आर्थिकी लेख वित्तीयवर्ष 2024 में भारत की आर्थिक विकास दर का सही आंकलन नहीं कर पा रहे हैं विदेशी वित्तीय संस्थान January 17, 2024 / January 17, 2024 | Leave a Comment वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद के बारे में विदेशी वित्तीय संस्थान अभी भी व्यावहारिक रूख नहीं अपना पा रहे हैं। विभिन्न वित्तीय संस्थानों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत की आर्थिक विकास दर 6 से 6.5 प्रतिशत रह सकती है। जबकि वित्तीय वर्ष 2023-24 की प्रथम तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 7.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है और द्वितीय तिमाही में 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। आगामी दो तिमाही में भारत की आर्थिक विकास दर यदि 5.5 प्रतिशत भी रहती है तो यह पूरे वित्तीय वर्ष के लिये 6.5 प्रतिशत से ऊपर रहने वाली है। परंतु, केंद्र सरकार एवं कुछ राज्य सरकारों द्वारा किए जा रहे पूंजीगत खर्चों, ग्रामीण इलाकों के बढ़ रही उत्पादों की मांग, विभिन्न कम्पनियों की लगातार बढ़ रही लाभप्रदता, वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण एवं प्रत्यक्ष कर संग्रहण में वृद्धि दर को देखते हुए इस बात की प्रबल सम्भावना है कि आगामी दो तिमाही में भारत की विकास दर निश्चित रूप से 5.5 प्रतिशत से अधिक रहने वाली है। इस प्रकार वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत की आर्थिक विकास दर 7 प्रतिशत से ऊपर रहने की प्रबल संभावनाएं बनती दिखाई दे रही हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक के अनुमानों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 6.3 प्रतिशत की वृद्धि दर रह सकती है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इकरा के अनुसार यह 6.5 प्रतिशत, एशिया विकास बैंक एवं बार्कलेस एवं प्राइस वॉटर कूपर्स के अनुसार यह 6.7 प्रतिशत, डेलाईट इंडिया द्वारा यह 7 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। इसके विपरीत विभिन्न भारतीय वित्तीय संस्थान भारत की विकास दर के बारे में लगातार अपने अनुमानों को सुधारते हुए इसे पूरे वित्तीय वर्ष के लिए 7 प्रतिशत से अधिक बता रहे हैं। आर्थिक अनुसंधान विभाग, भारतीय स्टेट बैंक द्वारा वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत की आर्थिक विकास दर 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है, भारतीय रिजर्व बैंक ने भी इसके 7 प्रतिशत से अधिक रहने की सम्भावना जताई है तथा अभी हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकीय संस्थान द्वारा इसके 7.3 प्रतिशत रहने की सम्भावना जताई गई है। दरअसल, अभी हाल ही के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था के बहुत तेजी से डिजिटलीकरण हुआ है। प्रत्यक्ष सुविधा हस्तांतरण योजना (डीबीटी) के अंतर्गत भारतीय नागरिकों के 50 करोड़ से अधिक जमा खाते विभिन्न बैकों में खोले गए हैं। इन जमा खातों के खुलने से भारत के इन नागरिकों का वित्तीय रिकार्ड बनता जा रहा है। उदाहरण के लिए, एक चाय वाला यदि दिन भर में चाय के 200 कप, 10 रुपए प्रति कप की दर से बेचता है तो वह दिन भर में 2000 रुपए की आय का अर्जन कर लेता है। भारत में लगातार बढ़ रहे डिजिटलीकरण के चलते वह दुकानदार अपने ग्राहकों से चाय के एवज में नकद रोकड़ राशि न लेकर अपने खाते में सीधे यह राशि जमा कराता है। उसके बैंक खाते में प्रति माह 60,000 रुपए की राशि जमा हो जाती है एवं पूरे वर्ष भर में 720,000 रुपए की उसके बैंक खाते में जमा हो जाती है। इससे, उस दुकानदार का क्रेडिट रिकार्ड बनता जा रहा है। एक चाय वाला दुकानदार यदि साल भर में 720,000 रुपए की बिक्री कर लेता है तो उसके इस रिकार्ड को बैंक द्वारा अच्छा रिकार्ड मानते हुए उसे ऋण प्रदान करने हेतु पात्र ग्राहक मानते हुए उसके व्यापार को और आगे बढ़ाने के उद्देश्य से आसानी से उस दुकानदार को ऋण प्रदान कर दिया जाता है। इस प्रकार, कई सूक्ष्म आकार के व्यवसायी लघु एवं मध्यम आकार के व्यवसायी बनते जा रहे हैं। छोटे छोटे व्यापारियों के व्यवसाय का आकार बढ़ने के कारण यह व्यवसायी रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित करने में सफल हो रहे हैं। दूसरे, भारत में धार्मिक पर्यटन में जबरदस्त उच्छाल देखने में आ रहा है। वाराणसी में भगवान शिव का कोरिडोर बनने के बाद से वाराणसी में 7 करोड़ से अधिक श्रद्धालु प्रभु शिव के दर्शन करने हेतु पहुंचे हैं। इसी प्रकार उज्जैन में महाकाल लोक के बनने के बाद से उज्जैन नगर में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या कई गुणा बढ़ गई है। गुजरात में सरदार वल्लभ भाई पटेल की आदम कद भव्य प्रतिमा स्थापित होने के बाद से उस स्थल पर प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में पर्यटक पहुंच रहे हैं। इसी प्रकार, हरिद्वार, वृंदावन, तिरुपति बालाजी, वैष्णो देवी आदि धार्मिक स्थलों के दर्शन करने हेतु करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु प्रतिवर्ष इन स्थलों पर धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से पहुंचते हैं। अभी हाल ही में अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह एवं लक्षद्वीप को भी पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जा रहा है। इससे न केवल भारत से बल्कि विदेशों से भी पर्यटकों की संख्या में अपार वृद्धि होने जा रही है। किसी भी देश में पर्यटन के बढ़ने से छोटे छोटे व्यवसाय, होटेल एवं परिवहन आदि जैसे क्षेत्रों में कार्य करने वाले व्यापारियों के व्यवसाय में अपार वृद्धि होती है एवं इन क्षेत्रों में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित होते हैं। इससे भी देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि होती है। तीसरे, यह भी केवल भारत की ही विशेषता है कि विभिन त्यौहारों एवं शादी जैसे समारोहों पर भारतीय नागरिक दिल खोलकर पैसा खर्च करते हैं। इससे त्यौहारों एवं शादी के मौसम में व्यापार के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापार में अतुलनीय वृद्धि दृष्टिगोचर होती है। जैसे दीपावली त्यौहार के समय भारत में नागरिकों के बीच विभिन्न नए उत्पादों की खरीद के लिए जैसे आपस में होड़ सी लग जाती है। भारत में लाखों करोड़ रुपए का व्यापार दीपावली त्यौहार के समय में होता है। इसी प्रकार की स्थिति शादियों के मौसम में भी पाई जाती है। संभवत: विदेशी वित्तीय संस्थान भारत में हो रहे इस तरह के उक्त वर्णित परिवर्तनों को समझ नहीं पा रहे हैं एवं केवल पारंपरिक विधि से ही सकल घरेलू उत्पाद को आंकने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए भारत की विकास दर के संबंच में विभिन्न विदेशी संस्थानों के अनुमान गलत साबित हो रहे हैं। प्रहलाद सबनानी Read more »
आर्थिकी लेख भारतीय नागरिकों के बीच कम हो रही है आय की असमानता January 16, 2024 / January 16, 2024 | Leave a Comment भारत के बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि विशेष रूप से कोरोना महामारी के बाद से भारत के आर्थिक क्षेत्र में K आकार का विकास हो रहा है। आर्थिक दृष्टि से K आकार के विकास से आश्य यह है कि देश की अर्थव्यवस्था में गरीब अधिक गरीब हो रहा है और अमीर और अधिक अमीर हो रहा है। हालांकि हाल ही के समय में भारत में आय, बचत, उपभोग एवं खर्च आदि के सम्बंध में इस प्रकार की नीतियां बनाई जाती रही हैं कि देश के गरीब वर्ग को अधिकतम लाभ मिले। इसके लिए कई विशेष योजनाएं, जैसे, गरीब अन्न कल्याण योजना, उज्जवला योजना, आयुषमान भारत योजना, आवास योजना एवं प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना आदि चलाई जा रही हैं। इन योजनाओं के अंतर्गत सब्सिडी आदि की राशि लाभार्थियों के खातों में सीधे ही हस्तांतरित कर दी जाती है। इससे गरीब वर्ग के लाभार्थियों को सहायता की राशि 100 प्रतिशत तक मिल जाती है और इसमें भ्रष्टाचार की सम्भावना लगभग शून्य हो जाती है। भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग द्वारा भारत के आयकर विभाग द्वारा जारी किए गए आयकर विवरणियों सम्बंधी आंकड़ों का गहराई से विश्लेषण करते हुए यह बताया है कि भारत में नागरिकों के बीच आय की असमानता कम हो रही है। देश में वित्तीय वर्ष 2014 में व्यक्तिगत आयकर रिटर्न फाइल करने वाली कुल संख्या में 36.3 प्रतिशत संख्या निम्न आय वर्ग की श्रेणी के नागरिकों की थी, और यह वर्ग अब वित्तीय वर्ष 2021 में मध्यम आय वर्ग की श्रेणी में आ गया है तथा इस बीच इस वर्ग की आय 21.1 प्रतिशत बढ़ी है। इस कारण के चलते 3.5 लाख रुपए वार्षिक आय वाले नागरिकों की संख्या वित्तीय वर्ष 2014 में 31.8 प्रतिशत से घटकर वित्तीय वर्ष 2021 में 15.8 प्रतिशत रह गई है। इसी प्रकार, सबसे अधिक आयकर अदा करने वाले 2.5 प्रतिशत नागरिकों का कुल आय में योगदान 2.81 प्रतिशत से घटाकर 2.28 प्रतिशत हो गया है। अतः देश में मध्यम आय वर्ग के नागरिकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। आय कर दाखिल करने वाले नागरिकों की प्रति व्यक्ति औसत आय वित्तीय वर्ष 2014 में 3.1 लाख रुपए से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2021 में 11.6 लाख रुपए हो गई है और वित्तीय वर्ष 2022 में यह 12.5 से 13 लाख रुपए के बीच रहने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। भारत के आर्थिक विकास में भारतीय महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ रही है। कुल श्रमिक तंत्र में महिलाओं की संख्या 2017-18 में 23.3 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 37 प्रतिशत हो गई है। महिलाएं आज कृषि के क्षेत्र में भी अपना योगदान लगातार बढ़ाती जा रही हैं। आयकर विवरणियां फाइल करने में भी महिलाओं की संख्या अब 15 प्रतिशत हो गई है। भारत में लगातार तेज गति से हो रही आर्थिक प्रगति के चलते आज भारत में दोपहिया वाहनों की तुलना में चार पहिया वाहनों के बिक्री में अधिक वृद्धि दर हासिल हो रही है। वित्तीय वर्ष 2019 में 2.12 करोड़ दोपहिया वाहनो बिक्री हुई थी, जबकि उस वर्ष कृषि क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद में केवल 2.