुता, भाईचारा और धर्म निरपेक्षता के दीप जलाओ। यह सारी सृष्टि एक है और हम सब एक परिवार हैं और सब जगह खुशहाली हो।  भगवान झूलेलाल ने अपने चमत्कारिक जन्म और जीवन से ना सिर्फ सिंधी हिंदुओं के जान की रक्षा की बल्कि हिन्दू धर्म को भी बचाये रखा। मिरखशाह जैसे ना जाने कितने इस्लामिक कट्टरपंथी आये और धर्मांतरण का खूनी खेल खेला लेकिन भगवान झूलेलाल की वजह से सिंध में एक दौर में यह नहीं हो पाया। भगवान झूलेलाल आज भी सिंधी समाज के एकजुटता, ताकत और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र हैं। सिंधी समुदाय को भगवान राम के वंशज के रूप में माना जाता है। महाभारत काल में जिस राजा जयद्रथ का उल्लेख है वो सिंधी समुदाय का था। सिंधी समुदाय चेटीचंड पर्व से ही नववर्ष प्रारम्भ करता है। चेटीचंड के अवसर पर सिंधी भाई अपार श्रद्धा के साथ झूलेलाल की शोभायात्रा निकालते हैं। इस दिन सूखोसेसी प्रसाद वितरित करते हैं। चेटीचंड के दिन सिंधी स्त्री-पुरुष तालाब या नदी के किनारे दीपक जला कर जल देवता की पूजा-अर्चना करते हैं। आज भी सिंधी समाज पूरे विश्व में भगवान झूलेलाल जयंती बड़े उत्साह और जोश के साथ मनाता है। हिंदू पञ्चाङ्ग के अनुसार झूलेलाल जयंती चैत्र मास की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि झूलेलाल जी भगवान वरुणदेव के अवतार है। भगवान झूलेलाल की जयंती को सिंधी समाज चेटीचंड के रूप में मनाता है, जिसे सिंधी नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। चेटी-चंड हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्र के दूसरे दिन अर्थात चैत्र शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। सिंधी समाज में मान्यता है कि जल से ही सभी सुखों और मंगलकामना की प्राप्ति होती है इसलिए इसका विशेष महत्व है। प्रहलाद सबनानी

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राजनीति

डा. हेडगेवार की दूरदृष्टि अतुलनीय थी

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9 अप्रेल 2024 वर्षप्रतिपदा पर विशेष  भारत का प्राचीन इतिहास अति वैभवशाली रहा है। पूरे वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत का योगदान 25 प्रतिशत से ऊपर ही बना रहा है। खाद्य सामग्री, इस्पात, कपड़ा एवं चमड़ा आदि पदार्थ तो जैसे भारत ही पूरे विश्व को उपलब्ध कराता था। परंतु, 712 ईसवी में सिंध प्रांत के तत्कालीन राजा श्री दाहिर सेन जी को कपटपूर्ण तरीके से मोहम्मद बिन कासिम द्वारा युद्ध में परास्त कर शहीद करने के उपरांत आक्रांताओं को भारत में प्रवेश करने का मौका मिल गया। हालांकि उस समय आक्रांताओं का मूल उद्देश भारत को लूटना भर था क्योंकि उस समय तक भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। दरअसल, उस खंडकाल तक भारत से वस्तुओं का निर्यात पूरे विश्व को बहुत अधिक मात्रा में होता था इसके एवज में भारत को सोने की मुद्राओं में भुगतान अन्य देशों द्वारा किया जाता था। इससे भारत में स्वर्ण मुद्रा के भंडार जमा हो गए थे, इससे भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाने लगा था। आक्रांतओं ने भारत में आकर देखा कि यहां के राजा तो एक दूसरे के दुश्मन बने हुए हैं एवं इनमें आपस में भाईचारे का नितांत अभाव है। आक्रांताओं ने राजाओं की आपसी दुश्मनी का फायदा उठाकर कुछ राज्यों पर धीरे धीरे अपनी सत्ता स्थापित करना शुरू किया। वरना, आक्रांतओं ने भारत में प्रवेश तो मुट्ठी भर लोगों के साथ ही किया था परंतु उन्हें कुछ राजाओं को अपने साथ मिलाने में सफलता मिली थी। कालांतर में इसी प्रकार की कार्यशैली अंग्रेजों ने भी अपनाई थी। अंग्रेज़ भी ईस्ट इंडिया कम्पनी नामक संस्था के माध्यम से व्यापार करने के उद्देश्य से भारत में आए थे। परंतु, उस खंडकाल में भी वे भारतीयों को ‘बांटों एवं राज करो’ की नीति का अनुपालन करते हुए आसानी से भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित करने में सफल रहे थे। अंग्रेजो ने अर्थव्यवस्था के साथ साथ भारतीय सनातन संस्कृति को भी तहस नहस करने का प्रयास किया। कुछ हद्द तक इसमें उन्हें सफलता भी मिली थी क्योंकि भारतीय अपनी मूल सनातन संस्कृति को ही भूल बैठे थे।  