कहानी प्रेम, दाढी और धडकनें March 27, 2011 / December 14, 2011 | 3 Comments on प्रेम, दाढी और धडकनें आज रास्ते में रमेश मिला था. चेहरे पर चार इंच की उगी झाड़ियों में से झांकते चेहरे को मैं नहीं पहचान पाया किन्तु मेरा उन्नत ललाट उसकी समझ से दूर नहीं रहा. अचानक उसने मुझे पुकारा तब मैंने आवाज़ के आधार पर कद-काठी देखकर कयास लगाया कि यह तो रमेश होना चाहिए और वो रमेश ही निकला. कोई सफाचट गाल वाला यदि चेहरे पर अचानक दाढ़ी कि खेती करने लगे तो इसके दो ही कारण हो सकते हैं- ‘या तो वह प्रेम में खुद को घायल रूप में […] Read more »
वर्त-त्यौहार होली-हुडदंग March 21, 2011 / December 14, 2011 | Leave a Comment होली में मुहल्ले में, हल्ला है, गुल्ला है, रंग है, भंग है, छाछ है, रसगुल्ला है. गुझिया है, पेडा , कचौड़ी, गुलगुल्ला है, कीचड है, कांई है, रंग का बुलबुल्ला है. पंडा नाचत भंग छान, छिपत न मुल्ला है, बचत न कोई, कोई डर न खुल्लमखुल्ला है. अंग में है रंग , की […] Read more » Holi
कहानी बच्चों का पन्ना एकलव्य प्रसंग : आधुनिक पुनर्पाठ March 16, 2011 / December 14, 2011 | 1 Comment on एकलव्य प्रसंग : आधुनिक पुनर्पाठ एक राजा का लड़का था जो इतने के बावजूद राजपूत नहीं था। चूँकि उसका पिता जन्म से क्षत्रप न होकर निशाद था अतः वह राजपूत होने की न्यूनतम अर्हता पूरी करके भी वांछनीयताओं में पिछड़ जाता था। तत्कालीन पूर्ण पक्के राज पुत्रों के समान उसने भी िक्षित होने का मन बनाया। हालांकि उसके पिता ने […] Read more »