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी और मानसून में भी लगभग 14 प्रतिशत की कमी रही थी। वर्तमान वित्तीय वर्ष में दोपहिया वाहनों की बिक्री 1.8 करोड़ की रही है। इसके पीछे मुख्य कारण यह बताया जा रहा है कि एक तो मध्यम वर्ग अपने लिए मकानों की खरीद अधिक मात्रा में कर रहा है और दूसरे मध्यम वर्ग आज दोपहिया वाहनों के स्थान पर चार पहिया वाहन खरीदने की ओर आकर्षित हुआ है। इसी प्रकार, आज अर्द्धशहरी क्षेत्रों में लगभग 2 करोड़ परिवार खाद्य पदार्थों को खरीदेने हेतु “जोमटो ऐप” का उपयोग कर रहे हैं। अतः आज भारत के मध्यम वर्ग का टेस्ट बदल रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था में नागरिकों का उक्त व्यवहार यदि आगे आने वाले समय में भी जारी रहता है तो एक अनुमान के अनुसार, अगले दशक की समाप्ति पर 50 प्रतिशत उत्पादों का उपभोग (लगभग 16 लाख करोड़ रुपए) गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले नागरिकों में से 90 प्रतिशत नागरिको द्वारा किया जाने लगेगा। आज गरीब वर्ग को केंद्र सरकार द्वारा बहुत बड़े स्तर पर मुफ्त अनाज, मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं एवं मकान आदि उपलब्ध कराए जा रहे हैं (अभी तक 4 करोड़ परिवारों को रहने के लिए मकान उपलब्ध कराए जा चुके हैं), जिसके कारण इस वर्ग की 8.2 लाख करोड़ रुपए के अतिरिक्त उपभोग कर सकने की क्षमता बढ़ी है। वित्तीय वर्ष 2013-14 से वित्तीय वर्ष 2021-22 के बीच 5 लाख से 10 लाख रुपए की आय वाले वर्ग में आय कर विवरणियां फाइल करने वाले नागरिकों की संख्या 295 प्रतिशत से बढ़ी है। इसी प्रकार, 10 लाख रुपए से 15 लाख रुपए की आय वाले वर्ग में आय कर विवरणियां फाइल करने वाले नागरिकों की संख्या 291 प्रतिशत से बढ़ी है। वित्तीय वर्ष 2022 में 7 करोड़ नागरिकों द्वारा आय कर विवरणियां फाइल की गई थी, यह संख्या वित्तीय वर्ष 2023 में बढ़कर 7.4 करोड़ हो गई और अब वित्तीय वर्ष 2024 में 8.5 करोड़ हो जाने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। यह संख्या देश में औपचारिक क्षेत्र में कुल श्रमिकों की संख्या का 37 प्रतिशत है। पारम्परिक रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली एवं कर्नाटक राज्यों से आयकर विवरणियां फाइल करने वाले नागरिकों की संख्या अधिक रहा करती थी परंतु अब कुछ नए राज्य तेजी से इन राज्यों को पीछे छोड़ने के प्रयास में आगे बढ़ रहे हैं। इनमे प्रथम स्थान पर उत्तर प्रदेश राज्य है। इसके बाद आंध्र प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश एवं हरियाणा राज्य आते हैं। अब इन राज्यों से भी आय कर विवरणियां फाइल करने वाले नागरिकों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। व्यक्तिगत आय कर अदा करने वाले नागरिकों के अतिरिक्त सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी की इकाईयों में भी लगभग इसी प्रकार के परिवर्तन दिखाई दिए हैं। वित्तीय वर्ष 2014 से वित्तीय वर्ष 2021 के बीच सूक्ष्म आकार की 19.5 प्रतिशत इकाईयों की आय बहुत तेज गति से बढ़ी है और अब सूक्ष्म आकार की ये इकाईयां छोटी, मध्यम एवं बड़ी श्रेणी की इकाईयों में परिवर्तित हो गई हैं। इन सूक्ष्म इकाईयों में से 4.8 प्रतिशत इकाईयां छोटी श्रेणी की इकाईयों में, 6.1 प्रतिशत इकाईयां मध्यम श्रेणी की इकाईयों में एवं 9.3 प्रतिशत इकाईयां बड़ी श्रेणी की इकाईयों में परिवर्तित हो गई हैं। विशेष रूप से भारत में उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना के लागू होने के बाद से सूक्ष्म आकार की इकाईयां, छोटे आकार, मध्यम आकार एवं बड़े आकार की इकाईयों में परिवर्तित होती जा रही हैं। हाल ही के समय में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी की इकाईयों को बैंकों द्वारा प्रदान किए गए ऋण की राशि में भी अभूतपूर्व वृद्धि देखने में आई है। वित्तीय वर्ष 2023 में उक्त वर्ग की इकाईयों के 2.13 करोड़ खातों में 22.6 लाख करोड़ रुपए का ऋण प्रदान किया गया था और जो औसत रूप से प्रति ऋण खाता लगभग 10.6 लाख रुपए बैठता है। प्रहलाद सबनानी Read more » Income inequality among Indian citizens is decreasing
लेख भारत को भारत बनाएं – चलें गांव की ओर January 11, 2024 / January 11, 2024 | Leave a Comment प्राचीन काल में भारत का पूरे विश्व में साम्राज्य था। आज ऐसे कई प्रमाण मिल रहे हैं, जिससे सिद्ध हो रहा है कि सनातन संस्कृति का अनुपालन करने वाले लोग इंडोनेशिया तक फैले थे। यह तो हम सब जानते ही हैं कि अफगनिस्तान, ईरान, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, बांग्लादेश अखंड भारत का ही हिस्सा रहे हैं। आज एक बार पुनः वैश्विक स्तर पर कई देशों का भारत की सनातन संस्कृति की ओर विश्वास बढ़ रहा है क्योंकि ये देश विभिन्न प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त हैं और उनकी इन समस्याओं का हल ये देश निकाल नहीं पा रहे हैं। प्रत्येक भारतीय वसुद्धैव कुटुम्बकम की भावना पर भरोसा करता है अतः पूरे विश्व को ही अपने कुटुंब का हिस्सा मानते हुए चलता है। और, यह भावना हाल ही में पूरे विश्व ने देखी भी है। कोरोना महामारी के दौरान भारत में भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के कर्मचारियों के अतिरिक्त समाज से भी लाखों लोग घर से बाहर निकले एवं समाज में कोरोना बीमारी से ग्रसित नागरिकों की सेवा की। यह केवल भारत में ही हुआ है, विश्व में अन्य देशों के बीच इस प्रकार की भावना नहीं देखी गई थी। और तो और, भारत ने विभिन्न देशों में दवाईयों एवं टीकों को पर्याप्त मात्रा में पहुंचाया भी। भारत की वास्तविक जीवन दृष्टि यही रही है। इस जीवन दृष्टि के चलते भारत को अन्य देशों से कुछ अलग माना जाता है। भारतीय एक दूसरे के साथ आत्मीय सम्बंध स्थापित करते हैं। प्रत्येक भारतीय की नजर में चर और अचर दोनों में ईश्वर व्याप्त है। इसीलिए भारत के नागरिक पूरे विश्व को आपस में जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। अनेकता में एकता, यह भारत की दृष्टि है। भारत में अनेकता को भी एक त्यौहार की तरह देखा जाता है। केवल भारत में ही इस्लाम के समस्त फिर्के, इसाईयों के विभिन्न मत, पारसी, यहूदी आदि भी बड़ी मात्रा में भारत के अन्य समाज बन्धुओं के साथ भाईचारा रखते हुए खुशी खुशी निवास करते हैं। दरअसल, भारत समाज आधारित इकाई है, पश्चिम की तरह यह राज्य आधारित इकाई नहीं है। यह भी केवल भारत की विशेषता है कि विदेशों में पले बढ़े, रचे बसे भारतीय मूल के नागरिक भारी संख्या में भारत वापिस आकर यहां पुनः भारत के ही बन जाते हैं। इनमें से भारतीय मूल के कई नागरिक तो अपने शेष बचे जीवन को जीने के लिए भारत के गांवों को चुनते हैं। भारत के गांवों में नैसर्गिक जीवन है। गांवों में निवास कर रहे नागरिकों के बीच आपस में प्रतिस्पर्धा नहीं है। आज भारत के गांव पक्की सड़कों के माध्यम से शहरों के साथ जुड़ गए हैं। 24 घंटे बिजली उपलब्ध रहती है। इंटरनेट जैसी समस्त आधुनिक सुविधाएं भी भारतीय गावों में उपलब्ध हैं। कुल मिलाकर आज भारत के गांवों में समस्त प्रकार की आधारभूत संरचना विकसित हो चुकी है। गांवों में तुलनात्मक रूप से खर्च भी कम होता है। इसके ठीक विपरीत आज शहरों पर अत्यधिक जनसंख्या का दबाव है एवं शहरों का पर्यावरण बिगड़ रहा है। पश्चिमी सभ्यता ने मानव जाति का सबसे अधिक नुक्सान किया है। आर्थिक विकास के नाम पर नागरिकों के आपसी भाईचारे को खत्म किया है। प्रत्येक नागरिक केवल अपने बारे में ही सोचता है और चाहता है कि मैं जल्दी से जल्दी किस प्रकार अमीर बनूं, चाहे इसके लिए उसे कुछ गलत कार्य भी क्यों न करना पड़े। कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए खाद एवं बीज के नाम पर रासायनिक पदार्थों का उपयोग अत्यधिक मात्रा में किया गया है, इससे जमीन बांझ बन गई है। आज पूरे विश्व में किसान जैविक खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं एवं जैविक खेती के माध्यम से उगाए गए फल, सब्जियां महंगे दाम पर भी खरीदने को नागरिक लालायित हो रहे हैं। प्राचीन काल में भारत में कृषि कार्य केवल जैविक खेती के माध्यम से ही क्या जाता था। इसलिए उस खंडकाल में नागरिक बीमारियों से ग्रस्त भी नहीं होते थे। नागरिक ग्रामों में ही हृष्ट पुष्ट, स्वस्थ एवं हंसी खुशी से आपसी भाईचारे से रहते थे।अन्य देशों के साथ साथ आज भारतीय शहरों में भी ग्रामीण नागरिकों के बीच पाई जाने वाली विशेषताओं का अभाव दिखाई देता है। उक्त कारणों के बीच यदि भारत को एक बार पुनः भारत बनाना है तो हमें गांवों की ओर लौटना होगा। इसकी शुरुआत शहरों में रह रहे युवाओं द्वारा की जा सकती है। आज भारत का युवा तकनीक के क्षेत्र में बहुत आगे निकाल आया है। वे यदि शहरों के स्थान पर अपनी विनिर्माण इकाईयों की स्थापना ग्रामों में करते हैं तो इससे ग्रामीण आबादी का शहरों की ओर पलायन रुकेगा क्योंकि रोजगार के अवसर ग्रामीण इलाकों में ही निर्मित होंगे। ग्रामों में रहकर नैसर्गिक जीवन का आनंद भी उठाया जा सकेगा। प्राचीन भारत में भी छोटे छोटे उद्योग ग्रामीण इलाकों में स्थापित किए जाते थे और उत्पादित वस्तुओं का बाजार भी इन्हीं इलाकों में आसानी से उपलब्ध रहता था। इसके कारण वस्तुओं के दाम तो बढ़ते ही नहीं थे बल्कि उत्पादों की पर्याप्त उपलब्धता के चलते वस्तुओं के दाम सदैव नियंत्रण में रहते थे और कई बार तो कम ही होते रहते थे। मुद्रा स्फीति की समस्या प्राचीन भारत में थी ही नहीं। युवा वर्ग के ग्रामों की ओर रूख करने से ग्रामीण नागरिकों के शिक्षा के स्तर को सुधारा जा सकता है। स्वास्य सेवाओं को सुधारा जा सकता है। यदि 10 ग्रामों के एक समूह में एक भी अच्छा डॉक्टर उपलब्ध हो जाता है तो कम से कम इस समूह के ग्रामीणों की स्वास्थ्य सेवाओं में तो सुधार होने ही लगेगा। आज गांवों से नागरिकों को अपने इलाज के लिए शहरों की ओर रूख करना होता है। अच्छे युवा डॉक्टरों को गांवों की ओर मुड़ना चाहिए। असली भारत तो आज भी गांवों में ही बसा है। भारत की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी आज भी ग्रामों में ही निवास करती है। आज की युवा पीढ़ी ग्रामों की ओर रूख करने के सम्बंध में गम्भीरता से विचार करे। भारत में कार्य कर रही विभिन्न आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थानों को भी इस ओर विशेष ध्यान देने की आज आवश्यकता है। देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान केवल 16 प्रतिशत के आसपास रहता है जबकि देश की 60 प्रतिशत आबादी ग्रामों में निवास कर रही है। इस वर्ग की प्रति व्यक्ति आय तुलनात्मक रूप से बहुत कम है। इस वर्ग को यदि मध्यम वर्ग में बदला जा सके तो भारत में ही उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ने लगेगी इससे देश के आर्थिक विकास को पंख लग सकते हैं। भारत की युवा पीढ़ी के विशेष रूप के वे नागरिक जो विदेश में अपनी पढ़ाई सम्पन्न कर भारत लौटे हैं एवं वे भारत में अपना नया कारोबार प्रारम्भ करना चाहते हैं, उन्हें अपना नया कारोबार भारत के गांवों में प्रारम्भ करने के बारे में गम्भीरता से विचार करना चाहिए। इससे भारत को पुनः भारत बनाने में बहुत बड़ी मदद मिलेगी। ऐसा कहा भी जाता है कि भारत की आत्मा आज भी गांवों में ही निवास करती है। युवा उद्यमी यदि गांव की ओर रूख करेंगे तो निश्चित ही भारत के आर्थिक विकास को अगले लेवल पर पहुंचाया जा सकेगा, और भारत की आर्थिक विकास दर 10 प्रतिशत से भी आगे निकल सकती है। Read more »