इसी बीच नागपुर में 1 अप्रेल 1889 को एक बालक केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म हुआ, जो बचपन में ही देश प्रेम की भावना से ओतप्रोत थे। शायद ईश्वर ने ही उन्हें इस धरा पर विशेष उद्देश्य की पूर्ति हेतु ही भेजा था क्योंकि यह उनकी दूरदृष्टि ही थी जिसके चलते उन्होंने वर्ष 1925 में दशहरा के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना इस उद्देश्य से की थी कि देश के नागरिकों में देश प्रेम की भावना जागृत कर समाज में सामाजिक समरसता स्थापित की जाय। मुख्य रूप से भारतीय समाज में इन दोनों कमियों के चलते ही पहिले आक्रांताओं एवं बाद में अंग्रेजो ने भारत पर अपना राज्य स्थापित करने में सफलता हासिल की थी। यह बात परम पूज्य डा. हेडगेवार जी ने बचपन में जान ली थी एवं सनातनी हिंदुओं के बीच व्याप्त सामाजिक बुराईयों को दूर करने का प्रण ले लिया था। डा. साहिब वर्ष 1914 में एमबीबीएस की डिग्री कलकता में प्राप्त करने के उपरांत नागपुर वापिस आ गए थे। डॉ. हेडगेवार ने कभी पेशेवर डॉक्टर के रूप में कार्य नहीं किया। वे देश की स्वतंत्रता और सेवा हित में चलाये जाने वाले कार्यक्रमों से जुड़कर अध्ययन करते रहे। डॉ. हेडगेवार ने इन वर्षों में भारत के इतिहास, वर्तमान और भविष्य को जोड़कर राष्ट्रीयता के मूल प्रश्न पर विचार किया। जिसके निष्कर्ष में भाऊजी काबरे, अण्णा सोहोनी, विश्वनाथराव केलकर, बाबूराव भेदी और बालाजी हुद्दार के साथ मिलकर 25 सितम्बर, 1925 (विजयादशमी) को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शुरुआत की गयी। उस समय यह सिर्फ संघ के नाम से जाना जाता था। उसमें राष्ट्रीय और स्वयंसेवक शब्दों को छह महीनों बाद यानि 17 अप्रैल, 1926 में सम्मलित किया गया।  डा. साहिब स्वयं ही स्वयसेवकों से व्यक्तिगत रूप से जुड़े रहते थे। 1935 में एक भाषण के दौरान डॉ. हेडगेवार कहते है, “कोई स्वयंसेवक आज अच्छी तरह से काम कर रहा है और कल वह अपने घर बैठ जाए। यदि किसी दिन कोई स्वयंसेवक शाखा में न उपस्थित न रहा, तो तुरंत उसके घर पहुंचकर वह क्यों नहीं आया इस बात की जानकारी लेनी चाहिए। नहीं तो दूसरे दिन भी वह शाखा में नहीं आएगा. तीसरे दिन उसके संघ स्थान जाने में संकोच होगा. चौथे दिन उसको कुछ डर सा मालूम होगा और पांचवें दिन वह टालमटोल करने लग जायेगा। अतः किसी स्वयंसेवक को शाखा से अनुपस्थित नहीं होने देना चाहिए।” सतारा से नाना काजरेकर पुणे के संघ शिक्षा वर्गों में 1936 से हिस्सा लेने लगा। पेट की बीमारी के चलते वह कुछ कार्यक्रमों से दूर रहने लगा। डॉ. साहब ने स्वयं उसकी समस्या का पता लगाया और उसे चिकित्सा उपलब्ध कराई। डॉ. हेडगेवार की भाषा और आचरण में सामान्यतः सरलता एवं आत्मीयता थी। चूंकि संघ का कार्य राष्ट्र का कार्य हैं इसलिए उन्होंने सभी को परिवार के सदस्य के रूप माना। परस्पर घनिष्ठता और स्नेह-संबंधों के आधार पर उन्होंने नियमित स्वयंसेवकों को तैयार किया। उनका विचार था कि किन्ही अपरिहार्य कारणों से संघ का कार्य अवरुद्ध न होने पाए। उनका उद्देश्य केवल संख्या बढ़ाने पर नहीं बल्कि वास्तव में हिन्दुओं को संगठित करना था। इसके लिए उन्होंने समझाया कि संघ का कार्य जीवनपर्यंत करना होगा। समाज में स्वाभाविक सामर्थ्य जगाना