आर्थिकी राजनीति वैश्विक बाजार शक्तियां भारत के बैकिंग, बीमा क्षेत्र एवं शेयर बाजार को प्रभावित करने के प्रयासों में रही हैं असफल January 8, 2024 / January 8, 2024 | Leave a Comment भारत की आर्थिक प्रगति कुछ विघन संतोषी देशों, विशेष रूप से चीन एवं पाकिस्तान, को रास नहीं आ रही है। हालांकि भारत के कुछ मित्र बने देश भी कभी कभी भारत विरोधी इस मुहिम में शामिल पाए जाते हैं। कुल मिलाकर वैश्विक बाजार शक्तियां आज सक्रिय हो चुकी हैं जो भारत की आर्थिक प्रगति को प्रभावित करने का भरपूर प्रयास कर रही हैं। भारत के सामाजिक ताने बाने को छिन्न भिन्न करने के साथ साथ भारत की सांस्कृतिक एकता पर भी प्रहार करने के प्रयास इन शक्तियों द्वारा किए जा रहे हैं, ताकि भारत की सामाजिक समरसता में छेद करते हुए भारत को आर्थिक क्षेत्र के साथ ही राजनैतिक रूप से भी अस्थिर किया जा सके। उक्त वर्णित परिस्थितियों के बीच भी चीन जैसे देशों की कुछ कम्पनियां एवं वैश्विक बाजार शक्तियां भारतीय बैंकिंग प्रणाली, बीमा प्रणाली एवं शेयर बाजार को भी प्रभावित करने के प्रयास करती रहती हैं। हाल ही में चीन की वीवो नामक एक कम्पनी ने भारत से भारी भरकम राशि को अनुचित तरीके से चीन के अपने प्रधान कार्यालय को हस्तांतरित किया है। इस भारी भरकम राशि पर टैक्स अदा न करते हुए मनी लौंडरिंग के माध्यम से उक्त राशि हस्तांतरित की गई है। इसकी कार्य प्रणाली को निम्न प्रकार बताया गया है। चीन की वीवो नामक एक कम्पनी जो स्मार्ट फोन का निर्माण करती है ने अपने कुल टर्नओवर का 50 प्रतिशत अर्थात 62,476 करोड़ रुपए की राशि को अवैध तरीके से चीन में अपने प्रधान कार्यालय को हस्तांतरित कर दिया है। इस कम्पनी द्वारा इस राशि पर भारतीय नियमों के अनुसार टैक्स का अपवंचन करते हुए टैक्स की राशि अदा नहीं की गई है। प्रवर्तन निदेशालय ने इस भारी भरकम राशि के गबन की विस्तार से जांच प्रारम्भ कर दी है एवं इस कम्पनी के कुछ मुख्य अधिकारियों को गिरफ्तार भी कर लिया है। प्रवर्तन निदेशालय ने कम्पनी के 119 खातों को ब्लाक कर दिया है, इन खातों में 495 करोड़ रुपए की राशि जमा है। वीवो कम्पनी ने भारत में 23 सहायक कम्पनियों की स्थापना की है। वीवो कम्पनी का मत है कि चूंकि उसकी कुछ सहायक कम्पनियां हानि दर्शा रही थीं अतः इन कम्पनियों द्वारा दर्शाई जा रही हानि के विरुद्ध वीवो कम्पनी के लाभ का समायोजन करते हुए टैक्स अदा नहीं किया गया है। जबकि इन सहायक कम्पनियों की स्थापना में भी कई प्रकार की गडबड़ियाँ पाई गईं हैं। विदेशी ताकतों द्वारा, इस प्रकार, भारत में व्यापार करते हुए कमाए गए लाभ पर देश के कानून के अनुसार, कर अदा न किया जाकर भारत के आर्थिक हितों को चोट पहुंचाई जा रही है। इसी प्रकार, अप्रेल 2023 माह में भी प्रवर्तन निदेशालय ने चीन की ही शाओमी नामक एक अन्य कम्पनी की 5,551 करोड़ रुपए की राशि को जब्त करने सम्बंधी कार्यवाही की थी, क्योंकि इस कम्पनी ने विदेशी विनिमय से सम्बंधित नियमों का उचित तरीके से पालन नहीं किया था। भारत में 45 विदेशी बैंक कार्यरत हैं, जबकि सरकारी क्षेत्र, निजी क्षेत्र के बैंकों, भुगतान बैंक एवं छोटे वित्त बैंकों की संख्या 137 है। परंतु, विदेशी बैंकों के भारत के समस्त बैकों की कुल जमाराशि में केवल लगभग 5 प्रतिशत का योगदान है और भारत के समस्त बैकों की कुल ऋणराशि में केवल 3.8 प्रतिशत का योगदान है। भारत के सरकारी क्षेत्र एवं निजी क्षेत्र के बैकों से विदेशी बैंक प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं पा रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक की सजगता के कारण विदेशी बैंकों को भारत में लागू कड़े नियमों का पालन करते हुए अपना बैकिंग व्यवसाय करना होता है, जो इन बैकों को शायद रास नहीं आता है। इसके परिणामस्वरूप एवं अपने व्यवसाय को विस्तार देने में असफल रहने के कारण, वर्ष 2022-23 में सिटी बैंक अपने कंजूमर बैंकिंग व्यवसाय को भारतीय एक्सिस बैंक को बेचने को मजबूर हुई थी। वर्ष 2021 में साऊथ अफ्रीका की बैंक फर्स्ट रांड ने भारत में अपने व्यवसाय को बंद कर दिया था तथा वर्ष 2016 में रोयल बैंक आफ स्कोटलैंड ने भी भारत में अपने व्यवसाय को बंद कर दिया था। वर्ष 2015-16 में एचएसबीसी ने भारत में अपनी कई शाखाओं को बंद कर दिया था। वर्ष 2012 में ब्रिटेन की एक बैंक बार्कलेस ने अपने रिटेल व्यवसाय को भारत में समाप्त कर दिया था। दरअसल आज भारत का बैकिंग, बीमा एवं शेयर बाजार क्षेत्र बहुत मजबूत स्थिति में पहुंच गया है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इन तीनों क्षेत्रों में क्रमशः भारतीय बैकिंग संस्थानों, भारतीय बीमा संस्थानों एवं भारतीय निवेशकों का बोलबाला है। विदेशी संस्थागत निवेशक यदि भारत के शेयर बाजार से विदेशी निवेश निकालते भी हैं तो भारतीय शेयर बाजार पर विपरीत प्रभाव लगभग नहीं के बराबर होता दिखाई देता है क्योंकि भारतीय संस्थागत निवेशक एवं विभिन्न भारतीय म्यूचूअल फंड विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार से निकाली गई राशि की भरपाई तुरंत शेयर बाजार में अपना निवेश बढ़ाकर कर ली जाती हैं। वरना, वैश्विक बाजार शक्तियां भारतीय शेयर बाजार को प्रभावित कर इसे नीचे गिराने के कोई कसर नहीं छोड़ती हैं। इसी प्रकार, बैंकिंग के क्षेत्र में भी आज भारत के सरकारी क्षेत्र एवं निजी क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी 95 प्रतिशत से अधिक है एवं बीमा के क्षेत्र में भारत के सरकारी क्षेत्र एवं निजी क्षेत्र के बीमा कम्पनियों की हिस्सेदारी लगभग 90 प्रतिशत है। दूसरे, भारत ने विदेशी कम्पनियों की भारतीय बैंकिंग कम्पनियों में हिस्सेदारी को 24 प्रतिशत तक सीमित किया हुआ है, हालांकि, भारतीय बीमा कम्पनियों में, विदेशी कम्पनियां 74 प्रतिशत तक का विदेशी निवेश कर सकती है। तीसरे, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विभिन्न वित्तीय संस्थानों से निगमित अभिशासन सम्बंधी नियमों का कड़ाई से पालन कराया जाना भी विदेशी बैकों एवं बीमा कम्पनियों पर लगाम लगाने में अपनी प्रभावी भूमिका अदा करता है। चीन जैसे देशों सहित वैश्विक बाजार शक्तियां भारत के वित्तीय क्षेत्र को अस्थिर करने के प्रयास तो लगातार करती तो हैं परंतु भारतीय बैंकिंग, बीमा एवं शेयर बाजार के नियामक संस्थानों की सजगता के चलते विदेशी वित्तीय संस्थानों सहित वैश्विक बाजार शक्तियां इन तीनों ही क्षेत्रों को प्रभावित करने में असफल ही रही हैं। प्रहलाद सबनानी Read more » Global market forces have failed in their attempts to influence India's banking insurance sector and stock market
लेख गाय पालन से देश के आर्थिक विकास को दी जा सकती है अतुलनीय गति January 4, 2024 / January 4, 2024 | Leave a Comment सनातन संस्कृति के अनुसार भारत में गाय को माता का दर्जा प्रदान किया गया है। माता अपने बच्चों का लालन पालन करती है, इसी प्रकार की संज्ञा गाय माता को भी दी गई है क्योंकि प्राचीन काल में भारत के ग्रामीण इलाकों में कई परिवारों का लालन पालन गाय माता के सौजन्य से ही होता रहा है। आज के खंडकाल में न्यूजीलैंड, डेनमार्क एवं स्विजरलैंड जैसे कुछ देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था को गाय के दूध से निर्मित विभिन्न डेयरी पदार्थों का भारी मात्रा में पूरे विश्व को निर्यात कर अपनी अर्थव्यवस्थाओं को विकसित श्रेणी की अर्थव्यवस्था में बदल दिया है। विश्व के एक कोने में बसा एक देश है न्यूजीलैंड, जिसकी कुल आबादी केवल 52 लाख है। इस देश का प्रत्येक नागरिक भारत के नागरिक से 25 गुना अधिक अमीर है। यह अलग थलग बसा हुआ देश है फिर भी इनके पास कुछ ऐसा है जो इन्हें इतना अमीर एवं विकसित देश बनाता है और वह पदार्थ है गाय माता का दूध। दुग्ध से निर्मित उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों में पहुंचाकर न्यूजीलैंड आज विकसित देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है। न्यूजीलैंड की अर्थव्यवस्था को केवल मानव नहीं बल्कि गाय माता भी चलाती है। न्यूजीलैंड में मानव से ज्यादा गाय की संख्या है। न्यूजीलैंड में गाय की कुल आबादी 61 लाख से अधिक है। भारत जनसंख्या की दृष्टि से आज विश्व में प्रथम स्थान पर पहुंच गया है और न्यूजीलैंड आकार में भारत से 12 गुना छोटा है एवं जनसंख्या की दृष्टि से 260 गुना छोटा है। परंतु, भारत केवल 597,000 टन डेयरी उत्पाद का निर्यात करता है और न्यूजीलैंड 18,772,000 टन डेयरी उत्पाद का निर्यात करता है। डेयरी उत्पाद के निर्यात से ही न्यूजीलैंड की अर्थव्यवस्था चलती है, इस देश के नागरिकों को अमीर बनाती है और देश को विकसित अवस्था में ले जाती है। न्यूजीलैंड में फोंटेरा नामक एक सबसे बड़ी कम्पनी है और यह कम्पनी कोआपरेटिव के क्षेत्र में किसानों द्वारा बनाई गई कम्पनी है। जिस प्रकार भारत में अमूल कम्पनी को विकसित किया गया है। न्यूजीलैंड की फोंटेरा नामक कम्पनी दुनियाभर के 30 प्रतिशत डेयरी उत्पाद का निर्यात करती है। इस कम्पनी के उत्पाद दुनिया के 140 देशों में बिकते हैं और यह कम्पनी 10,000 नागरिकों को सीधा रोजगार प्रदान करती हैं। पूरे विश्व में आज भारत सबसे अधिक दूध उत्पादन करने वाला राष्ट्र बन तो गया है। परंतु, दुग्ध पदार्थों से निर्मित उत्पादों का निर्यात करने में भारत आज भी बहुत अधिक पीछे है। भारत में प्रतिवर्ष 20.90 करोड़ टन दूध का उत्पादन हो रहा है। अमेरिका में 10.27 करोड़ टन, चीन में 4.12 करोड़ टन, ब्राजील में 3.66 करोड़ टन, जर्मनी में 3.32 करोड़ टन, रूस में 3.23 करोड़ टन, फ्रान्स में 2.58 करोड़ टन और न्यूजीलैंड में 2.19 करोड़ टन दूध का उत्पादन हो रहा है। पूरे विश्व में 100 करोड़ से अधिक पशुधन है और भारत में 30.8 करोड़, ब्राजील में 23.2 करोड़, चीन में 10.2 करोड़ एवं अमेरिका में 8.9 करोड़ पशुधन है। भारत में पशुधन से दूध निकालने की क्षमता बहुत कम है जबकि अन्य विकसित देशों में नई तकनीकी को अपनाए जाने के कारण इस क्षेत्र में उत्पादकता तुलनात्मक रूप से बहुत अधिक है। न्यूजीलैंड के कुल निर्यात में डेयरी उत्पादों के निर्यात का हिस्सा 23 प्रतिशत है। इसी प्रकार डेनमार्क की अर्थव्यवस्था भी डेयरी उत्पादों पर निर्भर है। डेनमार्क में कृषि के क्षेत्र से निर्यात किए जाने वाले उत्पादों में डेयरी उत्पादों का हिस्सा 20 प्रतिशत है। डेनमार्क से मक्खन, पनीर एवं अन्य डेयरी उत्पाद 150 देशों को भारी मात्रा में निर्यात किए जाते हैं। स्विजरलैंड में भी कुल कृषि उत्पाद में डेयरी उद्योग का हिस्सा 20 प्रतिशत है। ऐसा सामान्यतः कहा जाता है कि जो देश कृषि प्रधान होते हैं वे अन्य देशों जो उद्योग एवं सेवा क्षेत्र पर अधिक निर्भर होते हैं की तुलना में कम विकसित रहते हैं। परंतु, न्यूजीलैंड, डेनमार्क एवं स्विजरलैंड जैसे देशों के नागरिकों ने कृषि क्षेत्र पर अपनी निर्भरता बनाए रखते हुए और अधिकतम डेयरी उत्पादों के दम पर अपने देश को विकसित देश बना लिया है। न्यूजीलैंड की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान केवल 7 प्रतिशत है, परंतु न्यूजीलैंड से निर्यात किए जाने वाले प्रथम 10 उत्पादों में से 6 उत्पाद कृषि क्षेत्र से आते हैं, इनमे डेयरी उत्पादों का निर्यात सबसे अधिक है। कुल निर्यात का 60 प्रतिशत हिस्सा डेयरी उत्पाद सहित कृषि क्षेत्र से होता है। न्यूजीलैंड, डेनमार्क एवं स्विजरलैंड की अर्थव्यवस्था को गति देने में वहां के नागरिकों के साथ साथ गाय माता का भी अत्यधिक योगदान है। केवल गायों की संख्या अधिक होने से अर्थव्यवस्था को बल नहीं मिलता है। इन गायों को हृष्ट पुष्ट रखना भी आवश्यक है। यह तभी सम्भव है जब किसानों को गाय पालन के लिए प्रोत्साहित किया जाए। 200 वर्ष पूर्व तक न्यूजीलैंड में एक भी गाय नहीं थी। परंतु, न्यूजीलैंड में चारा भरपूर मात्रा में उपलब्ध था। चूंकि न्यूजीलैंड भी एक ब्रिटिश कोलोनी बन गया था, अतः न्यूजीलैंड में चारे की भरपूर उपलब्धि को देखते हुए ब्रिटेन से गायें लाकर यहां बसाई गई। इसके बाद से तो न्यूजीलैंड ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कालांतर में वहां गाय सहित पशुधन की संख्या अपार गति से बढ़ती गई। वर्ष 1900 आते आते रेफ्रिजरेटर के अविष्कार के बाद से तो न्यूजीलैंड डेयरी उत्पादों का निर्माण करने लगा, हालांकि इसके पूर्व इस देश की निर्भरत कृषि उत्पादों पर ही अधिक थी, इन कृषि उत्पादों को यूरोपीयन देशों को बेचा जाता था। प्रथम विश्व युद्धकाल के दौरान ब्रिटेन के सैनिकों को डेयरी उत्पादों की अत्यधिक आवश्यकता थी और ब्रिटेन ने न्यूजीलैंड में डेयरी उत्पादों के उत्पादन को बढ़ावा दिया, इसके बाद से तो यहां के डेयरी उत्पाद लगभग पूरे विश्व में ही बेचे जाने लगे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी न्यूजीलैंड ने भारी मात्रा में डेयरी उत्पादों का ब्रिटेन को निर्यात किया था। उस समय ब्रिटेन के सहयोग से न्यूजीलैंड से निर्यात होने वाले कुल उत्पादों में डेयरी उत्पाद एवं भेड़ों का हिस्सा 90 प्रतिशत तक पहुंच गया था। न्यूजीलैंड में निर्मित डेयरी उत्पादों के लिए ब्रिटेन एक भरोसेमंद सबसे बड़ा बाजार था जहां न्यूजीलैंड के उत्पादों को बाजार मूल्य भी अच्छा मिलता था क्योंकि ब्रिटेन को उस समय पर खाद्य पदार्थों की सख्त आवश्यकता थी। वर्ष 1955 में ब्रिटेन में न्यूजीलैंड के डेयरी उत्पादों का बाजार मूल्य कम होने लगा। इसके बाद न्यूजीलैंड के किसानों ने अपने डेयरी उत्पादों को बेचने के लिए नए बाजार की तलाश प्रारम्भ की। लेकिन इसके बाद से तो न्यूजीलैंड की आर्थिक स्थिति भी हिचकोले खाने लगी थी। परंतु, वर्ष 1984 आते आते न्यूजीलैंड में आर्थिक सुधार कार्यक्रम लागू किए गए। नागरिकों के लिए आय कर की दरें लगभग आधी, 66 प्रतिशत से 33 प्रतिशत कर दी गईं। कृषि क्षेत्र में विभिन्न उत्पादों को प्रदान की जाने वाली 4 प्रतिशत सब्सिडी को भी समाप्त कर दिया गया ताकि किसान अपने पैरों पर खड़े हो सकें एवं देश की आर्थिक स्थिति को सुधारा जा सके। न्यूजीलैंड के किसानों ने कृषि उत्पादों पर प्रदान की जाने वाली सब्सिडी को हटाए जाने की चुनौती को स्वीकार किया एवं न्यूजीलैंड के डेयरी उद्योग एवं ऊन के उद्योग को अपनी मेहनत के दम पर एवं सरकारी नीतियों के चलते फिर से खड़ा करने में सफलता अर्जित की। 