ही इसका अंतिम लक्ष्य होगा। स्वयंसेवकों का मनोबल बनाये रखने में डॉ. साहब कोई कसर नहीं छोड़ते थे। वे उनके साथ पारस्परिक चर्चा करते रहते थे। संगठन की चर्चा करते हुए एक बार उन्होंने कहा, “जब संघ का निर्माण हुआ था उस समय भी परिस्थिति इतनी प्रतिकूल थी, कि कार्य करना असंभव सा प्रतीत होता था। जबकि इस प्रकार की अत्यंत कठिन परिस्थिति से न डरते हुए, निर्भीकता के साथ उसका हमने लगातार सामना किया और बराबर कार्य करते रहे, तब आज भी हमारे सामने परिस्थिति की कठिनता का प्रश्न क्यों उठाना चाहिए? आज तक हमारे कार्य करने की जो भी गति थी वह ठीक ही थी। किन्तु अब आगे कैसे होगा? क्या हमने आजतक जो कुछ कार्य किया; उसी को आप पर्याप्त समझते है? मैं निश्चय ही कह सकता हूँ कि प्रत्येक स्वयंसेवक कम-से-कम अपने मन में तो यही उत्तर देगा कि जितना कार्य हो जाना चाहिए था, नहीं हो पाया है।”   डॉ. साहब 15 वर्षों तक संघ के पहले सरसंघचालक रहे। इस दौरान संघ शाखाओं के द्वारा संगठन खड़ा करने की प्रणाली डॉ. साहब ने विचारपूर्वक विकसित कर ली थी। संगठन के इस तंत्र के साथ राष्ट्रीयता का महामंत्र भी बराबर रहता था। वे दावे के साथ आश्वासन देते थे कि अच्छी संघ शाखाओं का निर्माण कीजिये, उस जाल को अधिक्तम घना बुनते जाइए, समूचे समाज को संघ शाखाओं के प्रभाव में लाइए, तब राष्ट्रीय आजादी से लेकर हमारी सर्वांगीण उन्नति करने की सभी समस्याएं निश्चित रूप से हल हो जायेगी। इन वर्षों में जिससे भी डा. साहिब का संपर्क हुआ उन्होंने डा. साहिब की और उनके कार्यों की हमेशा सराहना की। जिनमें महर्षि अरविन्द, लोकमान्य तिलक, मदनमोहन मालवीय, विनायक दामोदर सावरकर, बी.एस. मुंजे, बिट्ठलभाई पटेल, महात्मा गाँधी, सुभाषचन्द्र बोस, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और के.एम. मुंशी जैसे नाम प्रमुख थे। डा. हेडगेवार के महाप्रयाण के तेरहवें दिन यानी 3 जुलाई 1940 को नागपुर में डा. साहिब की श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई। सरसंघचालक के नाते श्री गुरुजी ने उन्हें याद करते हुए बताया कि डा. साहिब के कार्य की परिणिति पंद्रह सालों में एक लाख स्वयंसेवकों के संगठित होने में हुई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संदर्भ में दत्तोपंत ठेंगड़ी जी कहते हैं कि “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का निर्माण किसी भावना या उत्तेजना में आकर नहीं हुआ है। श्रेष्ठ पुरुष जन्मजात देशभक्त डा. जी जिन्होंने बचपन से ही देशभक्ति का परिचय दिया, सब प्रकार का अध्ययन किया और अपने समय चलाने वाले सभी आंदोलनों में, कार्यों में जिन्होंने हिस्सा लिया, कांग्रेस और हिंदू सभा के आंदोलनों में भाग लिया, क्रांति कार्य का अनुभव लेने के लिए बंगाल में जो रहे, उन्होंने गहन चिंतन का पश्चात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना बनाई।”  आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक वटवृक्ष के रूप में एवं विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन के रूप में हमारे सामने खड़ा है। भारत में आज संघ की 73,000 से अधिक शाखाएं लग रही हैं एवं इन शाखाओं में स्वयंसेवकों में राष्ट्रीय भावना जागृति की जाती है ताकि ये स्वयंसेवक समाज में जाकर सज्जन शक्ति के साथ मिलकर भारत को एक बार पुनः विश्व गुरु के रूप में स्थापित कर सके। जिसका सपना डा. हेडगेवार जी ने भी देखा था।   प्रहलाद सबनानी 

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आर्थिकी राजनीति

भारतीय अर्थव्यवस्था लम्बी छलांग लगाने को तैयार

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वित्तीय वर्ष 2023-24 की तृतीय तिमाही (अक्टोबर-दिसम्बर 2023) में भारत में आर्थिक विकास की दर 8.4 प्रतिशत रही है। कुछ विदेशी अर्थशास्त्री भारत की आर्थिक विकास दर को कमतर आंकते हुए दिखाई दे रहे हैं जबकि यह लगातार तिमाही दर तिमाही आगे बढ़ती ही जा रही है। अब तो विश्व की कई आर्थिक एवं वित्तीय संस्थानों ने भी वर्ष 2024 के लिए भारत की आर्थिक विकास दर के सम्बंध में अपने अनुमानों को बेहतर किया है, परंतु अभी भी इन संस्थानों के यह अनुमान वास्तविक आर्थिक विकास दर की तुलना में बहुत कम हैं। दरअसल, विदेशी आर्थिक एवं वित्तीय संस्थानों द्वारा विशेष रूप से भारत की आर्थिक विकास दर को आंके जाने के सम्बंध में उपयोग किए जा रहे मॉडल अब बोथरे साबित हो रहे हैं। हाल ही के समय में भारत के नागरिकों में “स्व” का भाव विकसित होने के चलते देश में धार्मिक पर्यटन बहुत तेज गति से बढ़ा है। उदाहरण के लिए अयोध्या धाम में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर में श्रीराम लला के विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात प्रत्येक दिन औसतन 2 लाख से अधिक श्रद्धालु अयोध्या पहुंच रहे हैं। यह तो केवल अयोध्या की कहानी है इसके साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर, उज्जैन में महाकाल लोक, जम्मू स्थित वैष्णो देवी मंदिर, उत्तराखंड में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री एवं यमनोत्री जैसे कई मंदिरों में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ रही है। भारत में धार्मिक पर्यटन में आई जबरदस्त तेजी के बदौलत रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं, जो देश के आर्थिक विकास को गति देने में सहायक हो रहे हैं। परंतु, यह तथ्य विदेशी आर्थिक एवं वित्तीय संस्थानों को दिखाई नहीं दे रहा है, जो कि केवल भारत की ही विशेषता है।  उक्त तथ्यों के अतिरिक्त अन्य कई कारक भी भारत की आर्थिक विकास दर को अब 9 से 10 प्रतिशत की सीमा में ले जाने को तैयार दिखाई दे रहे हैं। आज भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना में भारत से आगे चल रही विश्व के अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर में ठहराव आ गया है। जैसे अमेरिका एवं यूरोप की अर्थव्यवस्थाएं आगे आने वाले समय में प्रतिवर्ष केवल 2 अथवा 3 प्रतिशत की दर से ही आगे बढ़ पाएंगी। इसी प्रकार चीन की अर्थव्यवस्था भी अब ढलान पर दिखाई दे रही है। जापान एवं जर्मनी की अर्थव्यवस्थाओं में तो आर्थिक मंदी देखी जा रही है। इस प्रकार विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत के अमृत काल में केवल भारतीय अर्थव्यवस्था ही तेज गति आगे बढ़ती दिखाई दे रही है। वैसे भी भारत में अमृत काल तो अभी शुरू ही हुआ है एवं यह अगले 23 वर्षों अर्थात वर्ष 2047 तक यह खंडकाल जारी रहेगा। कुछ अर्थशास्त्री तो भारत के अमृत काल के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था के इसी तरह तेज गति से आगे बढ़ते रहने की संभावनाएं व्यक्त कर रहे हैं क्योंकि भारत में वर्ष 1991-92 में प्रारम्भ किए आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्र के सुधार कार्यक्रम को अब 32 वर्ष पूर्ण हो गए हैं, हालांकि वर्ष 1991-92 के बाद भी भारत में आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्रों में सुधार कार्यक्रम लगातार जारी रहे हैं। अत: स्थिर हो चुके इन सुधार कार्यक्रमों के फल खाने का समय अब आ गया है।  