1983 में लाए गए आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के बाद मीट एवं डेयरी उत्पादों पर मात्रा के बजाय गुणवत्ता पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में न्यूजीलैंड के उत्पादों को प्रतिस्पर्धी बनाया गया और एक बार पुनः पूरे विश्व में डेयरी उत्पादों के निर्यात के न्यूजीलैंड ने महारत हासिल कर ली। भारत के किसानों को भी इस संदर्भ में न्यूजीलैंड के किसानों द्वारा प्राप्त की गई उक्त सफलता से सीख लेनी चाहिए। आज भारत की देशी गाय के दूध की महिमा पूरा विश्व समझ रहा है। भारत में भी गौ संवर्धन और गौशालाओं का निर्माण किया जा रहा है। किंतु, गौ माता के प्रति श्रद्धा का नितांत अभाव दिखाई दे रहा है। भारत में एक बार पुनः गौ माता को ऊंचा स्थान देते हुए नई तकनीकी का उपयोग किया जाकर गाय के दूध के उत्पादों को पूरे विश्व में पहुंचाना होगा ताकि भारत के आर्थिक विकास को और अधिक गति मिल सके एवं भारत के ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अधिकतम अवसर निर्मित हो सकें। प्रहलाद सबनानी Read more »
आर्थिकी राजनीति भारत के लिए वर्ष 2024 भी सुनहरा वर्ष साबित होने जा रहा है January 3, 2024 / January 3, 2024 | Leave a Comment विश्व के कुछ देश वर्ष 2024 में मंदी की मार झेल सकते हैं, यह कुछ अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों का आंकलन है। परंतु, वैश्विक स्तर पर अर्थव्यस्था के गिरने की सम्भावनाओं के बीच एक देश ऐसा भी है, जिस पर समस्त अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों, विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक, की नजरें टिकी है, वह है भारत। भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति समस्त विदेशी वित्तीय संस्थान आशावान हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को अब भारत ही सहारा देने की क्षमता रखता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अभी हाल ही में एक प्रतिवेदन जारी किया है। इसमें भारत के प्रति मुख्य रूप से तीन बातें कही गई हैं। प्रथम, भारत आज विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। दूसरे, भारत का सकल घरेलू उत्पाद 6.3 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करेगा। तीसरे, वर्ष 2024 में वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद में भारत का योगदान 16 प्रतिशत का रहने वाला है। भारत आने वाले समय में पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था के विकास में एक इंजिन के रूप में अपना योगदान देने को तैयार है। भारत ने वर्ष 2023 में विश्व में कम होती विकास दर के बीच भी आकर्षक विकास दर हासिल की है। क्योंकि, भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में, विशेष रूप से आर्थिक क्षेत्र में, लगातार कई बड़े फैसले लिए हैं, जिनका प्रभाव अब भारतीय अर्थव्यवस्था पर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। एक तो भारत ने आर्थिक व्यवहारों का डिजिटलीकरण किया है और इस क्षेत्र में पूरे विश्व को ही राह दिखाई है, इससे आर्थिक व्यवहारों की न केवल निपुणता बढ़ी है बल्कि लागत भी बहुत कम हुई है। दूसरे, केंद्र सरकार ने देश में आधारभूत संरचना को विकसित करने के लिए भारी भरकम राशि का पूंजीगत खर्च किया है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में 7.50 लाख करोड़ रुपए की राशि इस मद पर खर्च की गई थी एवं वित्तीय वर्ष 2023-24 में 10 लाख करोड़ रुपए की राशि इस मद पर खर्च की जा रही है। भारत में सड़क, रेल्वे एवं स्वास्थ्य सेवाओं के विकास पर 12,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का पूंजीगत खर्च आगे आने वाले समय में किये जाने की योजना बनाई गई है। वर्ष 2017 से 2023 के बीच आधारभूत संरचना के विकास हेतु 70 लाख करोड़ रुपए की राशि का पूंजीगत खर्च किया गया था परंतु वर्ष 2024 से 2030 के बीच 143 लाख करोड़ रुपए की राशि का पूंजीगत खर्च किए जाने की योजना बनाई जा रही है। तीसरे, भारत में केंद्र सरकार ने गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले नागरिकों को कई योजनाओं के माध्यम से आर्थिक सहायता प्रदान करने की भरपूर कोशिश की है, जिसका परिणाम इस वर्ग की संख्या में भारी भरकम कमी के रूप में देखने को मिला है। और फिर, अब तो यह वर्ग मध्यम वर्ग की श्रेणी में शामिल होकर भारत में उत्पादों की मांग में वृद्धि करने में सहायक की भूमिका निभा रहा है, जिससे देश में ही विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में भारी वृद्धि हो रही है। इसी प्रकार, विश्व के सबसे बड़े ऑफिस काम्प्लेक्स का निर्माण भारत में गुजरात राज्य के सूरत शहर में किया गया है। इस ऑफिस काम्प्लेक्स में 4,500 से अधिक हीरा व्यवसाईयों के कार्यालय स्थापित किए गए हैं। इस काम्प्लेक्स में कच्चे हीरे के व्यापारियों से लेकर पोलिश हीरे की बिक्री करने वाली कम्पनियों के ऑफिस एक ही जगह पर स्थापित किए जाएंगे। सूरत डायमंड बोर्स बिल्डिंग के नाम से इस काम्प्लेक्स, जो 67 लाख वर्गफुट से अधिक के क्षेत्र में फैला है, का उद्घाटन दिसम्बर 2024 माह में भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा सम्पन्न हुआ है। यह काम्प्लेक्स अमेरिका के रक्षा विभाग पेंटागन के मुख्यालय भवन से भी बड़ा है, पेंटागन के मुख्यालय को आज तक विश्व में सबसे बड़ा भवन माना जाता रहा है। इस तरह के कई व्यावसायिक केंद्र भारत में विकसित हो रहे हैं। विश्व के अन्य देश मुद्रा स्फीति की समस्या से पिछले कुछ वर्षों से लगातार जूझते रहे हैं परंतु भारत ने इस समस्या पर भी नियंत्रण प्राप्त करने में सफलता हासिल की है। जुलाई 2023 में भारत में खुदरा महंगाई की दर 7.44 प्रतिशत थी जो अक्टोबर 2023 में घटकर 4.87 प्रतिशत पर नीचे आ गई है। अब तो शीघ्र ही भारतीय रिजर्व बैंक रेपो दर में कमी की घोषणा कर सकता है जिससे देश में ब्याज की दरें कम होना शुरू होंगी इससे निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था में और अधिक तेजी की सम्भावना बनेगी। आगे आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था को यदि किसी परेशानी का सामना करना पड़ता है तो वह आंतरिक समस्या न होकर वैश्विक स्तर की समस्या के कारण होगी। क्योंकि, कुछ देशों, विकसित देशों सहित में मंदी की सम्भावनाएं बन रही हैं। दूसरे, रूस यूक्रेन युद्ध, हम्मास इजराईल युद्ध, चीन का अपने पड़ौसी देशों से टेंशन, यूरोपीयन देशों के आपसी झगड़े, कुछ ऐसे बिंदु हैं जो भारत की विकास दर को विपरीत रूप से प्रभावित कर सकते हैं। यदि इन्हीं समस्त कारणों से कुछ विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित होती हैं तो भारत से विभिन्न उत्पादों का निर्यात भी कम होगा, आयात होने वाली वस्तुओं की लागत बढ़ेगी, इस प्रकार की समस्याएं खड़ी हो सकती हैं जो भारत को भी आने वाले समय में परेशान करें। दूसरे, कुछ प्राकृतिक कारण भी जैसे मानसून का उचित समय पर नहीं आना अथवा कम बारिश होना, जैसी कुछ समस्याएं भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए परेशानी का कारण बन सकती हैं। अन्यथा पिछले लगभग 10 वर्ष का समय भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए स्वर्णिम काल कहा जाना चाहिए और आगे आने वाले कुछ वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था नई ऊचाईयों को छूने के लिए तैयार है। उदाहरण के लिए यह इतिहास में पहली बार होने जा रहा है कि भारतीय शेयर बाजार वर्ष 2016 से लेकर वर्ष 2023 तक लगातार 8 वर्षों तक निवेशकों को लाभ की स्थिति प्रदान करता रहा है। दूसरे, अमेरिकी वित्तीय संस्था लीहमन ब्रदर्स के वर्ष 2008 में टूटने के बाद भारत का निफ्टी एवं चीन का शंघाई शेयर बाजार 3000 के अंकों पर थे, परंतु आज भारत का निफ्टी 21800 अंकों के ऊपर पहुंच गया है और चीन का शंघाई शेयर बाजार अभी भी 3000 अंकों पर ही बरकरार है। लगभग समस्त देशों के निवेशक आज भारतीय शेयर बाजार के प्रति अत्यधिक भरोसा जताए हुए हैं और आज भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 60,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। Read more »
आर्थिकी राजनीति उत्तरप्रदेश में बढ़ता धार्मिक पर्यटन एवं उत्पादों का उपभोग भारत के आर्थिक विकास को दे रहा गति January 2, 2024 / January 2, 2024 | Leave a Comment भारत के आर्थिक विकास की रफ्तार को गति देने में कुछ राज्यों का योगदान तेजी से बढ़ रहा है। हाल ही के समय में विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, गुजरात एवं राजस्थान जैसे राज्यों की आर्थिक विकास की गति तेज हुई है, जिससे यह राज्य भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार को 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का बनाने में विशेष योगदान देते हुए दिखाई दे रहे हैं। हालांकि महाराष्ट्र, तमिलनाडु, एवं कर्नाटक जैसे कुछ अन्य राज्यों का योगदान भी नकारा नहीं जा सकता है, परंतु इन राज्यों के आर्थिक विकास की दर तुलनात्मक रूप से कुछ स्थिर सी रही है अथवा कुछ कम हुई है। समस्त राज्यों के बीच तमिलनाडु एवं गुजरात राज्यों को पीछे धकेलते हुए उत्तरप्रदेश अब भारत की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला राज्य बन गया है। भारतीय अर्थव्यस्था में उत्तर प्रदेश का योगदान 9.2 प्रतिशत का हो गया है। भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार आज 3.7 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक का हो गया है। इसमें महाराष्ट्र राज्य का हिस्सा 15.7 प्रतिशत है। उत्तरप्रदेश राज्य का हिस्सा 9.2 प्रतिशत, तमिलनाडु राज्य का 9.1 प्रतिशत, गुजरात राज्य का 8.2 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल राज्य का 7.5 प्रतिशत है। देश की अर्थव्यवस्था में उत्तर पूर्वी राज्यों एवं जम्मू कश्मीर के बाद बिहार का भी काफी कम योगदान अर्थात केवल 3.7 प्रतिशत दिखाई पड़ता है, जबकि बिहार की जनसंख्या 13 करोड़ के आसपास है। बिहार को आर्थिक विकास की दृष्टि से आज भी पिछड़ा राज्य कहा जा रहा है। पूर्व के बीमारु राज्यों की श्रेणी से उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश एवं राजस्थान राज्य बाहर आ चुके हैं जबकि बिहार राज्य आज भी इसी श्रेणी में अटका हुआ है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में महाराष्ट्र राज्य की अर्थव्यवस्था का आकार 41,720 करोड़ अमेरिकी डॉलर था, तमिलनाडु राज्य का आकार 27,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर था, गुजरात राज्य का आकार 26540 करोड़ अमेरिकी डॉलर था, उत्तरप्रदेश राज्य का आकार 26,510 करोड़ अमेरिकी डॉलर था, कर्नाटक