भारत द्वारा वर्ष 1947 में राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात, पिछले 77 वर्षों के दौरान भारत में लोकतंत्र लगातार मजबूत हुआ है एवं आज पूरे विश्व में भारत इस दृष्टि से प्रथम पायदान पर खड़ा है। भारत में लोकतंत्र के लगातार मजबूत होते जाने से विदेशी निवेशकों का भारत में विश्वास बढ़ा है जिसके चलते भारत में उद्योग जगत को पूंजी की कमी नहीं के बराबर रही है। पर्याप्त पूंजी की उपलब्धता के चलते भारत में आर्थिक विकास को गति ही मिली है। भारत में लगातार तेज हो रही आर्थिक विकास की दर के कारण भारत में बिलिनियर (100 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की सम्पत्ति वाले नागरिक) की संख्या में सुधार हुआ है। पिछले वर्ष भारत में 94 नए बिलिनियर बने हैं। जबकि चीन में 115 बिलिनियर कम हुए हैं। विश्व में बिलिनियर की संख्या के मामले में भारत चीन एवं अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर आ गया है। भारत में आज 271 बिलिनियर हैं जबकि चीन में 814 एवं अमेरिका में 800 बिलिनियर हैं। मुंबई महानगर में तो अब 92 बिलिनियर निवास कर रहे हैं, जो चीन के बीजिंग महानगर के 91 बिलिनियर से अधिक है। इस प्रकार अब एशिया के किसी भी महानगर में सबसे अधिक बिलिनियर भारत के मुंबई महानगर में निवास कर रहे हैं। पूरे विश्व भारत के मुंबई महानगर से आगे अब केवल अमेरिका का न्यूयॉर्क महानगर (119 बिलिनियर) एवं ब्रिटेन का लंदन महानगर (97 बिलिनियर) ही है। वर्ष 2022-23 में चीन में बिलिनियर की संख्या घटी है। चीन में बिलिनियर की सम्पत्ति 15 प्रतिशत से कम हुई है। जबकि भारत में बिलिनियर की सम्पत्ति में वृद्धि दर्ज हुई है। यह भारत में तेज गति से हो रहे आर्थिक विकास दर के चलते सम्भव हो सका है।  एक और कारक जो आगे आने वाले समय में भारत की आर्थिक विकास दर को लगातार उच्च स्तर पर बनाए रखने में सहायक हो सकता है वह है भारत में प्रति व्यक्ति वार्षिक औसत आय का लगभग 2500 अमेरिकी डॉलर का होना है जो चीन में 13,000 से 14,000 अमेरिकी डॉलर के एवं दक्षिणी कोरीया में 32,000 से 33,000 अमेरिकी डॉलर के बीच की तुलना में बहुत कम है। इस दृष्टि से भारत को अभी बहुत आगे तक जाना है और यह केवल आर्थिक विकास की औसत दर को 10 प्रतिशत प्रतिवर्ष  के आसपास बनाए रखने से ही सम्भव होगा। इस प्रकार भारतीय नागरिकों में अपनी औसत आय को विकसित देशों की तुलना में बेहतर करने की अभी बहुत गुंजाईश है और यह भावना भारत की आर्थिक विकास दर को बढ़ाए रखने में सहायक होगी। दूसरे, भारत में तकनीकी क्षेत्र विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास की दर बहुत प्रभावकारी है, डिजिटल क्षेत्र में तो भारत आज पूरे विश्व को ही राह दिखाता नजर आ रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास के चलते भारत में विभिन्न क्षेत्रों में श्रमिकों, व्यवसाईयों, प्रबंधकों, कृषकों आदि की उत्पादकता में भी सुधार दृष्टिगोचर है जो निश्चित ही भारत में आर्थिक विकास की गति को तेज करने में सहायक होगा।  आज अमेरिका एवं कनाडा में निवासरत एवं सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्य कर रहे भारतीय मूल के नागरिक वापिस भारत आकर बसने के बारे में गम्भीरता से विचार कर रहे हैं क्योंकि अब अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों की तुलना में भारत में लगातार तेज हो रही आर्थिक विकास की दर उन्हें आकर्षित कर रही है। उन्हें आज भारत में अधिक आय अर्जन के अतिरिक्त साधन उत्पन्न होते दिखाई दे रहे हैं। एक सर्वे के अनुसार, लगभग 38,000 भारतीय जो अमेरिका में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्यरत हैं वे अब  भारत वापिस आना चाहते हैं क्योंकि अमेरिका में कई कम्पनियां (गूगल, एमेजोन, माइक्रोसोफ्ट एवं मेटा सहित) अपने कर्मचारियों की छंटनी करती दिखाई दे रही हैं। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था तो स्पष्टत: आर्थिक मंदी की चपेट में आ चुकी है। जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था ने अक्टोबर-दिसम्बर 2023 की तिमाही में 8.4 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर हासिल की है। कई विदेशी वित्तीय संस्थानों ने वर्ष 2024 में भारत की आर्थिक विकास दर के अनुमान को आगे बढ़ा दिया है।  अब तो भारत में, ग्रामीण इलाकों सहित, विभिन्न उत्पादों के खपत का स्तर भी लगातार बढ़ रहा है। केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा विकास कार्यों के लिए अपने बजट में खर्च को लगातार बढ़ाया जा रहा है जिससे सामान्य नागरिकों के हाथों में अधिक पैसा पहुंच रहा है तथा इससे नागरिकों के बीच विभिन्न उत्पादों के खपत का स्तर बढ़ता दिखाई दे रहा है। शहरी उपभोक्ता तो रोजमर्रा की जरूरी वस्तुओं के साथ साथ चार पहिया वाहन एवं मकान आदि खरीदने पर भी भारी मात्रा में पैसा खर्च कर रहे हैं। घरेलू खपत में बढ़ौतरी के साथ ही भारत से निर्यात में भी तेजी देखी जा रही है। फरवरी 2024 माह में निर्यात का स्तर पिछले 11 माह में सबसे अधिक रहा है। केंद्र सरकार का अनुमान है कि भारत वित्तीय वर्ष 2023-24 में निर्यात के क्षेत्र में अपने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ देगा। मोर्गन स्टैनली के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर यह है कि भारत में निवेश : सकल घरेलू उत्पाद अनुपात में एक बार फिर सुधार दिखाई दे रहा है। यह अनुपात आज 34 प्रतिशत तक पहुंच गया है और उम्मीद की जा रही है वित्तीय वर्ष 2027 तक यह बढ़कर 36 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। जिससे भारत की आर्थिक विकास दर को और अधिक बल मिलेगा।   हां, भारत में एक क्षेत्र अभी भी ऐसा है जिसके लिए चिंता होना स्वाभाविक है। वह क्षेत्र है आय की असमानता का। भारत की 10 प्रतिशत आबादी के पास देश की 77 प्रतिशत सम्पत्ति जमा हो गई है। एक रिसर्च पेपर में यह बताया गया है कि भारत में आर्थिक विकास के साथ साथ आर्थिक असमानता भी बढ़ी है। वित्तीय वर्ष 2022-23 के अंत तक भारत की एक प्रतिशत आबादी की देश की कुल आय एवं सम्पत्ति में 22.6 प्रतिशत एवं 40.1 प्रतिशत की भागीदारी रही है। आय की असमानता को देश में आर्थिक विकास को गति देकर ही दूर किया जा सकता है, जिसके लिए केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा भरसक प्रयास किए जा रहे हैं।     प्रहलाद सबनानी 

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राजनीति

भारत को पुनः विश्वगुरु बनाना ही संघ का मुख्य लक्ष्य

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक नागपुर में दिनांक 15 से 17 मार्च 2024 को सम्पन्न हुई है। इस बैठक में पूरे देश से 1500 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया और “श्रीराम मंदिर से राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर” विषय पर एक प्रस्ताव भी पास किया गया।  जैसा कि सर्वविदित ही है कि गौरवशाली हिन्दू सनातन संस्कृति विश्व में सबसे पुरानी संस्कृति मानी जाती है और इसी हिंदू सनातन संस्कृति का अनुपालन करते हुए भारत का इतिहास वैभवशाली रह पाया है तथा हिंदू सनातन संस्कृति का विस्तार इंडोनेशिया तक एवं सुदूर अमेरिका तक रहा है।