राज्य का आकार 26,350 करोड़ अमेरिकी डॉलर था और पश्चिम बंगाल राज्य का आकार 18,310 करोड़ अमेरिकी डॉलर था। पिछले कुछ वर्षों से चूंकि उत्तरप्रदेश राज्य की अर्थव्यवस्था की विकास दर सबसे तेज बनी हुई है अतः आज उत्तरप्रदेश राज्य की अर्थव्यवस्था का आकार भारत में दूसरे स्थान पर आ गया है। उत्तरप्रदेश ने अपने राज्य की अर्थव्यवस्था के आकार को वर्ष 2027 तक एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। जबकि, महाराष्ट्र भी अपने राज्य को वर्ष 2028 तक एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना चाहता है। इस दृष्टि से अब उत्तरप्रदेश एवं महाराष्ट्र राज्यों के बीच इस संदर्भ में आपस में प्रतियोगिता चल रही है। महाराष्ट्र राज्य की जनसंख्या 11 से 12 करोड़ के बीच है जबकि उत्तरप्रदेश राज्य की जनसंख्या 20 करोड़ के आसपास है। इस दृष्टि से उत्तरप्रदेश राज्य लाभप्रद स्थिति में दिखाई दे रहा है क्योंकि विभिन्न उत्पादों के उपभोग की अधिक गुंजाइश उत्तरप्रदेश राज्य में हैं एवं देश में आज उत्तरप्रदेश राज्य तेजी से विनिर्माण क्षेत्र का हब बनता जा रहा है तथा उत्तरप्रदेश राज्य में धार्मिक पर्यटन भी बहुत तेज गति से विकसित हो रहा है। विशेष रूप से अयोध्या, वाराणसी, मथुरा जैसे धार्मिक पर्यटन स्थलों का विकास न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के पर्यटन को भी आकर्षित करता दिखाई दे रहा है। इससे उत्तरप्रदेश राज्य में रोजगार के नए अवसर भी भारी मात्रा में निर्मित हो रहे हैं। अतः उत्पादों के उपभोग के मामले में उत्तरप्रदेश राज्य के साथ किसी भी अन्य राज्य की प्रतियोगिता हो ही नहीं सकती हैं। आज उत्तरप्रदेश राज्य के नागरिक रोजगार हेतु अन्य राज्यों की ओर पलायन करते हुए नहीं दिखाई दे रहे हैं क्योंकि उत्तरप्रदेश राज्य में ही रोजगार के पर्याप्त नए अवसर निर्मित होने लगे हैं। उत्तरप्रदेश राज्य में आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से आज राज्य सरकार भी भारी मात्रा में पूंजी निवेश कर रही है। निर्यात के क्षेत्र में भी उत्तरप्रदेश राज्य नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। उत्तरप्रदेश राज्य के राज्य निर्यात प्रोत्साहन ब्यूरो के अनुसार वित्तीय वर्ष 2016-17 में उत्तरप्रदेश राज्य से 84,000 करोड़ रुपए की राशि का निर्यात किया गया था जो वित्तीय वर्ष 2022-23 में दुगना होकर 174,000 करोड़ रुपए का हो गया है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए उत्तरप्रदेश राज्य ने 2 लाख करोड़ रुपए की राशि का निर्यात करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। उत्तरप्रदेश राज्य से सबसे अधिक निर्यात किए जाने वाले उत्पादों में इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं, दूरसंचार उपकरण, कृत्रिम फाइबर, गेहूं, चावल, कपास, कालीन एवं हस्तशिल्प जैसे उत्पाद शामिल हैं। दूसरे, उत्तरप्रदेश राज्य आज भारत का तीसरा सबसे बड़ा टेक्स्टायल उत्पादन करने वाला राज्य भी बन गया है। राष्ट्रीय उत्पादन में उत्तरप्रदेश राज्य का योगदान बढ़कर 13.24 प्रतिशत हो गया है। उत्तरप्रदेश राज्य में आज 250,000 लाख के आसपास हैंडलूम बुनकर एवं 421,000 पावरलूम बुनकर कार्य कर रहे हैं। चूंकि कपड़ा उद्योग कम पूंजी निवेश के साथ अधिक मानवीय आधारित उद्योग है, अतः इस क्षेत्र में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं। साथ ही, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में रक्षा इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण कलस्टर एवं लखनऊ उन्नाव कानपुर क्षेत्र में मेडिकल इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण कलस्टर भी स्थापित किये जा रहे हैं। इन क्षेत्रों में विनिर्माण इकाईयां स्थापित करने हेतु राज्य सरकार द्वारा कई प्रकार के प्रोत्साहन भी दिए जा रहे हैं। विभिन्न प्रदेशों की विधान सभाओं में प्रस्तुत किए गए वित्तीय वर्ष 2022-23 के आर्थिक सर्वेक्षणों में वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए इन प्रदेशों की अनुमानित आर्थिक प्रगति की दर को दर्शाया गया है। उत्तरप्रदेश में वित्तीय वर्ष 2022-23 में आर्थिक प्रगति की दर 16.8 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है, इसी प्रकार मध्यप्रदेश में 16.34 प्रतिशत, राजस्थान में 16.4 प्रतिशत, गुजरात में 15.5 प्रतिशत, तेलंगाना में 15.6 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 6.8 प्रतिशत, तमिलनाडु में 8.19 प्रतिशत, बिहार में 9.7 प्रतिशत, कर्नाटक में 7.9 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। उत्तर प्रदेश में वित्तीय वर्ष 2023-24 में 19 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। कुल मिलाकर भारत के समस्त प्रदेशों के बीच उत्तरप्रदेश राज्य आज आर्थिक विकास की दौड़ में सबसे आगे दिखाई दे रहा है। इसके साथ ही मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे कुछ अन्य राज्य भी विकास की दौड़ में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। इन राज्यों की आर्थिक नीतियां देशी एवं विदेशी निवेशकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। इस प्रकार यह समस्त राज्य मिलकर भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार को 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर ले जाने में अपनी पूरी शक्ति का उपयोग करते हुए दिखाई दे रहे हैं। यदि बिहार जैसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं तेलंगाना की तर्ज पर एवं पंजाब, जम्मू कश्मीर एवं उत्तर पूर्वी राज्य जैसे अन्य छोटे राज्य भी अपने राज्यों में आर्थिक विकास की दर को बढ़ाने में सफल होते हैं तो शीघ्र ही भारत की आर्थिक विकास की दर को 10 प्रतिशत के पार पहुंचाया जा सकता है। प्रहलाद सबनानी Read more » Increasing religious tourism and consumption of products in Uttar Pradesh is giving impetus to India's economic development.
आर्थिकी राजनीति वर्ष 2023 में आर्थिक क्षेत्र में भारत की कुछ विशेष उपलब्धियां रही हैं January 2, 2024 / January 2, 2024 | Leave a Comment वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत की आर्थिक विकास दर लगभग 7 प्रतिशत के आसपास रहने की प्रबल सम्भावनाएं बन रही हैं। इस वर्ष की प्रथम तिमाही, अप्रेल-जून 2023, में आर्थिक विकास दर 7.8 प्रतिशत की रही है, वहीं द्वितीय तिमाही, जुलाई- सितम्बर 2023 में 7.6 प्रतिशत की रही है। इसी प्रकार, दीपावली त्यौहार पर लगभग 4 लाख करोड़ रुपए के व्यापार के चलते एवं अक्टोबर 2023 माह में विनिर्माण के क्षेत्र में विकास दर के 12 प्रतिशत से ऊपर रहने से इस वर्ष की तृतीय तिमाही, अक्टोबर-दिसम्बर 2023, में भी आर्थिक विकास 7 प्रतिशत रह सकती है। इससे पूरे वित्तीय वर्ष 2023-24 में भी आर्थिक विकास दर 7 प्रतिशत रहने की प्रबल सम्भावनाए बन रही हैं। जबकि, विश्व के कई अन्य विकसित देशों में मंदी की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इस प्रकार भारत वर्ष 2023 में भी लगातार विश्व की सबसे तेज गति से विकास करती अर्थव्यवस्था बना रहा। भारत के आर्थिक विकास में लगातार गति आने से भारत में विदेशी निवेश की मात्रा भी लगातार बढ़ रही है। इससे भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 62,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। 8 दिसम्बर 2023 को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 60,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर था, जो 15 दिसम्बर 2023 को समाप्त सप्ताह में बढ़कर 61,600 करोड़ अमेरकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया एवं 22 दिसम्बर 2023 को समाप्त सप्ताह में 62,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। इस प्रकार, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में तेजी का सिलसिला लगातार जारी है। हालांकि, अक्टोबर 2021 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अपने उच्चतम स्तर 64,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया था, अब शीघ्र ही इस उच्चत्तम स्तर को पार कर जाने की भरपूर सम्भावना व्यक्त की जा रही है। कोरोना महामारी के दौरान, भारतीय रुपए पर अत्यधिक दबाव आ गया था, अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए को अवमूल्यन से बचाने एवं भारत रुपए के मूल्य को स्थिर बनाए रखने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने अमेरिकी डॉलर को भरपूर मात्रा में बाजार में बेचा था इससे भारत में विदेशी मुद्रा भंडार कम हो गया था। विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश को जरूरत पड़ने पर आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है। विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने से केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक को देश के आर्थिक विकास में गिरावट के चलते पैदा हुए किसी भी बाहरी एवं अंदरूनी वित्तीय अथवा आर्थिक संकट से निपटने में मदद मिलती हैं। यह आर्थिक मोर्चे पर संकट के समय देश को आरामदायक स्थिति उपलब्ध कराता है। विश्व बैंक द्वारा जारी की गई एक जानकारी के अनुसार, वर्ष 2023 में अनिवासी भारतीयों ने रिकार्ड 12,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि का प्रेषण भारत में किया है। अनिवासी भारतीयों द्वारा भारत में भेजी गई यह राशि पूरे विश्व में किसी भी देश को भेजी गई राशि में सर्वाधिक है। यह आर्थिक क्षेत्र में भारत की आंतरिक मजबूती को दर्शाता है। विदेशी निवेशकों के साथ ही अनिवासी भारतीयों का भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर विश्वास लगातार बढ़ रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर एवं खाड़ी के देशों में अनिवासी भारतीयों की भारी संख्या निवास करती है और केवल इन 4 देशों से ही 54 प्रतिशत प्रेषण भारत को प्राप्त हुआ है। वर्ष 2022 में अनिवासी भारतीयों द्वारा 11,110 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भारत में प्रेषित की गई थी। भारत आज विश्वभर के निवेशकों के लिए एक आकर्षक केंद्र के रूप विकसित हो गया है। विशेष रूप से केंद्र सरकार एवं कुछ राज्यों द्वारा की जा रही पहल विदेशी पूंजी को भारत में आकर्षित करती नजर आ रही है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए भारत आज इमर्जिंग अर्थव्यवस्थाओं के बीच स्वीट स्पॉट के रूप में दिखाई दे रहा है। इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और फार्मा जैसे 14 प्रमुख क्षेत्रों के लिए उत्पादन से जुड़ी उत्पादन प्रोत्साहन योजना ने विदेशी निवेशकों की भारत में रुचि बढ़ा दी है। साथ ही, पिछले कुछ वर्षों में श्रम, कराधान, और व्यापार परमिट जैसे क्षेत्रों में नियामक सुधारों से व्यापार करने में आसानी बढ़ी है। अच्छी तरह से विकसित बुनियादी ढांचा और कुशल श्रम की उपलब्धता देश को निवेश के अन्य देशों के विकल्प के मामले में एक तरह की बढ़त देते हैं, जो विदेशी निवेशकों के निर्णय लेने की प्रक्रिया में सहायता करते नजर आ रहे हैं। हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए एक अनुपालन प्रतिवेदन में बताया गया है कि वित्तीय वर्ष 2023-24 की द्वितीय तिमाही, जुलाई-सितंबर 2023, में भारत का चालू खाता घाटा 830 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि से कम होकर सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत रह गया है। यह वित्तीय वर्ष 2022-23 की द्वितीय तिमाही, जुलाई-सितम्बर 2022, में 3000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहते हुए सकल घरेलू उत्पाद का 3.8 प्रतिशत था। भारत के विदेशी व्यापार के मामले में यह एक अतुलनीय सुधार दृष्टिगोचर हुआ है। चालू खाता घाटा किसी भी देश के वस्तुओं और सेवाओं के आयात एवं निर्यात के मूल्य के साथ साथ वित्तीय हस्तांतरण के बीच के अंतर को मापता है। चालू खाता घाटे का कम होना किसी भी देश के लिए अच्छी स्थिति कही जाती है क्योंकि इससे मजबूत हो रहे निर्यात एवं कम हो रहे आयात की स्थिति का पता चलता है। वर्ष 2023 में भारतीय बैंकों विशेष रूप से सरकारी क्षेत्र के बैंकों में गैर निष्पादनकारी आस्तियों का स्तर लगभग न्यूनतम स्तर पर आ गया है और पूंजी पर्याप्तता अनुपात लगभग उच्चत्तम स्तर पर आ गया है। कई बैंकों में तो यह स्तर अमेरिकी बैकों के पूजीं पर्याप्तता अनुपात से भी अधिक है। कुछ वर्ष पूर्व तक सरकारी क्षेत्र के बैंकों में पूंजी पर्याप्तता अनुपात को अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानकों पर बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार को इन बैंकों में पूंजी डालनी होती थी परंतु आज सरकारी क्षेत्र के बैंक केंद्र सरकार को भारी भरकम लाभांश की राशि का भुगतान कर रहे हैं। बैंकिंग के क्षेत्र में तो जैसे टर्न अराउंड ही दिखाई देता है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी एक अन्य प्रतिवेदन के अनुसार, भारत के विभिन्न राज्यों की बजटीय स्थिति एवं इनके राजकोषीय स्वास्थ्य में लगातार मजबूती दिखाई दे रही है। विभिन्न राज्यों ने वित्तीय वर्ष 2021-22 एवं 2022-23 में किए गए सुधारों को जारी रखा है, जिसके चलते राज्यों का संयुक्त राजकोषीय घाटा नियंत्रण में रहते हुए कम हुआ है। केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्यों के राजकोषीय घाटे पर, कोविड महामारी के बाद अत्यधिक दबाव पैदा हो गया था परंतु इसके बाद से लगातार स्थिति में सुधार हुआ है। मुख्य रूप से कर संग्रहण के अनुपालन में सुधार करते हुए कर संग्रहण में पर्याप्त वृद्धि हुई है एवं कुछ राज्यों द्वारा खर्चों पर नियंत्रण भी किया जा सका है, हालांकि पूंजीगत व्ययों को प्रभावित नहीं होने दिया गया है, जिसके कारण राजकोषीय घाटे की स्थिति में सुधार दिखाई देने लगा है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने उक्त प्रतिवेदन में वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए विभिन्न राज्यों के बजट, राजकोषीय संकेतक एवं व्यय के पैटर्न का विश्लेषण किया है। मुख्य बिंदु जिन पर सुधार बताया गया है उनमें शामिल हैं, वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में लगातार हो रहा सुधार, राजस्व घाटे में आ रही कमी, पूंजीगत व्यय में लगातार हो रही वृद्धि और बकाया ऋण स्तर में कमी होना, बताया गया है। राज्य स्तर पर आगे आने वाले समय में मजबूत आर्थिक विकास और राजकोषीय सुधारों द्वारा राज्यों की समग्र बजटीय स्थिति सकारात्मक होने का अनुमान इस प्रतिवेदन में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लगाया गया है। इस स्थिति को भारत के लिए राहत देने वाली माना जा सकता है। राज्यों का राजस्व घाटा कम होने के कारण राज्यों का संयुक्त राजकोषीय घाटा लगातार दूसरे वर्ष लक्ष्य के मुकाबले सकल घरेलू उत्पाद का 2.8 प्रतिशत पर सीमित रहा है। पूंजी निवेश समर्थन के लिए केंद्रीय योजना के नेतृत्व में वित्त वर्ष 2023 की पहली छमाही में पूंजीगत व्यय में 52.6 प्रतिशत की आकर्षक वृद्धि दर्ज हुई है। राजस्व व्यय वृद्धि में कमी आई है और व्यय की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में बकाया देनदारियां वित्तीय वर्ष 2011 में 31 प्रतिशत से घटकर वित्तीय वर्ष 2024 में 27.6 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया है। Read more » वर्ष 2023 में आर्थिक क्षेत्र में भारत
राजनीति भारत के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात के बारे में आई एम एफ की चिंता उचित नहीं December 28, 2023 / December 28, 2023 | Leave a Comment हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात के सम्बंध में चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि भारत का ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात वर्ष 2028 तक यदि 100 प्रतिशत के स्तर को पार कर जाता है तो सम्भव है कि भारत की विकास दर पर इसका विपरीत प्रभाव होने लगे। हालांकि भारत का ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात वर्ष 2020 में 88.53 प्रतिशत तक पहुंच गया था, क्योंकि पूरे विश्व में ही कोरोना महामारी के चलते आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई थी परंतु, इसके बाद के वर्षों में भारत के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात में लगातार सुधार दृष्टिगोचर है और यह वर्ष 2021 में 83.75 प्रतिशत एवं वर्ष 2022 में 81.02 प्रतिशत के स्तर पर नीचे आ गया है। साथ ही, भारत के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात के वर्ष 2028 में 80.5 प्रतिशत के निचले स्तर पर आने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। यदि अन्य देशों के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात की तुलना भारत के ऋण सकल घरेलू उत्पाद अनुपात के साथ की जाय तो इसमें भारत की स्थिति बहुत सुदृढ़ दिखाई दे रही है। पूरे विश्व में सबसे अधिक ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात जापान में है और यह 255 प्रतिशत के स्तर को पार कर गया है। इसी प्रकार यह अनुपात सिंगापुर में 168 प्रतिशत है, इटली में 144 प्रतिशत, अमेरिका में 123 प्रतिशत, फ्रान्स में 110 प्रतिशत, कनाडा में 106 प्रतिशत, ब्रिटेन में 104 प्रतिशत एवं चीन में भी भारी भरकम 250 प्रतिशत के स्तर के आसपास बताया जा रहा है। अर्थात, विश्व के लगभग समस्त विकसित देशों में ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात 100 प्रतिशत के ऊपर ही है। भारत में इस अनुपात का 81 प्रतिशत के आसपास रहना संतोष का विषय माना जा सकता है। वैसे, जैसे जैसे किसी भी देश का आर्थिक विकास जब तेज गति से होने लगता है तो उस देश में, उत्पादों का निर्माण बढ़ाने के उद्देश्य से, अधिक पूंजी की आवश्यकता पड़ती है। जब देश में बचत की दर उच्च स्तर पर नहीं हो तो उस देश में ऋण के द्वारा ही पूंजी की आपूर्ति सुनिश्चित की जाती है। इस प्रकार आर्थिक विकास के साथ साथ ऋण: सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात भी बढ़ता चला जाता है। यहां यह बात भी ध्यान रखने लायक है कि यदि ऋण का उपयोग उत्पादक कार्यों के लिए किया जाता है एवं इस ऋण से यदि पर्याप्त मात्रा में आय अर्जित की जा रही है तो ऋण के उच्च स्तर पर होने के बावजूद भी इसे बुरा नहीं माना जा सकता है क्योंकि कोई भी देश यदि ऋण की राशि से ऋण पर अदा किये जाने वाल ब्याज एवं किश्त की राशि से अधिक आय का अर्जन करने में सक्षम है तो ऋण के किसी भी स्तर को बुरा नहीं माना जा सकता है। परंतु, यदि ऋण का उपयोग अनुत्पादक कार्यों जैसे नागरिकों को मुफ्त की सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से किया जाता है तो निश्चित ही इस प्रकार के ऋण पर आय का अर्जन सम्भव नहीं होगा अतः वह देश ऋण के जाल में फंसता चला जाएगा। भारत में केंद्र सरकार एवं कुछ राज्य सरकारों द्वारा लिए जा रहे ऋण की राशि का उपयोग उत्पादक कार्यों जैसे आधारभूत ढांचा विकसित करने के उद्देश्य से किया जा रहा है, इन गतिविधियों से केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों के लिए आय के नए स्त्रोत विकसित हो रहे हैं। वर्ष 2023-24 के बजट में केंद्र सरकार ने 10 लाख करोड़ रुपए की राशि को पूंजीगत मद पर व्यय करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसी प्रकार वर्ष 2022-23 में भी 7.50 लाख करोड़ रुपए की राशि इस मद पर व्यय की गई थी। भारत आज दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है और भारत की अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे तेज गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बन गई है। वैश्विक स्तर के विभिन्न वित्तीय संस्थानों द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रतिवर्ष 7 प्रतिशत के आसपास विकास करने की भरपूर सम्भावनाएं व्यक्त की जा रही है, यह विकास दर विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में होने वाली वृद्धि दर की तुलना में लगभग दुगुनी है। भारत का लगभग आधा कार्यबल कृषि क्षेत्र में कार्यरत है जिसकी औसत आय तुलनात्मक रूप से कम है और इस कार्यबल की आय में वृद्धि किया जाना आज मुख्य लक्ष्य है। परंतु, सेवा क्षेत्र एवं उद्योग क्षेत्र में कार्यरत कार्यबल की आय में तुलनतमक रूप से वृद्धि दर काफी अच्छी है जिसके चलते इस वर्ग की आय कर एवं अन्य करों में भागीदारी लगातार बढ़ रही है जिसके कारण केंद्र सरकार की आय में अतुलनीय वृद्धि हो रही है एवं आज केंद्र सरकार के बजट में वित्तीय संतुलन स्थापित होता दिखाई दे रहा है तथा बजटीय घाटा की राशि में भी लगातार कमी आ रही है। बजटीय घाटा के कमी के चलते केंद्र एवं राज्य सरकारों की ऋण की आवश्यकता भी कम हो रही है। भारत में हाल ही के वर्षों में वित्तीय क्षेत्र में सुधार कार्यक्रम भी लागू किए गए हैं। वस्तु एवं सेवा कर पद्धति के लागू किए जाने के बाद से तो देश में कर संग्रहण में भारी वृद्धि दर्ज की गई है। आज केंद्र सरकार द्वारा केवल वस्तु एवं सेवा कर के माध्यम से ही प्रति माह औसतन 1.60 लाख करोड़ रुपए की राशि का कर संग्रहण किया जा रहा है, जो पूरे वर्ष में 20 लाख करोड़ रुपए के आंकड़े को छू सकता है। वहीं दूसरी ओर प्रत्यक्ष कर संग्रहण में भी 25 प्रतिशत के आसपास वृद्धि दर अर्जित की जा रही है। कर क्षेत्र में अनुपालन की स्थिति में लगातार हो रहे सुधार के चलते वित्तीय संतुलन में भी सुधार दिखाई देने लगा है। जिसके चलते आगे आने वाले समय में केंद्र सरकार एवं कुछ राज्य सरकारों का बजटीय घाटा और अधिक कम होने लगेगा जिसके कारण इन विभिन्न सरकारों को ऋण लेने की आवश्यकता भी कम होगी। दूसरे, आगे आने वाले समय में कृषि क्षेत्र पर निर्भर कार्यबल भी सेवा क्षेत्र एवं उद्योग क्षेत्र की ओर आकर्षित होगा एवं इन क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर प्राप्त करेगा इससे उनकी आय में भी भारी वृद्धि होगी एवं यह वर्ग भी देश के कर संग्रहण में अपना योगदान देना प्रारम्भ करेगा। साथ ही, कृषि क्षेत्र में भी लगातार सुधार कार्यक्रम लागू किए जा रहे हैं, इसके चलते कृषि क्षेत्र में कार्यरत नागरिकों की आय में भी वृद्धि हो रही है एवं उनके जीवन स्तर में लगातार सुधार हो रहा है एवं इस वर्ग की आय भी बढ़ेगी। इस प्रकार, कर अनुपालन के साथ केंद्र एवं राज्य सरकारों की आय में और अधिक वृद्धि दृष्टिगोचर होगी, जिससे इनकी ऋण की आवश्यकता भी और अधिक कम होगी। अतः अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की भारत के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात के सम्बंध में व्यक्त की गई चिंता केवल एक संभावनात्मक पहलू की ओर संकेत है यह चिंता वास्तविक धरातल से कहीं दूर दिखाई देती है। Read more »