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि संघ एवं इसके स्वयंसेवक करते क्या हैं? इसके उत्तर में अक्सर यह जवाब दिया जाता है कि संघ को यदि समझना है तो आपको संघ की शाखा में आना होगा। संघ, मां भारती को एक बार पुनः विश्व में गौरवशाली स्थान दिलाने के पवित्र लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गम्भीर प्रयास कर रहा है। इस पवित्र लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लाखों की संख्या में स्वयंसेवक आज संघ के साथ जुड़ चुके हैं। आज भारत के 45,600 स्थानों पर संघ की 73,117 शाखाएं, 27,717 साप्ताहिक मिलन एवं 10,567 संघ मंडली लगाई जा रही हैं। इन शाखाओं, साप्ताहिक मिलनों एवं संघ मंडलियों में स्वयंसेवकों में राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव (राष्ट्र प्रथम) जागृत किया जाता है ताकि वे समाज में जाकर समाज की सज्जन शक्ति को साथ लेकर भारत में समाज परिवर्तन का कार्य दक्षतापूर्वक कर सकें। संघ की शाखा सामान्यतः 60 मिनट की लगती है एवं इसमें शारीरिक व्यायाम, योग, प्राणायाम, खेल, बौद्धिक एवं प्रार्थना शामिल रहती है। बौद्धिक में सनातन संस्कृति एवं भारत के गौरवशाली इतिहास की जानकारी के साथ साथ भारतीय संतो, महात्माओं एवं महापुरुषों की जानकारी प्रदान की जाती है। समय के साथ साथ संघ ने अपनी कार्यप्रणाली में परिवर्तन भी किया है एवं कई नए आयाम एवं कार्य अपने साथ जोड़े हैं। जैसे समाज के किन किन क्षेत्रों में क्या क्या काम करना है यह संघ के स्वयंसेवकों को बहुत स्पष्ट रूप से सिखाया जाता है। संगठन श्रेणी के साथ ही संघ में जागरण श्रेणी भी कार्यरत है। संगठन श्रेणी में शाखाओं के विस्तार, इसे सुचारू रूप से चलाने सम्बंधी कार्य, स्वयसेवकों का प्रशिक्षण एवं गुणवत्ता विकास आदि कार्य शामिल रहते हैं जबकि जागरण श्रेणी में समाज में जाकर किन क्षेत्रों में जागरण करना है, का निर्धारण किया जाकर इस क्षेत्र में स्वयसेवकों द्वारा कार्य किया जाता है। जैसे वर्तमान में जागरण श्रेणी में शामिल कार्य हैं – सेवा, सम्पर्क एवं प्रचार सम्बंधी कार्य। इसके अलावा 6 गतिविधियां भी हैं जो स्वयसेवकों द्वारा समाज के सहयोग से चलाई जाती हैं। इनमे शामिल हैं – धर्म जागरण समन्वय, गौ सेवा, ग्राम विकास, कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता एवं पर्यावरण संरक्षण।      22 जनवरी 2024 को अयोध्या धाम में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर में श्रीराम लला के श्रीविग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व दिनांक 1 से 15 जनवरी 2024 तक श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र के आह्वान पर संघ के स्वयंसेवकों एवं समाज के विविध संस्थानों तथा संगठनों के कार्यकर्ताओं द्वारा चलाया गया गृह सम्पर्क अभियान अभूतपूर्व सफल रहा था। देश के समस्त प्रांतों के 578,778 गांवों एवं 4727 नगरों के कुल 19.38 करोड़ से अधिक परिवारों से स्वयंसेवकों सहित 44.98 लाख से अधिक व्यक्तियों ने सम्पर्क किया था। यह भारतीय समाज में संघ की गहरी पहुंच और समाज में उसकी स्वीकार्यता को दर्शाता है।  संघ के 40 से अधिक अनुशांगिक संगठन भी भारत में विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं, जो हिंदू सनातन संस्कृति एवं भारतीय परम्पराओं के आधार पर समाज में अपने कार्य को आगे बढ़ाते हैं। विश्व में वामपंथी विचारधारा के आधार पर चल रहे विभिन्न मजदूर संगठन अपने श्रमिक सदस्यों को संस्थान के केवल लाभ में हिस्सा लेने की प्रेरणा देते हैं और अपनी मजदूरी में वृद्धि के लिए अक्सर हड़ताल आदि का सहारा लेते हैं। उद्योग संस्थान में हड़ताल होने से न केवल उस विशेष उद्योग संस्थान का बल्कि देश की अर्थव्यवस्था का भी नुक्सान होता है।