आर्थिकी राजनीति अब भारतीय कम्पनियां अन्य देशों की कम्पनियों का अधिग्रहण कर रही हैं December 26, 2023 / December 26, 2023 | Leave a Comment हाल ही के समय में कई भारतीय कम्पनियां बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का स्वरूप ग्रहण करती नजर आ रही हैं। कुछ भारतीय कम्पनियां अन्य देशों की कम्पनियों में न केवल अपना पूंजी निवेश बढ़ा रही हैं बल्कि कुछ कम्पनियां अन्य देशों की कम्पनियों का अधिग्रहण भी कर रही हैं। एक महत्वपूर्ण तथ्य उभरकर सामने आ रहा है कि भारत कई ऐसे देशों, जो आपस में शायद मित्र देश की भूमिका में नहीं हैं इसके बावजूद भारत दोनों देशों, के साथ अपने व्यापारिक रिश्तों को बढ़ाता नजर आ रहा है। उदाहरण के लिए, यूनाइटेड अरब अमीरात, कतर एवं सऊदी अरब आदि देश मिडल ईस्ट में भारत के महत्वपूर्ण व्यापार भागीदार हैं एवं ये देश भारत में भारी राशि का निवेश कर रहे हैं। सऊदी अरब तो भारत में 10,000 करोड़ अमेरिक डॉलर का निवेश करने जा रहा है। परंतु, हाल ही के कुछ वर्षों में मिडल ईस्ट के कुछ देशों के साथ ही, इजराईल के साथ भी भारत के मिलिटरी, राजनैतिक एवं व्यापारिक सम्बंध प्रगाढ़ हुए हैं। न केवल इजराईल की कंपनियां भारत में निवेश कर रही हैं बल्कि कई भारतीय कम्पनियां भी इजराईली कम्पनियों में निवेश कर रही हैं एवं कुछ कम्पनियों का अधिग्रहण कर रही हैं। इस प्रकार भारत के अरब देशों के साथ साथ इजराईल के साथ भी प्रगाढ़ व्यापारिक रिश्ते कायम हो गए हैं। कई भारतीय कम्पनियां इजराईल के स्टार्ट अप में भारी मात्रा में निवेश करती दिखाई दे रही हैं। चूंकि भारत का सकल घरेलू उत्पाद अब लगभग 4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को छूने जा रहा है, अतः भारतीय कम्पनियां अब इस स्थिति में पहुंच गई हैं कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की तरह अन्य देशों में विभिन्न क्षेत्रों में कम्पनियों का अधिग्रहण कर सकें अथवा इन विदेशी कम्पनियों में अपना पूंजी निवेश बढ़ा सकें। इस दृष्टि से भारत की कुछ बड़ी कम्पनियां जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (मुकेश अम्बानी समूह), इनफोसिस, विप्रो, टाटा समूह, अडानी समूह आदि इजराईल की कम्पनियों का अधिग्रहण करने में सफलता हासिल कर रही हैं। हाल ही में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, इजराईल में सेमीकंडक्टर चिप का निर्माण करने वाली एक कम्पनी टावर सेमीकंडक्टर नामक कम्पनी का अधिग्रहण करने का प्रयास कर रही है। सेमीकंडक्टर चिप के उपयोग हेतु भारत में बहुत बड़ा बाजार उपलब्ध है, इससे इस उत्पाद के लिए अन्य देशों पर भारत की निर्भरता कम होगी। इजराईल की उक्त कम्पनी पूर्व में ही भारी मात्रा में सेमीकंडक्टर चिप का निर्माण कर रही है। पूर्व में अमेरिकी कम्पनी इंटेल ने उक्त कम्पनी को 540 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदने का प्रयास किया था परंतु इंटेल को इस कार्य में सफलता नहीं मिल सकी थी। परंतु, अब भारत की रिलायंस इंडस्ट्रीज इस कम्पनी को खरीदने का प्रयास कर रही है। टावर सेमीकंडक्टर वर्ष 2009 में केवल 30 करोड़ अमेरिकी डॉलर का व्यापार करती थी परंतु यह वर्ष 2022 में इस कम्पनी का व्यापार बढ़कर 168 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। अतः यह कम्पनी अत्यधिक तेज गति से प्रगति कर रही है। भारत में दवाईयों का निर्माण करने वाली एक कम्पनी सन फार्मा ने भी इजराईल की टेरो फार्मा नामक एक कम्पनी को अपनी सहायक कम्पनी बना लिया है। इससे भारतीय सन फार्मा कम्पनी का विस्तार इजराईल में भी हुआ है। सन फार्मा को नई तकनीकी को विकसित करने में भी सहायता मिली है। इसी प्रकार, भारतीय कम्पनी अदानी पोर्ट्स एंड लाजिस्टिक्स ने इजराईल के सबसे बड़े हाईफा पोर्ट का विस्तार करने का कार्य हाथ में लिया है। इस विस्तार के कार्य पर 115 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि खर्च होगी। वर्ष 2021 में इजराईल के कुल विदेशी व्यापार का लगभग 56 प्रतिशत हिस्सा इसी पोर्ट के माध्यम से हो रहा था। टाटा समूह की टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस) नामक सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कम्पनी भी इजराईल में अपने व्यापार का लगातार विस्तार कर रही है। भारत की इनफोसिस कम्पनी ने इजराईल की सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की पनाया नामक कम्पनी का 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर में अधिग्रहण कर लिया है। भारत का टाटा समूह इजराईल के एयर स्पेस में कार्य कर रही कम्पनियों एवं सुरक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रही कम्पनियों में अपना निवेश बढ़ा रहा है ताकि इन क्षेत्रों में इजराईल की कम्पनियों के साथ मिलकर कार्य किया जा सके। इजराईल के पास सुरक्षा उपकरण बनाने की नवीनतम तकनीक उपलब्ध है। भारत एवं इजराईल अब टैंक्स एवं राडार के निर्माण का कार्य साथ मिलकर करने जा रहे हैं। वैसे भी भारत एवं इजराईल के बीच मिलिटरी सैन्य समझौता पूर्व में ही किया जा चुका है। इसी प्रकार के समझौते, उद्योग के क्षेत्र में रिसर्च, आर्थिक विकास के लिए एक दूसरे के साथ भागीदारी, विशेष रूप से स्वास्थ्य, एयरो स्पेस एवं इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से भी किए जा रहे हैं। आरटीफिशियल इंटेलिजेन्स के क्षेत्र में निजी क्षेत्र द्वारा किए जा रहे निवेश के मामले में अमेरिका, चीन एवं यूनाइटेड किंगडम के बाद इजराईल, पूरे विश्व में, चौथे स्थान पर है। अतः भारत की इजराईल के साथ व्यापार के क्षेत्र में बढ़ती भागीदारी का लाभ भारत को भी मिलने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इजराईल में भारतीय इंजीनीयरों की संख्या भी तेजी से बढ़ती जा रही है। आज इजराईल में सॉफ्टवेयर विकसित करने हेतु 18,000 से अधिक इंजीनियर कार्य कर रहे हैं और यह संख्या अमेरिका में कार्य कर रहे इंजीनियरों की तुलना में बहुत कम जरूर है परंतु अब तेजी से भारतीय इजनीयरों की मांग इजराईल में बढ़ रही है। सुरक्षा के क्षेत्र में भी इजराईल भारत का एक महत्वपूर्ण भागीदार है। भारत इजराईल से हाई क्वालिटी ड्रोन, मिसाईल, एवं अन्य उपकरण आदि खरीदता है। इजराईल-हम्मास युद्ध के बाद से इजराईल में कार्य कर रहे फिलिस्तिनियों को इजराईल से बाहर निकाल दिया गया है। अतः अब इजराईल ने एक लाख भारतीय कामगारों की मांग भारत सरकार से की है। उधर, ताईवान ने भी एक लाख भारतीय कामगारों की मांग की है। अब विभिन्न देशों में भारतीय कामगारों की मांग भी बढ़ती जा रही है। भारतीय कम्पनियां इसी प्रकार ब्रिटेन की कम्पनियों में भी अपना निवेश बढ़ा रही हैं। टाटा समूह ने ब्रिटेन की कोरस नामक कम्पनी में 217 करोड़ यूरो का पूंजी निवेश किया है। रिलायंस समूह ने बैटरी का निर्माण करने वाली एक फरडीयन नामक कम्पनी में 10 करोड़ यूरो का पूंजी निवेश किया है। टाटा समूह ने टेटली नामक कम्पनी में 4 करोड़ से अधिक यूरो का पूंजी निवेश किया है। टाटा मोटर्स ने जगुआर लैंड रोवर्स नामक कम्पनी का अधिग्रहण कर लिया है एवं टाटा मोटर्स 400 करोड़ यूरो का अतिरिक्त पूंजी निवेश इस कम्पनी में करने जा रही है। इसी प्रकार के पूंजी निवेश करते हुए सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की विभिन्न भारतीय कम्पनियां जैसे विप्रो एवं इनफोसिस आदि, भी ब्रिटेन की कम्पनियों का अधिग्रहण कर रही हैं। टाटा केमिकल्स लिमिटेड भी कुछ अन्य कम्पनियों में अपना पूंजी निवेश बढ़ा रही है। यूनाइटेड किंगडम के लिए, भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का दूसरा सबसे बड़ा स्त्रोत बन गया है। आज भारत की 954 कम्पनियां यूनाइटेड किंगडम में कार्य कर रही हैं एवं वहां 106,000 नागरिकों को रोजगार प्रदान कर रही हैं। भारतीय कम्पनियों द्वारा इजराईल एवं ब्रिटेन की कम्पनियों के अधिग्रहण एवं इन कम्पनियों में किए जाने वाले पूंजी निवेश से भारतीय कम्पनियों की साख पूरे विश्व में बढ़ रही है एवं अब कुछ भारतीय कम्पनियां भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की श्रेणी में गिनी जाने लगी हैं। प्रहलाद सबनानी Read more » Now Indian companies are acquiring companies from other countries
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख प्रभु श्रीराम वनवासियों एवं वंचितों के अधिक करीब थे December 20, 2023 / December 20, 2023 | Leave a Comment यह एक एतिहासिक तथ्य है कि प्रभु श्री राम ने लंका पर चढ़ाई करने के उद्देश्य से अपनी सेना वनवासियों एवं वानरों की सहायता से ही बनाई थी। केवट, छबरी, आदि के उद्धार सम्बंधी कहानियां तो हम सब जानते हैं। परंतु, जब वे 14 वर्षों के वनवास पर थे तो इतने लम्बे अर्से तक वनवास करते करते वे स्वयं भी एक तरह से वनवासी बन गए थे। इन 14 वर्षों के दौरान, वनवासियों ने ही प्रभु श्री राम की सेवा सुषुर्शा की थी एवं प्रभु श्री राम भी इनके स्नेह, प्रेम एवं श्रद्धा से बहुत अभिभूत थे। इसी तरह की कई कहानियां इतिहास के गर्भ में छिपी हैं। यह भी एक कटु सत्य है एवं इतिहास इसका गवाह है कि हमारे ऋषि मुनि भी वनवासियों के बीच रहकर ही तपस्या करते रहे हैं। अतः भारत में ऋषि, मुनि, अवतार पुरुष, आदि वनवासियों, जनजातीय समाज के अधिक निकट रहते आए हैं। इस प्रकार, हमारी परम्पराएं, मान्यताएं एवं सोच एक ही है। जनजातीय समाज भी भारत का अभिन्न एवं अति महत्वपूर्ण अंग है। आज भी भारत में वनवासी मूल रूप में प्रभु श्री राम की प्रतिमूर्ति ही नजर आते हैं। दिल से एकदम सच्चे, धीर गम्भीर, भोले भाले होते हैं। यह प्रभु श्री राम की उन पर कृपा ही है कि वे आज भी सतयुग में कही गई बातों का पालन करते हैं। परंतु, कई बार ईसाई मशीनरियों एवं कुछ विकृत मानसिकता वाले लोगों द्वारा वनवासियों को उनके मूल स्वभाव से भटकाकर लोभी, लालची एवं रावण का वंशज बताया जाता है। रावण स्वयं तो वनवासी कभी रहे ही नहीं थे एवं वे श्री लंका के एक बुद्धिमान राजा थे। इस बात का वर्णन जैन रामायण में भी मिलता है। अब प्रशन्न यह उठता है कि जब रावण स्वयं एक ब्राह्मण था तो वह वंचित वर्ग का मसीहा या पूर्वज कैसे हो सकता है? जैन रामायण की तरह गोंडी रामायण भी रावण को पुलत्स वंशी ब्राह्मण मानती है, न कि आदिवासियों का पूर्वज, कुछ गोंड पुजारी रावण को अपना गुरु भाई भी मानते हैं, चूंकि पुलत्स ऋषि ने उनके पूर्वजों को भी दीक्षा दी थी। इस तरह के तथ्य भी इतिहास में मिलते हैं कि रावण अपने समय का एक बहुत बड़ा शिव भक्त एवं प्रकांड विद्वान था। रावण जब मृत्यु शैया पर लेटा था तब प्रभु श्री राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण से कहा था कि रावण अब मृत्यु के निकट है एवं प्रकांड विद्वान है अतः उनसे उनके इस अंतिम समय में कुछ शिक्षा ले लो। तब लक्ष्मण रावण के सिर की तरफ खड़े होकर शिक्षा लेने पहुंचे थे तो लक्ष्मण को कहा गया था कि शिक्षा लेना है तो रावण के पैरों की तरफ आना होगा। तब लक्ष्मण, रावण के पैरों के पास आकर खड़े हुए तब जाकर रावण ने लक्ष्मण को अपने अंतिम समय में शिक्षा प्रदान की थी। अतः रावण अपने समय का एक प्रकांड पंडित था। भारतीय संस्कृति पर पूर्व में भी इस प्रकार के हमले किए जाते रहे हैं। भारत में समाज को आपस में बांटने के कुत्सित प्रयास कोई नया नहीं हैं। एक बार तो रामायण एवं महाभारत आदि एतिहासिक ग्रंथों को भी अप्रामाणिक बनाने के कुत्सित प्रयास हो चुके हैं। वर्ष 2007 में तो केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय के मातहत भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने एक हलफनामा (शपथ पत्र) दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि वाल्मीकीय रामायण और गोस्वामी तुलसीदासजी कृत श्रीरामचरितमानस प्राचीन भारतीय साहित्य के महत्त्वपूर्ण हिस्से हैं, लेकिन इनके पात्रों को एतिहासिक रूप से रिकार्ड नहीं माना जा सकता है, जो कि निर्विवाद रूप से इनके पात्रों का अस्तित्व सिद्ध करता हो या फिर घटनाओं का होना सिद्ध करता हो। ये बातें कितनी दुर्भाग्यपूर्ण हैं। यह कहना कि प्रभु श्री राम और रामायण के पात्र (राम, भरत, लक्ष्मण, हनुमान, विभीषण, सुग्रीव और