जबकि, भारतीय मजदूर संघ, जो कि संघ का ही एक अनुशांगिक संगठन है, अपने श्रमिक सदस्यों को हड़ताल करने के लिए निरुत्साहित करता है और उसका नारा है कि ‘संस्थान के लिए करेंगे पूरा काम और काम के लेंगे पूरे दाम’। यह अंतर है वामपंथी विचारधारा और राष्ट्रीय विचारधारा के संगठनों में। इसी प्रकार संघ के अन्य अनुशांगिक संगठनों में शामिल हैं – (1) सेवा के क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठन – आरोग्य भारती, राष्ट्रीय सेवा भारती, भारत विकास परिषद, राष्ट्रीय चिकित्सा संस्थान, आरोग्य भारती,  सक्षम (दिव्यांग नागरिकों के लिए), दीन दयाल शोध संस्थान। (2) सामाजिक संगठन – विश्व हिंदू परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम, जनजाति सुरक्षा मंच, क्रीड़ा भारती, राष्ट्रीय सेविका समिति। (3) शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठन – विद्या भारती, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय शिक्षण मंडल, अखिल भारतीय शेक्षिक महासंघ, संस्कृत भारती, शिक्षा संस्कृत उत्थान न्यास। (4) आर्थिक क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठन – भारतीय किसान संघ, लघु उद्योग भारती, भारतीय मजदूर संघ, स्वदेशी जागरण मंच, सहकार भारती, ग्राहक पंचायत। (5) वैचारिक समूह में कार्य करने वाले संगठन – प्रज्ञा प्रवाह, विज्ञान भारती, संस्कार भारती, इतिहास संकलन, साहित्य परिषद, अधिवक्ता परिषद। (6) सुरक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठन – सीमा जागरण मंच, हिंदू जागरण मंच, अखिल भारतीय रक्षा परिषद। उक्त समस्त संगठनों को पूर्ण स्वायत्तता प्रदत्त है एवं संघ की ओर से किसी भी प्रकार का बंधन इन संगठनों पर नहीं रहता है। हां, इन संगठनों की कार्य प्रणाली को भारतीय संस्कारों के अनुरूप ढालना आवश्यक रहता है।   अपने आचरण, आचार विचार एवं कार्य पद्धति के आधार पर भारतीय मूल के नागरिक हिंदू सनातन संस्कृति के संवाहक के रूप में अन्य कई देशों में कार्यरत हैं एवं वहां निवास कर रहे हैं और इन देशों की अर्थव्यवस्था में अपने योगदान को दिनोदिन मजबूती प्रदान कर रहे हैं। इन देशों के विभिन्न क्षेत्रों यथा सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आदि में भारतवंशियों के योगदान को इन देशों मूल नागरिकों ने पहचाना एवं स्वीकारा है। इसके चलते लाखों की संख्या में विदेशी मूल के नागरिक हिंदू सनातन संस्कृति की ओर आकर्षित हुए हैं एवं अब ऐसा माना जाने लगा है कि हिंदू सनातन संस्कृति पूरे विश्व में भविष्य का विश्व धर्म होने जा रही है। अतः आज विश्व के 53 देशों में “हिंदू स्वयंसेवक संघ” की स्थापना की जा चुकी है एवं इन देशों में 1480 शाखाएं  एवं 112 मिलन चलाए जा रहे हैं। हाल ही में आस्ट्रेलिया एवं अमेरिका के कई नगरों में संघ शिक्षा वर्ग आयोजित किए गए थे तथा इसी प्रकार विश्व के अन्य देशों को मिलाकर कुल 17 हिंदू हेरिटेज कैम्प भी आयोजित किए गए थे। अमेरिका में सेवा दीवाली बहुत धूमधाम से मनाई जाती है, इस शुभ मौके पर स्थानीय गरीब वर्ग को उपहार प्रदान किए जाते हैं।        पूरे विश्व में आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को विश्व का सबसे बड़ा संगठन माना जाता है जो पिछले 99 वर्षों से सतत रूप से हिंदू सनातन संस्कृति एवं भारतीय परम्पराओं तथा संस्कारों का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए  मां भारती की सेवा में अपने आप को समर्पित किए हुए है। आज समाज की सज्जन शक्ति संघ की विचारधारा के अनुरूप सोचने लगी है अतः विभिन्न श्रेणी विशेष के नागरिक यथा चिकित्सक, शिक्षक, प्रोफेसर, अभिभाषक, श्रमिक, सेवा निवृत्त अधिकारी एवं कर्मचारी, युवा उद्यमी आदि बड़ी संख्या में संघ के साथ जुड़ रहे हैं एवं समाज परिवर्तन में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। आज भारत में विभिन्न मत पंथ को मानने वाले नागरिकों के बीच यदि आपस में भाईचारा स्थापित होता है तो निश्चित ही मां भारती को उसके पुराने वैभव को प्राप्त करने से कोई रोक नहीं सकता है। यही संघ का मुख्य लक्ष्य भी है।   

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