रावण, आदि) एतिहासिक रूप से प्रामाणिक सिद्ध नहीं होते, एक प्रकार से भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात ही था। हालांकि भारतीय जनमानस के आंदोलित होने पर उस समय की भारत सरकार को अपनी गलती का एहसास हुआ था और उसने अपने शपथ पत्र (हलफनामे) को न्यायालय से वापस मांग लिया था। विभिन्न देशों में वहां की स्थानीय भाषाओं में पाए जाने वाले ग्रंथों एवं विदेशों तक में किए गए कई शोध पत्रों के माध्यम से भी यह सिद्ध होता है कि प्रभु श्री राम 14 वर्ष तक वनवासी बनकर ही वनों में निवास किए थे। अतः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि प्रभु श्रीराम भी अपने वनवास के दौरान वनवासियों के बीच रहते हुए एक तरह से वनवासी ही बन गए थे। साथ ही, वनों में निवासरत समुदायों ने सहज ही उन्हें अपने से जुड़ा माना और प्रभु श्री राम उनके लिए देव तुल्य होकर उनमें एक तरह से रच बस गए थे। कई वनवासी एवं जनजाति समाजों ने तो अपनी रामायण ही रच डाली है। जिस प्रकार, गोंडी रामायण, जो रामायण को अपने दृष्टिकोण से देखती है, हजारों सालों से गोंडी व पंडवानी वनों में रहने वाले जनजाति समाजों की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा रही है। गुजरात के आदिवासियों में “डांगी रामायण” तथा वहां के भीलों में “भलोडी रामायण” का प्रचलन है। साथ ही, हृदय स्पर्शी लोक गीतों पर आधारित लोक रामायण भी गुजरात में राम कथा की पावन परम्परा को दर्शाती है। इसके साथ ही, विदेशों में भी वहां की भाषाओं में लिखी गई रामायण बहुत प्रसिद्ध है। आज प्रभु श्री राम की कथा भारतीय सीमाओं को लांघकर विश्व पटल पर पहुंच गई है और निरंतर वहां अपनी उपयोगिता, महत्ता और गरिमा की दस्तक देती आ रही है। आज यह कथा विश्व की विभिन्न भाषाओं में स्थान, विचार, काल, परिस्थिति आदि में अंतर होने के बावजूद भी अनेक रूपों में, विधाओं में और प्रकारों में लिखी हुई मिलती है। यथा, थाईलेंड में प्रचलित रामायण का नाम “रामकिचेन” है। जिसका अर्थ है राम की कीर्ति। कम्बोडिया की रामायण “रामकेर” नाम से प्रसिद्ध है। लाओस में “फालक फालाम” और “फोमचक्र” नाम से दो रामायण प्रचलित हैं। मलेशिया यद्यपि मुस्लिम राष्ट्र है, परंतु वहां भी “हिकायत सिरीरामा” नामक रामायण प्रचलित है, जिसका तात्पर्य है श्री राम की कथा। इंडोनेशिया की रामायण का नाम “ककविन रामायण” है, जिसके रचनाकार महाकवि ककविन हैं। नेपाल में “भानुभक्त रामायण” और फिलीपीन में “महरादिया लावना” नामक रामायण प्रचलित है। इतना ही नहीं, प्रभु श्री राम को मिस्र (संयुक्त अरब गणराज्य) जैसे मुस्लिम राष्ट्र और रूस जैसे कम्युनिस्ट राष्ट्र में भी लोकनायक के रूप में स्वीकार किया गया है। इन सभी रामायण में भी प्रभु श्री राम के वनवास में बिताए गए 14 वर्षों के वनवास का विस्तार से वर्णन किया गया है। भारतीय साहित्य की विशिष्टताओं और गहनता से प्रभावित होकर तथा भारतीय धर्म की व्यापकता एवं व्यावहारिकता से प्रेरित होकर समय समय पर चीन, जापान आदि एशिया के विभिन्न देशों से ही नहीं, यूरोप में पुर्तगाल, स्पेन, इटली, फ्रान्स, ब्रिटेन आदि देशों से भी अनेक यात्री, धर्म प्रचारक, व्यापारी, साहित्यकार आदि यहां आते रहे हैं। इन लोगों ने भारत की विभिन्न विशिष्टताओं और विशेषताओं के उल्लेख के साथ साथ भारत की बहुप्रचलित श्रीराम कथा के सम्बंध में भी बहुत कुछ लिखा है। यही नहीं, विदेशों से आए कई विद्वानों जहां इस संदर्भ में स्वतंत्र रूप से मौलिक ग्रंथ लिखे हैं, वहीं कई ने इस कथा से सम्बंधित “रामचरितमानस” आदि विभिन्न ग्रंथों के अनुवाद भी अपनी भाषाओं में किए हैं और कई ने तो इस विषय में शोध ग्रंथ भी तैयार किए हैं। भारत के वनवासियों के तो रोम रोम में प्रभु श्री राम बसे हैं। उन्हें प्रभु श्रीराम से अलग ही नहीं किया जा सकता है। यह सोचना भी हास्यास्पद लगता है। प्रभु श्री राम की जड़ें आदिवासियों में बहुत गहरे तक जुड़ी हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि विदेशी मशीनरियों के कुत्सित प्रयासों को विफल करते हुए भारतीय संस्कृति पर हमें गर्व करना होगा। धर्मप्राण भारत सारे विश्व में एक अद्भुत दिव्य देश है। इसकी बराबरी का कोई देश नहीं है क्योंकि भारत में ही प्रभु श्रीराम एवं श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। हमारे भारतवर्ष में भगवान स्वयं आए हैं एवं एक बार नहीं अनेक बार आए हैं। हमारे यहां गंगा जैसी पावन नदी है एवं हिमालय जैसा दिव्य पर्वत है। ऐसे भाग्यशाली कहां हैं अन्य देशों के लोग। प्रहलाद सबनानी Read more » प्रभु श्रीराम वनवासियों एवं वंचितों के अधिक करीब थे
आर्थिकी राजनीति अब भारतीय शेयर बाजार का पूंजीकरण भी पहुंचा विश्व में पांचवे स्थान पर December 18, 2023 / December 18, 2023 | Leave a Comment भारत आज विश्व के कई देशों को विभिन्न क्षेत्रों में राह दिखाता नजर आ रहा है। अभी हाल ही में भारतीय शेयर (पूंजी) बाजार, नैशनल स्टॉक एक्स्चेंज, ने 4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के पूंजीकरण के स्तर को पार कर लिया है। विदेशी निवेशक एवं विदेशी संस्थान जो माह सितम्बर 2023 तक भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकाल रहे थे, अब अचानक भारी मात्रा में भारतीय शेयर बाजार में पैसा लगा रहे हैं। आज कई बार तो एक दिन में 5000 करोड़ रुपए से भी अधिक की राशि का निवेश इन विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार में किया जा रहा है। नैशनल स्टॉक एक्स्चेंज पर लिस्टेड समस्त कम्पनियों (निफ्टी) का कुल बाजार पूंजीकरण 4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर अथवा 335 लाख करोड़ रुपए के स्तर को पार कर गया है। पिछले 10 वर्षों के दौरान इन कम्पनियों का पूंजीकरण 17.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष की संयोजित (कंपाऊडेड) दर से बढ़ा है। भारतीय शेयर बाजार के विकास की यह रफ्तार अभी भी जारी है और कलेंडर वर्ष 2023 के अभी तक के कार्यकाल के दौरान निफ्टी पर रजिस्टर्ड कम्पनियों के पूंजीकरण, 55 लाख करोड़ रुपए (11 प्रतिशत) से बढ़ चुका है। पिछले केवल 3 माह के दौरान भारतीय कम्पनियों का निफ्टी पर पूंजीकरण 8.82 प्रतिशत की दर से बढ़ा है, जो कि विश्व के 10 सबसे बड़े शेयर बाजार में सबसे अधिक तेज गति से बढ़ा है। आज भारत विश्व के शेयर बाजार के पूंजीकरण में 3.61 प्रतिशत का योगदान कर रहा है जो जनवरी 2023 में 3.37 प्रतिशत था। नैशनल स्टॉक एक्स्चेंज पर लिस्टेड समस्त कम्पनियों के कुल बाजार पूंजीकरण का स्तर 2 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर जुलाई 2017 में पहुंचा था और लगभग 4 वर्ष पश्चात अर्थात मई 2021 में 3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया था तथा केवल लगभग 2.5 वर्ष पश्चात अर्थात दिसम्बर 2023 में यह 4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को भी पार कर गया है। भारत शेयर बाजार पूंजीकरण के मामले में आज पूरे विश्व में पांचवे स्थान पर आ गया है। प्रथम स्थान पर अमेरिकी शेयर बाजार है, जिसका पूंजीकरण 47.78 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक है। पूरे विश्व में अमेरिकी शेयर बाजार का योगदान, शेयर के पूंजीकरण के मामले में, 44.74 प्रतिशत है और अमेरिकी सकल घरेलू उत्पाद का अमेरिकी शेयर बाजार का पूंजीकरण 188 प्रतिशत है। द्वितीय स्थान पर चीन का शेयर बाजार है जिसका पूंजीकरण 9.73 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक है। इस वर्ष 2023 में चीन के शेयर बाजार ने अपने निवेशकों को रिणात्मक प्रतिफल दिए हैं। पूरे विश्व में चीन के शेयर बाजार का योगदान 9.12 प्रतिशत है और चीन के सकल घरेलू उत्पाद का चीनी शेयर बाजार का पूंजीकरण केवल 54 प्रतिशत है। तीसरे स्थान पर जापान का शेयर बाजार है जिसका पूंजीकरण 6.02 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक है। पूरे विश्व में जापान के शेयर बाजार का योगदान 5.64 प्रतिशत है और जापान के सकल घरेलू उत्पाद का जापान के शेयर बाजार का पूंजीकरण 142 प्रतिशत है। चौथे स्थान पर हांगकांग का शेयर बाजार है जिसका पूंजीकरण 4.78 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक है। पूरे विश्व में हांगकांग के शेयर बाजार का योगदान 4.48 प्रतिशत है और हांगकांग के सकल घरेलू उत्पाद का हांगकांग शेयर बाजार का पूंजीकरण 1329 प्रतिशत है। जबकि भारत, फ्रान्स एवं ब्रिटेन के शेयर बाजार को पछाड़कर पांचवे स्थान पर आ गया है। आज भारत के शेयर बाजार का पूंजीकरण 4.10 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक है। पूरे विश्व में भारत के शेयर बाजार का योगदान 3.61 प्रतिशत है और भारत के सकल घरेलू उत्पाद का भारतीय शेयर बाजार का पूंजीकरण 114 प्रतिशत है। जिस तेज गति से भारतीय शेयर बाजार का पूंजीकरण आगे बढ़ रहा है, अब ऐसी उम्मीद की जा रही है कि शीघ्र ही भारतीय शेयर बाजार का पूंजीकरण हांगकांग शेयर बाजार के पूंजीकरण को पीछे छोड़ते हुए पूरे विश्व में चौथे स्थान पर आ जाएगा। केंद्र सरकार पर विपक्षी दलों द्वारा कई बार यह आरोप लगाया जाता है कि भारत में सरकारी उपक्रमों को समाप्त किया जा रहा है। जबकि पिछले 27 माह के खंडकाल के दौरान सरकारी उपक्रमों का पूंजीकरण शेयर बाजार में दुगना होकर 46.40 लाख करोड़ रुपए का हो गया है। सरकारी उपक्रमों ने अपने बाजार पूंजीकरण में इस अवधि में अतुलनीय वृद्धि दर्ज की है। बॉम्बे स्टॉक एक्स्चेंज का सेन्सेक्स पिछले 27 माह में 60,000 के स्तर से 70,000 के स्तर को पार कर गया है। इन सरकारी उपक्रमों के कोरपोरेट गवर्नन्स में भारी सुधार हुआ है, जिसके चलते न केवल विदेशी निवेशकों का बल्कि भारत के संस्थागत निवेशकों एवं खुदरा निवेशकों का भी विश्वास इन सरकारी उपक्रमों पर बढ़ा है। केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक क्षेत्र में लगातार लागू किए जा रहे विभिन्न सुधार कार्यक्रमों के चलते विदेशी संस्थागत निवेशक, विदेशी खुदरा निवेशक एवं विदेशों में निवास कर रहे भारतीय मूल के नागरिक भी भारतीय कम्पनियों में भारी मात्रा में शेयर बाजार के माध्यम से निवेश कर रहे हैं। हालांकि हाल ही के समय में भारतीय कम्पनियों की लाभप्रदता में भी अतुलनीय वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है जिससे इन कम्पनियों के विभिन वित्तीय रेशीओ बहुत आकर्षक बन गए हैं। जबकि चीन, हांगकांग, जर्मनी, जापान जैसे शेयर बाजार अपने निवेशकों को रिणात्मक अथवा बहुत कम रिटर्न दे पा रहे हैं। कई विदेशी संस्थान निवेशक तो चीन, हांगकांग आदि देशों से अपना पूंजी निवेश निकालकर भारतीय शेयर बाजार में कर रहे हैं। इससे आगे आने वाले समय में भी भारतीय शेयर बाजार में वृद्धि दर आकर्षक बनी रहेगी, इसकी भरपूर सम्भावना व्यक्त की जा रही है। ऐसा कहा जाता है कि शेयर बाजार में निवेशक अपनी जमापूंजी का निवेश बहुत सोच विचार कर करता है एवं जब निवेशकों को यह आभास होने लगता है कि अमुक कम्पनी का भविष्य बहुत उज्जवल है एवं निवेशक द्वारा किए गए निवेश पर प्रतिफल अधिकतम रहने की सम्भावना है, तभी निवेशक अपनी जमापूंजी को शेयर बाजार में उस अमुक कम्पनी में निवेश करते है। इस प्रकार, जब किसी भी देश की अर्थव्यवस्था पर निवेशकों का भरोसा बढ़ता हुआ दिखाई देता है तो विशेष रूप से विदेशी निवेशक एवं विदेशी निवेशक संस्थान उस देश में विभिन्न कम्पनियों के शेयर में अपनी निवेश बढ़ाते हैं। चूंकि विदेशी संस्थानों को आगे आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था पर एवं भारतीय कम्पनियों की विकास यात्रा पर भरपूर भरोसा है अतः भारतीय शेयर बाजार में निवेश भी रफ्तार पकड़ रहा है। प्रहलाद सबनानी Read more »